ख़बरों के आगे-पीछे : ऐसे कैसे चल पाएगा विपक्षी गठबंधन
लगता है कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की गठबंधन की राजनीति में कोई रूचि नहीं है या फिर उसके क्षत्रपों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। यही वजह है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव के सिलसिले में उसने अपनी किसी सहयोगी पार्टी से बात नहीं की। सबसे पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह मुद्दा उठाया और कहा कि जब राज्यों में तालमेल नहीं होना है तो लोकसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन कैसे होगा? उन्होंने मध्य प्रदेश में अपनी पार्टी के प्रभाव वाली सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। सपा के अलावा जनता दल (यू) ने भी मध्य प्रदेश में कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। उधर दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए भी कुछ सीटें छोडने की बात कांग्रेस ने कही थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। सो, दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी स्वतंत्र रूप से चारों राज्यों में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी कहा है कि विपक्षी गठबंधन इंडिया में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। येचुरी का यह कहना मायने रखता है, क्योंकि उनकी राहुल गांधी से सीधी बातचीत होती है। इसलिए ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व की या तो गठबंधन में कोई दिलचस्पी नहीं और उसे लगता है कि वह अकेले ही भाजपा को चुनौती देने में सक्षम हो गई है। या फिर उसका अपने प्रादेशिक नेताओं पर नियंत्रण नहीं है और प्रादेशिक नेताओं को अपने राज्यों के बाहर राष्ट्रीय परिदृश्य देखने-समझने की फुरसत और जरूरत नहीं है।
पढ़े-लिखे मंत्री भी समझदारी की बात नहीं करते!
मौजूदा केंद्र सरकार में कई मंत्री बिना राजनीतिक पृष्ठभूमि और बिना जनाधार वाले हैं, जो पूर्व अधिकारी या बड़े कारोबारी होने या कथित तौर पर पढ़े-लिखे होने की वजह से मंत्री बनाए गए हैं। लेकिन ऐसे सभी मंत्री कभी भी समझदारी की बात नहीं करते हैं। ऐसे मंत्रियों और नेताओं का मानना है कि एपल कंपनी भारत को बदनाम कर रही है। गौरतलब है कि एपल कंपनी के आईफोन यूजर्स, जिनमें लगभग सभी विपक्षी पार्टी के नेता हैं, को 31 अक्टूबर को मैसेज आया कि सरकार समर्थित हैकर्स ने उनका फोन हैक करने का प्रयास किया है। हालांकि बाद में कंपनी ने बताया है कि इस तरह के मैसेज कई बार गलत या अधूरे भी होते हैं। कंपनी ने यह भी बताया कि ऐसे मैसेज डेढ़ सौ देशों के लोगों को भेजे गए हैं। एपल के इस स्पष्टीकरण के आधार पर पहले सरकार की ओर से कहा गया कि कंपनी ने सफाई दे दी है और इस तरह के मैसेज डेढ़ सौ देशों में भेजे गए हैं लेकिन सिर्फ भारत का विपक्ष इसका मुद्दा बना रहा है। फिर कहा गया कि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को भी इस तरह का मैसेज आया है। इसके बाद ही सरकार के मंत्रियों की ओर से कहा गया कि इस तरह के मैसेज भारत को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है। हैरानी की बात है कि जब कंपनी कह चुकी है कि सरकार समर्थित हैकर्स का मतलब सरकारी हैकर नहीं है और यह रूटीन का मैसेज है फिर भी इसमें सरकार की बदनामी का पहलू जोड़ा गया। ऐसा हर अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट पर भी कहा जाता है। दिलचस्प है कि जिस एपल को लेकर तीन-चार दिन पहले ही केंद्रीय सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्री ने दावा किया कि आईफोन अब भारत में बनेगा, उसी कंपनी पर अब सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाया जा रहा है। इसका मतलब है कि सरकार कहीं से अपनी कमी नहीं मानेगी, उससे बचने के लिए चाहे जिस पर जो इल्जाम लगाना पड़े।
अर्थव्यवस्था पर आरएसएस की चिंता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार भले ही लोगों के सामने देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश कर रहे हों, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठन भी जमीनी हकीकत समझ रहे हैं। पिछले दिनों संघ और भाजपा के बीच एक अहम बैठक हुई है। बैठक के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसमें गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वन व पर्यावरण व श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव भी इस बैठक में शामिल हुए। बैठक में देश की वित्तीय स्थिति के साथ-साथ किसानों और मजदूरों की स्थिति पर भी चर्चा होने की खबर है। अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले सरकार बजट सत्र की तैयारी कर रही है। हालांकि पूर्ण बजट पेश नहीं होगा लेकिन लेखानुदान से भी बहुत मैसेज बन सकता है। बहरहाल, बताया जा रहा है कि संघ से जुड़े तीन संगठनों- स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधि भी इस बैठक में शामिल हुए। तीनों संगठनों ने सरकार की कई नीतियों पर सवाल उठाए। हालांकि केंद्र सरकार और खासकर प्रधानमंत्री मोदी वोकल फॉर लोकल की बात करते हैं और मेड इन इंडिया की मुहिम चल रही है लेकिन स्वदेशी जागरण मंच को लग रहा है कि स्वदेशी का बहुत प्रचार नहीं हो रहा है। इसी तरह किसान और मजदूर संगठनों का भी मानना है कि लोकसभा चुनाव से पहले इन समूहों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बहरहाल, इस बैठक के बाद क्या बदलाव आता है इसके बारे में आने वाले दिनों में कुछ अंदाजा लग पाएगा।
ऐसा क्यों हो रहा है फड़णवीस के साथ?
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार की बेटी और बारामती से सांसद सुप्रिया सुले ने पिछले दिनों कहा था कि दिल्ली में बैठा कोई व्यक्ति देवेंद्र फड़णवीस का अपमान कर रहा है और वही व्यक्ति पवार परिवार में भी फूट डाल रहा है। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया था। तब उनकी इस बात का फड़णवीस या उनके किसी करीबी ने खंडन नहीं किया था। लेकिन ऐसा लगता है कि सचमुच लगातार फडणवीस के साथ कुछ न कुछ खेल हो रहा है। पिछले साल जून में जब शिव सेना टूटी तब वे मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रहे थे लेकिन ऐन मौके पर उन्हें उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। अब जबकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सदस्यता पर ग्रहण लगा है और फड़णवीस ने चार साल पुराना वीडियो पोस्ट कर मुख्यमंत्री पद पर अपने लौट आने की बात कही तो उनसे न सिर्फ वीडियो डिलीट कराया गया, बल्कि शिंदे के समर्थन में बयान भी दिलवाया गया। पहले तो फड़णवीस ने वीडियो डिलीट करके कहा कि शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे। बाद में उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि अगर मुख्यमंत्री शिंदे अयोग्य घोषित हो जाते हैं तब भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे। उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाएगा। उन्हें यहां तक कहना पड़ा कि अगला चुनाव भाजपा शिंदे के चेहरे पर लड़ेगी। एक तरफ कहां तो बिहार में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा कह रहे हैं कि पार्टी अब किसी को कंधे पर नहीं बैठाएगी और दूसरी तरफ महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से अलग हुए शिंदे को कंधे पर क्या सिर पर बैठाए हुए है। इसमें फड़णवीस के अपमान का मामला है तो है लेकिन साथ ही उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना का डर भी है। भाजपा को लग रहा है कि अगर शिंदे को हटाया तो फिर शिव सेना एकजुट हो जाएगी।
प्रदूषण पर केजरीवाल की पैंतरेबाजी
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर में एक बार फिर हवा लगातार खराब होती जा रही और लोगों का दम घुटने लगा है। दिल्ली में कई जगह वायु गुणवत्ता सूचकांक साढ़े तीन सौ से ऊपर पहुंच गया। बेहद खराब की श्रेणी से निकल कर हवा खतरनाक होती जा रही है, जबकि अभी दीपावली आने वाली है। सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंधात्मक आदेश के बावजूद लोग पटाखे फोड़ेंगे, अन्यथा उनका धर्म खतरे में पड जाएगा। बहरहाल प्रदूषण के गंभीर मसले पर भी फिर टुच्ची राजनीति शुरू गई है। पिछले दिनों एनडीएमसी की बैठक में भाजपा के सदस्यों ने यह मुद्दा उठाया तो केजरीवाल बैठक छोड़ कर चले गए। पिछले करीब नौ साल से दिल्ली में केजरीवाल की सरकार चल रही है और उसने दिल्ली में प्रदूषण कम करने का एक भी ठोस कदम नहीं उठाया है। ले-देकर कनॉट प्लेस में एक स्मॉग टावर लगा है, जो कुल दो सौ मीटर के क्षेत्र में काम करता है और उसे बंद करने की सिफारिश की गई है। केजरीवाल पहले पंजाब की अकाली दल और भाजपा की सरकार को जिम्मेदार ठहराते थे कि वह पराली जलाना रोक नहीं पा रही है, इसलिए दिल्ली में प्रदूषण हो रहा है। अब पंजाब में उनकी सरकार बन गई है तो वे हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और कह रहे है कि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से प्रदूषण फैल रहा है। यह दुर्भाग्य है कि दिल्ली में अब भी प्रदूषण कम करने के लिए रेड लाइट पर इंजन बंद करने, जेनरेटर बंद कराने, पुरानी गाड़ियों को रोकने या निर्माण का काम रुकवा देने जैसे आदिकालीन उपाय आजमाए जा रहे हैं।
राहुल नहीं लौटे हैं सरकारी आवास में
कांग्रेस नेता राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल हुए दो महीने से ज्यादा हो गए हैं। लोकसभा की आवास समिति ने उन्हें फिर से 12, तुगलक लेन का मकान भी आवंटित कर दिया लेकिन राहुल उसमें रहने नहीं गए हैं। वे अब भी अपनी मां सोनिया गांधी को आवंटित आवास 10, जनपथ में रह रहे हैं और वहीं पर उन्होंने अपना कार्यालय बनाया है। जब उनकी सदस्यता खत्म की गई थी तब खबर आई थी कि वे पूर्वी निजामुद्दीन में संदीप दीक्षित के मकान में अपना कार्यालय बनाएंगे लेकिन उस बारे में भी खबर नहीं है। राहुल गांधी को 12, तुगलक लेन का मकान 2004 में आवंटित हुआ था, जब वे पहली बार चुनाव जीत कर सांसद बने थे। उस समय उनको एसपीजी की सुरक्षा मिली हुई थी इसलिए बड़ा बंगला आवंटित हुआ। उसके बाद करीब 19 साल तक वे उसी बंगले में रहे। राहुल के कुछ करीबी लोगों के हवाले से कहा जा रहा है कि यह बंगला उनके लिए बहुत लकी नहीं रहा। हालांकि उस बंगले में जाने के बाद ही 2009 में कांग्रेस को ज्यादा बड़ी जीत मिली थी। बहरहाल, वास्तु दोष की जो भी बात हो उससे ज्यादा मैसेजिंग का मामला है। राहुल बार-बार अपनी सभाओं में कह रहे हैं कि उनकी सांसदी छीन ली गई थी और घर भी छीन लिया गया था। इसलिए ऐसा लग रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले वे उस बंगले में नहीं लौटेंगे। चुनाव के बाद ही वे फैसला करेंगे कि उस बंगले में लौटना है या दूसरा मकान लेना है।
झारखंड में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की तरह भाजपा जाति गणना कराने, सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने या आरक्षण बढ़ाने की बातें नहीं कर रही है लेकिन बहुत बारीक तरीके से वही राजनीति कर रही है, जो ‘इंडिया’ की पार्टियां कर रही हैं। झारखंड में भाजपा की राजनीति इसकी मिसाल है। वहां भाजपा ने एक-एक करके सभी सवर्ण नेताओं को फिलहाल किनारे कर दिया है। प्रदेश संगठन से लेकर केंद्रीय संगठन और केंद्र सरकार तक किसी सवर्ण नेता को कोई जगह नहीं है। केंद्र में झारखंड के दो मंत्री हैं, जिनमें कैबिनेट मंत्री अर्जुन मुंडा आदिवासी हैं और राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी यादव पिछड़ी जाति से हैं। भाजपा के केंद्रीय संगठन में भी आदिवासी नेता समीर उरांव को अनुसूचित जनजाति मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया है। प्रदेश संगठन की बात करें तो दीपक प्रकाश को हटा कर आदिवासी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। मरांडी की जगह दलित समाज के नेता अमर बाउरी को विधायक दल का नेता और जेएमएम से आए पिछड़ी जाति के जेपी पटेल को सचेतक बनाया गया है। इस तरह प्रदेश से लेकर केंद्रीय संगठन और केंद्र सरकार तक भाजपा ने जिन लोगों को महत्व दिया है वे सभी आदिवासी, दलित या पिछड़े समाज से आते हैं। भाजपा ने विपक्षी गठबंधन की तरह शोर नहीं मचाया है। चुपचाप अपने पत्ते बिछा दिए हैं। भाजपा मान रही है कि अगड़ी जाति के मतदाता उसको छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते हैं। जेएमएम, कांग्रेस और राजद गठबंधन का विकल्प उनके सामने है लेकिन पारम्परिक रूप से अगड़ी जाति के मतदाता भाजपा को वोट देते हैं। सो, उनके वोट की गारंटी मान कर भाजपा विपक्षी वोट में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही है। यह रणनीति कितनी कारगर होगी यह नहीं कहा जा सकता है।
भगवंत मान का राजनीतिक ड्रामा
राजनीतिक कलाबाजी दिखाने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने वाले अरविंद केजरीवाल एकमात्र नेता हैं। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने पिछले 12 साल में राजनीतिक ड्रामा करने का कोई मौका नहीं चूका है। उन्होंने अपनी राजनीति चमकाने के लिए मीडिया का भी भरपूर इस्तेमाल किया। उन्हीं के बनाए रास्ते पर पंजाब के उनके मुख्यमंत्री भगवंत मान भी चल रहे हैं। देशभर के अखबार तो उनकी सरकार के विज्ञापनों से भरे ही रहते हैं। केंद्र की भाजपा सरकार कहती है कि उसने नौ साल में इतना काम कर दिया, जितना 65 साल में नहीं हुआ पर भगवंत मान तो डेढ़ साल में ही इतना काम कर देने का दावा करते हैं जितना आजादी के बाद नहीं हुआ। पिछले दिनों उन्होंने अपने इस कथित काम पर एक खुली बहस की घोषणा की। राज्य की सभी पार्टियों को न्योता दिया कि वे आकर उनसे बहस करें। इसके लिए मंच सजा लिया, एंकर रख दिए लेकिन कोई पार्टी नहीं पहुंची। मंच पर अकेले बैठ कर विपक्ष के लिए रखी गई खाली कुर्सियों के साथ फोटो खिंचवा कर पीआर टीम के जरिए पूरे देश में भेज दिए। फिर अकेले बैठ कर अपनी उपलब्धियों का बखान किया। हैरानी की बात है कि मान को मुख्यमंत्री बने डेढ़ साल हुआ है और राज्य में कानून व्यवस्था से लेकर वित्तीय स्थिति तक डांवाडोल है लेकिन वे मंच सजा कर विपक्ष के साथ खुली बहस के लिए तैयार है! उन्हें पता है कि ऐसी बहस विधानसभा में होनी चाहिए लेकिन वहां की मीडिया कवरेज ज्यादा नहीं होती है। इसलिए मीडिया के लिए यह राजनीतिक स्टंट रचा गया। उन्हें मालूम था कि विपक्ष का कोई नेता नहीं पहुंचेगा इसलिए आगे की भी तैयारी करके बैठे थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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