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यूपीः चंदौली का नाम बदलने की कवायद किस ओर इशारा करती है?

"चंदौली जिले में किसानों की समस्याएं बड़ी हैं पर उनका निराकरण नहीं किया जा रहा है।"
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उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र में मुगलसराय के बीजेपी विधायक ने चंदौली का नाम बदलकर बनारस गंगापार रखने का मुद्दा उठाया तो सियासत गरमा गई। बितंड़ा तब खड़ा हुआ जब सैयदराजा के बीजेपी विधायक सुशील सिंह ने चंदौली जिले को बाबा कीनाराम का नाम देने की वकालत की। चंदौली के सांसद एवं काबीना मंत्री महेंद्र पांडेय लोगों को लुभाने के लिए यह जुमाला लगातार उछाल रहे हैं कि जिले का नाम वाराणसी देहात करने के लिए वह प्रयासरत हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चलते जिस तरह से बनारस को ग्लोबल पहचान मिल रही है, उसका लाभ चंदौली को तभी मिल पाएगा जब इस जिले के साथ वाराणसी का नाम जुड़ा होगा।

चंदौली जिले में कुल चार विधासभाएं हैं, जिनमें मुगलसराय, चकिया (सुरक्षित), सैयदराजा और सकलडीहा हैं। जिले का नाम बदले जाने को लेकर विपक्ष ही नहीं, सत्तारूढ़ दल के नेताओं में एकराय नहीं है। सबके अपने-अपने तर्क हैं। मुगलसराय के विधायक रमेश जायसवाल ने इसी महीने बजट सत्र के दौरान यूपी विधानसभा में यह सुझाव रखा था कि चंदौली का नाम बदल दिया जाए। इस जिले का नाम बनारस गंगापार करने को लेकर उनके पास कई सुझाव आए हैं। वह कहते हैं कि चंदौली में बहुत सारी चीज़ें हैं जो मुगलों का स्मरण कराती हैं।

जायसवाल कहते हैं, "मुगलों ने अपनी विरासत को बरकरार रखने के लिए इस इलाके का नाम मुगलसराय नाम रखा तो बीजेपी ने कलंक को मिटा दिया। यह इलाका अब पंडित दीनदयाल उपाध्यायनगर (पीडीडीयू) के नाम के जाना जाता है। चंदौली में अभी बहुत से ऐसे नाम हैं जो मुगलिया शासन की याद दिलाते हैं जिनमें सैयदराजा प्रमुख है। चंदौली से पहले तो सैयदराजा का नाम बदले जाने की जरूरत है। दुर्भाग्य की बात यह है कि मुगलों के प्रचलित नाम सैयदराजा को आज भी उसी तरह चलाया जा रहा है। मुझे लगता है कि इस पर लोगों की तरफ से भी सुझाव मांगे जाने चाहिए।"

चंदौली का नाम बदलने की वकालत करने वाले मुगलसराय के विधायक रमेश जायसवाल यह भी कहते हैं, "न जाने किस स्वार्थ में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने चंदौली को काशी से अलग कर दिया। यह इलाका तो बनारस का ही हिस्सा हुआ करता था। बगैर लोकमत जुटाए बनारस बांट दिया गया। चंदौली के लोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाते हैं और जब अपना जिला चंदौली बताते हैं तो लोग कहते हैं की कहां पड़ता है? बिहार में पड़ता है क्या…चंदौसी में पड़ता है क्या? बनारस से अलग होने के कारण चंदौली के लोग निराश हैं। इस जिले के करीब 20 लाख लोग इस इंतजार में है कि जिस तरह प्रयागराज के देहात इलाके का नाम बदला गया, उसी तरह चंदौली जिले का नाम बदला जाए। चंदौली गंगा के पार है, इसलिए इस जिले का नाम वाराणसी गंगापार किया जाए तो इसकी सार्वभौमिकता बढ़ जाएगी।"
दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता नारायण मूर्ति ओझा चाहते हैं कि चंदौली को पंडित कमलापति त्रिपाठी का नाम मिलना चाहिए। उन्होंने ही इस इलाके को धान का कटोरा बनाया और सूबे में अलग पहचान दिलाई। चंदौली का नाम वाराणसी देहात अथवा बनारस गंगापार का नाम रखे जाने पर यहां के लोग दोयम दर्जे में गिने जाएंगे। इस जिले के लोगों की स्थिति और पहचान कानपुर देहात जैसी ही हो जाएगी। ऐसी किसी भी पहल का कांग्रेस पुरजोर तरीके से विरोध करेगी।

दूसरी ओर, शिवसेना से जुड़े चंद्रमोहन सिंह कहते हैं, विधायक सुशील सिंह अगर चंदौली का नाम बदलने के बहुत इच्छुक हैं तो पहले मुगलों के सैयदराजा का नाम बदलवाएं। हमें चंदौलीवासी होने पर गर्व है। दूसरे जिले से आकर चंदौली में राजनीति करने वाले अपने पसंद के जिले में चले जाएं। चंदौली रानी चंद्रावती की थी और वह आगे भी रहेगी। चंदौली के साथ चंदेल राजाओं की विरासत भी जुड़ी हुई है। इस जिले का नाम बदले जाने की किसी भी कोशिश का कड़ा विरोध किया जाएगा।

नाम बदलने से बढ़ती है परेशानी

चंदौली का एक बड़ा तबका चंदौली का नाम बदले जाने को बहसबाज़ी का मुद्दा बना रहा है और सोशल मीडिया में इसे लेकर प्रचार कर रहा है। मुगलसराय के विधायक रमेश जायसवाल ने भले ही चंदौली का नाम बदलने का मुद्दा विधानसभा में उठाया है लेकिन प्रबुद्ध जनता, लेखक या फिर पुरातत्व विभाग या किसी और पक्ष की तरफ से ऐसा कोई प्रस्ताव फिलहाल सरकार के पास विचाराधीन नहीं है। लंबे वक्त से चंदौली की सियासत पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार डा. अनिल यादव मानते हैं कि ऐसा नहीं है कि पहली बार चंदौली का नाम बदलने की मांग उठी हो। वह कहते हैं, "कई बार छात्र संगठनों ने चंदौली का नाम बनारस के साथ जोड़कर रखने की मांग उठाई है। सरकार की ओर से अभी तक इस मांग का कोई जस्टिफिकेशन नहीं मिला है।"

सवाल यह उठता है कि किसी जिले का नाम बदलने की राजनीति या ऐसी चर्चा को बार-बार उछाले जाने से सरकार अथवा फिर हिंदुत्ववादी संगठनों को क्या हासिल होगा? क्या इसका नाता चुनावों में हिंदुत्व एजेंडे को बढ़ाने से जुड़ा हो सकता है? डा.अनिल बताते हैं, "चंदौली में बाबा कीनाराम की जन्मस्थली को सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है। इनके अनुयायी चंदौली को उनका नाम देना चाहते हैं। अगर इस तर्ज पर जिले के नाम बदले जाएंगे तो यह प्रक्रिया अपने आप में सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकती है।"

आगामी लोकसभा चुनाव में चंदौली का नाम बदलने का सवाल कोई मुद्दा बन सकता है, इससे पत्रकार अनिल यादव इनकार करते हैं। वह कहते हैं, "सीधे तौर पर देखें तो चंदौली जिले में किसानों की समस्याएं इतनी बड़ी हैं जिनका निकारण नहीं किया जा रहा है। गंगा कटान और नहरों की बदहाली से लाखों अन्नदाता बेहाल हैं। नौगढ़ के जिन जंगलों के दम पर बनारस सांस लेता है, वहां समस्याओं की पहाड़ है। आदिवासियों के सामने दो वक्त की रोटी की इंतजाम कर पाना मुश्किल है। गर्मियां आती हैं तो समूचे नौगढ़ में पीने के पानी का जबर्दस्त संकट खड़ा हो जाता है। कई गांवों में औरतों और बच्चों को आज भी कई मील दूर जाकर पानी लाना पड़ता है, तब लोगों की प्यास बुझ पाती है।"

'आत्मविश्वास की कमी'

नाम बदलने की सियासत पर चंदौली ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष आनदं सिंह कहते हैं, "लगता है कि लोकसभा चुनाव में जाने से पहले बीजेपी में आत्मविश्वास की कमी दिख रही है। जिले का नाम बदलने का मुद्दा उठाकर बीजेपी वोटरों कि सिंपैथी बटोरना चाहती है। बीजेपी यह चाहती है कि ऐसा विवाद उठे जिससे लोग बहस में सिमट जाएं और बेरोज़गारी, महंगाई, आदिवासियों के जमीन पर कब्जेदारी अथवा कानून व्यवस्था जैसे ज्वलंत मुद्दों से लोगों का ध्यान हट जाए।"

पत्रकार आनंद सिंह यह भी कहते हैं, "इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी से पहले बसपा मुखिया मायावती भी इस तरह की सियासत कर चुकी हैं, लेकिन उनका फैसला दलित चिंतकों अथवा समाजसेवियों (जैसे आंबेडकर,ज्योतिबा फुले) के नाम को आगे बढ़ाने से जुड़ा रहा। मायावती को यह शिकायत थी कि आज़ादी के बाद प्रमुख जगहों के नाम अभिजात्य वर्ग से जुड़े लोगों के नाम पर रखे गए थे जबकि दलित या पिछड़े समुदायों के लिए काम करने वाले नायकों को भुला दिया गया था। हालांकि ये भी दलित और पिछड़े लोगों को गोलबंद करने की कोशिश थी। जब से आरएसएस का जन्म हुआ है, मुस्लिम विरोध उनके डीएनए में घुस गया है। बीजेपी का यह अनुसांगिक संगठन ऐसे मुद्दों को ढूंढ-ढूंढकर लाता है जिससे वह मुस्लिम विरोध में हिंदुओं को गोलबंद कर सकें हैं।"

\विकास को रफ्तार देने की गरज से साल 1997 में मुख्यमंत्री मायावती ने चंदौली को बनारस से अलग किया। यह जनपद गंगा नदी के पूर्वी और दक्षिणी दिशा की ओर स्थित है। इस ज़िले का नाम अपने तहसील मुख्यालय के नाम पर रखा गया है। चंदौली का शाब्दिक अर्थ है दीपों की लड़ियां अथवा दीपों की माला। चंदौली जिला पहले काशी राज्य के अधिकार में था। इस जिले से जुड़ी तमाम किंवदंतियां और कथाएं हैं। प्राचीन काल की मूल्यवान धरोहरें जहां-तहां बिखरी पड़ी हैं। चंदौली की कई लोक-कथाएं हैं। ऐसा कहा जाता है कि गंगा पूरे देश में सिर्फ दो ही जगह पूरब से पश्चिम की ओर बहती हैं, जिनमें एक प्रयागराज (इलाहाबाद) है तो दूसरा चंदौली का बलुआ इलाका।

चंदौली का रामगढ़ अघोरेश्वर संत कीनाराम की जन्मभूमि है, जो वैष्णव धर्म के महान अनुयायी थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव जाति की सेवा में लगा दिया था। चंदौली जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर करीब 22 बीघे में फैला हेतम खां का किला और कई कोट हैं। चंदौली जिले का इतिहास भी वही है जो बनारस जिले का है। बुद्ध के जन्म के पहले ईसा पूर्व छठीं शताब्दी में देश 16 महा जनपदों में विभाजित था। इनमें काशी एक था, जिसकी राजधानी वाराणसी हुआ करती थी। सातवीं पीढ़ी के बाद एक विख्यात राजा धनवंतरि ने यहां शासन किया, जिनका नाम आयुर्वेद के संस्थापक मुख्य चिकित्सक के रूप में स्मरण किया जाता है। नौगढ़ के जंगलों में आज भी सैकड़ों तरह की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं।

\विकीपिडिया के मुताबिक, "काशी राज्य पर महाभारत के पूर्व की शताब्दी में मगध वंश परम्परा के शासक ब्रह्मदत्त का प्रभुत्व था। ब्रह्मदत्त की वंशावली का उत्थान महाभारत युद्ध के बाद देखा गया। इस वंश परंपरा के करीब सैकड़ों राजाओं ने इस राज्य पर अपना शासन किया। इसके कुछ शासक तो चक्रवर्ती सम्राट हुआ करते थे। काशी के राजा मनोज ने कोशल, अंग और मगध की राजधानियों को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार अश्वसेवा नाम के काशी के राजा थे जो 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता थे। साल 1775 में काशी राज्य ब्रितानी हुकूमत के अधिकार में आ गया। आजादी के बाद बनारस स्टेट का भारत में विलय हो जाने पर इस पीढ़ी के सबसे अंतिम राजा महाराज विभूति नारायण सिंह थे जिन्होंने करीब आठ साल तक शासन किया।

सेंटिमेंट भुनाने की साज़िश

चंदौली का नौगढ़ में भले ही गरीब है, लेकिन यह इलाका कई मायने में बेहद समृद्धशाली भी है। चक्केवाली चकिया से चलकर दिल्ली के एक चर्चित खबरिया चैनल में सीनियर जर्नलिस्ट कुमार सर्वेश कहते हैं, "चंदौली की पुरानी सभ्यता और संस्कृति रही है। अगर नाम बदलने से समस्याएं हल होती हैं तो कर दीजिए। चंदौली जिला जब से अस्तित्व में आया है तब के इसका वही नाम है। अब नई-नई बातें हो रही हैं कि इसका नाम यह किया जाए, वह किया जाए। क्या चंदौली का नाम बनारस देहात कर देने से ये समस्याएं हल हो जाएंगी? क्या इससे किसी को कोई लाभ पहुंचेगा? यह 2024 के चुनाव से पहले जनता का सेंटिमेंट भुनाने की एक साज़िश हो सकती है। शेक्सपियर ने भी कहा था कि नाम में क्या रखा है। गुलाब को चाहे जिस नाम से पुकारो, गुलाब ही रहेगा।"

वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, "पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती ने नाम बदले हैं तो वर्तमान मुख्यनमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पीछे नहीं हैं। वह भी इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, मुग़लसराय का पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर और फ़ैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर चुके हैं। दिल्ली में औरंगज़ेब के नाम से जुड़ी एक सड़क का नाम बदल दिया गया है। नाम बदलने के पीछे बीजेपी का तर्क यह कि शहरों,क़स्बों और संस्थाओं के नाम मुस्लिम आक्रमणकारियों के नाम पर नहीं रखे जा सकते। बीजेपी के नजरिये से भारत में अतीत के सभी मुस्लिम शासक विदेशी हमलावर थे और उनके नाम पर शहरों और क़स्बों का नाम होना ग़ुलामी का प्रतीक है। दरअसल, चंदौली का नाम बदले जाने की वकालत के पीछे बीजेपी का एक हिडेन एजेंडा है, जिले उछालकर वह आगामी लोकसभा चुनाव में वोट हथियाना चाहती है। हमें नहीं लगता कि बीजेपी की यह मंशा पूरी हो पाएगी।"

चंदौली सिर्फ नाम नहीं, परंपरा है

नेपथ्य में देखें तो चंदौली सिर्फ नाम नहीं, एक परंपरा है। ऐसी परंपरा जिसे अपने लंबे इतिहास और रवायत पर गर्व है। यहां के रीति-रिवाज और परंपराएं प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। चंदौली की मुकम्मल पहचान सिर्फ इतनी सी है कि यहां जो भी मुसाफिर आता है वह प्रकृति की अनंत गहराइयों में डूब जाता है। हक्का-बक्का कर देता है चंदौली। नौगढ़ के जंगलों के झुरमुट से सूरज के झांकने का दृश्य देखेंगे तो लहालोट हो जाएंगे और वो मंजर आपके दिल में हमेशा के लिए समा जाएगा।
चंदौली प्रकृति का वह प्रतीक है जो इतिहास और परंपराओं पर गर्व करने की ताकत देता है। चंद्रकांता के देश का नौगढ़ चंदौली में ही है,जिसे पढ़ने,देखने और सुनने के लिए दुनिया भर के लोगों ने हिन्दी सीखी। जैव-विविधता से भरे इस इलाके में जड़ी-बूटियों और औषधियों का ऐसा खजाना है जिनके जरिये जानलेवा बीमारियों पर विजय पाने की सदियों पुरानी परंपराएं हैं।

देवदरी जल प्रपात के पास एक काफी पुराना वृक्ष है। इसके एक ही तने से पांच प्रजातियों के वृक्ष निकले हैं,जिसमें पीपल पाकड़, वट, समी और गूलर के वृक्ष हैं। मान्यता है कि इसी वृक्ष की वजह से इस स्थान को देवदरी नाम दिया गया। राजदरी-देवदरी और औरवाटांड को आमतौर पर हर किसी ने देखा होगा,लेकिन कर्मनाशा जलप्रपात को देखने की बात ही कुछ और है। छानपातर-करकटगढ़ जलप्रपात के नाम से मशहूर इस झरने के मोहक नजरे आप निहारते रह जाएंगे।

चंदौली के एक्टिविस्ट एवं आईपीएफ से जुड़े नेता अजय राय को लगता है कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं के सिंचाई, स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़कों की स्थिति सुधरने से ज्यादा उनको चंदौली जिले का नाम बदले जाने की चिंता है। वह कहते हैं, "बीजेपी के नेताओं को अपने जिले के विकास की चिंता होनी चाहिए। गौर कीजिए। यहां नहरों और माइनरों की हालत जर्जर है। चंदौली के बांध छिछले हो गए हैं। गंगा कटान के पुख्ता इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। यह नदी हर साल किसानों का हजारों बीघा जमीन लील रही है।"
"चंदौली जिले में न तो सड़कें ठीक हैं और न पीने के साफ पानी का इंतजाम है। महकमा जबरिया आदिवासियों बेदखल कर रहा है और उनकी जमीनें घेर रहा है। चकिया का रोडवेज बस अड्डा बदहाली का शिकार है। कितनी मुश्किलें गिनाएं। बेहतर होगा कि जिले का नाम बदलने का बितंडा खड़ा करने के बजाय सत्तारूढ़ दल के विधायक और नेता चंदौली कि तरक्की के लिए काम करें। सिर्फ लच्छेदार भाषण और फीता काटने से चंदौलीवालों का नसीब बदलने वाला नहीं है।"

जनवादी नेता अजय राय यह भी कहते हैं, "चंदौली को एक अदद जिला मुख्यालय की दरकार है लेकिन वह भी नसीब नहीं हो सका है। रबी-खरीफ सीजन में किसानों को खाद-बीज नहीं मिलता। देश के भारी उद्योग मंत्री पिछले एक दशक में चंदौली में कोई उद्योग नहीं ला सके। सत्तारूढ़ दल के नेताओं को चंदौली के बेरोजगारों की कोई चिंता नहीं है। इस जिले के युवाओं को नौकरी के लिए बिहार में भटकना पड़ रहा है जबकि पहले बिहार के लोग चंदौली और बनारस में अपना भविष्य संवारने के लिए पलायन किया करते थे।"

"सच यह है कि बीजेपी ने चंदौली में पिछले एक दशक में कोई भी ऐसा काम नहीं किया, जिसे लोग सनद के तौर पर याद कर सकें। अपनी नकामियों को छिपाने और वोटरों को भरमाने के लिए सत्तारूढ़ दल के नेता-विधायक सुनियोजित ढंग से जिले का नाम बदलने का बितंडा कर रहे हैं। इन नेताओं की नाकामियों से चंदौली के लोग खासे नाराज हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में चंदौली से बीजेपी का पत्ता साफ होने वाला है।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैंं।)

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