मारूति आंदोलन के 10 साल, मज़दूर यूनियन ने निष्पक्ष जांच को लेकर निकाली रैली
सोमवार 18 जुलाई को हरियाणा के मानेसर मे मारुति सुजुकी कार निर्माण संयंत्र में जुलाई 2012 की हिंसा की दसवीं वर्षगांठ मनाई गई। ये भारतीय मज़दूर आंदोलन और मज़दूरों पर दमन का एक ऐतिहासिक उदाहरण है। मारुति सुजुकी मजदूर संघ के आह्वान पर सोमवार को मजदूरों ने राजीव चौक से लेकर डीसी ऑफिस तक मार्च निकाला। जिसके बाद डीसी ऑफिस पर सभा का आयोजन किया। उनकी प्रमुख मांगों में दोषी ठहराए गए मामलों को वापस लेना और जुलाई 2012 की घटना के बाद अपनी नौकरी गंवाने वाले सभी श्रमिकों की बहाली शामिल है।
मज़दूरों ने घटना की निष्पक्ष जांच करने और 'बेगुनाह' मज़दूरों के खिलाफ जांच को रोकने के लिए हजारों की संख्या में रैली मे भाग लिया। इस दौरान मज़दूर अलग-अलग कारखाने की वर्दी पहने, हाथ में लाल रंग के यूनियन के झंडे लेकर, हरियाणा के ऑटो मोटिव हब में औद्योगिक मे काम करने वाले स्थायी और संविदा कर्मचारियों ने एक साथ एकजुटता दिखाई और विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बने। इसके बाद गुरुग्राम की डीसी ऑफिस मे एक सभा का भी आयोजन किया गया।
इस विरोध प्रदर्शन मे क्षेत्र के प्रमुख ऑटो संयंत्रों के यूनियन जैसे मारुती सुजुकी मानेसर प्लांट, गुडगांव प्लांट, सुजुकी पॉवर ट्रेन, बाइक प्लांट, बेलसोनिका ऑटो कंपोनेंट इंडिया एंप्लॉयस यूनियन, होंडा, हीरो, आईजेएल बावल के मज़दूर भी शामिल हुए।
इस दौरान उन्होंने जेल में बंद अपने सहयोगियों के खिलाफ "झूठे मामलों" को वापस लेना। उन सभी की बहाली जिन्हें "प्रतिशोधात्मक" कारवाई के तहत काम से निकाल गया था। इसके साथ ही जल्द ही लागू किए जाने वाले 4 श्रम संहिताओं को भी निरस्त करने की मांग उठाई।
क्या था मामला
2012 में एक वरिष्ठ मानव संसाधन कार्यकारी(HR) की हत्या से संबंधित हाई-प्रोफाइल मामले में गुरुग्राम में जिला और सत्र न्यायालय ने मार्च 2017 में 148 आरोपियों में से 31 को दोषी ठहराया था, जबकि बाकी सभी को बरी कर दिया था। 2012 मारुति के मज़दूरों और प्रबंधन के बीच चल रहे तनाव के दौरान 18 जुलाई को मानेसर में मारुति सुजुकी के कारखाने की इमारतों में आंशिक रूप से आग लगा दी गई थी, जिसमें मारुति सुजुकी के महाप्रबंधक (मानव संसाधन) अवनीश कुमार देव को जलाकर मार डाला गया।
31 दोषियों में से, अदालत ने देव की हत्या से संबंधित और हत्या के प्रयास के आरोप में तत्कालीन मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के 12 पदाधिकारियों सहित 13 श्रमिकों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 18 पर भारतीय दंड संहिता के तहत दंगा, अतिचार, चोट पहुंचाने और अन्य संबंधित अपराधों का आरोप लगाया गया था। पिछले कुछ वर्षों में, एमएसएमएस के अनुसार, उक्त मामले में कई दोषियों को जमानत दी गई, यहां तक कि इस समय एक ही आरोपी जेल में है। हिन्दू अखबार के मुताबिक दो आरोपियों, पवन दहिया और जिया लाल की पिछले साल पैरोल अवधि के दौरान क्रमशः इलेक्ट्रोक्यूशन और कैंसर से मृत्यु हो गई थी।
क्या है मांग?
न्यूज़क्लिक को सोमवार को बताया गया कि शेष दोषी की जमानत याचिका पर अगस्त में सुनवाई होनी है। एमएसएमएस के अध्यक्ष राजेश कुमार ने सोमवार को मांग की, "13 श्रमिकों की आजीवन कारावास की सजा को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए और सभी दोषियों पर झूठे मुकदमे वापस लिए जाने चाहिए।"
उनके अनुसार, मज़दूरों पर ये केस "प्रतिशोधी" कारवाई का हिस्सा थीं, इसकी पुष्टि हाल के वर्षों में आई कई रिपोर्टों मे भी बताया गया है। राजेश ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए टिप्पणी की- “मारुति के मजदूर अपनी यूनियन बनाने के लिए काफी समय से दबाव बना रहे थे और कई महीनों के संघर्ष के बाद, मार्च 2012 में, प्रबंधन को अंततः यूनियन को औपचारिक मान्यता देने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालाँकि, हम कई वर्षों के बाद देखते हैं कि यूनियन के शीर्ष नेताओं को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है।”
मएसएमएस ने सोमवार को भारत के राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन भी डीसी को सौंपा जिसमें कहा कि "अब तक, 2012 की घटना की निष्पक्ष जांच नहीं की गई है और दोषी प्रबंधन/ प्रशासन को दंडित नहीं किया गया है।" वहीं दूसरी ओर सरकारी प्रशासन द्वारा इस घटना को वर्ग युद्ध घोषित कर करीब 2500 श्रमिक श्रमिकों की नौकरी छीन ली गई। जुलाई 2012 की अप्रिय घटना के तुरंत बाद मारुति सुजुकी प्रबंधन द्वारा 546 स्थायी श्रमिकों और 1800 अस्थायी श्रमिकों को निकाल दिया गया था। सोमवार को एमएसएमएस ने उन सभी को बहाल करने की मांग की, जिन्हें काम से निकाला गया था।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) के अनिल पवार,ने सोमवार को गुरुग्राम में प्रदर्शन कर रहे औद्योगिक श्रमिकों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मारुति सुजुकी के श्रमिकों का भाग्य न केवल मुट्ठी भर विनिर्माण सुविधाओं की कहानी है, बल्कि देश भर में केंद्र और राज्य सरकारों के श्रमिक वर्गों के के प्रति उनके रवैया को बताता है।
मानेसर स्थित ऑल इंडिया कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (AICWU) के श्याम, जो रैली में भाग ले रहे थे, उन्होंने कहा "यूनियनों का गठन, अनुबंध प्रणाली को समाप्त करना, और जीवन यापन मजदूरी- ये देश भर के औद्योगिक श्रमिकों के ज्वलंत मुद्दों हैं। ये वही मुद्दे थे जिन पर जुलाई की घटना से पहले मारुति सुजुकी के कर्मचारी आवाज उठा रहे थे। वे आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं, जैसा कि औद्योगिक क्षेत्रों में विभिन्न संघर्षों से पता चलता है।"
श्याम ने मानेसर स्थित जेएनएस इंस्ट्रूमेंट्स लिमिटेड के उदाहरण पर प्रकाश डालते हुए इसे आगे समझाया- जिसके तीन कर्मचारी, इस साल की शुरुआत मे केंद्रीय ट्रेड यूनियन द्वारा बुलाए दो दिवसीय आम हड़ताल के दौरान हुए हिंसा के बाद जेल में हैं ।
बेलसोनिका ऑटो कंपोनेंट्स एम्प्लाइज यूनियन के अजीत सिंह ने सोमवार को न्यूज़क्लिक से बात करते हुए तर्क दिया, "श्रम संहिताओं के लागू होने के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र के भीतर तनाव बढ़ेगा क्योंकि वे श्रमिकों के अधिकारों को छीन लेंगे।"
उनके अनुसार, श्रमिकों के अधिकार पर नवीनतम हमला तभी लड़ा जा सकता है जब स्थायी और संविदा कर्मचारियों के बीच "अधिक एकजुटता" हो। उन्होंने कहा, "यह उचित समय है कि हमारी जायज मांगों को स्वीकार करने के लिए प्रबंधन पर दबाव बनाने के लिए स्थायी और अस्थायी श्रमिकों की संयुक्त कार्रवाई की जाए।"
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