सामाजिक विकास के 'गुजरात मॉडल' में दलित कहां हैं?
देश में जब 17वीं लोकसभा के चुनाव पूरे जोर शोर से चल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के आर्थिक मॉडल से लेकर अंतरिक्ष में भारत के सुपर पावर बनने की कहानी दुनिया और देश की जनता को सुना रहे हैं। उनके वादों, नारों, रैलियों, भाषणों और न्यू इंडिया के बखान देश भर के अखबारों में सुर्खियां बन रहे हैं तो उसी वक्त उनके अपने गृहराज्य गुजरात में कुछ और हो रहा है। उसी गुजरात में जहां की तमाम कथाएं गढ़कर मोदी ने दिल्ली की सीढ़ियां चढ़ीं थी। वहां दलितों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। क्योंकि एक दलित युवक अपनी शादी में घोड़े पर सवार होकर गया था।
पुलिस के अनुसार गुजरात के मेहसाणा जिले के कडी तालुका के लोर गांव के अगड़ी जाति के लोग दलित दूल्हे के घोड़ी चढ़ने के कदम से कथित रूप से नाखुश थे। घटना मंगलवार की है। गांव के सरपंच विनूजी ठाकोर ने गांव के अन्य नेताओं के साथ फरमान जारी कर गांववालों को दलित समुदाय के लोगों का बहिष्कार करने को कहा।
पुलिस उपाधीक्षक मंजीत वंजारा ने बताया, 'गांव के कुछ प्रमुख ग्रामीणों ने दलितों के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की। इसके अलावा समुदाय के लोगों से बात करने या उनके साथ किसी तरह का मेलजोल रखने वालों पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाए जाने की भी घोषणा की गई थी।'
हालांकि मामले के बाहर आने के बाद पुलिस ने गांव के सरपंच विनूजी ठाकोर को गिरफ्तार कर लिया। इसके अलावा चार अन्य के खिलाफ भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामले दर्ज किया गया है।
वैसे यह गुजरात में दलितों पर हो रहे अत्याचार का इकलौता उदाहरण नहीं है। हम यह कह सकते हैं कि राज्य में उनके साथ हो रहे भेदभाव में एक और किस्सा जुड़ गया है। अमूमन हर कुछ दिन पर गुजरात से दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों की ऐसी अमानवीय कहानी सामने आती रहती है।
इसी साल मार्च में गुजरात के पाटन जिले की चाणस्मा तालुका में एक 17 वर्षीय दलित युवक को पेड़ से बांधकर पीटने का मामला सामने आया था। इससे पहले पिछले साल गांधीनगर के मनसा तालुका के परसा गांव में घोड़ी पर सवार दलित दूल्हे की बारात को रोक दिया गया था।
इससे पहले गुजरात के अहमदाबाद जिले के एक पंचायत के दफ्तर में कुर्सी पर बैठने को लेकर भीड़ ने एक दलित महिला पर कथित रूप से हमला किया था। इससे पहले साबरकांठा ज़िले में मूंछ रखने पर दलित युवक की पिटाई कर दी गई थी।
गुजरात में दलितों की स्थिति
दलितों पर अत्याचार के मामलों में गुजरात पांच सबसे बुरे राज्यों में से एक है। इसी साल मार्च में गुजरात विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में सरकार की ओर से बताया गया है कि साल 2013 और 2017 के बीच अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं अनुसूचित जनजातियों के ख़िलाफ़ अपराधों में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
गुजरात सरकार की ओर से बताया गया है कि साल 2013 से 2017 के बीच एससी व एसटी एक्ट के तहत कुल 6,185 मामले दर्ज हुए। दी गई जानकारी के अनुसार साल 2013 में 1,147 मामले दर्ज किए गए थे जो 33 फीसदी बढ़कर साल 2017 में 1,515 हो गए।
पिछले साल मार्च महीने तक दलितों के खिलाफ अपराध के 414 मामले सामने आए जिनमें से सबसे अधिक मामले अहमदाबाद में थे। अहमदाबाद में 49 मामले दर्ज होने के बाद जूनागढ़ में 34 और भावनगर में 25 मामले दर्ज हुए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराधों में भी तेजी आई है। साल 2013 से 2017 के बीच पांच सालों के दौरान अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के मामलों की संख्या 55 फीसदी बढ़कर 1,310 पहुंच गई है। साल 2018 के शुरुआती तीन महीनों में भी एसटी समुदाय के खिलाफ अपराध के 89 मामले दर्ज हुए हैं। इसमें से सबसे अधिक मामले भरूच (14)में दर्ज हुए। भरूच के बाद वडोदरा में 11 व पंचमहल में 10 मामले दर्ज हुए है।
सरकार का रवैया
इन सारी अमानवीय घटनाओं में सरकार का रवैया असंवेदनशील नजर आता है। आखिर कथित बड़े बांधों, फ्लाईओवरों और विदेशी निवेश की बिना पर गुजरात को देश का सबसे उन्नत राज्य और उसके आर्थिक मॉडल को सर्वश्रेष्ठ बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामाजिक असमानता व अमानवीयता का पता देने वाली ऐसी घटनाओं पर शर्मिंदा क्यों नहीं होते हैं?
चुनाव के इस शोर शराबे के बीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात की सरकार से सवाल और भी हैं। आखिर गुजरात में क्यों लगातार ऐसी परिस्थितियां निर्मित की जाती रही, जिनके चलते दलितों पर हाथ उठाना ‘सबसे आसान’ बना रहे?
हालांकि पूरे देश से दलित उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़े हैं, लेकिन उसके प्रति भी मोदी सरकार ही जवाबदेह है। अभी उत्तराखंड केटिहरी के जौनपुर विकास खंड के बसाण गांव के 23 साल के जितेंद्र दास की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि एक शादी समारोह में वह सवर्णों के सामने कुर्सी पर बैठकर खाना खा रहा था। यहां भी डबल इंजन यानी बीजेपी की सरकार है। इसलिए ये पूछना ज़रूरी है ख़ासकर गुजरात के संदर्भ में कि लंबे समय से राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेपी सरकार आखिर क्यों लोकतांत्रिक मूल्यों को सामाजिक चेतना का हिस्सा नहीं बनाती? असंवैधानिक करार दिये जाने के बावजूद छुआछूत के प्रति सिस्टम आज तक ‘सहिष्णु’ क्यों बना हुआ है?
अब यह तो कोई बताने की बात ही नहीं कि इतनी बड़ी आबादी को हर तरह के भेदभाव, अपमान और अमानवीयता के हवाले किए रखकर देश न विकास के लक्ष्य प्राप्त कर सकता है और न ही सभ्यता व संस्कृति के। लेकिन शायद गुजरात के नेताओं को ये बात समझ में नहीं आती है। इस पर सवाल यही है कि सामाजिक विकास के 'गुजरात मॉडल' में दलित कहां हैं?
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