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प. बंगाल: बड़े विरोध प्रदर्शन की तैयारी में जूट वर्कर्स, त्रिपक्षीय समझौते की मांग

वर्कर्स का आरोप है कि उन्हें शोषणकारी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इन वर्कर्स ने रिटायरमेंट बकाया और पीएफ भुगतान में चूक करने के लिए जूट मिल मालिकों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई।
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कोलकाता: जूट वर्कर्स आने वाले कुछ महीनों में एक बड़े विरोध प्रदर्शन के लिए तैयार हो रहे हैं क्योंकि वे अपनी शिकायतों के समाधान के लिए त्रिपक्षीय समझौते की मांग कर रहे हैं। वर्कर्स ने कहा कि उन्हें शोषणकारी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, इन श्रमिकों ने रिटायरमेंट बकाया और प्रोविडेंट फंड (पीएफ) भुगतान में चूक करने के लिए जूट मिल मालिकों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई।

बल्ली जूट मिल के 44 वर्षीय कर्मचारी मंगल बेनबांग्शी ने न्यूज़क्लिक को उन चुनौतियों के बारे में बताया जिनका वे सामना कर रहे हैं। वह कहते हैं, "पुलिस हमें परेशान कर रही है, और सत्तारूढ़ टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस पार्टी) के स्थानीय विधायक और पार्षद जूट मिल मालिकों के साथ मिल रहे हैं, और मिलों को पीएफ बकाया से बचने में मदद कर रहे हैं। इसके अलावा, पिछली त्रिपक्षीय बैठक की एक मांग पूरी नहीं हुई है - प्रत्येक 90 स्थायी कर्मचारियों के लिए, अधिकतम 20 विशेष 'बदली कर्मचारी' होने चाहिए। हालांकि, मिल मालिकों ने इस अनुपात का पालन नहीं किया है।"

बिना पीएफ, कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ईएसआई), या ग्रेच्युटी प्रावधानों के संविदा कर्मियों की शुरूआत जूट मिलों में पारंपरिक काम की गतिशीलता को बदल रही है। इन श्रमिकों ने कहा कि उन्हें कुछ मिलों में प्रति दिन 200 रुपये से भी कम भुगतान किया जा रहा है, जो इस सेक्टर की न्यूनतम मज़दूरी 370 रुपये से काफी कम है। इसके बावजूद, राज्य सरकार और भारतीय जूट निर्माता संघ (आईजेएमए) वेतन संशोधन और कामकाजी परिस्थितियों पर चर्चा के लिए त्रिपक्षीय बैठक बुलाने के लिए इच्छुक नहीं हैं।

बेनबांग्शी ने कहा, “उद्योग के सबसे बड़े श्रमिक संगठन, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) से जुड़े बंगाल चटकल मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में, सभी 22 जूट मिल श्रमिक संघ हाल ही में त्रिपक्षीय बैठक की तारीख की मांग करने के लिए कोलकाता में एकत्र हुए। यूनियनों ने त्वरित सरकारी कार्रवाई की मांग को लेकर श्रम विभाग का भी घेराव किया।"

श्रमिकों ने कहा कि कार्य दिवस को सप्ताह में छह से घटाकर चार या पांच दिन कर दिया गया है, जिससे जूट मिल श्रमिकों को परेशानी हो रही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि इसके अलावा, विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप प्रबंधन द्वारा नियुक्त बाउंसरों द्वारा श्रमिकों को मिल परिसर से बाहर निकाल दिया गया। इसके अलावा, कुछ यूनियन नेताओं ने कहा कि महिलाओं को रात की शिफ्ट में जबरन भेजे जाने को लेकर भी चिंता है, क्योंकि वो उनके लिए उपयुक्त माहौल नहीं है।

राज्य सरकार के रुख से लाभ उठाते हुए आईजेएमए ने 'श्रमिक-विरोधी' श्रम कोड लागू करने का प्रस्ताव रखा है जो उद्योग में 'हायर-एंड-फायर' की अनुमति देता है। जूट मिलें अब सरकारी आदेशों पर निर्भर हैं। पर्यावरण-अनुकूल जूट बैग के लिए कोटा कम होने से मांग प्रभावित हुई है।

बंगाल चटकल मज़दूर यूनियन की कार्यकारी अध्यक्ष और सीटू नेता गार्गी चट्टोपाध्याय ने न्यूज़क्लिक को बताया, “ये सभी बदलाव गुजरात स्थित प्लास्टिक लॉबी के पक्ष में प्रतीत होते हैं, जो खाद्यान्न परिवहन के लिए प्लास्टिक बैग उपलब्ध कराती है।”

जूट मिल वर्कर्स की मांगों में विशेष रूप से न्यूनतम मासिक वेतन 26,000 रुपये, ग्रेड और स्केल वेतन प्रणाली का कार्यान्वयन, 2.50 रुपये प्रति बिंदु पर महंगाई भत्ता (डीए), 20% आवास भत्ता, मास्टर रोल में सभी श्रमिकों के नाम शामिल करना, और केवल स्थायी और विशेष बदली श्रमिकों के पक्ष में अनुबंध और एजेंसी श्रमिकों को समाप्त करना आदि शामिल है।

इसके अलावा श्रमिकों ने यह भी मांग की कि नई मशीनें लगाने से पहले मैन-मशीन रेशियो बनाए रखा जाए, सभी लंबित ग्रेच्युटी और पीएफ बकाया का भुगतान किया जाए, बंद जूट मिलों को फिर से खोला जाए, रात की पाली में महिलाओं की भर्ती से बचा जाए, ब्रेक ड्यूटी की परंपरा को जारी रखा जाए, कठिन जूट मिल कार्य को आठ घंटे तक सीमित किया जाए, और 20% बोनस दर सुनिश्चित की जाए। बंगाल चटकल मज़दूर यूनियन ने राज्य सरकार से इन 27 सूत्री मांगों पर तत्काल चर्चा का आह्वान किया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

WB: Jute Workers to Launch Big Protest to Demand Tripartite Agreement

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