सरकार की आलोचना की क़ीमत! कौशलेन्द्र प्रपन्ना की मौत
आज हमने एक शिक्षक, लेखक, पत्रकार और शिक्षा सुधारक को खो दिया। कौशलेन्द्र प्रपन्ना की आज 14 सितंबर को दोपहर में मौत हो गई। उनका दिल्ली के रोहिणी स्थित सरोज अस्पताल में निधन हो गया। वहां वो शिक्षक दिवस के बाद से भर्ती थे। तब से ही वो ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे थे। आज वो इस जंग को हर गए।
लेकिन उनकी मौत हमारी व्यवस्था पर एक तमाचा है कैसे हमने एक कार्यकर्ता खो दिया, जो लगातार व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव के लिए लिखता और बोलता रहा। लेकिन सरकार को उसकी आलोचना से इतनी धक्का लगा कि उसने अपने सरकारी तंत्र और सत्ता के दंभ में एक शिक्षक और शिक्षा सुधारक की जान ले ली। जो लेखनी कौशलेन्द्र की ताक़त थी आज वही उनकी मौत का कारण बनी है।
आपको बता दें कि 25 अगस्त को जनससता में दिल्ली सरकार की शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए कौशलेन्द्र प्रपन्ना ने एक लेख लिखा था। जिसके बाद ही सरकार ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना शुरू किया। टेक महिंद्रा फ़ाउंडेशन जिसमें वह पिछले छह वर्षों से काम कर रहे थे, उस पर दबाव डाला गया और उस संस्था ने भी अपनी सारी हदें पार करते हुए, कौशलेन्द्र की बेइज़्ज़ती की और उनसे जबरन त्याग पत्र लिया और संस्था से निकल दिया। इस प्रताड़ना और अपमान से बुरी तरह टूट चुके कौशलेन्द्र को दिल का दौरा पड़ा। जिसके बाद वो दिल्ली एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हुए। शिक्षक दिवस यानी 5 सितंबर से लेकर आज तक यानी पिछले नौ दिन से वेंटीलेटर पर ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे कौशलेन्द्र की आज मौत हो गई।
वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बाबले कौशलेंद्र की मौत पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं, "कौशलेंद्र एक प्रतिष्ठित कंपनी में शिक्षा के कामकाज से जुड़े थे। पिछले दिनों उन्होंने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पर एक लेख लिखा था जो एक प्रतिष्ठित अख़बार में छपा था। इस लेख के बाद उनकी कंपनी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। सिर्फ़ निकाला ही नहीं बेइज़्ज़त करके निकाला इस घटना से उनके जैसे संवेदनशील आदमी को हार्ट अटैक आ गया। वह पिछले कई दिन से एक अस्पताल में भर्ती थे।
जब उन्हें लेख लिखने के कारण नौकरी से निकाले जाने की ख़बर एक प्रतिष्ठित वेब पोर्टल पर चलाई गई तो प्रतिष्ठित कंपनी ने अपनी ताक़त लगाकर वह ख़बर हटवा दी और आज कौशलेंद्र दुनिया छोड़कर चले गये। मुझे नहीं पता कि उनकी मृत्यु उन प्रतिष्ठित पत्रकार की हत्या की तरह मीडिया की सुर्खियां बन पाएगी या नहीं लेकिन मेरी नज़र में कौशलेंद्र अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए शहीद हो गए हैं।
हम एक भयानक वक़्त में जी रहे हैं और जो इस वक़्त को भयानक कहने की हिम्मत कर रहे हैं वे मर रहे हैं।"
कौशलेंद्र प्रपन्ना कौन?
कौशलेंद्र प्रपन्ना भाषा एवं शिक्षा विशेषज्ञ थे। शिक्षा पर दो पुस्तकों के रचयिता, 500 से ज़्यादा रिसर्च पेपर प्रकाशित कर चुके थे। टीचर ट्रेनर रिसॉर्स पर्सन के रूप में जाने जाते थे।
उनके परिवार में पत्नी विशाखा अग्रवाल और 8 महीने की एक बेटी है। हिंदी दैनिक इकोनॉमिक टाइम्स में उन्होंने क़रीब डेढ़ साल नौकरी की थी। उसके बाद वह पिछले छह सालों से टेक महिंद्रा फ़ाउंडेशन में वाइस प्रेसीडेंट एजुकेशन थे। इससे पहले प्रपन्ना दिल्ली सरकार के स्कूल में बतौर शिक्षक नौकरी कर चुके हैं। उन्होंने शिक्षा सुधार और उन्नति पर कई किताबें लिखी हैं और भारत के सैकड़ों स्कूलों का दौरा किया। शिक्षा की पद्धति को कैसे बेहतर बनाया जाये इसके लिए उन्होंने कई नस्य देशो के दौरे भी किये।
उनके काम की देश ही नहीं दुनिया में तारीफ़ होती थी लेकिन कुछ लोगों को उनके काम से दिक़्क़त थी। एक पत्रकार लेखक, शिक्षक, शिक्षा सुधारक और ना जाने कितनी प्रतिभा के धनी थे कौशलेन्द्र, शायद ही इतना बहुमुखी और प्रतिभाशाली व्यक्ति आपको मिले।
लेकिन एक लेख के कारण इस व्यवस्था ने उनकी हत्या कर दी, हाँ मैं उनकी मौत को हत्या कह रहा हूँ! क्योंकि यह कोई सामान्य स्थिति नहीं थी जिसमें आपके काम के लिए ही आपको प्रताड़ित किया जाए क्योंकि वो सत्ताधारीयो को नापसंद हो। ये ख़तरनाक है कि आपका बोलना और लिखना आपकी जान ले ले।
धन्य है ये शिक्षा व्यवस्था!
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