बेला एस्टेट: फिर चला बुलडोज़र, लोगों ने पूछा— ''हम कहां जाएं, क्या हम भारत के वासी नहीं हैं''
बेहद सर्द सुबह, कोहरे में डूबा यमुना का किनारा और नदी से आती ठंडी हवाओं के बीच जगह-जगह अलाव जला कर बैठे लोग, तीन-चार औरतें सिर पर तिरपाल ताने अलाव के सहारे बैठी सर्दी से बचने की कोशिश कर रही थीं। तीन से चार औरतें अपनी गोद में एक साल के कम उम्र के बच्चों को चिपकाए हुए थीं। तभी तेज़ बारिश शुरू हो गई, अलाव बुझ गए, लोगों का बचा-खुचा सामान भीगने लगा, पीली मिट्टी गाद में तब्दील हो गई इस कीचड़ में चलना बेहद मुश्किल हो रहा था, हम तो किसी तरह वहां से निकल आए लेकिन जब दूर जाकर पलटकर देखा तो यही सवाल ज़ेहन में आ रहा था कि ग़रीबों का कौन है?
''आप ही बताएं हम कहां जाएं''
31 जनवरी को राजघाट पावर हाउस कंचनपुरी बेला एस्टेट की झुग्गियों में एक बार फिर DDA का बुलडोज़र चला। यमुना के इस डूब क्षेत्र में पहले भी कई बार बुलडोज़र चल चुका है, 2023 में यमुना का जलस्तर बढ़ने पर भी ये लोग सड़क पर आ गए थे। बार-बार हटाए जाने के बाद भी ये लोग यहां से हटने को तैयार नहीं हैं। जब हमने उनसे पूछा कि आप यहां से क्यों नहीं जा रहे तो एक बेघर महिला ने हमीं से सवाल किया '' आप ही बताएं हम कहां जाएं, हमारे पास कोई जगह नहीं है।''
''रोटी बनी हुई थी लेकिन उठाने तक का वक़्त नहीं मिला''
प्रशासन का बुलडोजर चलने की ख़बर मिलने पर जैसे ही हम वहां पहुंचे तो देखा कुछ बच्चियां स्कूल की ड्रेस में थीं, ये बच्चियां SKV, पटौदी हाउस दरियागंज में पढ़ती हैं। बेहद सर्दी में ये बच्चियां भी नंगे पैर अलाव के सामने खड़ी थी जब हमने उनसे हालात के बारे में पूछा तो 12वीं में पढ़ने वाली आरती ने बताया '' हम तो स्कूल गए थे जब वापस आए तो देखा हमारे घरों की ऐसी हालत कर दी थी, हमारे कॉपी-किताब का कुछ पता नहीं, एग्जाम आने वाले हैं कैसे तैयारी करेंगे पता नहीं, लेकिन हम यहां से नहीं जा सकते क्योंकि पढ़ाई चल रही है तो हमें यहीं रहना होगा, हमारा दिल्ली में कुछ नहीं है''। आरती की बहन अंजली भी स्कूल ड्रेस में ही थी लेकिन जब हमारी नज़र उसके नंगे पैरों में पर गई तो वो कहने लगी '' जूतों की छोड़िए, हम खाएंगे क्या ये नहीं पता चल रहा है, हमारे खाने-पीने का सामान सब मिट्टी में मिला दिया गया''। इन बच्चियों के साथ खड़े विनोद राम कहने लगे '' रोटी बनी हुई थी लेकिन उठाने तक का वक़्त नहीं मिला सब मिट्टी में मिला दिया''।
''क्या हम भारत के वासी नहीं हैं''
ज़फ़र आलम बताने लगे कि '' मैं यहां का प्रधान हूं, यहां करीब 700 से 800 लोग होंगे, पुलिस वालों ने हमें मारा, एक लड़की और उसकी मां को तो इतना मारा कि वे अस्पताल गए हुए हैं, आप ही बताएं, हम कहां जाएं, क्या हम भारत के वासी नहीं हैं, हमारे आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक खाता सब है।''
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यहां अहम सवाल यही है कि आख़िर ये जाएं तो जाएं कहां? कभी ये बाढ़ की वजह से सड़क पर आ जाते हैं तो कभी इन्हें जी-20 के दौरान हटा दिया गया था। हालांकि अमर उजाला पर छपी ख़बर के मुताबिक कोर्ट बेला स्टेट के लोगों को जगह खाली करने का निर्देश दे चुकी है।
''हम लोग जाएंगे तो कहां जाएंगे''
जब हमने इन लोगों से पूछा कि बार-बार हटाए जाने के बावजूद वे लोग क्यों नहीं हट रहे तो एक साथ कई लोग अपनी-अपनी मजबूरी गिनवाने लगे, विनोद राम कहने लगे '' हम लोग जाएंगे तो कहां जाएंगे, रोज़ कुआं खोदते हैं और पानी पीते हैं, आठ-नौ हज़ार कमाते हैं, कमरे का किराया 6 हज़ार है, उसमें हम खाएंगे कि बच्चों को खिलाएंगे, फिर कैसे बच्चों को पढ़ाऊंगा और कैसे इलाज करवाउंगा, हम लोगों को कहीं जगह दे दी जाए रहने के लिए''
बारिश से बचने के लिए जाता एक लड़का
''हम लोग कहां से किराया देंगे''
यहां रहने वाले ज़्यादातर वे लोग हैं जो छोटे-मोट काम करते हैं, बेघर हुई एक महिला ने बेहद नाराज़गी के साथ कहा कि '' हम लोग कूड़ा चुन कर खाते हैं, सड़क पर जाते हैं बोतल, प्लास्टिक मिलता है उसे बेचकर खाते हैं, हम लोग कहां से किराया देंगे।''
बरसात में बच्चों के सिर से छत छीन ली
लोगों ने बुलडोज़र कार्रवाई के दौरान उनके साथ मारपीट करने का भी आरोप लगाया। कुछ लोगों ने एक साथ बताया कि '' हमारे घर हटा रहे थे हम उन्हें रोक रहे थे तो हमें मारा, ये कहां का इंसाफ है, एक तरफ बरसात हो रही है, बच्चों के सिर के ऊपर से छत छीन ली, यहां पढ़ाई करने वाले बच्चे भी हैं, हम ग़रीब आदमी हैं, कहां जाएंगे, रोज़गार नहीं है रोज़गार के पीछे मर रहे हैं''
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वहां जमा भीड़ में से कुछ लोग झुग्गियों को हटाने के दौरान पुलिस कार्रवाई के बारे में बताते हैं कि '' लट्ठ मारने चालू कर दिए बेकसूर लोगों को मार रहे थे, प्रशासन होती है जनता की सेवा के लिए लेकिन प्रशासन ही हमें लट्ठ मार रही थी'' हमने इन लोगों से पूछा कि वो लोग रैन बसेरे में क्यों नहीं जा रहे तो एक शख्स ने कहा कि '' कुछ नहीं कर रही ये सरकार, किसी चीज़ का इंतज़ाम नहीं कर रहे ये ग़रीबों के लिए।''
एक और बेघर महिला कहने लगीं '' हमें कहीं भी ठिकाना दे दीजिए हम चले जाएंगे, हमारे पास आधार कार्ड, पैन कार्ड सब है, वोटर लिस्ट में नाम है, अगर ऐसा ही था तो क्यों हमारा नाम वोटर लिस्ट में जोड़ा, नहीं जोड़ना चाहिए था, तभी भगा देते हमें, वोट के लिए तो यहां सब आ जाते हैं लेकिन अब कोई नहीं आ रहा।''
ख़ुद को यहां का प्रधान बता रहे ज़फ़र आलम ने यमुना में आई बाढ़ के बाद कुछ वादों को याद दिलाते हुए कहा कि'' जब यहां सैलाब आया था रोड तक पानी आ गया था, दिल्ली सरकार ने उस वक़्त बोला था कि 10 हज़ार रुपया देंगे, यहां आधार कार्ड, बैंक खाता की कॉपी जमा करने की सारी प्रक्रिया हुई थी लेकिन पब्लिक को यहां एक रुपया नहीं मिला''
हम लोगों से बात कर ही रहे थे की तेज़ बारिश शुरू हो गई, एक महिला दिखी जो अपना सामान ढक रही थी हमने उनसे पूछा कि अब वो कहां जाएंगी तो कहने लगी '' तिरपाल टांग रही हूं, मेरा सबसे छोटा बच्चा एक महीने का है, पति प्लंबर का काम करते हैं, चार बच्चे हैं, अब ऐसे ही खुले में रहना होगा हमें।''
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अपने बच्चों के साथ अलाव जला कर बैठी मुस्कान के पति झाड़ू लगाने का काम करते हैं उनके तीन बच्चे हैं वे कहती हैं कि '' इस बारिश में अब कहां जाएंगे, बताइए, क्यों तोड़ दिया हमारा घर, गरीब आदमी को भगा रहे हैं, कहां से खाएंगे, बारिश में बच्चों को लेकर कहां जाएंगे, गरीब आदमी हैं, झुग्गी तोड़ दी हमारी।''
विरोध में लोगों ने सड़क जाम की
नाराज़ लोगों ने सड़क जाम की
उस दिन ( 31 जनवरी ) लोगों ने जैसे-तैसे बारिश में रात गुज़ारी और अगले दिन 1 फरवरी को गुस्साए लोग सड़क पर उतर आए जिसकी वजह से सलीमगढ़ बाईपास पर लंबा ट्रैफिक जाम लग गया, मौक़े पर पहुंचे पुलिस के अधिकारियों ने लोगों से बात कर जाम खुलवाया और आगे बातचीत करने का आश्वासन दिया।
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