अडानी की हवाईअड्डों के निजीकरण की योजना कहीं खटाई में तो नहीं
नई दिल्ली: भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) 14 फ़रवरी, 2019 को मंगलुरु (कर्नाटक), लखनऊ (उत्तर प्रदेश) और अहमदाबाद (गुजरात) में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को चलाने के लिए एक बाध्यकारी रियायत समझौते पर हस्ताक्षर करने के छह महीने के भीतर अडानी एयरपोर्ट्स लिमिटेड ने एक “आकस्मिक घटना” क्लॉज की याद दिलायी है और एएआई को 15 फ़रवरी, 2021 तक के लिए उस समझौते को स्थगित करने का अनुरोध किया है, जिस समझौते पर उसने इस सार्वजनिक क्षेत्र के निगम के साथ हस्ताक्षर किये हैं। अडानी समूह की कंपनी ने इन हवाई अड्डों को चलाने की वित्तीय व्यवहार्यता का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए एक सलाहकार भी नियुक्त किया है।
आम तौर पर अनुबंध करने वाले पक्षों को दायित्व या इक़रारनामे से मुक्त करने के लिए एक आकस्मिक घटना क्लॉज का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब पक्षों के नियंत्रण से परे कोई ग़ैर-मामूली घटना घटती है, इन ग़ैर-मामली घटनाओं में कोई युद्ध, महामारी, दंगा, हड़ताल या ऐसा घटनाक्रम शामिल होता है, जिसकी व्याख्या क़ानूनी रूप से अक्सर "दैवी घटना" के रूप में किया जाता है। 20 जून को एएआई इस साल के 15 नवंबर तक इस रियायत समझौते को पूरा करने की समय सीमा बढ़ाने पर सहमत हो गया है। सार्वजनिक क्षेत्र की यह कंपनी कथित तौर पर तीन अतिरिक्त महीनों के लिए समय सीमा का विस्तार करने पर सहमत नहीं हुई है, जैसा कि अदानी एयरपोर्ट्स लिमिटेड चाहती थी।
अडानी समूह ने फ़रवरी 2019 में एएआई द्वारा संचालित देश में छह लाभ कमाने वाले अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों क्रमश: अहमदाबाद, गुवाहाटी (असम), जयपुर (राजस्थान), लखनऊ, मंगलुरु और तिरुवनंतपुरम (केरल) के संचालन के लिए एक विवादास्पद बोली जीती थी।
विभिन्न कर्मचारियों के यूनियनों के विरोध और क़ानूनी विवादों के चलते अडानी समूह ने इन सभी छह हवाई अड्डों को चलाने के लिए इनका अधिग्रहण अभी तक नहीं किया है।
नरेंद्र मोदी सरकार की सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल का इस्तेमाल करते हुए इन लाभकारी हवाई अड्डों के निजीकरण की योजना ने न केवल एएआई के कर्मचारियों के यूनियनों को नाराज़ कर दिया है, बल्कि केरल और राजस्थान सरकार समेत अन्य राज्य सरकारों की तरफ़ से भी इसके विरोध में ला खड़ा किया है।
बताया जाता है कि 2018 में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा 15 फ़ायदे में चल रहे एएआई हवाई अड्डों के निजीकरण के फ़ैसले के बाद, नागरिक उड्डयन मंत्रालय (एमसीए) को वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग (DEA),नीति आयोग और अन्य सरकारी मंत्रालयों के परामर्श से एक नया मॉडल रियायत समझौता तैयार करने का काम सौंपा गया था।
एमसीए, डीईए और एनआईटीआईयोग को हवाई अड्डे के परिसरों और उसके आसपास अचल संपत्ति के विकास की व्यवहार्यता समेत सभी संभावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए था।
ताबड़तोड़ रफ़्तार से चलता काम
8 नवंबर, 2018 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इन छह हवाई अड्डों के निजीकरण की प्रक्रिया की निगरानी के लिए नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी,अमिताभ कांत की अध्यक्षता में पीएमओ के इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी और एक अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएस) का गठन किया। एमसीए, डीईए और व्यय विभाग के सचिव (वित्त मंत्रालय में भी) इस समूह के अन्य सदस्य थे।
ईजीओएस ने ग़ज़ब रफ़्तार से काम किया और एक महीने के भीतर ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी।
कुछ हफ्ते बाद, 10 दिसंबर को नीति आयोग और डीडीए की ओर से तैयार किये गये इस मूल्यांकन नोट को नीति आयोग के सीईओ, व्यय विभाग के सचिवों और विधि एवं न्याय मंत्रालय में क़ानूनी मामलों के विभाग, एएआई के अध्यक्ष के पास उन्हें यह सूचित करते हुए भेजा कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप्स एप्रिसिएशन कमेटी (PPPAC), यानी वह कमेटी,जिसे केंद्र सरकार द्वारा किये गये सभी PPP प्रोजेक्ट्स को क्लियर करना होता है-वे अगले दिन यानी 11 दिसंबर, 2018 को एएआई द्वारा प्रबंधित छह हवाई अड्डों के निजीकरण को लेकर इस प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए मिलने वाले हैं।
अपने मूल्यांकन नोट में तत्कालीन संयुक्त सचिव (इन्फ्रास्ट्रक्चर पॉलिसी एंड फाइनेंस),कुमार वी प्रताप ने इस बैठक में डीईए का प्रतिनिधित्व किया था और उन्होंने इस दस्तावेज में गंभीर ख़ामियों की ओर इशारा किया था।
प्रताप के इस मूल्यांकन नोट में कहा गया है कि न तो एमसीए और न ही एएआई ने अनुमानित परियोजना लागत, प्रमुख निष्पादन संकेतक और एएआई द्वारा पूंजी को लेकर स्थिति और प्रगति के बारे में विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया, जिसे रियायत पाने वाले को पूरा करना होता है।
इस डीईए अधिकारी के नोट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इन विवरणों के बिना,पीपीपीएसी के लिए बोली लगाने वालों की तरफ़ से प्रस्तुत किये गये तकनीकी प्रस्तावों की तुलना कर पाना कठिन होगा। इस नोट ने "बोली दस्तावेज़ों की तैयारी के लिए अनुसरण किये जाने वाले दस्तावेज़ों अर्थात्, कोटेशन के लिए अनुरोध (RFQ), प्रस्ताव के लिए अनुरोध (RFP) और मसौदा रियायत समझौते से इसे अलग” पाया।
इसके अलावा, एमसीए इस परियोजना रिपोर्ट के साथ मिलकर पीपीपीएसी को ज्ञापन में उल्लेखित आंकड़ों के समर्थन में एक क़ानूनी पुनरीक्षण प्रमाणपत्र और विस्तृत गणना प्रस्तुत करने में विफल रहा। इसे बहुत अहम इसलिए माना गया,क्योंकि इन परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता और एएआई की परियोजना रिपोर्ट में पीपीपीएसी ज्ञापन में वर्णित संख्या "बहुत अलग-अलग थी।"
डीईए ने इस बात की सिफ़ारिश की थी कि एक बोली लगाने वाले को दो से ज़्यादा हवाई अड्डों के संचालन का अनुबंध नहीं मिलना चाहिए,क्योंकि हवाई अड्डे के विकास की परियोजनायें अत्यधिक पूंजीगत होती हैं और इनमें शामिल वित्तीय जोखिम रियायत पाने वाले के अनुबंध की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकते हैं। इस विभाग ने निष्पादन संकेतकों के कड़े अनुपालन की ज़रूरत पर भी बल दिया।
डीईए के मुताबिक़, विभिन्न कंपनियों को इन परियोजनाओं को देने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और स्पष्ट रूप से परिभाषित मानदंड का इस्तेमाल करते हुए बोली लगाने वालों के बीच की तुलना को कर पाना आसान हो जायेगा। इसके अलावा, किसी एक परियोजना की नाकामी की हालत में किसी एक बोली लगाने वाले पर वित्तीय प्रभाव सीमित होगा और परियोजना को लेने के लिए अन्य कंपनियां होंगी।
प्रताप के इस नोट में उस जीएमआर समूह का उदाहरण दिया गया है,जो दिल्ली और मुंबई दोनों हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए एकलौते "योग्य बोली लगाने वाला" समूह था, लेकिन इसके बावजूद केवल दिल्ली हवाई अड्डे के विकास की ज़िम्मेदारी ही उसे दी गयी, जबकि मुंबई हवाई अड्डे के विकास के लिए जीवीके समूह को दिया गया। डीईए द्वारा उद्धृत एक अन्य उदाहरण दिल्ली में बिजली वितरण नेटवर्क के निजीकरण से सम्बन्धित था, जो तीन अलग-अलग कंपनियों को प्रदान किया गया था।
इन सुझावों में से किसी भी सुझाव को सरकार ने स्वीकार नहीं किया था और अदानी समूह फ़रवरी 2019 में इन सभी छह हवाई अड्डों के लिए बिड पाने में सक्षम रहा।
बदल गया राजस्व मॉडल
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के दौरान दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए जिस राजस्व साझाकरण मॉडल को अपनाया गया था, उसे इस मौक़े पर नहीं अपनाया गया।
दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों की रियायतों के रूप में अनुबंधित करने के लिए एएआई के साथ कुल राजस्व का एक पूर्व-निर्धारित प्रतिशत साझा करने के बजाय, निजीकरण का यह नया दौर "प्रति यात्री शुल्क" मॉडल पर आधारित था।
(दिल्ली हवाई अड्डे के लिए, जीएमआर समूह के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम एएआई को कुल राजस्व का 45.99% भुगतान करता है जबकि मुंबई हवाई अड्डे के लिए, जीवीके समूह के नेतृत्व वाला कंसोर्टियम अपने कुल राजस्व का 38.7% भुगतान करता है।)
इस नये मॉडल के मुताबिक़, रियायत पाने वाले को एएआई को प्रति यात्री पूर्व-निर्धारित राशि का भुगतान करना होगा और इस आंकड़े का इस्तेमाल योग्य बोली लगाने वालों में से विजेता को निर्धारित करने के लिए किया जायेगा।
इस व्यवस्था की अनेक कमियां थीं, क्योंकि एएआई का राजस्व पूरी तरह से एक ख़ास हवाई अड्डे में यात्रियों की संख्या पर निर्भर करेगा। हालांकि, रियायत पाने वाले (इस मामले में अडानी समूह) के लिए, विज्ञापन, पार्किंग शुल्क और इसी तरह के अन्य स्रोतों से होने वाले आय के अलावा, वैमानिकी गतिविधियों, रेस्तरां, कैफ़े, भोजनालयों, बार और शुल्क-मुक्त दुकानों से काफ़ी राजस्व पैदा किये जाने के विकल्प होंगे।
इसके अलावा, रियायत पाने वाले अपने यात्रियों से एक अलग उपयोगकर्ता शुल्क लेने के लिए स्वतंत्र होगा और इन हवाई अड्डों के पास एएआई के स्वामित्व वाली भूमि को भी विकसित करने में सक्षम होगा।
इस अनुबंध में इन सभी राजस्व पैदा करने वाले लाभ के सबसे ऊपर रियायतों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण यह था कि एएआई और जीएमआर और जीवीके समूहों के नेतृत्व वाले कंसोर्टिया के बीच 30 साल के अनुबंधों के विपरीत, नयी रियायत अवधि अब दो दशकों और बढ़ाकर 50 साल कर दी गयी थी। इस पट्टा अवधि के अंत में एएआई को रियायत पाने वाले की तरफ़ से सृजित संपत्तियों के मूल्यह्रास मूल्य का भुगतान करना होगा, रियायत उसे इन संपत्तियों को वापस लेना चाहिए।
डीईए ने एएआई और एमसीए को प्रति यात्री राजस्व मॉडल के आधार पर प्रस्तावित लेनदेन संरचनाओं के उन उदाहरणों को सामने रखने के लिए कहा, जिनका अनुसरण विभिन्न देशों में हवाई अड्डों द्वारा किया जाता है और इस तरह की संरचनाओं का लाभ राजस्व-साझेदारी मॉडल पर आधारित है।
डीईए यह भी चाहता था कि बोली लगाने वालों की तकनीकी और वित्तीय क्षमता को परियोजना लागत के साथ जोड़ा जाये। इसलिए, इस बात की सिफ़ारिश की गयी कि बोली लगाने वाले की तकनीकी क्षमता का मूल्य कुल परियोजना लागत (TPC) से दोगुना होना चाहिए, जबकि अपने शुद्ध संपत्ति के लिहाज से बोली लगाने वाले की वित्तीय क्षमता टीपीसी का एक चौथाई होनी चाहिए।
डीईईए इस तुलना के लिए एएआई और बोली लगाने वाले की तरफ़ से 50 वर्षों की रियायत अवधि के लिए प्रस्तुत किये जाने वाले वित्तीय मॉडल को शामिल करने की ज़रूरत सहित “सभी आकलनों के साथ विस्तृत परियोजना का वित्तीय विवरण” भी चाहता था और वह यह भी चाहता था कि यह "रियायत अवधि को शहर के आस-पास की विकास सुविधाओं सहित सभी परियोजना सुविधाओं के साथ-साथ ही ख़त्म होनी चाहिए।"
डीईए के संयुक्त सचिव के नोट में इस बात की भी सिफ़ारिश की गयी थी कि रियायत पाने वाले को अनुबंध के कार्यकाल के अंत में सभी परिसंपत्तियों को एएआई को मुफ़्त में हस्तांतरित कर देना चाहिए।
इस बात की सिफ़ारिश भी की गयी कि इस प्रस्तावित पट्टा मॉडल के बजाय एक लाइसेंस मॉडल का अनुपालन किया जाना चाहिए और बोली लगाने वालों को "परियोजना विस्तार, परियोजना आकार, मांग आपूर्ति विश्लेषण जैसे सभी विवरण प्रस्तुत करना चाहिए ताकि (वित्तपोषण) अंतर का पता लगाया जा सके और अनुमानित राजस्व / मानदंड के साथ परियोजना लागत का वित्तीय रिटर्न और घटक-वार ब्रेक-अप, आवधिक पूंजी निवेश, AERA (एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी) और 2016 की राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति के संबंध में नियामक ढांचे को सही ठहराया जा सके।"
नीति आयोग एक दूसरे नोट में डीईए आधिकारी प्रताप की तरफ़ से दिये गये इन सुझावों और सिफ़ांरिशों से सहमत है।
इसने इस बात की सिफ़ारिश कर दी कि "प्रति यात्री शुल्क" उच्चतम बोली लगाने वाले के चुने जाने वाले मूल्यांकन मापदंडों को बदला जाना चाहिए, क्योंकि इस तरह के शुल्क की गणना करने की विधि को व्यापक नहीं बनाया गया है। इसका कारण यह बताया गया कि "इस मामले में प्राधिकरण (एएआई) द्वारा प्राप्त वास्तविक भुगतान हर महीने / वर्ष वास्तविक यात्री संख्या से निर्धारित किया जायेगा। इसलिए, कम यात्री संख्या वाली अवधि के दौरान, इन प्राप्तियों पर उल्टा असर पड़ेगा।”
नीति आयोग ने आगे कहा कि रियायत पाने वाले के दृष्टिकोण से यात्रियों की संख्या केवल उनके राजस्व के हिस्से को प्रभावित करेगी और ऐसे परिदृश्य में जहां इस तरह की विशेष अवधि के लिए यात्री की संख्या भले ही कम हो, लेकिन अन्य वैमानिकी राजस्व अधिक हो, तो ऐसे में एएआई ग़ैर-यात्री सम्बन्धित राजस्व के हिस्से से बाहर हो जायेगा।।
अडानी समूह की वेबसाइट का दावा है कि छह हवाई अड्डों के पास जो "आकर्षक भूमि" का एक संयुक्त खंड,जो 225 एकड़ जमीन वाला है, वह "आधुनिकीकरण" के लिए उपलब्ध है और यह भी कि अडानी हवाई अड्डों के पास 50 वर्षों के लिए इस संपत्ति का 100% स्वामित्व होगा।
सकल राजस्व हिस्सेदारी मॉडल के तहत यात्री संख्या में होने वाले उतार-चढ़ाव या अचल संपत्ति की क़ीमतों में होने वाले बदलाव के चलते किसी भी पक्ष को एकतरफ़ा नुकसान या एकतरफ़ा फ़ायदा नहीं हो सकता है। नीति आयोग अपने नोट में कहता है,"इस बात के मद्देनज़र वित्तीय बोली मूल्यांकन मानदंड पर फिर से विचार किये जाने का मामला बन सकता है" वह आगे कहता है,"हवाई अड्डों के विकास, संचालन और प्रबंधन के क्षेत्र में पहले के अनुभव को निविदा में भाग लेने के लिए एक अनिवार्य मानदंड बनाया जाना चाहिए।"
डीईए और नीति आयोग (योजना आयोग की जगह लेने वाली इकाई) की तरफ़ से प्रस्तावित इन सिफ़ारिशों में से किसी को भी बोली दस्तावेज में स्वीकार नहीं किया गया या उसमें जगह नहीं दी गयी।
क़ानूनी लड़ाई के बीच अडानी विजेता घोषित
11 दिसंबर, 2018 को हुई पीपीपीएसी की बैठक के दो दिन बाद एक निविदा घोषित की गयी थी और और अडानी एयरपोर्ट्स को अंतरराष्ट्रीय उड़ान वाले अहमदाबाद, गुवाहाटी, जयपुर, लखनऊ, मंगलुरु और तिरुवनंतपुरम के सभी के सभी छह हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए सभी बोलियों में विजेता घोषित कर दिया गया।
बोली प्रक्रिया के इस नतीजे की व्यापक आलोचना हुई। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने पीपीपीएसी और अधिकार प्राप्त समूह सचिवों (ईजीओएस) के इन फ़ैसलों पर सवाल उठाये और आरोप लगाया कि मोदी सरकार की ओर से सिविल सेवकों के पैनल ने उस अडानी समूह की मदद करने के लिए काम किया है, जिसके पास परिचालन के कारोबार और हवाई अड्डों के प्रबंधन के क्षेत्र में पहले से कोई अनुभव नहीं है।
केरल सरकार,जिसने शुरू में तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे को विकसित करने की अनुमति मांगी थी,उसने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय में मामला दायर कर दिया।
केरल सरकार ने आरोप लगाया कि एएआई का तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे को एक निजी खिलाड़ी को सौंप देने का फ़ैसला "मनमाना और अवैध" है और "एक ऐसे ख़ास निजी रियायत पाने वाले (अडानी समूह) को तरज़ीह दिये जाने की कोशिश हो रही थी", जिसके पास हवाई अड्डों के प्रबंधन को लेकर पहले से कोई अनुभव नहीं है। "
केरल सरकार का तर्क था कि केरल की राजधानी में हवाई अड्डे के निजीकरण का नई दिल्ली का वह फ़ैसला सार्वजनिक हित में नहीं है और इस फ़ैसले ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण अधिनियम, 1994 के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 2003 में राज्य सरकार को इस बात का भरोसा दिलाया था कि तिरुवनंतपुरम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के निजीकरण के फ़ैसले से पहले इस पर विचार-विमर्श किया जायेगा, लेकिन इस प्रतिबद्धता का पालन नहीं किया गया।
उच्च न्यायालय ने केरल सरकार की उस रिट याचिका को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया कि यह असामयिक था और संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत (जो किसी भी सरकार, प्राधिकरण या व्यक्ति को रिट जारी करने के लिए उच्च न्यायालय को अधिकार देता है) अनुरक्षणीय (maintainable) नहीं है।
अदालत ने कहा कि राज्य सरकार अपने क़ानूनी अधिकार के तहत केंद्र सरकार के नीतिगत निर्णय को चुनौती देने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 131(जो कि राज्यों के बीच और केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच विवाद पर मूल अधिकार क्षेत्र वाले शीर्ष अदालत में निहित है) के मुताबिक़ फ़ैसला ले सकती है।
इसके बाद केरल सरकार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया,जिसने मामले को उच्च न्यायालय में वापस भेज दिया, जहां यह अभी भी लंबित है।
गुवाहाटी के लोगों के एक समूह ने असम की राजधानी में हवाई अड्डे के निजीकरण को लेकर बोलियों को खोलने से पहले उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर दी। याचिकाकर्ताओं ने एएआई अधिनियम,1994 के विभिन्न प्रावधानों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि लाभ कमाने वाली इस सार्वजनिक इकाई का निजीकरण करना अनुचित है।
13 फ़रवरी, 2019 को अदालत की तरफ़ से जारी एक स्थगन आदेश के चलते 25 फ़रवरी को अन्य हवाई अड्डों के साथ गुवाहाटी हवाई अड्डे के लिए लिए वित्तीय बोली नहीं खोली जा सकी। उस दिन अदालत ने आदेश दिया:… इस याचिका की विचारधीनता को देखते हुए प्रतिवादी प्राधिकारी इस याचिका की विचारधीनता के बारे में रियायत पाने वाले को सूचित करेगा और वे इस याचिका के नतीजे मानने के लिए बाध्य होंगे।”
एक दिलचस्प, और क़रीब-क़रीब हास्यपूर्ण स्थिति तब पैदा हो गयी,जब लगभग एक साल बाद, 5 मार्च, 2019 को गुवाहाटी उच्च न्यायालय की एक पीठ,जिसमें मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया शामिल थे, उसने सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद एएआई के सहायक महाप्रबंधक (वित्त) संदीप अग्रवाल को ठीक से कपड़े नहीं पहनने के लिए फटकार लगा दी।
पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा था: “… हम देख रहे हैं कि इन्होंने अनुचित रूप से कपड़े पहना हुआ है। इनके पास टाई और जैकेट पहनने का भी शिष्टाचार नहीं है। प्रथम दृष्टया यह शख़्स अदालत की अवमानना कर रहा है।"
यह मामला उच्च न्यायालय में लंबित है।
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने केंद्र सरकार को सूचित किया कि वह अडानी समूह को जयपुर हवाई अड्डे के अधिग्रहण की अनुमति नहीं देगी।
अडानी की हवाई अड्डे वाली योजना खटाई में तो नहीं पड़ जायेगी?
अडानी एयरपोर्ट्स लिमिटेड को 2 अगस्त, 2019 को गुजरात के अहमदाबाद में एक कॉर्पोरेट इकाई के रूप में पंजीकृत किया गया था, और अभी तक इसके तहत किसी तरह के कारोबार का संचालन शुरू नहीं हुआ है। इस कंपनी की मूल कंपनी, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड की तरफ़ से देश के वित्तीय बाज़ारों के नियामक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को प्रस्तुत एक फ़ाइलिंग के मुताबिक़, यह कंपनी "भारत और विदेश में हवाई अड्डों के अधिग्रहण, प्रोत्साहन, संचालन, रखरखाव, विकास, डिज़ाइनिंग, निर्माण, सुधार, आधुनिकीकरण, नवीनीकरण, विस्तार और प्रबंधन का काम करेगी।"
हालांकि जुलाई 2019 में केंद्र सरकार ने अडानी एयरपोर्ट्स के साथ रियायत समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिए एएआई को हरी झंडी दे दी थी, इस समझौते को वास्तव में केवल तीन हवाई अड्डों- अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरु के लिए ही इस साल फ़रवरी में हस्ताक्षरित किये गये थे।
एएआई की तरफ़ से 14 फ़रवरी को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़, सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी ने उस दिन अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरु हवाई अड्डों के संचालन, प्रबंधन और विकास के लिए पीपीपी मोड के ज़रिये रियायत पाने वाली कंपनी क्रमशः, अडानी अहमदाबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड, अदानी लखनऊ इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड और अदानी मंगलुरु इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड के साथ तीन रियायत समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
एएआई के अध्यक्ष अरविंद सिंह और अन्य अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में एएआई की ओर से रणनीतिक पहल इकाई, कार्यकारी निदेशक बी के मेहरोत्रा और एयरपोर्ट, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड की ओर से सीईओ बेहनाद ज़ांडी के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गये।
14 फ़रवरी, 2020 से 180 दिनों के भीतर कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद रियायत पाने वाले को अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरु हवाई अड्डों का अधिग्रहण करना ज़रूरी था। यह निर्दिष्ट किया गया था कि रियायत पाने वाले समूह अहमदाबाद में हवाई अड्डे के लिए 177 रुपये, लखनऊ हवाई अड्डे के लिए 171 रुपये और मंगलुरु हवाई अड्डे के लिए 115.00 रुपये प्रति यात्री घरेलू शुल्क का भुगतान करेंगे।
इस प्रेस नोट में इस बात का ज़िक़्र किया गया था कि औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में भिन्नता को ध्यान में रखते हुए प्रति यात्री शुल्क प्रतिवर्ष संशोधित किया जायेगा। इसके अलावा, इसमें यह भी उल्लेख किया गया था कि " एएआई को मिलने वाली इस रियायत शुल्क का इस्तेमाल देश के दूसरे ब्राउनफ़ील्ड (या मौजूदा) हवाई अड्डों के रखरखाव और विकास के साथ-साथ आरसीएस-उड़ान और अन्य ग्रीनफ़ील्ड (नये) हवाई अड्डों के विकास के लिए किया जायेगा।"
आरसीएस-उड़ान क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना-उडे देश का आम नागरीक का एक द्विभाषी संक्षिप्त रूप है,जिसका मतलब है-"सामान्य नागरिक को उड़ने दें।"
ये रियायत समझौते बाध्यकारी थे और एएआई के एक शीर्ष अधिकारी,जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर इस लेख के लेखकों से बात की थी,उनके मुताबिक़, नये रियायत पाने वाले को पंजीकरण और निर्णयात्मक दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करना और छह महीने के भीतर हवाई अड्डे का अधिग्रहण करना होता है।
जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि अडानी इस हवाईअड्डे के लिए 15 फ़रवरी, 2021 तक का मोहलत चाहते थे, लेकिन एएआई की तरफ़ से 15 नवंबर तक का ही समय दिया गया है।
इन तीनों हवाईअड्डों का अधिग्रहण करते हुए अडानी को एएआई को तीन हवाई अड्डों के लिए संपत्ति हस्तांतरण शुल्क के रूप में लगभग 1,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। कंपनी ने इस भुगतान को स्थगित करने का अनुरोध किया है। एक बार इन हवाई अड्डों का अधिग्रहण कर लेने के बाद अडानी एयरपोर्ट्स को एएआई द्वारा उन्हें सौंपे गये काम के लिए ठेकेदारों को भुगतान करना होगा।
इस बीच नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि लखनऊ और मैंगलोर के दो हवाई अड्डों में यात्रियों की संख्या में जहां भारी गिरावट आयी है, वहीं अहमदाबाद में इसमें मामूली बढ़ोत्तरी हुई है।
हवाई अड्डों का निजीकरण एक ग़लती
कोविड-19 के प्रकोप के बाद यात्रा और पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, आईसीआरए की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, मौजूदा कैलेंडर वर्ष के दौरान हवाई यात्रा 2019 की हवाई यात्रा के लगभग आधी हो जायेगी और 2023 से पहले 2019 के उस स्तर को नहीं छू पायेगी।
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में वैश्विक हवाई यात्रियों की संख्या में 50.6% तक के गिरावट का अनुमान है और 2021 के लिए जो अनुमान है,उससे भी कोई अच्छे आसार नहीं दिख रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र, जिसमें भारत भी शामिल है, यहां सबसे ज़्यादा "नुकसान" पहुंचने की आशंका है।
ऐसे हालात में अगर निजी रियायत पाने वाला प्रति यात्री केवल एक ही शुल्क का भुगतान करता है,तो एएआई के राजस्व पर इसका उलटा असर पड़ेगा। यह ठीक वही बात है,जिसे नीति आयोग ने अपने नोट में पीपीपीएसी को इशारा किया था।
सबसे अहम बात है कि हवाई अड्डों के निजीकरण की दिशा में एक वैचारिक रूप से प्रेरित क़दम के अपने ख़तरे हैं,जिसे उठाने के लिए मोदी सरकार तुली हुई है। जून 2018 को आईएटीए के महानिदेशक और सीईओ,एलेक्जेंडर डे जूनियाक ने कहा था: “हम एक बुनियादी ढांचे को लेकर संकट में हैं। नक़दी की तंगी से जूझ रही सरकारें निजी क्षेत्र की तलाश कर रही हैं ताकि हवाई अड्डे की क्षमता को विकसित करने में मदद मिल सके।
लेकिन,यह मान लेना भी ग़लत है कि निजी क्षेत्र के पास सभी सवालों के जवाब हैं। एयरलाइंस के पास अभी तक एक भी हवाई अड्डे के निजीकरण का ऐसा अनुभव नहीं है,जो दीर्घकालिक रूप से अपने किये गये वादे के लाभों पर खरे उतरे हों। हवाई अड्डे अहम बुनियादी ढांचे हैं। यह बात अहम है कि सरकार उन समाधानों पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाये, जो सबसे अच्छे आर्थिक और सामाजिक लाभ पहुंचाये। ख़ज़ाने को भरने की ख़ातिर एक अल्पकालिक नक़दी प्रवाह बनाने के लिए हवाई अड्डे की संपत्ति को बेचना एक ग़लती है।”
ऐसे हालात में पूरी तरह साफ़ है कि अडानी एयरपोर्ट्स अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरु के तीन हवाई अड्डों के अधिग्रहण की अपनी योजनाओं के साथ शायद ही आगे बढ़ पाये। कंपनी ने इस मोड़ पर हवाई अड्डे के व्यवसाय में प्रवेश करने की वित्तीय व्यवहार्यता पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कथित तौर पर एक बाहरी एजेंसी नियुक्त की है।
अगर रियायत पाने वाला अडानी एयरपोर्ट के साथ अपने अनुबंध को एएएआई स्थगित करता हुआ पाता है,तो ऐसी स्थिति में एएएआई अपनी किन दंडात्मक धाराओं का इस्तेमाल करेगा,उसने इसका खुलासा अभी तक तो नहीं किया है। अगर किसी भी वजह से यह कंपनी 15 नवंबर के बाद तीनों हवाई अड्डों को लेने से इनकार कर देती है, तो ऐसे में यह सवाल उठता है कि एएआई दंडात्मक धाराओं को लागू करेगा या फिर कंपनी के ‘अप्रत्याशित घटना’ के दावे को स्वीकार कर लेगा।
अगर अडानी समूह वास्तव में इन तीनों हवाई अड्डों का अधिग्रहण कर लेता है और यात्री की संख्या में अनुमान के मुताबिक़ बढ़ोत्तरी नहीं होती है, तो अंतत: एएआई ही नुकसान में होगा, ऐसा इसलिए,क्योंकि यह अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरु में हवाई अड्डों से उतना ही राजस्व अर्जित कर पायेगा, जिनता कि रियायत पाने वाले ने अपनी बोली में प्रति यात्री शुल्क को उद्धृत किया है।
आख़िर इस बात की अनदेखी भला कैसे की जा सकती है कि अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क़रीबी माना जाता है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके विचार व्यक्तिगत हैं
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को भी आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-
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