इतवार की कविता : 'पहाड़ों से बन रही हैं लड़कियां...'
हवाओं सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें बेहिचक चलने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं बेवजह रोका जाना
फूलों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें महकने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं बेदर्दी से कुचला जाना
परिंदों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें बेखौफ उड़ने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं उनके परों का काटा जाना
पहाड़ों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें सिर उठा जीने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं सिर को झुका कर जीना
सूरज सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें चमकने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं पर्दों में ढका जाना
-कमला भसीन
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