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राजनाथ का मुस्लिम प्रेम या संघ का प्लान 'बी'!

राजनाथ सिंह ने नामांकन के बाद से लखनऊ के सभी मुस्लिम धर्मगुरुओं से सम्पर्क करना शुरू कर दिया था। अब तक वह सभी धर्मगुरुओं से उनके घरों पर जाकर मिल चुके हैं।
लखनऊ में मौलाना ख़ालिद रशीद फिरंगी महली के साथ गृहमंत्री राजनाथ सिंह
लखनऊ में मौलाना ख़ालिद रशीद फिरंगी महली के साथ गृहमंत्री राजनाथ सिंह।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कट्टर हिंदुत्व के सहारे दोबारा सत्ता हासिल करने की कोशिश कर रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पार्टी के उम्मीदवार राजनाथ सिंह अपनी छवि एक उदारवादी नेता की तरह बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

मोदी सरकार में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने नामांकन के बाद से लखनऊ के सभी मुस्लिम धर्मगुरुओं से सम्पर्क करना शुरू कर दिया था। अब तक वह सभी धर्मगुरुओं से उनके घरों पर जाकर मिल चुके हैं।

पार्टी की कट्टर हिंदुत्व की नीति के विपरीत जाकर राजनाथ मुसलमानों से रिश्ते बनाने की कोशिश क्यूँ कर रहे हैं? यह वह भी जानते हैं कि धर्मगुरुओं से मुलाक़ात करने से बाद भी उनको मुसलमानो का वोट मिलने की सम्भावना कम ही है। लेकिन राजनाथ मीडिया को सूचना देकर धर्मगुरुओं के घरों पर जा रहे हैं। इसका अर्थ यह है की वह भी चाहते हैं की मुसलमान नेताओं से उनकी मुलाक़ात की चर्चा मीडिया में भी की जाए।

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मौलाना कल्बे जव्वाद के साथ गृहमंत्री राजनाथ सिंह।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी अभी तक लखनऊ में राजनाथ के प्रचार के लिए नहीं आये हैं। मोदी-शाह सारे देश में घूम-घूम कर पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं। लेकिन दोनों का राजनाथ के संसदीय क्षेत्र में नहीं आना साफ़ संकेत देता है की पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और है।

राजनीति पर नज़र रखने वाले इसको दो तरह से देखते है। एक भाजपा की अंदरूनी कलह और दूसरे राजनाथ ख़ुद नहीं चाहते की उनके क्षेत्र में किसी तरह का ध्रुवीकरण करने वाले भाषण दिए जाए। इसका अर्थ यह नहीं है कि राजनाथ संघ के हिंदुत्व के एजेंडे के विरोधी है। बल्कि वह अपने लिए एक अलग पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है। हालांकि वे ऐसी कोशिश काफी समय पहले से करते रहे हैं।

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मुस्लिम युवाओं के साथ तस्वीर खिंचाते गृहमंत्री राजनाथ सिंह

राजनाथ एक उदारवादी नेता की तरह अपनी छवि बनाना चाहते हैं। यह सॉफ़्ट हिंदुत्व चुनाव के नतीजों के बाद में उनके लिए लाभदायक हो सकता है। क्योंकि अगर भाजपा की पूर्ण बहुमत से कम सीटें रहती हैं तो  नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के सहयोगी दल भी मोदी जैसी कट्टर हिंदुत्व वाली छवि नेता को समर्थन देने में पीछे हट सकते हैं।

ऐसे में 1999 जैसे हालात होंगे जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। भाजपा के साथ क्षेत्रीय दल इसलिए आ गए थे क्यूँकि संघ में सारा जीवन बिताने और उसकी विचारधारा से पूर्ण प्रभावित होते हुए भी अटल ने अपनी छवि को सॉफ़्ट हिंदुत्व तक ही सीमित रखा था। शायद राजनाथ भी ऐसे ही किसी मौक़े की तलाश में हैं।

राजनीति के जानकार मानते हैं कि 2014 में राजनाथ पार्टी अध्यक्ष थे जब भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई और गृह मंत्री बने। लेकिन राजनाथ जैसे वरिष्ठ नेता को भी दूसरे नेताओ की तरह मोदी-शाह नज़र अन्दाज़ करते रहे।

पत्रकार हुसैन अफ़सर कहते हैं कि राजनाथ का धर्मगुरुओं से मिलने का मक़सद मुसलमानो की परेशानियों पर चर्चा करना नहीं है, बल्कि वह ख़ुद को संघ का उदारवादी चेहरा बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में मुसलमानो के ख़िलाफ़ जो भी हुआ उसकी राजनाथ ने कभी निंदा नहीं की यानी ख़ामोशी से हिंदुत्व के एजेंडे को समर्थन कर रहे थे।

कई राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि राजनाथ कट्टर छवि दिखाकर अपना राजनीतिक नुक़सान नहीं करेंगे। पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप कपूर का कहना है कि राजनाथ संघ की टीम बीमें महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। अगर संघ को लगा की मोदी का नाम सहयोगियों को स्वीकार नहीं है तो तुरंत राजनाथ का नाम आगे किया जायेगा। इसी लिए राजनाथ कट्टर हिंदुत्व नहीं सॉफ़्ट हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं, वरना वह भी संघ की विचारधारा के हैं।

कई राजनीतिक विश्लेषक संघ के प्लान बी में नितिन गडकरी का नाम भी लेते हैं। वे भी मोदी से अलग अपनी उदार छवि बनाने की कोशिश करते रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि राजनाथ ने लखनऊ मे इधर एक सप्ताह के भीतर सभी वरिष्ठ धर्मगुरुओं से मुलाक़ात की है। जिन धर्मगुरुओं से उन्होंने मुलाक़ात की है उनमें मौलाना हमीदुल हसन,  मौलाना कल्बे सादिक़, मौलाना कल्बे जव्वाद, मौलाना ख़ालिद रशीद फिरंगी महली,  मौलाना यासूब अब्बास आदि शामिल हैं। इसके अलावा राजनाथ मदरसों में भी जा रहे हैं।

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