बंगाल में सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देते 1200 मार्क्सवादी बुकस्टाल
कोलकाता : पश्चिम बंगाल में चल रहे ऑटम फेस्टिवल यानी शरद ऋतु त्योहार के दौरान 1,200 से अधिक मार्क्सवादी साहित्य के बुक स्टॉल लगाए गए हैं। माकपा, जो 90 प्रतिशत से अधिक मार्क्सवादी साहित्य से जुड़े स्टालों का संचालन कर रही है, वह उनका इस्तेमाल प्रगतिशील साहित्य को बढ़ाव देने और सांप्रदायिक शांति और सद्भाव को बनाए रखने के लिए भी करेगी।
कोलकाता में लगाए गए 350 से अधिक बुक स्टॉल में से 109 से अधिक राजधानी के केंद्र में हैं और शेष कोलकाता नगर निगम क्षेत्र में लगाए गए हैं। यदि कोलकाता महानगर क्षेत्र को ध्यान में रखा जाए, तो शुरुवाती अनुमानों के अनुसार यह संख्या लगभग 400 के आस-पास है। सीपीआई (एम) के अलावा, अन्य वामपंथी दल, जैसे सीपीआई (एमएल) लिबरेशन, एसयूसीआई (सी), आरएसपी, फॉरवर्ड ब्लॉक और सीपीआई ने भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में लगभग 10 प्रतिशत स्टाल लगाए हैं।
वामपंथ के प्रगतिशील साहित्य का मुकाबला करने के लिए, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस ने भी मुख्य रूप से कुछ शहरी इलाकों में बुक स्टॉल लगाए हैं।
सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो के सदस्य और राज्य के सबसे वरिष्ठ राजनेताओं में से एक बिमान बोस ने मार्क्सवादी साहित्य स्टालों के बारे में बताया कि इनकी शुरुवात 1955 से हुई है। उस वक़्त बागबाजार और पार्क सर्कस में दो बड़े स्टाल लगाए गए थे। बोस ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 50 और 60 के दशक में, सियालदह, राजाबाजार, श्यामबाजार, उल्तोडंगा, बेलियाघाटा, जादवपुर, ढकुरिया और बल्लीगंज स्टेशन पर अधिक बुक स्टॉल स्थापित किए गए थे।
"पहले के समय में, रूसी लेखकों द्वारा लिखी गई बच्चों की किताबें रबनिद्रनाथ टैगोर की वर्गीकृत किताबें और फिल्म उस्ताद सत्यजीत रे के पिता सुकुमार रॉय द्वारा लिखी गई कविताओं के अलावा बहुत लोकप्रिय थीं। उस समय मुजफ्फर अहमद, ज्योति बसु, प्रमोद दासगुप्ता, सोमनाथ लाहिड़ी और डॉ रानेन सेन नियमित रूप से किताबों की दुकानों पर जाते थे और पाठकों से बातचीत करते थे। बॉस ने बताया तब से स्टालों की संख्या काफी बढ़ गई है।“
बोस ने एक स्टाल लगाए जाने का भी जिक्र किया, जिसे वह 1968 से 1970 तक एक पुस्तक विक्रेता के रूप में चलाते थे। वह स्टाल सूर्य सेन स्ट्रीट पर स्टाल 50 से अधिक वर्षों से जारी है।
“जबकि टीएमसी बुक स्टॉल में पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी के लेखन और चित्र वाली 40 से अधिक किताबें हैं, भाजपा का साहित्य मोदी और श्यामा प्रसाद और कांग्रेस गांधीवादी और नेहरूवादी दर्शन पर केंद्रित है। लेकिन प्रगतिशील किताबों की दुकानों में वैचारिक किताबों से लेकर क्लासिक्स और बच्चों की किताबों से लेकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के शीर्षकों की एक विस्तृत श्रृंखला मौजूद है। यही कारण है कि ये अस्थायी प्रगतिशील ज्ञान भंडार ऑटम फेस्टिवल के दौरान सबसे पसंदीदा स्थान हैं” उक्त बातें गरिया स्टेशन क्षेत्र के आयोजकों में से एक बिकाश डे ने बताई।
डे ने बताया कि, बुक स्टॉल राज्य में किसी भी धर्म- या भाषा-आधारित हिंसा का मुकाबला करने के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द का प्रसार कर रहे हैं। "यह एक अतिरिक्त जिम्मेदारी है। हम त्योहार के दौरान अपने-अपने इलाकों में किसी भी अप्रिय घटना से सावधान रहें।"
दिलचस्प बात यह है कि इस साल केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा राज्य में शुरू किए गए मतदाता सत्यापन अभियान के लिए सभी प्रगतिशील स्टालों को सुविधा केंद्रों के रूप में भी जोड़ा जाएगा।
कोलकाता जिला सचिवमंडल के सदस्य और प्रमुख आयोजकों में से एक, सुदीप सेनगुप्ता के अनुसार, प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सब्यसाची चक्रवर्ती द्वारा उद्घाटन किए जाने के दो घंटे में जादवपुर बुक स्टॉल पर जोकि सबसे पुराने स्टाल में से एक है, में 25,000 रुपये से अधिक की किताबें बेची गईं। यह स्टाल पिछले दो दशकों से चल रहा है। “पिछले साल, हमने 2,80,000 रुपये से अधिक की बिक्री दर्ज की थी। इस साल आर्थिक मंदी के बावजूद, हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है क्योंकि हम ऐसी किताबें बेच रहे हैं जो जानकारीपूर्ण हैं और महंगी नहीं हैं। सेनगुप्ता ने कहा, कश्मीर और श्यामा प्रसाद की विभाजनकारी भूमिका पर आरएसएस से लड़ने पर लेखक बुद्धदेव गुहा की किताबें और प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर सुकुमारी भट्टाचार्य की किताब रीविजिटिंग द मिथ ऑफ राम काफी बिक रही हैं।
जादवपुर 8बी स्टाल, जिसे मतदाता सत्यापन के लिए एक सुविधा केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया गया था और पिछले साल नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के बारे में एक सूचनात्मक कियोस्क के रूप में इस्तेमाल किया गया था और पिछले साल इसकी विभाजनकारी नीति का मुकाबला करने के लिए भी व्यापक समर्थन मिला है।
2011 से पहले त्योहारों के दौरान 2,000 से अधिक प्रगतिशील बुक स्टॉल स्थापित किए जाते थे। हालांकि, 2013 में यह संख्या घटकर लगभग 600 हो गई थी, क्योंकि टीएमसी कार्यकर्ताओं ने कई बुक स्टॉल में तोड़फोड़ की थी। लेकिन तोड़फोड़ करने के कुछ ही घंटों बाद स्टॉल फिर से खुल गए थे।
"वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध चक्रवर्ती, नेशनल बुक एजेंसी के निदेशक- राज्य के सबसे बड़े प्रगतिशील पुस्तक घर, जिसकी कल्पना कम्युनिस्ट नेता 'काकाबाबू' (अहमद) ने की थी, ने कहा कि "यहां तक कि विधानसभा चुनाव हिंसा से प्रभावित गोघाट, खानकुल पुरसुराह, आरामबाग और नारायणघाट (हुगली जिले में) मार्क्सवादी साहित्य के स्टाल वामपंथी कार्यकर्ता लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि "एनबीए त्योहार खत्म होने के बाद अपनी पुस्तकों की बिक्री के लिए एक ई-कॉमर्स साइट लॉन्च करेगा"।
चक्रवर्ती ने कहा, "जलवायु परिवर्तन पर पुस्तकों के अलावा, प्रख्यात दार्शनिक देबिप्रसाद चट्टोपाध्याय, भगत सिंह द्वारा पारंपरिक लोक-आधारित दर्शन और आदि शंकराचार्य पर प्रकाशित कॉमरेड ईएमएस '[नंबूदरीपाद] पुस्तक की काफी मांग है।"
प्रगतिशील साहित्य को काफी समर्थन मिल रहा है, जोकि सीधे राज्य और देश में गहराते संकट के जवाब में है,” चक्रवर्ती ने कहा, पिछले साल त्योहार के दौरान लगभग करोड़ से अधिक पुस्तकों की बिक्री हुई थी।
चक्रवर्ती ने कहा कि “मंदी के बावजूद इन स्टालों को स्थापित करने में रुचि को देखते हुए, बिक्री में और वृद्धि हो सकती है। गोर्की, तुर्गनेव, टॉल्स्टॉय और टैगोर की प्रगतिशील पुस्तकों की इंटरनेट के युग में भी भारी मांग है। यह दिखाता है कि कैसे लोग राज्य में कठिन परिस्थिति से निपटने के लिए ज्ञान को एक स्थायी स्रोत के रूप में पसंद करते हैं और अध्ययन संसाधनों के बेहतरीन रूप में भी पसंद करते हैं।”
1952 से, माकपा मार्क्सवादी साहित्य के स्टालों को उन क्षेत्रों के आसपास लगा रही है जहाँ दुर्गा पूजा पूरे राज्य में तर्कवादी प्रगतिशील विचारों को फैलाने के लिए मनाई जाती है।
अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:-
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