आतंकियों के साथ पकड़े गए निलंबित डीएसपी देविंदर सिंह को ज़मानत मिली
नयी दिल्ली। एक तरफ़ जहां तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ता और अन्य एक्टिविस्ट ज़मानत मिलने के इंतज़ार में हैं या ज़मानत मिलने के बाद भी पुलिस द्वारा नये-नये केस लगाकर जेल की सलाखों के पीछे डाले जा रहे हैं, वहीं आतंकवादियों के सहयोगी के आरोप में गिरफ़्तार हुए जम्मू-कश्मीर के निलंबित डीएसपी देविंदर सिंह को आज ज़मानत मिलने से बहुत लोगों को हैरत हुई है। और ये ज़मानत इसलिए संभव हो सकी क्योंकि कानून के अनुसार जांच एजेंसी ने गिरफ्तारी से 90 दिनों के अंदर भी उसके ख़िलाफ़ आरोप पत्र दायर नहीं किया।
दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर के निलंबित डीएसपी देविंदर सिंह को जमानत दे दी। देविंदर सिंह को इस साल की शुरुआत में श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर हिज्बुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किया गया था।
हिज्बुल के दो कमांडर का पकड़ा जाना तो बड़ी बात थी लेकिन सबसे अधिक चौंकाने वाली यह बात थी कि इन दो आतंकवादियों के साथ डीएसपी रैंक का एक अधिकारी जो काउंटर इंसर्जेन्सी टीम का हिस्सा था, उसे पकड़ा गया? डीएसपी रैंक का अधिकारी देविंदर सिंह आतंकवादियों के साथ क्या कर रहा था? उन आतंकवादियों के साथ जिन पर बीस- बीस लाख रुपये का इनाम था, जो हिज्बुल के कमांडर हैं, जिनमें से एक पर सेब के बागान में काम करने वाले 18 गैर कश्मीरियों को मारने का आरोप है?
ये सवाल अभी तक हल नहीं हुआ है। यह भी अभी तक रहस्य ही है कि जब देविंदर सिंह पकड़ा जाता है तो पकड़ने वाले अधिकारी से यह क्यों कहता है कि "सर, यह गेम है, इस गेम को खराब मत कीजिये।" उसकी इस बात का मतलब क्या था?
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इसी पड़ताल में यह भी सामने आया कि संसद पर हमले के आरोपी अफ़ज़ल गुरु मामले में भी देविंदर का नाम सामने आया था। इस पूरे मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई थी। एनआईए आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े मसलों की जांच करती है। इसलिए यह दूसरी एजेंसियों से अलग है। लेकिन पिछले पांच सालों में जिस तरह से एनआईए ने काम किया है, उससे इस संस्था पर लोगों का भरोसा बहुत कम है। विपक्ष ने इस पर हमला किया था और कई सवाल उठाए थे ।
देविंदर सिंह के वकील एमएस खान ने कहा कि अदालत ने सिंह और मामले के एक अन्य आरोपी इरफान शफी मीर को जमानत दे दी। दोनों को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दायर एक मामले में अदालत द्वारा राहत दी गई है।
खान ने कहा कि कानून के अनुसार जांच एजेंसी गिरफ्तारी से 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करने में विफल रही।
उन्हें एक लाख रुपये के निजी बांड और इतनी ही राशि के दो मुचलकों पर यह राहत दी गयी।
(समचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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