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बात-बेबात : 'मैं भी समझती हूं, मुझे मत इस क़दर भ्रमित करो'

'’ भाई साहब, वो तो अपने फायदे के लिए कुछ भी बोलते हैं। मुझे भ्रमित करते हैं। मैं भी सोचूंगी- समझूंगी। फिर जो ठीक लगेगा उसे चुनूंगी...।'' मुझे लगा भाभी जी महाराष्‍ट्र और झारखंड की जनता की ओर से कह रही हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : गूगल

मित्र के बुलाने पर मैं उनके घर गया। उन्‍हें अपनी विवाह योग्‍य बेटी के लिए लड़का देखने जाना था। मुझे भी अपने साथ लेकर जाना चाहते थे। जब मैं उनके घर पहुंचा तो मित्र बाथरूम में नहाने गए हुए थे। भाभी जी मिलीं। उन्‍होंने मुझे ड्राईंग रूम में बैठने को कहा।

मैं टेबल पर रखा अखबार पढ़ने लगा। अखबार में महाराष्‍ट्र के चुनाव के मद्देनजर भाजपा का संकल्‍प पत्र और महाविकास अघाड़ी का 'महाराष्‍ट्रनामा' छाए हुए थे। साथ ही झारखंड की खबरें थीं।

थोड़ी देर में भाभीजी चाय लेकर आईं और मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गईं। चाय की च‍ुस्कियों के साथ हम लोग बातें करने लगे।

मैंने बातचीत शुरू करते हुए कहा– ''और सुनाइए भाभी जी, क्‍या हाल हैं?''

'' भाई साहब, क्‍या बताऊं, एक तो इस बेतहाशा बढ़ती हुई महंगाई से परेशान हूं। घर का बजट बिगड़ रहा है। अब इंसान रोटी दाल चावल सब्‍जी तो खाएगा ही। खाने पीने की रोजमर्रा की चीजें आटा, दाल, सब्जियां, मसाले, तेल आदि इतनी महंगे हो रखे हैं कि क्‍या खाएं क्‍या न खाएं। कहां बचत करें समझ नहीं आ रहा है।'’

''मैंने कहा आप सही कह रही हैं। महंगाई ने आम जनता का बजट बिगड़ कर रख दिया है। लेकिन देखिए महाराष्‍ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं पर महंगाई पर किसी राजनीतिक दल का फोकस नहीं है। अखबार की सुर्खियों को ही देखिए– बांग्लादेशी घुसपैठिये, वोट जिहाद, बंटेंगे तो कटेंगे, एक हैं सेफ हैं। सारे भाषण सारे नारे नफ़रत से भरे। और घोषणापत्रों में हवाई दावे, हवाई वादे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं 'देश को बांटना चाहते हैं राष्‍ट्र विरोधी।' उनका कहना है कि राष्‍ट्र विरोधी अपने स्‍वार्थ के लिए समाज को जाति, धर्म, भाषा, पुरूष-महिला, गांव-शहर के आधार पर बांटने की कोशिश कर रहे हैं। उनका निशाना कांग्रेस और मुसलमानों पर होता है पर वास्‍तविकता यह है कि उनकी पार्टी के लोग ही ये सब को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में वे राष्‍ट्र विरोधी किसे कह रहे हैं। कन्‍फ्यूजन है।

महाराष्‍ट्र के उपमुख्‍यमंत्री देवेंद्र फणनवीस तो एक कदम और आगे बढ़ कर 'वोट जिहाद' और 'हिंदू धर्म के लिए युद्ध' जैसे शब्‍दों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। समझ नहीं आ रहा है कि वे चुनाव लड़ रहे हैं या धर्मयुद्ध?'’

भाभी जी बोलीं - ''भाई साहब, इनका मकसद एक ही है कि मुसलमानों को छोड़कर बाकी सारे हिंदू एक होकर इनको वोट दे दो। इनको चुनाव जितवा दो। बाकी आप जानते ही हो कि इनकी करनी और कथनी में फर्क होता है। ये जनता के खाते में पन्‍द्रह लाख रुपये डलवाने, हर साल दो करोड़ लोगों को राेजगार देने के जुमले उछालते हैं पर कार्यान्‍वयन नहीं करते हैं। खुद झूठ बोलते हैं और विपक्षि‍यों पर झूठ बोलने का आरेाप लगाते हैं।

अब देखिए कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने क्‍या गलत कह दिया कि 'बंटेंगे कटेंगे' जैसे नारे आतंकी बोलें तो सही भी है। साधु-संतों की यह भाषा नहीं होनी चाहिए। इस पर न केवल भाजपा बल्कि साधु समाज भी नाराज हो गया। इससे उनकी आस्‍था को ठेस पहुंच गई। अखिल भारतीय संत समि‍ति के महामंत्री स्‍वामी जितेंद्रानंद सरस्‍वती ने कांग्रेस को चेतावनी दी है कि अगर वह हिंदू धर्म और सनातन संस्‍कृति पर हमले करना बंद नहीं करते तो संत समाज इसका कड़ा प्रतिकार करेगा। वह सनातन धर्म पर प्रहार करना छोड़ दें। अयोध्‍या के संत करपात्री जी महाराज ने कहा है खड़गे के नाम में 'खड़ग' होता है जिसका काम होता है बांटना और काटना, जबकि याेगी आदित्‍यनाथ का नाम 'योग' से जुड़ा है, जिसका मतलब होता है जोड़ना। कांग्रेस पार्टी ने हमेशा हिंदू धर्म पर हमला करने वालों का समर्थन किया है।

अब बताइए, इन संतों ने मल्लिकार्जुन खरगे जी की येागी जी के नारे पर की गई टिप्‍पणी को अपने धर्म से जोड़ दिया। और अपनी आस्‍था पर ठेस पहुंचाने वाली बता दिया।'’

तब तक मित्र नहाकर निकल आए और भाभी जी से बोले - ''रीना, मैंने कल अपने कुछ बीमा पॉलिसी वाले दोस्‍तों को तुम्‍हारे पास भेजा था। पॉलिसी करवा ली क्‍या?''

इस पर भाभी जी तुनक कर बोलीं -'’भाई साहब, मैं तो इनके बीमा पॉलिसी वाले दोस्‍तों से परेशान हूं। कोई कहेगा भाभी जी हमारी पॉलिसी ले लो, इसमें ये फायदा है, दूसरा कहेेगा, मेरी वाली पॉलिसी ज्‍यादा फायदेमंद है, तीसरा कहेगा हमारी पॉलिसी सबसे अच्‍छी है। हमारी पॉलिसी चुन लो। हर व्‍यक्ति एक दूसरे की पॉलिसी में कमियां बताता है। उनकी कटु आलोचना करता है। और एक तरह से वे मुझे डिजिटल अरेस्‍ट करके तुरंत जबाव मांगते हैं। अरे भई, मैं एक अध्‍यापिका हूं। मेरी भी समझ है। मैं कहती हूं कि बाद में सोच के बताऊंगी तो बुरा-सा मुंह लेकर चले जाते हैं।'’

''समझ सकता हूं भाभी जी, जब तीन-तीन लोग अपनी-अपनी पॉलिसी की विशेषताएं बतातेे होंगे तो आप कन्‍फ्यूज हो जाती होंगीं।''

'’भाई साहब, वो तो अपने फायदे के लिए कुछ भी बोलते हैं। मुझे भ्रमित करते हैं। पर मैं किसी पर भी आंख मूंंद कर क्‍यों विश्‍वास कर लूं। मैं भी सोचूंगी- समझूंगी। अपने विवेक से निर्णय लूंगी। फिर जो ठीक लगेगा उसे चुनूंगी...।'' मुझे लगा भाभी जी अपनी बात ही नहीं कह रहीं बल्कि महाराष्‍ट्र और झारखंड की जनता की ओर से भी कह रही हैं।

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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