भारत जोड़ो यात्राः कश्मीर से, 2024 के लिए कांग्रेस ने विपक्षी राजनीति का बिगुल फूंका
कश्मीर की राजधानी श्रीनगर कई सालों बाद इस तरह से सफेद चादर से ढकी। भारत जोड़ो यात्रा जब अपने आखिरी मुकाम पर पहुंची तो मौसम ने खुलकर बर्फ की बारिश की। कश्मीरी इसे खुदा की नेमत कहते हैं, यानी भगवान की सौगात। इसके लिए कश्मीरी राहुल गांधी को शुक्रिया अदा कर कह रहे हैं कि उन्होंने नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने की जो बात कही, उसका बर्फबारी ने इस्तकबाल किया है। इतनी भीषण बर्फबारी में, गलाने वाली ठंड में जिस तरह से लोग भीगते हुए भारत जोड़ो यात्रा की रैली में शिरकत कर रहे थे, उससे लग रहा था कि एक नई आशा का संचार करने में वह सफल रहे।
भारत जोड़ो यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक रही—पहली बार किसी नेता ने 150 दिनों तक पैदल चल कर कन्याकुमारी से कश्मीर तक का सफर तय किया। और, पहली बार लोकतंत्र को बचाने का संदेश, देश को जोड़ने का सवाल और उस दिशा में निर्णायक पहल कश्मीर की धरती से एक राजनीतिक पार्टी ने की। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक विपक्षी दलों के बीच कैसे साझा हो सकता है, उसकी मिसाल भी भारत जोड़ो यात्रा बनी। आज जब रैली में शुरुआत पीडीपी नेता और भाजपा के साथ सरकार बनाने वाली महबूबा मुफ्ती ने की और साफ शब्दों इस बात का ऐलान किया कि 2024 में राहुल रांधी के नेतृत्व में भी चुनाव लड़ा जाएगा। उनके बाद बोला नेशनल कॉफ्रेंस के उमर अब्दुला ने, जिन्होंने राहुल गांधी से अपील की कि वह पश्चिम से पूर्व की तरफ एक और यात्रा निकालें, जिसमें वह खुद भी शिरकत करेंगे। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राष्ट्रीय महासचिव डी. राजा ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जिक्र किया। सिविल सोसाएटी व स्वराज पार्टी के योगेंद्र यादव ने भी अपील की कि अब असल यात्रा शुरू हुई है—घर-घर तक पहुंचने की, मोहब्बत का पैगाम ले जाने की।
बर्फबारी में राहुल गांधी ने श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम से काफी भावनात्मक-दार्शनिक स्वर अख्तियार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने संभवतः पहली बार अपने भाषण में अपनी दादी और पिता की हत्या का जिक्र किया और कहा कि एक शहीद के घर वाला ही हिंसा का दर्द समझ सकता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह से सब लोग उन्हें कश्मीर में पैदल न चलने की सलाह दे रहे थे और कह रहे थे कि उन पर ग्रेनेड से हमला हो सकता है। इस पर उन्होंने कहा कि वह सफेद टी-शर्ट पहनकर चल रहे हैं, अगर नफरत करने वाले इसका रंग सफेद से बदलकर लाल करना चाहते हैं तो कर लें। वह डरते नहीं हैं और चलेंगे पैदल ही। --इस तरह से उन्होंने यह दावा किया कि जान को जोखिम में डालकर भी उन्हें कश्मीर के लोगों की मोहब्बत पर पूरा भरोसा था। इस पर भी दर्शकों ने खूब जमकर रिस्पॉन्स दिया।
अपने चिरपरिचित अंदाज में अपना लोकप्रिय डायलॉग तो दोहराया ही कि नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने आया हूं—जिस पर दर्शकों ने जमकर तालियां पीटीं। साथ ही कश्मीर को अपने खानदानी रिश्ते को एक भावनात्मक अपील के साथ पेश किया। उन्होंने बेहद सधे हुए स्वर में भाजपा और खासतौर से गृहमंत्री अमित शाह को चुनौती दी कि वह जम्मू से कश्मीर तक पैदल चल कर दिखाएं।
हिंसा मुक्त भारत का सपना पेश करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि वे नहीं चाहते कि किसी भी परिवार को—चाहे वह कश्मीरी का हो या पुलिस या सुरक्षा बलों का—किसी को भी अपनों को ना खोना पड़े। किसी के घर भी यह फोन न आए, कि उनके परिजन की हिंसा में मौत हो गई। तभी देश में शांति और विकास हो सकता है। इससे कश्मीरी सीधे-सीधे कनेक्ट हो गये।
प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी समापन रैली को संबोधित किया।
बेकरी की दुकान चलाने वाले हामिद ने कहा, मैंने यह सुना तो मुझे अब्बू की लाश का मंजर याद आ गया। सच है, किसी के घर ऐसी मौत नहीं होनी चाहिए। वहीं, बगल में खड़ी नाज़मा मट्टो ने कहा कि राहुल गांधी दिलेर है। पैदल चलकर हमारे पास आया और सीधे-सीधे इन मौतों को बंद करने की बात कर रहा है। हम तो उसी के साथ चलेंगे—वही हमारे ज़ख्मों पर मलहम लगा सकता है।
भारत जोड़ो यात्रा ने कश्मीर में एक राजनीतिक हलचल पैदा की। कश्मीरी 5 अगस्त 2019 यानी अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या सड़कों पर उतरे। लिहाजा उनमें बड़ी तादाद को राहुल गांधी से आस जगी है।
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