कला विशेष: मौन को ज़ुबां देतीं नलिनी मलानी
नलिनी मलानी, साभार कैटलाग, इंडियन वीमेन आर्टिस्ट, प्रकाशन, आधुनिक कला संग्रहालय
नलिनी मलानी वह शख्सियत हैं जिन्होंने अपनी कला के विभिन्न माध्यमों जैसे चित्र, नाट्य प्रस्तुति और वीडियो इंस्टालेशन से समाज की पीड़ित महिलाओं और उनकी दबी घुटी जुबां को आवाज़ दे रही हैं। नलिनी मलानी की कला के विषय विस्थापित नागरिकों के त्रासदी पूर्ण जीवन,उनके अस्तित्व के सवाल और खासकर महिलाओं पर हिंसक अत्याचार, उनकी दारूण स्थितियों पर आधारित है। नलिनी मलानी को विडियो इंस्टालेशन करने वाली देश की पहली महिला कलाकार माना जा सकता है। अभी हाल ही में उन्हें जापान का वर्ष 2023 का फुकुओका पुरस्कार मिला है। जापान कला और संस्कृति के क्षेत्र में दिए जाने वाले इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली पहली एशियाई कलाकार हैं। यह भारत के लिए गर्व की बात है।
कलाकार नलिनी मलानी,साभार आर्ट इंडिया मैगजीन
दरअसल भारत में महिलाओं को सबसे ज़्यादा पीड़ा घर में ही मिलती है। पीड़ित महिलाओं पर अत्याचार करने में कुछ महिलाएं भी बेख़ौफ़ पुरूषों का साथ देतीं हैं। परंपरा और घर बचाने के नाम पर जिनकी जुबां भय और दबाव से बंद कर दी जाती है। कलाकार कभी हिंसात्मक नहीं हो सकता। हिंसा का शिकार हो सकता है। हिंसक समाज में शांति दूत हैं कलाकार।
आस - पास की घटती असह्य घटनाएं उन्हें भी विचलित करती हैं और ये विषय उनके चित्रों के विषय बन जाते हैं। नलिनी मलानी का भी बचपन कटु अनुभवों से गुजरा है। क्योंकि अंग्रेजों से आजादी के बाद भारत में बहुत से लोगों को विभाजन का दर्द सहना पड़ा। सबसे ज्यादा हिंसा की शिकार औरतें और बच्चे ही हुए।नलिनी जब एक वर्ष की थीं तभी हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच बंटवारे की वजह से उन्हें अपनी मां के साथ कोलकाता हिंदुस्तान में शरण लेनी पड़ी। इसी वजह से नलिनी मलानी का शुरुआती जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा है।
शीर्षक विहीन, कलाकार नलिनी मलानी,साभार आर्टिस्ट डायरेक्टरी, प्रकाशन, राष्ट्रीय ललित कला अकादमी, दिल्ली
कला की विधिवत शिक्षा लेने के लिए नलिनी मुंबई गईं और सर जे॰ जे॰ स्कूल आफ आर्ट में दाखिला लिया। अपने संघर्ष पूर्ण और कष्टपूर्ण अनुभवों को मूर्त रूप देने के लिए और अपनी पहचान बनाने के लिए नलिनी ने कला को माध्यम के रूप में चुना। जे ॰ जे ॰ स्कूल आफ आर्ट से नलिनी दृश्य कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। उसी दरम्यान मुम्बई में भूलाभाई मेमोरियल इंस्टीटयूट था जहां अनेक विषयों पर आधारित एक स्टूडियो था,जो कलाकारों, संगीतकारों और रंगमंच के अभिनेताओं को रचनात्मक कार्यों के लिए आमंत्रित करता था। देश के वरिष्ठ चित्रकार अकबर पदमसी के प्रोत्साहन से नलिनी ने भी वहां काम किया । वहां वह एकमात्र महिला सदस्य थीं।
नलिनी मलानी को 1970 में फ्रांस की सरकार द्वारा ललित कला क्षेत्र में छात्रवृत्ति मिली। पेरिस के एटेलियर फ्रीडलैंडर में नलिनी ने छापा चित्रकला पर अपनी पकड़ बनाई। वे मार्क्सवादी विचारधारा से बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने नाओम चाॅम्स्की , सिमोन द ब्यूवोदार के व्याख्यानों में भाग लिया। नलिनी ने जीन ल्यूक फिकेज में फ़िल्म स्क्रीनिंग में भी भाग लिया। पेरिस में लिए कला प्रशिक्षण और अनुभवों से नलिनी की कला को नया आयाम दिया जिससे उनके अपने चुनौतीपूर्ण नवसृजन के लिए एक आधार मिला।
भारत लौटने पर नलिनी ने अपना ध्यान मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार में महिलाओं की दशा पर अध्ययन किया और उन्हें अपने चित्रों का विषय बनाया। इस दौर में उनके चित्र जलरंगों और एक्रेलिक रंगों में थे। नलिनी मलानी कला अध्ययन के बाद महिलाओं के पुनः घर में बैठ जाने से बेहद उद्वेलित होती रही हैं। अतः उन्होंने पहली महिला कलाकारों की प्रदर्शनी,''थ्रू द लूकिंग ग्लास'' शीर्षक से किया। जिसकी पूर्व रूपरेखा उन्होंने 1979 में ही न्यूयॉर्क की आकाशवाणी गैलरी की दृश्य कलाकार नैन्सी स्पेरो और अमरीका की कलाकार स्टीवेंस के साथ विचार विमर्श के बाद किया।
सोती हुई महिला, कैनवास पर तैल रंगों में, चित्रकार नलिनी मलानी, साभार कैटलाग, इंडियन वीमेन आर्टिस्ट, प्रकाशन , आधुनिक कला संग्रहालय,नई दिल्ली
ऐसे माहौल में जबकि ज्यादातर कलाकार आकर्षक रंगों में सुरूचिपूर्ण आकृति मूलक चित्र बनाते हैं, नलिनी कोई समझौता नहीं करती । वे मानव आकृतियों को विषय के अनुरूप तोड़ती हैं, विरूपित करती हैं। उनके आकार मानो धरातल पर नहीं रहते। नलिनी मलानी रुकती नहीं हैं उम्र के साथ उनके सृजन का विस्तार बढ़ता जा रहा है। युवा पीढ़ी से ज्यादा वे ऊर्जावान दिखती हैं अपनी कलाकृतियों में। अपनी कला विषय में महिलाओं के दुख और विषाद को अपनी कला में मुखर बनाती हैं। कलाकृतियां साक्ष्य होती हैं अतीत का, उनमें भविष्य की कल्पना भी मौजूद रहती है। नलिनी मलानी की कृतियां भी उनकी संवेदनाओं को जो निर्बल पीड़ित महिलाओं की स्थितियों की गवाह हैं। उनके वीडियो इंस्टालेशन जिनमें औरतों बच्चियों पर
होते खौफनाक अत्याचारों को रेखाओं वाले जिनमें दारूण स्थितियों का प्रभावपूर्ण, शब्दों, वाक्यों और आवाज के साथ प्रदर्शित हैं।
'यूटोपिया' नलिनी मलानी की प्रसिद्ध कलाकृति है। इसमें उन्होंने एक साथ दो स्क्रीन प्रोजेक्सन का उपयोग किया। यह देश में आपातकाल के दौरान की डरावनी तस्वीर, औद्योगीकरण के विकास में झुग्गी झोपड़ी हटाओ अभियान के दौरान पीड़ित लोगों विशेषकर महिलाओं पर की गई हिंसा की डरावनी तस्वीर है।
वास्तव में नलिनी मलानी हमारे देश की बेहद संवेदनशील और निर्भीक कलाकार हैं। उन्हें 2019 में विश्व में कला के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण जाॅन मीरो पुरस्कार मिल चुका है। विश्व के महत्वपूर्ण संग्रहालयों में उनकी कलाकृतियां संग्रहित हैं। उनके द्वारा सृजित कलाचित्र विश्व के महत्वपूर्ण कला वीथिकाओं में प्रदर्शित हो चुके हैं।
(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिंदी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।)
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