IIT-BHU गैंगरेप मामलाः कुछ ज़रूरी सवाल जिनके जवाब पुलिस और बीजेपी को देने चाहिए
आईआईटी-बीएचयू की बीटेक छात्रा के साथ गन प्वाइंट पर गैंगरेप करने वाले तीनों अभियुक्त भले ही गिरफ्तार कर लिए गए हैं, लेकिन पुलिस-प्रशासन और खबरिया चैनलों की चुप्पी बनारस के लोगों को विचलित कर रही है। इस मामले में कई अहम सवाल अभी उलझे हुए हैं और पुलिस उन्हें हल करने की तनिक भी कोशिश करती नहीं दिख रही है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि मामूली वारदातों में आरोपियों का एनकाउंटर करने और उनके घरों पर बुलडोजर चलाने के लिए कुख्यात यूपी पुलिस ने कोर्ट से तीनों अभियुक्तों का रिमांड तक क्यों नहीं मांगा? यह स्थिति तब है जब पीड़िता का मोबाइल और वो असलहा अभी तक बरामद नहीं हो सका है जिसे दिखाकर अभियुक्तों ने गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया था।
बनारस की कमिश्नरेट पुलिस ने IIT-BHU में बीटेक द्वितीय वर्ष की छात्रा से गैंगरेप करने के इल्जाम में सुंदरपुर स्थित बृज एन्क्लेव कॉलोनी का कुणाल पांडेय, बजरडीहा के जिवधीपुर का आनंद उर्फ अभिषेक चौहान और इसी मुहल्ले के सक्षम पटेल को गिरफ्तार किया है। तीनों अभियुक्त बीजेपी आईटी सेल के पदाधिकारी रहे हैं। कुणाल पांडेय बीजेपी की महानगर इकाई में आईटी विभाग का संयोजक और सक्षम पटेल सह-संयोजक था। आनंद दोनों का हमराही था। फिलहाल तीनों जेल में हैं। मामला सत्तारूढ़ दल से जुड़े होने की वजह से पुलिस के आला अफसर इस मामले में खुलकर बोलने से बच रहे हैं, लेकिन कई तल्ख सवाल पुलिस को भी कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।
ज़रूरी सवाल
* बनारस में यह सवाल हर आदमी पूछ रहा है कि पुलिस ने साठ दिन बाद इस घटना का पर्दाफाश क्यों किया?
* किसके निर्देश पर तीनों अभियुक्तों को चुनाव प्रचार करने के लिए मध्य प्रदेश भेजा गया?
* पीड़िता जब लंका थाना में गई तब तत्काल उसका मेडिकल मुआयना क्यों नहीं कराया गया? एक हफ्ते बाद पुलिस को मेडिकल कराने की चिंता क्यों हुई?
* घटना के बाद तीसरे दिन ही पुलिस ने सक्षम पटेल और उसके तीनों साथियों को हिरासत में ले लिया था। उन्हें छुड़ाने के लिए बीजेपी के कौन नेता और विधायक एसीपी प्रवीण सिंह के दफ्तर पहुंचे थे? उस समय जिन नेताओं ने आरोपियों को छुड़वाने के लिए फोन किए, पुलिस ने उनकी सीडीआर रिपोर्ट और गूगल मैप लोकेशन अभी तक क्यों नहीं निकलवाई?
* अभियुक्तों को छोड़ने से पहले पुलिस ने उनकी छात्रा से शिनाख्त क्यों नहीं कराई?
कौन देगा इन सवालों का जवाब?
* बनारस की कमिश्नरेट पुलिस ने अपने रोजनामचे में 30 दिसंबर 2023 को अभियुक्तों की गिरफ्तारी दिखाई है। पुलिस ने अभी तक अभियुक्तों का रिमांड क्यों नहीं मांगा, जबकि पुलिस अभी तक पीड़िता का मोबाइल फोन बरामद नहीं कर पाई है?
* जिस हथियार से भय दिखाकर छात्रा के कपड़े उतरवाए गए और रेप किया गया वह असलहा कहां है?
* बीजेपी से जुड़े तीनों अभियुक्तों का मोबाइल पुलिस कस्टडी में है तो उनके सोशल मीडिया अकाउंट का संचालन कौन कर रहा है?
* अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद कुणाल पांडेय और सक्षम पटेल का एक्स हैंडल अकाउंट किसने और क्यों डिलीट किया?
* अभियुक्तों के फेसबुक अकाउंट से नियुक्ति-पत्र क्यों डिलीट किया गया, जिसे गिरफ्तारी के पांच दिन पहले अपलोड किया गया था? अभियुक्तों के जेल में बंद होने के बाद भी उनका सोशल मीडिया रिकार्ड कौन खंगाल रहा है?
* किसके निर्देश पर अभियुक्तों के घरों पर लगी उनके नाम और पद की पट्टिकाएं हटवाई गईं?
बनारस की कमिश्नरेट पुलिस के माथे पर कई और गंभीर आरोप हैं, जिसका जवाब इस शहर की जनता और बीएचयू के स्टूडेंट्स चाहते हैं।
01 नवंबर 2023 को गैंगरेप की वारदात के बाद मीडिया ने कई घटनाओं को जोड़ते हुए बताया था कि घटना स्थल के आसपास पहले भी कई संगीन वारदातें हो चुकी हैं। अगर कमिश्नरेट पुलिस अभियुक्तों को रिमांड पर लेती तो वो सभी वारदातें खुल सकती थीं, जिनका राज अभी दफन है।
लंका थाना पुलिस इस मामले में तनिक भी दिलचस्पी लेती नहीं दिख रही है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, छात्रा के साथ गैंगरेप करने वाले तीनों आरोपित हर शाम बीएचयू कैंपस में लड़कियां खोजा करते थे। आनंद उर्फ अभिषेक पर 29 जून 2022 को भेलूपुर थाने में छेड़खानी, मारपीट और बलवा का केस दर्ज हुआ था। इस मामले में आनंद के परिवार के सात सदस्यों को पुलिस ने नामजद किया था। शराब पीकर उपद्रव करना और धककाना उसकी आदतों में शुमार था। पुलिस अफसरों की आखिर वो कौन सी कमजोर नस दबी हुई है जो अभियुक्तों को रिमांड पर लेने से बच रही है?
अन्य मीडिया रिपोर्ट
दैनिक हिन्दुस्तान की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, "गैंगरेप में पकड़े गए तीनों आरोपित हर रात शराब पीने के बाद बुलेट मोटरसाइकिल से शिकार की तलाश में निकलते थे। बीजेपी के पदाधिकारी होने के कारण तीनों को पुलिस अथवा किसी और का डर नहीं था। गैंगरेप की वारदात के ठीक एक दिन पहले तीनों ने बीएचयू कैंपस में ही एक छात्रा को अकेले पाकर उनके साथ गंदी हरकतें की थी। छात्रा ने इसकी शिकायत प्राक्टोरियल बोर्ड से की थी, लेकिन मामला दबा दिया गया और पुलिस तक नहीं पहुंचा था। यही नहीं, तीनों ने जिस रात गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया उससे पहले वो नगर निगम के पास स्थित शहीद उद्यान भी पहुंचे थे। इस उद्यान में अक्सर शाम को प्रेमी-प्रेमिका अकेले मिलने के लिए बैठा करते हैं। इस पार्क में भी अभियुक्त लड़कियों को शिकार बनाया करते थे।"
अख़बार यह भी लिखता है कि "भाजपा से जुड़े होने के कारण आरोपियों को लगता था कि वे बच निकलेंगे। इसी वजह से तीनों को हौसले बुलंद थे। उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि छात्रा से ऐसी हरकतें करने के बाद मामला बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। बीएचयू कैंपस में आंदोलन शुरू हुआ तो तीनों डर गए। इसके बाद भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करने मध्य प्रदेश चले गए। मतदान के बाद तीनों लौट आए। तब तक मामला कोर्ट पहुंच गया और पुलिस पर दबाव बढ़ने लगा। बीएचयू के छात्रों का एक गुट भी लगातार आंदोलन में लगा रहा। इसके चलते पुलिस को तीनों को शिकंजे में लेना पड़ा।"
भास्कर डिजिटल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अभियुक्त कुणाल, सक्षम और अभिषेक उर्फ आनंद वारदात के बाद मध्य प्रदेश गए, लेकिन वो बीजेपी आईटी सेल के लिए काम नहीं कर रहे थे। तीनों रीवा में किसी कैंडिडेट के सोशल मीडिया कैंपेन को देख रहे थे। वो गाहे-बगाहे रीवा से वाराणसी आते-जाते रहते थे। आरोपी कुणाल की सोशल मीडिया पोस्ट को सर्च करने पर पता चला है कि उसने वारदात के अगले दिन 03 नवंबर 2023 को यूपी के मंत्री स्वतंत्र देव की पोस्ट शेयर की थी। मध्य प्रदेश की सतना विधानसभा सीट से बीजेपी सांसद गणेश सिंह चुनाव लड़ रहे थे। उक्त कार्यक्रम की फोटो यूपी के मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की थी। इसी को कुणाल ने शेयर किया था। सतना से रीवा की दूरी 60 किमी है।
मंत्री-विधायक से थी क़रीबी
यह बात साफ हो चुकी है कि अभियुक्त पहले बीजेपी के दफ्तरों में बैठकर काम करते थे और उनके कनेक्शन कई सत्तारूढ़ दल के कई नेताओं और मंत्रियों से थे। कई ऐसी जानकारियां भी मिली हैं जिससे पता चलता है कि तीनों अभियुक्त बीजेपी के वरिष्ठ नेता एवं काबीना मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह के बहुत क़रीब थे। मंत्री स्वतंत्र देव सिंह कुणाल पांडेय के घर उसे आशीर्वाद देने गए थे। उनके साथ कुणाल ने तस्वीरें भी खिंचवाई थी। उनके साथ बीजेपी के कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव भी थे।
(बीजेपी के काबाीना मंत्री के आजू-बाजू में अभियुक्त कुणाल व सक्षम)
कुछ दिनों पहले स्वतंत्रदेव सिंह के घर एक वैवाहिक कार्यक्रम था, जिसमें अभियुक्त सक्षम पटेल बीजेपी के एक कद्दावर नेता के साथ वहां पहुंचा था। ये बीजेपी के वह पदाधिकारी हैं जो दावा करते फिर रहे हैं कि सक्षम पटेल को उन्होंने दो महीने पहले ही हटा दिया था। तब से उनका कोई ताल्लुक नहीं था।
(बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष दिलीप पटेल को केक खिलाता अभियुक्त सक्षम पटेल)
फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर ने अपने एक्स अकाउंट पर अभियुक्त कुणाल की सोशल मीडिया पोस्ट के कुछ स्क्रीन शॉट शेयर किए हैं। इसमें एक पोस्ट 25 नवंबर और दूसरी 4 दिसंबर की लखनऊ की है। इसमें वो मंत्री स्वतंत्र देव सिंह के साथ दिख रहा है।
बनारस के कैंट क्षेत्र के विधायक सौरभ श्रीवास्तव की अभियुक्तों के साथ अंतरंगता की पुख्ता जानकारी मिली है। कुछ ऐसी तस्वीरें बाहर आई हैं जिससे पता चलता है कि विधायक सौरभ श्रीवास्तव, हर साल कुणाल का जन्मदिन भी मनाया करते थे।
(बीजेपी एमएलए के साथ गैंगरेप के आरोपित)
सौरभ श्रीवास्तव की जन्मदिन पार्टी में तीनों अभियुक्त शरीक होते थे। तस्वीरों में विधायक के साथ कुणाल और सक्षम को देखा जा सकता है।
(केक काटने के बाद अभियुक्त के चेहरे पर केक लगाते विधायक सौरभ श्रीवास्तव)
हालांकि न्यूज़क्लिक इन तस्वीरों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं करता। इस सिलसिले में विधायक सौरभ श्रीवास्तव का पक्ष जानने की कोशिश की गई, लेकिन उनका फोन नहीं उठा।
पड़ताल से यह भी पता चला है कि पार्षद पद के लिए हुए चुनाव में बृज इन्क्लेव इलाके से बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता सतीश गुप्ता टिकट के दावेदार थे। ऊंची पहुंच के चलते इनका टिकट काटकर कुणाल पांडेय के ससुर मदन मोहन तिवारी को दे दिया गया था। गिरफ्तारी से पांच दिन पहले बीजेपी मीडिया सेल के पदाधिकारियों की लिस्ट बीजेपी के शहर अध्यक्ष विद्या सागर राय ने जारी की थी, जिसे अभियुक्तों ने अपने फेसबुक पर भी अपलोड किया था। गिरफ्तारी के बाद इनके अकाउंट से वो लेटर हटा दिया गया, जबकि अभियुक्तों के सभी मोबाइल फोन पुलिस के पास हैं।
(बीजेपी के शहर अध्यक्ष विद्यासागर राय को सम्मानित करता अभियुक्त। इनके दस्तखत से जारी किया गया था नियुक्ति पत्र)
सूत्र बताते हैं कि अब अभियुक्तों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की जा रही है उन्हें बाइज्जत छुड़वा लिया जाएगा, लेकिन वो अपनी जुबान बंद रखें। कोई ऐसा राज नहीं उगलें जिससे पार्टी के दिग्गज नेता फंस जाएं और उनकी छीछालेदर होने लगे।
सोमवार को बीजेपी के एक पदाधिकारी (जो पहले कांग्रेसी थे और जिन्होंने मोदी के पहले दौरे के बाद लंका स्थित मालवीय जी की प्रतिमा गंगाजल से धोई थी) अपने साथ सतीश पटेल नामक व्यक्ति को लेकर जिला जेल पर पहुंचे। वह खुद अपनी कार में बैठे रहे। खबर है कि सतीश नामक व्यक्ति को बिना किसी लिखा-पढ़ी के जेल के अंदर एंट्री दी गई, हालांकि स्वतंत्र तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती लेकिन इसका साक्ष्य सीसी फुटेज से निकाला जा सकता है।
पुलिस का दावा
सामूहिक दुष्कर्म के मामले में गिरफ्तार तीनों अभियुक्त फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। लंका थाना पुलिस का दावा है कि आरोपितों के खिलाफ गैंगस्टर लगाने की तैयारी चल रही है। पुलिस ने वारदात वाली रात का रूटचार्ट तैयार कर लिया है। सिटी कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से कनेक्ट 18 मुख्य सीसी कैमरों और 45 अन्य कैमरों की मदद से आरोपितों का रूट चार्ट बनाया गया है। पुलिस का कहना है कि एक हफ्ते के अंदर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी जाएगी। साथ ही अदालत से अनुरोध किया जाएगा कि मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए, ताकि तेज रफ्तार से इस मामले की सुनवाई हो सके और दोषियों को जल्द से जल्द सजा दिलाई जा सके। पुलिस का दावा है कि इलेक्ट्रानिक सर्विलांस, सीसीटीवी फुटेज से पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं और आरोपितों को कोर्ट से सख्त सजा जरूर मिलेगी।
सरकार के क़दम नाकाफ़ी?
जांच-पड़ताल के बीच यह भी जानकारी मिली है कि अब जाकर समूचे घटनाक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद गंभीरता से लिया है। उनके कार्यालय के एक आला अफसर मंगलवार को बनारस आए और बीजेपी के कई पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के साथ गुप्त बैठक की। गुप्तचर एजेंसियों ने सरकार को रिपोर्ट दी है कि यह मामला काफी तूल पकड़ सकता है। चुनाव जीतने के लिए बीजेपी एक ओर राम मंदिर के जिस एजेंडे को लेकर आ रही है, दूसरी ओर, यह मामला उसके खेल को बिगाड़ सकता है।
तीनों के पास से बरामद मोबाइल की जांच और डेटा रिकवरी के लिए फॉरेंसिक लैब भेजा गया है। पुलिस का दावा है कि तीनों ने स्वीकार किया है कि वे रात में शहर में युवतियों से छेड़खानी के अभ्यस्त थे। आईआईटी की वारदात के बाद पहली बार उनकी करतूत उजागर हुई। इस बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा है कि इस मामले का परीक्षण कराया जा रहा है। आंतरिक जांच के बाद इस मामले में पार्टी के स्थानीय नेताओं के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है। हालांकि अभी तक सरकार और पार्टी के प्रयास नाकाफ़ी दिखाई दे रहे हैं और मामले के हल की जगह बचाव की ज़्यादा कोशिश दिखाई दे रही है।
गुस्से में छात्र संगठन
बीएचयू परिसर स्थित छात्र संगठनों में इस मामले को लेकर काफी गुस्सा है। मेन गेट पर रोजाना छात्र-छात्राओं का विरोध प्रदर्शन हो रहा है। मंगलवार को बीएचयू कैंपस में गैंगरेप के आरोपियों के पोस्टर चस्पा किए गए। इनमें आरोपियों की भाजपा नेताओं के साथ वाली तमाम तस्वीरें हैं। पोस्टर लगने के बाद से ही बीएचूय प्राक्टोरियल बोर्ड सतर्क हो गया है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "गैंगरेप कांड में इतनी बातें पब्लिक डोमेन में आ गई हैं कि पुलिस चाहकर भी अभियुक्तों को नहीं बचा पाएगी? मामला इतना आगे बढ़ गया है कि इस स्टेज पर बीजेपी भी किसी अभियुक्त अथवा अपने नेता-पदाधिकारी का साथ नहीं दे सकती है? "
"पुलिस को यह छानबीन जरूर करनी चाहिए कि जेल में बंद अभियुक्तों का सोशल मीडिया कौन हैंडल कर रहा है, जबकि तीनों के फोन पुलिस के पास हैं? बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने इस मामले में एक्शन लिया है तो ऊपर से ग्रीन सिग्नल जरूर मिला होगा। संभव है कि लंका थाना पुलिस जबर्दस्त दबाव में हो। यह बात साफ हो चुकी है कि सोशल मीडिया पर अभियुक्तों की नियुक्ति का लेटर गिरफ्तारी से पांच दिन पहले का है। पुलिस ईमानदारी से जांच करे तो सिलसिलेवार सारे राज खुल जाएंगे। यह भी पता चल जाएगा कि तीन नवंबर को पुलिस ने जब अभियुक्तों को पकड़ा था तो उन्हें थाने से छुड़वाने वाले कौन थे? " यही मांग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की बीएचयू शाखा भी उठा रही है।
विपक्षी दलों के नेता और स्टूडेंट्स ने सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि बनारस के पुलिस कमिश्नर के अलावा केंद्र और राज्य सरकार को यह बताना चाहिए कि 60 दिनों तक अभियुक्तों की गिरफ्तारी क्यों टाली गई? बीजेपी के जिन प्रत्याशियों के प्रचार में उन्हें मध्य प्रदेश भेजा गया था, उनके समर्थक क्या शर्मसार नहीं हो रहे होंगे कि बलात्कारियों के कहने पर उन्होंने वोट डाला? गैंगरेप कोई साधारण अपराध नहीं था। यह अपराध सिर्फ एक छात्रा के साथ नहीं, बल्कि बीएचयू जैसी विश्वविख्यात शिक्षण संस्था की मर्यादा तार-तार किए जाने से भी जुड़ा है। बीएचयू में पढ़ने वाली हजारों छात्राएं और महिला टीचर पुलिस के न्याय का इंतजार कर रही हैं। ये इंतजार कितना लंबा होगा, इसका जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है?
भगत सिंह स्टूडेट्स मोर्चा की सचिव इप्शिता ने कहा है कि, "गैंगरेप के तीनों आरोपियों की पुलिस ने जब पहले ही शिनाख्त कर ली थी, फिर लंबे समय तक किसलिए केस को दबाया गया। क्या इसलिए कि वो बीजेपी आईटी सेल के पदाधिकारी थे। बीएचयू के स्टूडेंट्स ने जब इस मुद्दे को उठाया तो अभियुक्तों को बचाने के लिए प्रशासन की शह पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मारपीट पर उतारू हो गया। फर्जी मेडिकल कराया गया और फर्जी मुकदमा भी लिखवाया गया। ये घटनाएं इस बात को प्रमाणित करती है कि पुलिस और प्रशासन ने दोषियों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की।"
"पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन ने महिला स्टूडेंट्स को उनके हाल पर छोड़ दिया है। शाम को हास्टलों से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है। हिदायत दी जा रही है कि उन्हें अपनी सुरक्षा ख़ुद करनी पड़ेगी, क्योंकि पुलिस उनके लिए कुछ कर ही नहीं रही है। इसी वजह से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। कैंपस में लंका थाना पुलिस और बीएचयू प्रशासन ने अभी तक सुरक्षा का कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं किया है। जब तक बनारस कमिश्नरेट पुलिस इस मामले में लिपटी परतों को मज़बूती से नहीं उधेड़ेगी तब तक लड़कियों पर यौन हमले रुकने वाले नहीं हैं। कितनी अजीब बात है कि निर्भया कांड के बाद जो कड़े कड़े कानून बनाए गए वो सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों पर नहीं आजमाए जा रहे हैं। दिल्ली में महिला खिलाड़ियों का यौन उत्पीड़न करने के आरोपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पुलिस ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। कुछ इसी तरह की कहानी पुलिस बीएचयू गैंगरेप मामले में भी दोहराना चाहती है। अब तो बीजेपी ने दरवाजा खोल दिया है कि व्यभिचार कीजिए और पार्टी की सदस्यता ले लीजिए, सारे पाप धुल जाएंगे।"
कौन दे रहा था ऐसे दरिंदों को शह
एक्टिविस्ट एवं राजनीतिक विश्लेषक वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "बनारस की जनता सवाल उठा रही है कि आखिर योगी सरकार ने छात्रा से दरिंदगी करने वाले बीजेपी कार्यकर्ताओं को रिमांड पर क्यों नहीं लिया? सक्षम पटेल पीएम नरेंद्र मोदी को गुलाब का फूल दे रहा है। उसकी फोटो सभी बड़े नेताओं के साथ है। फिर बीजेपी शर्मसार क्यों नहीं हो रही है? गैर-हिन्दू और गैर-राजनीतिक दलों के लोगों के घरों पर कोहराम मचाने वाला योगी का बुलडोजर आखिर खामोश क्यों है? "
बीएचयू गैंगरेप केस को लेकर विपक्षी दलों ने बीजेपी पर हमला तेज कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता डॉली शर्मा ने बीजेपी और उसके बड़े नेताओं पर सियासी हमला करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर आदि के नाम लेते हुए उनकी चौकीदारी पर सवाल खड़ा किया और कहा, "यूपी में हर दो घंटे में एक दुष्कर्म होता है। यूपी में सत्ता संरक्षित अपराधियों के घर बुलडोजर जाते कभी नहीं देखा गया। वह सिर्फ गरीबों-असहायों या विरोधी दलों के समर्थकों पर कहर बरपाता है। आखिर ये बुलडोजर दिखेंगे भी कैसे, जब अपराधी बृजभूषण सिंह, कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानंद और भाजपा आईटी सेल के इन पदाधिकारियों जैसे दुष्कर्मी होंगे। पुलिस चार्जशीट सब कुछ बताती रही, लेकिन बृजभूषण सिंह जैसे लोग खुले में घूम रहे हैं। "
एनसीआरबी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉली ने कहा, " साल 2021 में महिलाओं के साथ अपराध के 56,083 मामले सामने आए। वहीं, वर्ष 2022 में ये आंकड़ा बढ़ गया और 65,743 मामले सामने आए। इससे साफ जाहिर होता है कि इन आंकड़ों में करीब 10 हजार की बढ़ोतरी हुई है। यूपी में विधि-व्यवस्था क्षत-विक्षत है। एक तरफ बीजेपी कहती है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, लेकिन सच्चाई यह है कि भाजपा महिलाओं के लिए ‘बलात्कारी जनता पार्टी’ बन चुकी है। भाजपा का नारा बेटी बचाओ का है और काम बेटी रुलाओ का है।"
इस बीच, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता महुआ मोइत्रा ने बीजेपी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूछा है कि बलत्कार के इल्जाम में गिरफ्तार अभियुक्तों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने में अभी कितना समय लगेगा?
कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने बीजेपी के नेताओं, पदाधिकारियों के अलावा तत्कालीन एसीपी प्रवीण सिंह व लंका इंस्पेक्टर के निजी फोन की सीडीआर रिपोर्ट और गूगल मैप के जरिये अभियुक्तों के संबंधों को खंगालने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा है कि, जांच-पड़ताल से यह साफ हो जाएगा कि अभियुक्तों की किन लोगों से कब-कब बातचीत हुई? अभियुक्त कितनी मर्तबा और कब-कब बीएचयू कैंपस में गए? क्या सक्षम और कुणाल बीजेपी के दफ्तरों में बैठक काम नहीं करते थे? मंत्री के घर शादी में अभियुक्त किसके साथ गए थे? किन विधायकों और मंत्रियों के साथ उनकी क़रीबी थी?
सच सामने आना चाहिए
बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप कुमार को लगता है कि अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद लंका थाना पुलिस हाथ पर हाथ रखकर बैठ गई है। उन थाने की पुलिस से भला न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है जिसने दो महीने तक मामले को दबाए रखा और आंदोलनकारी छात्रों को अकारण मारा-पीटा। साथ ही फर्जी मुकदमा भी दर्ज किया। वह कहते हैं, "यूपी में डबल इंजन की सरकार है। फिर अपराधी 60 दिनों तक क्यों नहीं पकड़े गए? यह सवाल तो अब हर कोई उठाएगा कि तीनों राज्यों हो रहे चुनावों को जीतने के लिए व्यभिचार पर पर्दा डाला गया। बीजेपी के आईटी सेल के पदाधिकारी काफी ताकतवर माने जाते हैं और वो किसी को कभी भी ट्रोल कर सकते हैं। आईटी सेल वाले अपने पदाधिकारियों की नियुक्ति करते समय उनकी कुंडली क्यों नहीं खंगालते? गैंगरेप करने वाले तीनों अभियुक्त पिछले पांच साल से बीजेपी के आईटी सेल के लिए काम कर रहे थे। बीजेपी के दफ्तर में काम करने के बाद वो औरतों का चीरहरण करने के लिए निकलते थे। ऐसे व्यभिचारियों की आईटी सेल ने कुंडली आखिर क्यों नहीं निकाली? पुलिस चोर उचक्कों को पकड़ती है तो रिमांड पर लेती है और उनके टांग में छेद कर देती है तो इन दरिंदों को वह क्यों बचा रही है?"
प्रदीप यह भी सवाल उठाते हैं कि, " यह राज अभी तक दबा हुआ है कि अभियुक्तों ने कितनी लड़कियों को अपना शिकार बनाया? किनके बूते पर तीनों दरिंदे बीएचयू कैंपस में दनदनाते घूम फिर रहे थे और वहशियाना अंदाज में महिलाओं की अस्मिता पर हमला कर रहे थे? आमतौर पर इस तरह के मामले में गिरफ्तारी के बाद पुलिस अफसर प्रेस कांफ्रेंस जरूर करते हैं, लेकिन बीएचयू गैंगरेप केस के बाबत कोई अफसर बोलने के लिए तैयार क्यों नहीं है? आखिर ये अफसर क्यों दबे और घबराए हुए हैं?
"गैंगरेप केस की कायदे से पैरवी नहीं हुई तो सभी अभियुक्त बेदाग छूट जाएंगे और बीजेपी के नेता व पुलिस अपने मंसूबे में कामयाब हो जाएगे। ये आईटी कानून का मामला नहीं। एक औरत के सम्मान, उसकी अस्मिता का मामला है। इस वारदात से बीएचयू जैसी शिक्षण संस्था की मर्यादा पर भी हमला हुआ है। अब तो कोई भी मां-बाप अपनी बेटियों को बीएचयू में भेजने से पहले हजार बार सोचेगा। पिछले पांच साल के महिला उत्पीड़न की घटनाओं को देखा जाए तो सबसे ज्यादा ऐसे केस सामने आएंगे जिनमें अपराधियों के तार बीजेपी से जरूर जुड़ें होंगे।"
प्रदीप कहते हैं, "बनारस के लोगों का सवाल सिर्फ बीजेपी से ही नहीं, उन खबरिया चैनलों से भी है जिन्होंने चुप्पी साध ली है। उनके एंकरों ने अपनी जुबान पर पट्टी लगा रखी है। मामला दूसरे मजहब से जुड़ा होता तो ये हल्ला बोल रहे होते और प्राइम टाइम कर रहे होते। आखिर मीडिया में इतना सन्नाटा क्यों? "
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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