फ़िरोज़ाबाद: खाने की थाली लेकर पुलिस कॉन्स्टेबल का रोता हुआ वीडियो बहुत कुछ कहता है
पूर्व बीएसएफ़ जवान तेज बहादुर यादव का नाम तो शायद आपको याद ही होगा। करीब चार साल पहले उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। इस वीडियो में तेज बहादुर फ़ौजियों को मिलने वाले खाने की शिकायत कर रहे थे। वो बता रहे थे कि उन्हें कैसी गुणवत्ता का खाना दिया जाता है। तेज बहादुर ने बताया था कि अफसरों से शिकायत करने पर भी कोई सुनने वाला नहीं है यहां तक कि गृह मंत्रालय को भी चिट्ठी लिखी लेकिन कुछ नहीं हुआ।
तेज बहादुर के उस वीडियो के बाद बीएसएफ़ समेत राजनीतिक गलियारों में कुछ दिन तक हलचल मच गई थी। बीएसएफ़ ने इस मामले की जांच के आदेश दिए थे और बाद में तेज बहादुर को बीएसएफ़ से निकाल दिया गया था। अब फ़िरोज़ाबाद पुलिस के एक सिपाही मनोज कुमार ने कुछ ऐसी ही शिकायत की है। उन्होंने पुलिस लाइन के बाहर हाइवे पर अपने हाथ में खाने की थाली लेकर पुलिस मेस में मिलने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठाए।
बता दें कि सोशल मीडिया पर इस घटना से जुड़े कई अलग-अलग वीडियो वायरल हैं। इन सभी वीडियो में पुलिस कॉन्स्टेबल मनोज कुमार को रोते हुए देखा जा सकता है। मनोज कुमार ने खाने की थाली हाथ में लेकर आरोप लगाया है कि पुलिस लाइन के मेस में दाल में पानी ज्यादा होता है और रोटी कच्ची दी जाती है। मनोज का कहना है कि 12 घंटे ड्यूटी करने के बाद उन्हें इस तरह का खाना दिया जाता है। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि शिकायत के बाद उन्हें धमकी दी जा रही है और फिरोजाबाद पुलिस उसे मानसिक रूप से बीमार घोषित करने के लिए आगरा ले जा रही थी।
क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बुधवार, 9 अगस्त को फ़िरोज़ाबाद पुलिस लाइन के बाहर हाइवे पर सिपाही मनोज कुमार ने थाली से रोटी उठाते हुए कहा कि इस रोटी को जानवर भी नहीं खा सकते हैं। लोगों को रोटी दिखाते हुए सिपाही ने कहा, "इनको झाड़कर देखिए इसमें से क्या निकल रहा है। इसको कोई खा नहीं सकता है। ये दाल है देखिए, इसमें सिर्फ पानी पड़ा हुआ है। इसमें कुछ नहीं है।''
रोते हुए सिपाही मनोज कुमार ने कहा, ''मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि हम पुलिस को पौष्टिक आहार देते हैं। क्या इस तरह से पौष्टिक आहार मिलता है। RI कह रहे हैं कि जनता के बीच शिकायत लेकर जाओगे तो बर्खास्त करके छोड़ेंगे। आप ही बताइए, यही पौष्टिक आहार मिल रहा है? जब पेट में रोटी नहीं जाएगी तो कहां से हम काम कर पाएंगे। इन रोटियों को आप कुत्तों को डाल दीजिए। क्या आपके बेटे-बेटी ये रोटी खा सकते हैं। मैं केवल यही पूछना चाहता हूं। क्या यूपी में हिंदुस्तान में मानवता जिंदा है? तो बता दीजिए कि यूपी पुलिस के आरक्षियों को सब दबाते जा रहे हैं। कोई सुनने वाला नहीं है, मैं सुबह से भूखा हूं।"
दरोगा ने जब सिपाही मनोज से शांत रहने को कहा तो कांस्टेबल ने बोला, ''नहीं साहब, मैं यहीं पर धरना पर बैठूंगा। यहीं बुला लो, जिसको बुलाना है। अब तक मैं लोगों के पीछे भाग रहा था। मुझ पर दबाव बनाया जा रहा था। उच्चाधिकारियों का आदेश है कि साहब पालन करेंगे और हमें रगड़ दिया जाएगा। यदि कप्तान साहब पहले ही सुन लेते तो मुझे यहां आने की आवश्यकता नहीं थी।''
मेस में मिलती कच्ची रोटी और पानी वाली दाल
फ़िरोज़ाबाद पुलिस की डबरई मेस में खींचे एक वायरल वीडियो में आरक्षी मनोज कुमार कह रहे हैं, "कच्ची रोटी खा-खा कर पुलिस परेशान है। मैंने इस सम्बन्ध में आरआई साहब को, सीओ सिविल लाइन्स को अवगत कराया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। दाल पानी जैसी है। इसलिए अधिक से अधिक वीडियो शेयर करो।"
सड़क पर मीडिया के सामने वो वहां मौजूद लोगों को नंबर दिखाते हुए डीजीपी को भी फ़ोन करते हैं, "मैं कांस्टेबल 380 मनोज कुमार बोल रहा हूँ। सर मैं थाली लेकर कप्तान साहब के सामने पेश हुआ। उन्होंने न ही मेरी तरफ़ कोई रुख़ किया, न ही कोई कार्रवाई की। मैं थाली लेकर बीच सड़क पर खड़ा हूँ महोदय। कोई मेरी सुनने वाला नहीं है।"
फ़िरोज़ाबाद पुलिस क्या कह रही है?
पुलिस के अनुसार इस मामले की जांच सीओ लाइन हीरालाल कनौजिया को सौंप दी गई है। इस संबंध में एक ट्वीट भी शेयर किया गया जिसमें लिखा है, "मेस के खाने की गुणवत्ता से सम्बन्धित शिकायती ट्वीट प्रकरण में खाने की गुणवत्ता सम्बन्धी जांच सीओ सिटी कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि उक्त शिकायतकर्ता आरक्षी को आदतन अनुशासनहीनता, ग़ैरहाज़िरी व लापरवाही से सम्बन्धित 15 दण्ड विगत वर्षों में दिए गए हैं।"
मैस के खाने की गुणवत्ता से सम्बन्धित शिकायती ट्वीट प्रकरण में खाने की गुणवत्ता सम्बन्धी जांच सीओ सिटी कर रहे है।
उल्लेखनीय है कि उक्त शिकायतकर्ता आरक्षी को आदतन अनुशासनहीनता, गैरहाजिरी व लापरवाही से सम्बन्धित 15 दण्ड विगत वर्षो में दिये गये है । @Uppolice @dgpup @adgzoneagra
— Firozabad Police (@firozabadpolice) August 10, 2022
विपक्ष ने सरकार को घेरा
सिपाही मनोज कुमार के इस शिकायती वीडियो के वायरल होने पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर बीजेपी सरकार पर निशाना साधा और सवाल किया, "अमृत महोत्सव के छद्म उत्सव के शोर शराबे में भूख से रोते यूपी के पुलिस वाले की बात सुनने वाला कोई है क्या? महोत्सव के नाम पर भूखोत्सव क्यों?"
अमृत महोत्सव के छद्म उत्सव के शोर शराबे में भूख से रोते यूपी के पुलिसवाले की बात सुननेवाला कोई है क्या?
महोत्सव के नाम पर भूखोत्सव क्यों? pic.twitter.com/rvol6APLoG
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) August 11, 2022
आम आदमी पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई ने ट्विटर पर लिखा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ जी देखिए इस वीडियो को शर्म कीजिए अपनी सरकार पर जो सिपाहियों के लिए अच्छा खाना तक नहीं दे पा रही है।
ट्वीट में आगे सीएम योगी को टैग करते हुए लिखा है कि अब अपना और अपनी सरकार के भ्रष्ट हो चुके सिस्टम के निकम्मेपन को छिपाने के लिए इस सिपाही को सस्पेंड मत कर दीजिएगा।
.@myogiadityanath जी, अब अपना और अपनी सरकार के भ्रष्ट हो चुके सिस्टम के निकम्मेपन को छिपाने के लिए इस सिपाही को सस्पेंड मत कर दीजिएगा।
नकारा और निकम्मी निकली आदित्यनाथ सरकार। https://t.co/raAxnxlrxr
— Aam Aadmi Party- Uttar Pradesh (@AAPUttarPradesh) August 10, 2022
वहीं यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बी वी ने ट्विटर पर लिखा कि यूपी पुलिस के सिपाही मनोज कुमार के ये आंसू बताने के लिए काफी हैं कि प्रधानमंत्री 18-18 घंटे किन-किन लोगों के लिए काम कर रहे हैं और बाकियों का क्या हाल है।
'सरकार हमसे 12-12 घंटे काम कराती है और बदले में ऐसा खाना देती है'
- फिरोजाबाद में तैनात UP पुलिस के सिपाही मनोज कुमार के ये आंसू बताने के लिए काफी है कि प्रधानमंत्री 18-18 घंटे किन 2 लोगों के लिए काम कर रहे है और बाकियों का क्या हाल हैpic.twitter.com/O1fKw3mdsK
— Srinivas BV (@srinivasiyc) August 10, 2022
गौरतलब है कि पुलिस फोर्स में काम करना आसान काम नहीं है। ख़ास तौर पर जब कोई निचले ओहदों पर काम कर रहा हो। आईपीएस अधिकारियों को छोड़ दें तो उनके नीचे काम करने वाले आम पुलिसकर्मियों की ड्यूटी का न वक़्त निर्धारित है और नाही साप्ताहिक छुट्टी।
2019 में आई 'स्टेटस ऑफ़ पोलिसिंग इन इंडिया 2019' की रिपोर्ट में भी ये बातें सामने आई थीं। इस रिपोर्ट में कई ऐसे पहलुओं पर भी चर्चा की गई थी जिसकी वजह से पुलिसकर्मियों को मानसिक और शारीरिक तनाव झेलना पड़ता है।
मालूम हो कि क़ानून और व्यवस्था राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है इसलिए हर राज्य में पुलिसकर्मियों के सामने अलग-अलग तरह की समस्याएं आती हैं। हालांकि परेशान करने वाली बात ये है कि नौकरी के डर से पुलिसकर्मी अपने साथ हो रही इन दिक्कतों के लिए मुखर होकर आवाज़ भी नहीं उठा पाते। कुछ अपवाद हैं इस मामले में, लेकिन ज्यादातर चुप रहना ही पसंद करते हैं। ऐसे में अब सरकार को समझना है कि ऐसे लोगों को सिस्टम से बाहर करके दोषियों पर पर्दा न डाला जाए बल्कि उनकी शिकायतों पर ध्यान दिया जाए क्योंकि जिन पर आम लोगों की रक्षा का जिम्मा सौंपा जा रहा है, उन लोगों की जरूरतें आगर ठीक से पूरी नहीं होंगी तो जाहिर है वो अपना काम कैसे ठीक से कर पाएंगे।
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