BHU: “OBC फंड से बने छात्रावासों में पिछड़े तबके के छात्रों के लिए आरक्षण नहीं”
उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्रावासों में पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स को 'आरक्षण नहीं दिए जाने' का मामला तूल पकड़ने लगा है। आरोप है कि बीएचयू में एससी-एसटी के अलावा आर्थिक रूप से कमज़ोर सवर्ण (EWS) को नियमानुसार आरक्षण दिया जा रहा है, जबकि ओबीसी स्टूडेंट्स के साथ अन्याय किया जा रहा है। यह स्थिति तब है जब बीएचयू में 29 छात्रावासों के निर्माण के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग स्पेशल फंड से 171 करोड़ रुपये दिए गए थे। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने इस मामले में कुलपति प्रो. एसके जैन से जवाब-तलब किया है। अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहिर ने ओबीसी आयोग से प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए दस दिन के अंदर बिंदुवार जवाब मांगा है।
मीडिया रिपोर्ट्स और आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, बीएचयू में अन्य पिछड़ा वर्ग स्पेशल फंड से कुल 4187 कमरों का निर्माण कराया गया है, जिसकी कुल लागत करीब 171 करोड़ रुपये है। नियमानुसार इन छात्रावासों के कमरों का आवंटन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के स्टूडेंट्स के लिए होना चाहिए, लेकिन इन छात्रों का कहना है कि उनके हितों की लगातार अनदेखी की जा रही है। खासबात यह है कि जो कमरे ओबीसी स्पेशल फंड से बनवाए गए हैं, उसमें उसी वर्ग के छात्रों को आरक्षित करने में हीलाहवाली की जा रही है।
देश भर के विश्वविद्यालयों के में साल 2007-08 से तीन चरणों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 फीसदी आरक्षण व्यवस्था लागू है। विश्वविद्यालयों के छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण लागू करने का संवैधानिक प्रावधान है, लेकिन आरोप है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय इसे लागू नहीं कर रहा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही संवैधानिक प्रावधानों के तहत छात्रावासों के कक्ष आवंटन में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए 21 फीसदी आरक्षण पूरी तरह लागू है। आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग सवर्ण स्टूडेंट्स को जनवरी 2019 से दस फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। लेकिन ओबीसी स्टूडेंट्स का बीएचयू प्रशासन पर गंभीर आरोप है कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग के स्टूडेंट्स के लिए छात्रावासों में आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए तैयार नहीं है।
मामले पर गंभीर है ओबीसी आयोग
लंका के सीरगोवर्धनपुर निवासी भुवाल यादव के साथ छात्रों के एक समूह ने कुछ दिन पहले राज्य पिछड़ा आयोग के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर से मिलकर बीएचयू के छात्रावासों में पिछड़े समुदाय के स्टूडेंट्स को आरक्षण नहीं दिए जाने की शिकायत की थी। गंगाराम बनारस में पिछड़े समुदाय के लोगों की समस्याएं सुनने आए थे। बीएचयू के स्टूडेंट्स ने उन्हें कचहरी स्थित सर्किट हाउस में ज्ञापन सौंपा था।
छात्रों का कहना है, "बीएचयू के छात्रावासों में संवैधानिक प्रावधान के तहत एससी-एसटी स्टूडेंट्स को आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन ओबीसी के विद्यार्थियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। एक ही विश्वविद्यालय में ज़िम्मेदार पदाधिकारियों का यह दोहरा चरित्र कतई ठीक नहीं है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं करना संविधान और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है। यह स्थित तब है जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ओबीसी फंड से 29 छात्रावासों का निर्माण हुआ हो। इन छात्रावासों में करीब 5000 कमरे बने हैं, जिनमें लगभग दस हज़ार स्टूडेंट्स रह सकते हैं। नियमानुसार सभी छात्रावासों के कमरों का आवंटन ओबीसी वर्ग के स्टूडेंट्स होना चाहिए, क्योंकि वही इसके लिए पात्र हैं।"
छात्र नेता भुवाल यादव ने ओबीसी आयोग के अध्यक्ष से यह भी कहा, "बीजेपी सरकार और उसके नेता ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा तो लगाते हैं, लेकिन पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स को न्याय दिलाने की बात आती है तो चुप्पी साध लेते हैं। पिछले कई सालों पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इस सिलसिले में वो कई बार आंदोलन-प्रदर्शन कर चुके हैं और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को भी खत भेज चुके हैं। पिछड़े वर्ग के छात्रों की सुविधा के लिए स्पेशल ओबीसी फंड से ये छात्रावास बनवाए गए थे। पिछले 16 सालों से पिछड़े तबके के स्टूडेंट्स का हक़ मारा जा रहा है।"
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर ने स्टूडेंट्स को भरोसा दिलाया था कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रावासों में ओबीसी रिज़र्वेशन को शीघ्र लागू किया जाएगा। ज्ञापन सौंपने पहुंचे छात्रों में शुभम यादव, रत्नेश सिंह, धीरेंद्र यादव, सीपी शिरोमणि, रणवीर सिंह यादव, श्याम बाबू मौर्य, सुमेंद्र प्रताप रेड्डी समेत बड़ी संख्या में ओबीसी स्टूडेंट्स मौजूद थे।
ओबीसी स्टूडेंट्स कर रहे संघर्ष
बीएचयू के छात्रावासों में ओबीसी स्टूडेंट्स को 'आरक्षण दिलाने' के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहे छात्र नेता भुवाल यादव और श्यामबाबू मौर्य न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "छात्रावासों में बाक़ी कैटेगरी के छात्रों को आरक्षण का लाभ दिया जाता है, लेकिन ओबीसी को नहीं। एक ही विश्वविद्यालय में दोहरी व्यवस्था है। यह पूरी तरह से नियमों का उल्लंघन है। इस तरह की स्थिति तब है जब ओबीसी फंड से 29 छात्रावासों का निर्माण विश्वविद्यालय में कराया गया है। हम तीन साल से लगातार छह से अधिक बार कुलपति को पत्र भेजकर शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। जब तक विश्वविद्यालय के छात्रावासों में ओबीसी रिज़र्वेशन लागू नहीं हो जाता, तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगी।"
"प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र के बीएचयू में पिछड़े वर्ग के छात्रों के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया जा रहा है। अन्य पिछड़ा वर्ग स्पेशल फंड से 4187 कमरे बनवाए गए हैं। यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत बीएचयू प्रशासन ने खुद मुहैया कराई है। 29 दिसंबर 2021 को बीएचयू के छात्रावासों में अन्य पिछड़ा वर्ग के स्टूडेंट्स को कमरों के आवंटन के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने के लिए एक समिति गठित की गई थी। इस समिति की रिपोर्ट फाइलों में दबी हुई है।"
बीएचयू के स्टूडेंट परमदीप पटेल और शिवशक्ति कहते है, "बीएचयू से इतर देश में जितने भी विश्वविद्यालय हैं उनमें कहीं भी ओबीसी स्टूडेंटस के साथ ऐसा भेदभाव भरा रवैया नहीं अपनाया जाता है। बीएचयू में ओबीसी स्टूडेंट्स आपको ढूंढने पर बड़ी मुश्किल से मिलेंगे। दलित और आदिवासी शोधार्थी भी नगण्य हैं। राजग सरकार ने दो वर्ष पहले इस तबके को उच्च अध्ययन में प्रेरित करने के लिए ‘नेशनल फेलोशिप फॉर ओबीसी' की शुरूआत की है, लेकिन यह महज़ 300 विद्यार्थियों के लिए है, जो इस विशालकाय वंचित आबादी के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है।"
राजेश कुमार, दिलीप कुमार चौरसिया, राणा रोहित और अजय यादव समेत तमाम छात्र नेताओं ने संयुक्त रूप से कहा, "आरक्षण के मुद्दे को लेकर भी बीएचयू प्रशासन के खिलाफ आंदोलन तेज़ किया जाएगा। छात्रावासों में आरक्षण लागू करने की मांग को लेकर कई बार स्टूडेंट्स आंदोलन-प्रदर्शन कर चुके हैं। पिछले दिनों इस मुद्दे को लेकर भी केंद्रीय कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया था। बीएचयू में ओबीसी फंड/अतिरिक्त फंड से जिन छात्रावासों का निर्माण किया गया, उनमें नियमानुसार ओबीसी के छात्रों को लाभ मिलना चाहिए, लेकिन वह नहीं मिल रहा है। हम चाहते हैं कि हॉस्टल्स में उन्हें भी 27 फीसदी आरक्षण दिया जाए।"
आपको बता दें बीएचयू बहुजन संघर्ष समिति और एससी-एसटी छात्र कार्यक्रम आयोजन समिति के बैनर तले छात्रों के एक समूह ने पिछले साल छात्रावासों में ओबीसी स्टूडेंट्स के लिए आरक्षण की मांग करते हुए बीएचयू के केंद्रीय कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया था। छात्रों ने हॉस्टल में ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर 28 फरवरी 2022 को बीएचयू प्रशासन को एक पत्र सौंपा था। दिसंबर 2021 में भी कुलपति को एक अनुस्मारक पत्र दिया गया था।
कांग्रेस ने उठाया मुद्दा
ओबीसी स्टूडेंट्स को आरक्षण देने में की जा रही कथित लापरवाही को कांग्रेस ने मुद्दा बना लिया है। वह इस मामले को राजनीतिक स्तर पर तूल देने में जुट गई है। यूपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने ओबीसी आरक्षण की मांग कर सियासी दांव चल दिया है। कांग्रेस नेता ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री से मांग की है कि बीएचयू सहित देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में के छात्रावासों में अन्य वर्ग की तरह पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए। कांग्रेस नेता का कहना है कि "बीएचयू छात्रावासों में सबके लिए आरक्षण की सुविधा है, लेकिन ओबीसी स्टूडेंट्स का हक़ मारा जा रहा है। इसके चलते ओबीसी स्टेडंट्स को पढ़ाई में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।" माना जा रहा है कि कांग्रेस की नई मुहिम बीएचयू प्रशासन और भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकती है।
बीएचयू प्रशासन ने पिछले साल नई एनी बेसेंट फेलोशिप योजना में ओबीसी स्टूडेंट्स के लिए आरक्षण व्यवस्था को सिरे से खारिज कर दिया था, जबकि गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की घोषणा की गई थी। इससे नाराज़ ओबीसी और एससी-एसटी स्टूडेंट्स ने बीएचयू के सेंट्रल ऑफिस का घेराव किया। यूजीसी के नियमों के मुताबिक देश के किसी विश्वविद्यालय में पिछड़ों और दलितों को नियमानुसार आरक्षण देना अनिवार्य है।
ओबीसी-एससी-एसटी संघर्ष समिति से जुड़े स्टूडेंट अजय भारती कहते हैं, "बीएचयू में सवर्ण लॉबी, पिछड़ों और दलितों के नैसर्गिक अधिकारों को लीलती जा रही है। कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन ने सवर्ण स्टूडेंट्स को सीधे लाभ पहुंचाने के लिए नया चोर दरवाज़ा खोला है। यह दरवाज़ा दलित और ओबीसी स्टूडेंट्स को बेरोज़गार बनाएगा और हमें गुलामी के रास्ते पर ढकेलेगा।"
मारा जा रहा वंचितों का हक़?
आरोप है कि दर्जनों विभागों में ओबीसी के लिए आरक्षित शिक्षकों और कर्मचारियों के पदों को जानबूझकर नहीं भरा जा रहा है। नागपुर में सामाजिक कार्यकर्ता संजय थुल ने विगत वर्ष बीएचयू प्रशासने से एक आरटीआई के ज़रिये आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के पदों के बारे में जानकारी मांगी थी। बीएचयू के एससी, एसटी सेल के सेक्शन आफिसर की ओर से जो जवाब भेजा गया था उसमें ओबीसी के 568 पद का ज़िक्र किया गया था। जिसमें प्रोफेसर के 61, एसोसिएट प्रोफेसर के 135 और असिस्टेंट प्रोफेसर के 372 पदों के स्वीकृत होने की जानकारी दी गई थी। प्रोफेसर के कुल 61 पदों में 25 को खाली बताया गया, जबकि 36 पदों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। एसोसिएट प्रोफेसर के स्वीकृत 135 पदों में केवल 42 को खाली बताया गया, जबकि भरे जाने वाले कॉलम में शून्य लिखा दर्शाया गया।
आरटीआई एक्टविस्ट संजय सिंह कहते हैं, "बीएचयू में कुछ भी मुमकिन है। चाहे छात्रवृत्ति और दाखिले का मामला हो या फिर नियुक्ति का। न्यूरोलाजी और कृषि अर्थशास्त्र समेत तमाम ऐसे विभाग हैं जहां दलित और ओबीसी के प्रोफेसर ढूंढे भी नहीं मिलेंगे। यहां बड़ी संख्या में ऐसे प्रोफेसर हैं जिन्हें यूजीसी की गाइडलाइन के ताक पर रखकर नियुक्ति दी गई है। कुछ ऐसे भी प्रोफेसर हैं जो दलित और ओबीसी का फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर प्रोफेसर बने बैठे हैं।"
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, "देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर्स, एसोसिएट प्रोफेसर्स और सहायक प्रोफेसर्स के करीब 33 फीसदी पद खाली हैं। एक दिसंबर, 2022 तक एसोसिएट प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर की सभी तीन श्रेणियों में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 2,284 के कुल स्वीकृत पदों में से 908 रिक्त पद हैं, जबकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जनजाति के लिए स्वीकृत 1,142 पदों में से 544 पद खाली पड़े हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) खंड में, सभी तीन श्रेणियों में स्वीकृत पदों की कुल संख्या 3,451 है, जिनमें से 1,559 अभी तक नहीं भरे जा सके हैं।"
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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