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किसान आंदोलन की तेज़ होती हलचल: नई संभावनाएं, नए कार्यभार

कुरुक्षेत्र में किसानों का दमन MSP गारंटी कानून के लिए आंदोलन का लॉन्चिंग पैड बनेगा 
kisan
फ़ोटो साभार: ट्विटर

कैसा संयोग है कि 6 जून को जब मोदी सरकार खरीफ की फसलों पर समर्थन मूल्य में 5 से 10 प्रतिशत की मामूली बढ़ोत्तरी के लिए अपनी पीठ थपथपा रही थी, ठीक उसी दिन सरकार द्वारा घोषित MSP पर अपनी फसल की खरीद के लिए आवाज उठा रहे सूरजमुखी उत्पादक किसानों पर कुरुक्षेत्र में वाटर कैनन चल रहा था और लाठियां बरस रही थीं। उसी दिन ग्रेटर नोएडा में भी किसानों पर लाठीचार्ज हुआ।

किसानों के प्रति सरकार के प्रेम-पाखंड और असली नीयत तथा नीतियों के द्वैध का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है !

संयुक्त किसान मोर्चे की राष्ट्रीय कमेटी ने भले ही मई, जून और जुलाई के महीनों को सांगठनिक सुदृढ़ीकरण और सम्मेलनों को समर्पित किया था, पर हालात ऐसे हैं कि जगह जगह आंदोलनों की हलचल और सरकार से टकराव जारी है।

पश्चिमोत्तर भारत— हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब से लेकर राजस्थान—का इलाका किसान आंदोलन का कुरुक्षेत्र बना हुआ है-यहां माहौल लगातार सरगर्म है। इसी तरह महाराष्ट्र की नासिक-मुंबई पट्टी में भी किसान बार बार सड़क पर उतर रहे हैं।

हरियाणा में 6 जून को जो हुआ, वह 13 महीने बॉर्डर पर उनके ऐतिहासिक आन्दोलन के दौरान भी नहीं हुआ था-हरियाणा के सबसे बड़े किसान नेता और SKM के सबसे बड़े चेहरों में रहे गुरुनाम सिंह चढूनी और कई अन्य किसान नेताओं को 307 जैसी संगीन धाराओं में जेल भेज दिया गया। किसानों पर वाटर कैनन के बाद पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया जिसमें बताया जा रहा है कि चढूनी की पगड़ी भी गिर गियी। घायल किसान रणजीत सिंह को पीजीआई चंडीगढ़ refer किया गया।

किसान, सरकार द्वारा घोषित एमएसपी  6400/ प्रति क्विंटल पर सूरजमुखी बीज खरीद की मांग कर रहे थे, बाजार में उन्हें उसका मात्र 4000/ प्रति क्विंटल मिल रहा है। लेकिन सरकार MSP पर खरीद कर नहीं रही है। आंदोलन के दबाव में  हरियाणा सरकार 1000/ प्रति क्विंटल कैश बतौर क्षतिपूर्ति देने को तैयार हुई, लेकिन किसान इस पर राजी नहीं थे, क्योंकि उन्हें MSP की तुलना में प्रति क्विंटल 2400/- का भारी घाटा हो रहा है।

कुरुक्षेत्र में आखिर सरकार इस तरह के दमन पर क्यों उतारू हुई ? क्या भाजपा चुनावी साल में किसान आंदोलन के नए उभार की संभावना से डरी हुई है।

Immediate provocation भले किसानों द्वारा अमृतसर-दिल्ली हाई-वे जाम बना हो, पर असल कारण अधिक गहरे हैं। दरअसल, वह पूरा इलाका एक के बाद दूसरी जनान्दोलन की लहरों का साक्षी बना हुआ है—ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद अग्निवीर योजना के खिलाफ जबरदस्त हलचल, पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के विस्फोटक खुलासे और बढ़ती सक्रियता, फिर महिला पहलवानों का आंदोलन, अब किसानों ने भी फिर आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है।

महिला पहलवानों के सवाल ने हरियाणा-पश्चिमी यूपी की उस पूरी पट्टी में  समाज में जबरदस्त भावनात्मक उद्वेग पैदा किया है। यह अनायास नहीं है कि किसान संगठनों और नेताओं के साथ सर्व-खाप पंचायतें भी पहलवानों के पक्ष में उतर पड़ीं। घबराई सरकार ने पहलवानों को तरह-तरह के छल-प्रपंच से दबाव में लेकर और कार्रवाई का आश्वासन देकर भले उन्हें फिलहाल आंदोलन रोकने के लिये मजबूर कर दिया हो, लेकिन इससे किसी राजनीतिक लाभ की बजाय शायद उसने अपना राजनीतिक नुकसान ही अधिक किया है। 

क्योंकि यह सन्देश बिल्कुल loud and clear पूरे देश-दुनिया में जा चुका है कि  सरकार यौन-शोषण जैसे गम्भीर अपराध के आरोपी भाजपा सांसद को बचा रही है, और उसके लिए देश के गौरव अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ियों के दमन में सारी सीमाएं पार कर गयी है। सबसे shocking महिला पहलवान का यह बयान था कि वे बहुत पहले ही मोदी जी को इसके बारे में निजी तौर पर बता चुकी थीं! इसके बावजूद कुछ नहीं हुआ।

सामाजिक दबाव और राजनीतिक भय का ही  परिणाम है कि हरियाणा सरकार के मंत्रियों समेत भाजपा के कई नेताओं को पहलवानों के पक्ष में बयान देना पड़ा।

गौरतलब है कि किसानों की ताजा हलचल MSP के विस्फोटक मुद्दे को लेकर है, जिसको लेकर मोदी सरकार की वायदाखिलाफी के विरुद्ध किसान पहले से ही बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं।  ऐसे दौर में जब मोदी-शाह 2024 के अभियान में उतर पड़े हैं, हरियाणा और पूरी जाट पट्टी में यह हलचल तथा लोगों का बढ़ता आक्रोश संघ-भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व और खट्टर सरकार की नींद हराम करने के लिये पर्याप्त है। 

सरकारी बर्बरता के खिलाफ वहां आयोजित विशाल protest रैली को सम्बोधित करते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार जाति, क्षेत्र के आधार पर बांटने की लाख कोशिश कर ले, हम एक हैं और MSP कानून के सवाल पर आंदोलन अब और तेज होगा।

दरअसल MSP के सवाल पर मोदी-राज और भाजपा सरकारों का रेकॉर्ड कांग्रेस के दौर से भी बदतर है। UPA शासन के 9 साल और मोदी-राज के 9 साल के तुलनात्मक अध्ययन से यह बात साफ है- धान के लिए समर्थन मूल्य कांग्रेस के 9 साल में 560/- से 134% बढ़कर 1310/- प्रति क्विंटल हुआ था, लेकिन भाजपा राज के 9 साल में 1310/- से मात्र 61% वृद्धि के साथ 2183/- प्रति क्विंटल पहुंचा। इसी तरह सोयाबीन में 184% की तुलना में 80%, मक्के में 150% की तुलना में 60%, अरहर 209% की तुलना में 61%, मूंग 219%की तुलना में 86%, उड़द 205% की तुलना में 60% मूंगफली के दाम में मनमोहन सिंह के दौर के 167% की तुलना में मोदी राज में मात्र 59%  की वृद्धि हुई।

हरियाणा में सूरजमुखी किसानों के आंदोलन ने एक बार फिर पूरी शिद्दत से MSP की कानूनी गारंटी की मांग को एजेंडा पर ला दिया है। दरअसल सरकार तर्क देती है कि MSP व्यवस्था तो पहले से ही लागू है ही। पर उसकी असलियत  फिर सामने आ गई कि MSP घोषित भले ही होती है लेकिन वह किसानों को मिलती नहीं है-बाजार में वह दाम मिलता नहीं और सरकार खरीद करती नहीं।

सच्चाई यह है कि केवल धान और गेहूं उत्पादक किसानों को MSP दर पर सरकारी खरीद का लाभ मिल पाता है और वह भी basically पंजाब और हरियाणा में। बाकी फसलों के उत्पादक किसान पूरे देश में और गेहूं-धान उत्पादक किसान हरियाणा-पंजाब के बाहर बाजार रूपी भगवान के भरोसे हैं ! किसानों की विराट आबादी के लिए MSP का सरकारी दावा एक धोखे और छलावे से अधिक कुछ नहीं है।

स्वामीनाथन आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप C2 +50 के आधार पर सभी फसलों के लिए MSP देने की बात तो बहुत दूर की है !

किसानों की आय दोगुनी करने की मोदी जी की सचमुच नीयत होती, वह सिर्फ चुनावी  शिगूफेबाजी न होती तो MSP की कानूनी गारंटी जैसे नीतिगत बदलावों से उसे हासिल किया जा सकता था।

बहरहाल 9 साल में मोदी सरकार ने यह नहीं किया तो अब शायद ही किसी किसान को इस कारपोरेट-हितैषी सरकार से इसकी उम्मीद बची हो ! 

यह तय है कि मोदी सरकार के रहते अब किसानों की जिंदगी में कोई बेहतरी, कोई खुशहाली आने वाली नहीं।

सुप्रसिद्ध कृषि-विशेषज्ञ देविंदर शर्मा मोदी सरकार की कारपोरेट-परस्ती और किसान-विरोधी चरित्र का खुलासा करते हुए   कहते हैं, " इस दौरान अमीरों को बड़े पैमाने पर बैंकों से ऋण माफी दी गयी, कोविड से पहले 2019 में कॉर्पोरेट जगत को हर साल 1.45 लाख करोड़ रुपये की कर-छूट दिये जाने की घोषणा की गई। सरकार प्रधानमंत्री किसान निधि योजना के तहत किसानों को 2000 रुपये जारी करती है तो इसका प्रचार बड़े जोर-शोर से किया जाता है, इसके बरक्स कारपोरेट जगत को हर साल 1.45 लाख करोड़ रुपये की कर-छूट का जिक्र तक नहीं होता। "

" इतनी विशाल कर-छूट ऐसे समय पर दी गई जब अधिकांश अर्थशास्त्री राष्ट्रीय धन के ग्रामीण क्षेत्र में निवेश की सलाह दे रहे थे ताकि मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था में गति आये। पिछले सालों में कुल मिलाकर 20 लाख करोड़ रुपए अमीरों को दिए जा चुके हैं। अगर यह पैसा कृषि क्षेत्र में निवेश कर दिया जाता तो कृषि-संकट इतिहास की बात हो जाती। "

आज जरूरत है कि चुनाव वर्ष में किसान-आंदोलन MSP की कानूनी गारंटी के सवाल को नई बुलंदी देते हुए, मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करें, उसके खिलाफ अपने " खेती बचाओ, देश बचाओ, लोकतन्त्र बचाओ " नारे के साथ किसानों की राष्ट्रव्यापी लामबन्दी द्वारा इसकी विदाई सुनिश्चित करे और MSP को 2024 के चुनाव का अहम एजेंडा बना दे, ताकि दिल्ली में आने वाली अगली सरकार इसे लागू करने को बाध्य हो जाए।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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