रूस ने सीआईए को गोल्डन जुबली पर बधाई क्यों नहीं दी?
रूसी पत्रिका नत्सिओनलनाया ओबोरोना (राष्ट्रीय रक्षा) में रूस के विदेशी खुफिया प्रमुख सर्गेई नारिश्किन ने केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) की 75 वीं वर्षगांठ पर एक दिलचस्प निबंध लिखा है ये वर्षगांठ रविवार को मनाया जाना है। यह निबंध यूक्रेन में जारी हाइब्रिड युद्ध के बीच में एक असामान्य संकेत है।
शायद, यह एक उद्देश्य की पूर्ति करता है? निश्चित रूप से, यह रूसी लोगों और विदेशियों को समान रूप से याद दिलाने का काम करता है कि कुछ भी नहीं भुलाया गया है और कुछ भी माफ़ नहीं किया गया है।
इस निबंध का शीर्षक है 75 कैन्डल्स ऑन द सीआईए केक (सीआईए के केक पर 75 मोमबत्तियां)। यह निबंध कुछ भ्रामक है क्योंकि नारीश्किन की अंतिम टिप्पणी यह है कि "सालगिरह की बधाई और शुभकामनाएं नहीं दी जाएगी। चूंकि इतिहास में इसकी (सीआईए) भूमिका और मानवता के लिए मेरिट का आकलन करने में कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
नारीश्किन के निबंध का किसी भी "सुराग" के लिए पश्चिमी खुफिया द्वारा बारीकी से अध्ययन किया जाएगा। वास्तव में यह देखा जाएगा कि वह क्या संदेश दे रहा है? नारीश्किन और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगभग 40 साल पीछे चले गए। नारीश्किन ने मास्को के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक केजीबी के फेलिक्स ज़ेरज़िंस्की हायर स्कूल से स्नातक किया था और पुतिन पहले से ही लेनिनग्राद केजीबी के विदेशी खुफिया विभाग में काम कर रहे थे। उसी समय वे बिग हाउस (लेनिनग्राद में केजीबी के रूप में क्षेत्रीय मुख्यालय जाना जाता था) के गलियारों में एक-दूसरे से मिले।
नारीश्किन सीआईए के बारे में लिखते हैं, "सीआईए को शीत युद्ध के युग की शुरुआत में दुनिया में यूएसएसआर की मज़बूत भूमिका और उसके अस्तित्व, समाजवादी देशों के ब्लॉक के गठन और अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के उदय का मुक़ाबला करने के लिए दुनिया भर में खुफिया गतिविधियों का संचालन करने के लिए बनाया गया था।
दिलचस्प बात यह है कि सीआईए की खुफिया विफलता की शुरुआत उस भविष्यवाणी से हुई थी जब उसने 20 सितंबर, 1949 को कहा था कि पहला सोवियत परमाणु बम का परीक्षण1953 के मध्य में होगा जबकि वास्तव में उस पूर्वानुमान के प्रकाशन से 22 दिन पहले ही सोवियत संघ परमाणु उपकरण का अपना पहला परीक्षण कर चुका था।
सीआईए को एक बार फिर सुराग नहीं मिल पाया जब पुतिन ने मार्च 2018 में रूसी संसद को संबोधित करते हुए घोषणा की थी कि रूस ने एक नई हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली विकसित की है, जो "व्यावहारिक रूप से अभेद्य होगी।" इस पर अमेरिकी अधिकारी और विश्लेषक हैरान रह गए। सोवियत संघ के पतन सहित अन्य मामलों को लेकर सीआईए का रूस को ग़लत बताने का इतिहास है।
लेकिन सीआईए को उसकी सफलताएं भी मिलीं जैसे कि, ईरानी तेल क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण करने के मोहम्मद मोसादेग के फ़ैसले के बाद 1951 में ईरान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को उनके पद से हटाने का मामला शामिल है। 1950 के दशक तक सीआईए एक बहु-अनुशासनात्मक क्रूर संगठन में बदल गया था। पारंपरिक खुफिया गतिविधियों के अलावा इसे "दुनिया के सभी क्षेत्रों में किसी भी राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य प्रक्रियाओं को ट्रैक करने और दबाने का काम सौंपा गया था, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के आधिपत्य और उसके सहयोगी को ख़तरा पैदा कर सकता था।” इस कायापलट के लिए नारीश्किन एलन डूलेस को श्रेय देते हैं। डूलेस ने सीआईए की "गतिविधियों में आक्रामकता और नैतिकता की कमी" का परिचय दिया। 1942-1945 में बर्न में ओएसएस (सीआईए के पूर्ववर्ती) के स्टेशन प्रमुख होने के नाते उसने ऐसा किया था।
नारीश्किन हमें सीआईए के "तख्तापलट, प्रत्यक्ष सैन्य हमले, सभी प्रकार के उकसावे, विवादित राजनेताओं की हत्या, आतंक, तोड़फोड़, रिश्वतखोरी" और उन सभी घटनाओं के बारे में बताते हैं जिसको लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने एजेंसी की निंदा की थी।
"विवादित" लैटिन अमेरिकी नेताओं जैसे कि अर्जेंटीना के किरचनर (थायरॉयड कैंसर), पराग्वे के लूगो (लिम्फोमा), ब्राजील के लूला डा सिल्वा (लेरिंजियल कैंसर) और डी डिल्मा रूसेफ (लिम्फोमा) और वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज (श्वासनली का कैंसर) को ख़त्म करने के लिए कैंसर फैलाने वाली तकनीक का उपयोग करने के सीआईए के व्यवहार की कुछ डरावनी हक़ीक़त है। नारीशकिन के अनुसार, "1955 में, सीआईए ने चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई को ख़त्म करने का प्रयास किया, जिन्हें अमेरिकियों ने"दुनिया पर क़ब्ज़ा करने के लिए एक उन्मादी कट्टरपंथी" के रूप में माना था। ऐसा करने में वह बुरी तरह विफल रहा। एजेंटों ने उस विमान को उड़ा दिया जिस पर झोउ को इंडोनेशिया में एशियाई और अफ़्रीक़ी नेताओं के एक सम्मेलन में शामिल होने के लिए उड़ान भरनी थी।" इसके बाद, डूलेस ने झोउ को ज़हर देने की एक योजना बनाई, लेकिन इसे इस डर से छोड़ दिया कि सीआईए की संलिप्तता उजागर हो सकती है!
1975 में एक अमेरिकी सीनेट आयोग ने कॉन्ट्रैक्ट किलिंग और तख़्तापलट में सीआईए की संलिप्तता का खुलासा किया और उसकी पुष्टि की थी। इसने 1960-1965 के दौरान फिदेल कास्त्रो पर सीआईए एजेंटों और भाड़े के सैनिकों द्वारा हत्या के प्रयासों के आठ मामलों को बताया था। हवाना ने बाद में पूरी संख्या का खुलासा किया। उसने बताया कि 1959 से 1990 तक सीआईए ने फिदेल पर 634 हत्या के प्रयासों की योजना बनाई थी। नारीश्किन ने लिखा, "उन्मादी हठ के साथ, सीआईए अधिकारियों ने कमांडेंट को ख़त्म करने के लिए अनोखे तरीक़े विकसित किए थे। उन्होंने आत्मघाती पायलटों, पैराट्रूपर एजेंटों, आंतरिक सर्कल से भर्ती एजेंटों, जहाजों, नावों और विध्वंसक कारों और नौकाओं, ट्यूबरकल बेसिलस, स्कूबा गियर, ज़हरीले सिगार, खाने के लिए ज़हरीली गोलियां और अन्य तरीक़ों से उन्हें से मारने की कोशिश की।”
"सीआईए ने सोवियत संघ को आर्थिक क्षति सहित अधिक से अधिक नुक़सान पहुंचाने के लिए हर मौक़े का इस्तेमाल किया। सीआईए के निदेशक डब्ल्यू केसी ने व्यक्तिगत रूप से सऊदी अरब के किंग को संबोधित किया और उन्हें तेल उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि करने के लिए राज़ी किया, जिससे यूएसएसआर के सबसे महत्वपूर्ण निर्यात संसाधनों का दुनिया में क़ीमत क़रीब तीन गुना गिर गईं। सोवियत संघ के बजट के लिए यह एक बहुत बड़ा नुक़सान था, जिसने यूएसएसआर में आगे की राजनीतिक घटनाओं को बुरी तरह प्रभावित किया।
नारीश्किन ने 1948-1949 की अवधि में यूक्रेन की घटना को लेकर भी टिप्पणी की। उस समय सीआईए ने "हिटलर की विशेष सेवाओं के अनुभव का इस्तेमाल सोवियत संघ के ख़िलाफ़ विध्वंसक कार्य शुरू करने के लिए किया। उसने विस्थापित पूर्वी यूरोपीय लोगों के शिविरों में से रंगरूटों को भर्ती किया। इसमें यूक्रेनियन एक चौथाई मिलियन थे।" यूक्रेनी राष्ट्रवादियों के लगभग सभी नेता और शीर्ष अधिकारी किसी न किसी तरह से नाज़ियों के सहयोग के लिए प्रतिबद्ध थे और इसलिए वे पूरी तरह से सीआईए और ब्रिटिश खुफिया द्वारा नियंत्रित होते थे।"
नवंबर 1950 में सीआईए के नीति समन्वय कार्यालय के प्रमुख फ्रैंक विस्नर ने अपनी प्रशंसा करते हुए कहा था कि सोवियत संघ के साथ युद्ध की स्थिति में सीआईए 1,00,000 यूक्रेनियों को तैनात करने में सक्षम था।
1 मई, 1960 को यूराल में सीआईए जासूसी विमान को मार गिराने की यू2 एक नाटकीय घटना थी जब वाशिंगटन ने यूएसएसआर पर एक वैज्ञानिक विमान और एक पायलट-वैज्ञानिक को मार गिराने का आरोप लगाया था। लेकिन जब मास्को ने न केवल एयरक्राफ्ट और मीडिया के जासूसी उपकरण के मलबे को दिखाया "बल्कि जीवित पायलट फ्रांसिस गैरी पॉवर्स को भी पेश किया तो वह बहुत शर्मिंदा हुआ। पावर्स ने स्पष्ट रूप से बताया कि वह यूएसएसआर के ऊपर आकाश में क्या कर रहा था और किसके निर्देश पर वहां गया था।"
दूसरी तरफ़ 1983 में दक्षिण कोरियाई बोइंग के सोवियत हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने और मार गिराए जाने के मास्टरस्ट्रोक ने राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को "साम्यवाद के ख़िलाफ़ धर्मयुद्ध" की घोषणा करने के लिए "प्रोपगैंडा का आधार" दिया। डिटेंटे की नीति को एक तरफ़ रख दिया गया था और हथियारों की होड़ का एक नया दौर शुरू हुआ।”
नारीश्किन का अंतिम वक्तव्य तसल्ली देने वाला है और इसमें अतिशयोक्ति की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने लिखा। "किसी भी विशेष सेवा की प्रभावशीलता का मूल्यांकन हमेशा सापेक्ष होता है। यूएस सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी अपने अस्तित्व के 76 वें वर्ष में प्रवेश कर रही है और अपने देश के शासकीय हलकों के आदेशों का पालन करने वाली रही है और अभी भी बरक़रार है। अहम परिवर्तन होने के बावजूद, वह ख़ुद को एकध्रुवीय दुनिया में एकमात्र आधिपत्य के रूप में सोचती रही है। इसके नाम से देखें तो ये संगठन खुफिया है लेकिन संप्रभु राज्यों के ख़िलाफ़ विध्वंसक कार्रवाई करने पर इसका ध्यान रहा है।”
भारतीयों के लिए सीआईए एक हितकारी संगठन बन गया है, जिसका अब कोई डर नहीं है। सीआईए के साथ संबंध होने से भारतीय अभिजात वर्ग पर कोई कलंक नहीं है। वे "सीआईए फोबिया" को इंदिरा गांधी युग की विरासत मानते हैं। और वे मुख्यधारा के स्तंभकार और थिंक टैंकर और राय बनाने वाले के रूप में सफल हो सकते हैं। नारीश्किन का निबंध उस गंभीरता को याद दिलाने वाला है कि इतिहास समाप्त नहीं हुआ है और यह कभी नहीं होगा।
एमके भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वह उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत थे। विचार व्यक्तिगत हैं।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
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