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दिल्ली : साईंस की शिक्षा से वंचित ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र नहीं पूरा कर पा रहे अपना सपना

दिल्ली के गांवों के छात्रों को अक्सर सरकारी स्कूलों में साईंस या कॉमर्स की अनुपस्थिति में कला का अध्ययन करने के लिए मजबूर किया जाता है, यह अंततः उनके करियर विकल्पों को सीमित कर देता है।
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तस्‍वीर साभार: वॉलपेपर फ्लेयर

दिल्‍ली: ललित (16) ने अभी-अभी 10वीं की परीक्षा पास की है। दक्षिण-पश्चिम दिल्‍ली के ढांसा गांव का रहने वाला ललित यह सुनिश्‍चित करने के लिए निजी और सरकारी स्‍कूलों के चक्‍कर लगा रहा है कि कहीं किसी सूचना से वंचित न रह जाए। स्‍कूल उसके गांव से कम से कम 12 किमी दूर है, हर रोज इतनी यात्रा करना उसके लिए थकान भरा होता है। उसे दुविधा है कि गांव में रह कर वह आर्ट लेकर पढ़ाई पूरी करे या अपने सपने को पूरा करने के लिए यानी साईंस से पढ़ाई करने के लिए गांव से दूर जाए। इससे वह मानसिक रूप से परेशान है। ढांसा गांव के लगभग हर बच्‍चे का सपना साईंस की पढ़ाई करना है पर उनका ये सपना कभी पूरा नहीं होता। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण आजीविका का प्रमुख साधन कृषि है। प्रदीप डागर (45) अपना उदाहरण देते हुए छात्रों की दुर्दशा बताते हैं, ''आपको बताऊ कि मेरे समय में मैंने भी साईंस लेने की कोशिश की थी। मैं सरकारी परीक्षा देकर उच्‍च पद पर जाना चाहता था। पर मुझे मालूम नहीं था कि कुछ निश्चित पदों के लिए 11वीं में साईंस या कॉमर्स लेना जरूरी होता है। पर मैं नहीं ले पाया क्‍योंकि मेरे गांव में सिर्फ आर्टस की सुविधा थी और इस तरह मुझे अपनी शिक्षा के स्‍तर से समझौता करना पड़ा।'’

न्यूज़क्लिक ने शिक्षा क्षेत्र में साईंस वर्ग की उपलब्धता की स्पष्ट तस्वीर देखने के लिए उपलब्ध सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण किया। ढांसा जिस जोन के अंतर्गत आता है, वह दिल्ली शिक्षा विभाग का जोन 22 है, जिसमें नजफगढ़ और हरियाणा की सीमा से लगे दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के अन्य इलाके शामिल हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जोन के कुल 48 स्कूलों में से केवल 11 स्कूल छात्रों को साइंस स्ट्रीम ऑफर करते हैं।

इसके अलावा, 2022 में एक आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार, दिल्ली में कुल 11वीं और 12वीं कक्षा में साईंस की पेशकश करने वाले कुल स्कूलों में से केवल एक तिहाई स्कूल हैं। यह डेटा पूरी दिल्ली में और विशेष रूप से क्षेत्र के बारे में स्थिति की एक स्पष्ट तस्वीर पेश करता है।

प्रदीप के 12वीं पास करने के बाद के वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। सरकार बदल गई है, और साथ ही आप (आम आदमी पार्टी) की वर्तमान दिल्ली सरकार द्वारा प्रस्तुत स्कूली शिक्षा मॉडल का प्रचार भी बदल गया है। वर्तमान सरकार कांग्रेस सरकार या उससे पहले किए गए किसी भी पुराने वादों के बजाय अपने द्वारा किए गए शैक्षिक परिवर्तनों के बारे में सिर्फ जुमलेबाजी कर रही है। हालांकि, ढांसा के 2015-16 बैच से पास आउट गीता ने बताया कि किस तरह उद्धृत विकास और वास्तव में उन्होंने जो देखा, उसके बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है।

गीता ने कहा, '’मैंने वास्तव में ढांसा के हमारे सरकारी स्कूल को बदलते देखा है। लेकिन दुखद कहानी यह है कि बदलाव सिर्फ विकास और बुनियादी ढांचे के निर्माण के मामले में हुआ है। इमारतें नई हैं, हमारे पास किसी भी अन्य निजी स्कूल की तरह बेंच हैं, और हमारे शिक्षक और कर्मचारी सहायक हैं, लेकिन हमारे पास अभी भी अवसरों की कमी है।'' उन्होंने करियर के रूप में फाइनेंस को आगे बढ़ाने के अपने सपनों के बारे में बताना जारी रखा। उन्होंने कहा, “अगर हमारे पास साईंस और कॉमर्स के बीच चयन करने का विकल्प होता, तो अधिकांश बच्चे इनमें से किसी एक विकल्प को ही चुनते। लेकिन आज, मुझे कला (मानविकी) में अपना स्नातक पूरा करना पड़ा है। मैं 11वीं कक्षा में कॉमर्स का अध्ययन नहीं कर सकी, और इसलिए अपने करियर के रूप में फाइनेंस को नहीं ले पाऊंगी।”

पारस त्यागी द्वारा डेटा विश्लेषण इन धाराओं के स्कूलों में शामिल नहीं होने के लिए जिम्मेदार अन्य कारकों को भी दर्शाता है। शिक्षकों के लिए बड़ी संख्या में रिक्तियां नोटिस करने का एक अन्य कारक है, जिसे समान सरकारी आंकड़ों में भी देखा जा सकता है। जोन 22 में 35,007 छात्रों के लिए शिक्षकों के 182 पद खाली हैं। त्यागी ने कहा, "यदि इन रिक्तियों को विधिवत भरा जाता है और साइंस को स्कूलों में शामिल कर लिया जाता है तो बहुत सारे स्कूल साईंस पढ़ाने में सक्षम होंगे।"

कुछ छात्र पास के स्कूल में साईंस पढ़ने जाते हैं। स्कूल उनके घर से करीब 12 किमी दूर है। जैसे ही कोई ढांसा गांव में प्रवेश करता है, उसे पता चलता है कि डीटीसी बसें जैसी सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं उतनी नियमित नहीं हैं, जितनी दिल्ली के किसी भी शहरी क्षेत्र में हैं। चूंकि बच्चे उन परिवारों से आते हैं जो खेती पर निर्भर हैं, वे उनके लिए एक स्थायी निजी वाहन बुक करने पर पैसा खर्च नहीं कर सकते हैं। बसें अक्सर देरी से चल रही होती हैं और इससे उनके स्कूल का समय प्रभावित होता है। सिर्फ यही समस्‍याएं ही नहीं हैं बल्कि और भी हैं। संकेत बताते हैं, “अगर मैंने अपने पिता से कहा होता कि मैं साईंस लेना चाहता हूं, तो अगर जरूरत पड़ती तो वह स्वेच्छा से हमारी जमीन बेच देते पर मुझे पढ़ाते। लेकिन खेत में उनकी मदद कौन करेगा? मेरे छोटे भाई के काम पर जाने के बाद घर की देखभाल कौन करेगा?”

जो बच्चे ग्रामीण परिवेश में बड़े होते हैं उनकी शिक्षा के अलावा अन्य जिम्मेदारियां भी होती हैं। ऐसी स्थिति में, जब उनके मोहल्ले में कोई स्कूल नहीं है, या कम से कम कुछ किलोमीटर की दूरी पर हो तो बच्चों को त्याग करना पड़ता है।

संकेत हमेशा एक होनहार छात्र रहे थे और सेना में शामिल होने के लिए एनडीए की परीक्षा पास करना चाहते थे। वह शुरू से ही खेलों में अच्छे थे। पर बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वह अधिकांश पदों के लिए योग्य भी नहीं थे क्योंकि वह साईंस पृष्ठभूमि से नहीं थे और उन्हें एक निम्न-श्रेणी के पद के लिए समझौता करना होगा, जिससे उन्हें कम वेतन भी मिलेगा। उन्होंने अपनी दौड़ने की प्रैक्टिस जारी रखी और वर्तमान में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी पाने की इच्छा है। संकेत ने बताया कि कैसे 2019 में कुछ छात्रों ने प्रशासन से अनुरोध किया था और गांव के स्कूल के लिए साईंस और कॉमर्स स्ट्रीम शुरू करने के लिए जिला स्तर के अधिकारियों को पत्र लिखे थे।

हालांकि, अधिकारियों ने कथित तौर पर कहा कि उन्हें ऐसा करने की योजना को छोड़ना पड़ा क्योंकि इन पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या काफी कम थी। समूह के एक पुराने छात्र ने कहा, ''हम उन्हें कहते रहे, सर संख्या बढ़ेगी। हमारे गांव और आस-पड़ोस के कई सक्षम और इच्छुक छात्र हैं जो भविष्य में साईंस या कॉमर्स का अध्ययन करना चाहेंगे। इन स्ट्रीम को हमारे लिए शुरू करने पर आपको पछतावा नहीं होगा। चूंकि यह गांव के लोगों के लिए नया है, वे इसके बहुत आदी नहीं हैं और अपने बच्चों को जो वे चाहते हैं उसे पढ़ने के लिए समय दे रहे हैं, लेकिन चीजें धीरे-धीरे बदल जाएंगी।'' हालांकि, वह आखिरी बार था जब साईंस या कॉमर्स की मांगों पर भी विचार किया गया था।

अब तक, छात्र कला की पढ़ाई कर रहे हैं। ललित विभिन्न गांवों में अन्य स्कूलों के चक्कर लगा रहा है और लोगों ने भी अपनी अन्य समस्याओं को बताया। ललित ने बताया, ''लंबी यात्रा के अलावा, सबसे बड़ी समस्या यह है कि दूसरे गांव का स्कूल पहले अपने गांव के छात्रों को मौका देता है। अगर उसके बाद भी कोई सीट बची रहती है, तो हमें अवसर मिलता है। वरना, हमें कम से कम के लिए समझौता करना होता है। इसके अलावा, अन्य निजी स्कूल हमें एक ऐसी फीस बताते हैं जो हमारी साल में दो बार की खेती की आय अफोर्ड नहीं कर पाती।'’

उन छात्रों के लिए एक और समस्या है जो डिफेंस में शामिल होना चाहते हैं। चूंकि उन्हें अपनी शारीरिक फिटनेस भी बनाए रखनी होती है, इसलिए उन्हें दिन में कम से कम दो बार दौड़ने का नियमित अभ्यास करना होता है। हालांकि, उनके क्षेत्र से निकटतम ट्रैक जहां वे अभ्यास कर सकते थे, मुंडेला में है, जो उनके गांव ढांसा से 8-10 किमी दूर है।

दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर ही एक बड़ी विसंगति दिखाई दे रही है, जहां अधिकारियों को यह दावा करते देखा गया है कि खेल के मैदान के लिए जगह नहीं है। जबकि स्कूल की सरकारी वेबसाइट से पता चलता है कि बच्चों के खेल के मैदान के लिए 1000 वर्गमीटर से अधिक जमीन रखी गई है।

बुनियादी सेवाओं की कमी और अपने मनचाहे शिक्षा क्षेत्र को अपना नहीं पाने के कारण, ढांसा और जोन 22 के आसपास के गांवों के छात्रों का भविष्‍य अनिश्चित है।

मूल रुप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिर्पोट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

In Delhi’s Rural Areas, Students Deprived of Opportunities as Few Schools Offer Science Subjects

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