भ्रामक मृत्यु दर: वास्तविक संकट को कम करके तो नहीं आंका जा रहा?
तीन मई को भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, हर्षवर्धन ने दावा किया कि "हमारी मृत्यु दर 3.2% है और यह दुनिया में सबसे कम है।" लेकिन, उनके ये दोनों दावे तथ्यात्मक रूप से ग़लत हैं। असल में वह मृत्यु दर (mortality rate) के बजाय घातकता दर (fatality rate) के बारे में बोल रहे हैं और भारत की मृत्यु दर, पाकिस्तान सहित कई दूसरे देशों की तुलना में ज़्यादा है। भारत में घातकता दर (मृत्यु दर) की गणना करने की विधि संदिग्ध है। हर दिन, देश को उस मृत्यु दर के साथ अपडेट किया जाता है, जिससे लगता है कि संकट को कम करके आंका जाता है और इस प्रकार,यह आकलन अपनी प्रकृति में दोषपूर्ण है। किसी संक्रमित व्यक्ति में हुए संक्रमण के चलते उसके मरने या जीवित रहने की संभावना और इस प्रकार,उक्त बीमारी की गंभीरता को समझने के लिए घातकता दर को मापा जाता है।
मृत्यु-दर के दो माप:
COVID-19 के अपडेट को लेकर दो सबसे व्यापक रूप से देखी जाने वाली वेबसाइट भारत के लिए अलग-अलग मृत्यु (घातकता) दर देती हैं। दोनों वेबसाइट अलग-अलग तरीक़े से मृत्यु दर को मापती हैं। पहली वेबसाइट, समय की एक निश्चित अवधि के दौरान COVID -19 से संक्रमित कुल चिह्नित मामलों से उसी निश्चित अवधि के दौरान कुल हुई मौत को विभाजित करके मृत्यु दर को मापती है। इस माप में इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है कि उन लोगों में अधिक मौतें होंगी, जिनका परीक्षण पोज़िटिव पाया गया है, लेकिन जिनका इलाज अब भी चल रहा है।
कुल मृत्यु
मृत्यु दर = ——————————————————————
कुल मृत्यु + कुल स्वस्थ हुए लोग + उपचार के तहत कुल मरीज़
दूसरी वेबसाइट, एक निश्चित अवधि के दौरान कुल मौतों के योग के साथ कुल स्वस्थ हुए रोगियों की कुल संख्या द्वारा उसी अवधि के दौरान कुल हुई मौत को विभाजित करके मृत्यु दर की गणना करती है। यह उन सभी के बीच संभावित मौत के रूप में मरने की संभावना की गणना करता है, जिनका सबके बनिस्पत ज़्यादा तत्परता के साथ इलाज किया गया था, जिनमें इलाज हुए लोगों के साथ-साथ वे लोग भी शामिल हैं,जिनका इलाज चल रहा होता है।
9 मई, 2020 तक, पहले आकलन में भारत की मृत्यु दर 3.37% होने का दावा किया गया था, जबकि दूसरे आकलन में दावा किया गया था कि भारत की मृत्यु दर 10.37% है।
रन रेट और मृत्यु दर
मिसाल के तौर पर, किसी क्रिकेट मैच में बल्लेबाजी करने वाली टीम द्वारा बनाये गये औसत रन को टीम के कुल खिलाड़ियों से कुल रनों को विभाजित करके नहीं मापा जाता है, बल्कि इसके बजाय टीम द्वारा बनाये गये कुल रनों को पिच पर बल्लेबाजी करने के लिए उतरे बल्लेबाजों की कुल संख्या द्वारा विभाजित किया जाता है। इसी तरह, मैच के मध्य या विशेष समय में किसी टीम की रन रेट, मैच के कुल ओवरों से कुल रनों को विभाजित करके नहीं मापी जाती हैं, बल्कि इसके बजाय उस समय के कुल रनों को उस समय गेंदबाजी के कुल ओवर से विभाजित करके मापी जाती है। ।
किसी 50 ओवर के क्रिकेट मैच में, टीम A ने 25 ओवर के बाद 150 रन बनाये, A टीम की रन रेट क्या होगी ?
केस 1: रन रेट = 150 रन / 50 ओवर (25 ओवर गेंदबाजी + 25 ओवर शेष) = 3 रन प्रति ओवर
या
केस 2: रन रेट = 150 रन / 25 ओवर बोल्ड = 6 रन प्रति ओवर
इसी तरह, COVID-19 के साथ 50 मरीज़ों के इलाज की प्रक्रिया में डॉक्टरों की एक टीम ने 25 रोगियों का इलाज किया। 25 मरीज़ों में से पांच की मौत हो गयी, जबकि 20 बच गये। मृत्यु दर क्या होगी ?
केस 1: मृत्यु दर = 5 मौत / 50 (25 का इलाज किया गया + 25 इलाज के तहत) = 10%
या
केस 2: मृत्यु दर = 5 मौत / 25 का इलाज (5 की मौत + 20 स्वस्थ हुए) = 20%
ख़तरे का कम आंक जाना
जैसा कि ऊपर बताया गया है, दोनों मामलों में हुई कुल पांच मौतों को 25 इलाज किये गये रोगियों में से मृत्यु के रूप में समझा जाना चाहिए, क्योंकि बाकी 25 रोगियों का इलाज तो अब भी चल रहा है और उनमें से कुछ की मृत्यु भी हो सकती है। जब कुछ लोग इस समय बीमार हैं, तो बीमारी से उनमें से कुछ मर भी सकते हैं, लेकिन उनकी अभी तक मृत्यु नहीं हुई है, तो पहला माप मौत के वास्तविक जोखिम को कम आंकेगा। दूसरी विधि इस वायरस के कारण होने वाले ख़तरे की गंभीरता और मृत्यु की संभावना को समझने के लिए एक अधिक उपयुक्त उपाय है, क्योंकि यह उन लोगों को बाहर रखता है, जिनका इलाज चल रहा होता है और चल रहे इलाज वाले मरीज़ों में से कुछ की मृत्यु की संभावना भी होती है। पहला माप भ्रामक है, क्योंकि यह वास्तविक मृत्यु अनुपात को कम करके आंकता है।
इसी तरह, COVID-19 से संक्रमित मरीज़ों के स्वस्थ होने की दर और मृत्यु दर का योग 100% होना चाहिए, क्योंकि संक्रमण के मामले में किसी भी संक्रमण का अंतिम नतीजा या तो मृत्यु या उनके स्वस्थ होने के रूप में होगा। यदि हम दूसरी विधि के साथ मरीज़ों के स्वस्थ होने और मृत्यु होने के अनुपात को मापते हैं, तो दोनों का योग 100% होगा, लेकिन यदि हम माप की पहली विधि के साथ भी ऐसा ही करते हैं, तो यह 50% तक भी नहीं पहुंच पायेगा।
इतिहास अपने आप को दोहराता है
ऐसा पहली बार नहीं है कि हम किसी ग़लत तरीक़े से किसी संक्रमण के मृत्यु अनुपात की गणना कर रहे हैं। 2003 में SARS-CoV के प्रकोप के दौरान, प्रकोप की प्रारंभिक अवस्था में मामले की घातकता दर 3-5% बतायी गयी थी, लेकिन अंत में यह लगभग 10% तक बढ़ गयी थी। ऐसा इसलिए हुआ था,क्योंकि हमने माप का पहला तरीक़ा इस्तेमाल किया था, जो भ्रामक है। जब स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया है कि भारत में मृत्यु दर केवल 3.2% है,तो उन्होंने माप की इसी पद्धति का उल्लेख किया है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री का भ्रम
यहां तक कि अगर आप केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और Covid19india.org द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली माप पद्धति को स्वीकार करते हैं, तो भारत में मृत्यु दर सबसे कम नहीं है। बल्कि पाकिस्तान जैसे देशों में भी मृत्यु दर कम है। 7 मई, 2020 तक, स्वास्थ्य मंत्री के अनुमान के अनुसार, भारत की मृत्यु दर 3.33% है, जबकि पाकिस्तान की मृत्यु दर 2.27% है। पाकिस्तान में COVID-19 से संक्रमित कुल 26,434 लोगों में से पांच सौ निन्यानबे लोग मारे गये। भारत में COVID-19 से संक्रमित कुल 59,695 लोगों में से 1,985 लोग मारे गये। कई अन्य देश भी हैं, जिनकी दी हुई तालिका में मृत्यु दर बहुत कम है।
दूसरा झूठ वाला सच
हमारे स्वास्थ्य मंत्री का यह दावा न सिर्फ़ ग़लत हैं कि भारत में मृत्यु दर सबसे कम है, बल्कि उन्होंने घातकता दर के साथ मामले की मृत्यु दर को भी उलझा दिया है। देश की कुल जनसंख्या के साथ कुल मृत्यु को विभाजित करके मृत्यु दर को मापा जाता है। मृत्यु दर की गणना अक्सर किसी प्रकोप की समाप्ति के बाद की जाती है। संकट के बीच संकट की भयावहता को समझने के लिए मामले की घातकता दर एक अधिक उपयुक्त माप होती है। किसी मामले में मृत्यु दर हमेशा उस मामले की घातकता दर से कम होती है। दरअसल, मंत्री महोदय तब मामले की घातकता दर का ही उल्लेख कर रहे थे,जब उन्होंने 3 मई को 3.2% का डेटा दिया था।
मामले की घातकता दर और संक्रमण की घातकता दर
घातकता दर दो तरह के होते हैं: "मामले की घातकता दर" और "संक्रमण की घातकता दर"। "संक्रमण घातकता दर" को माप पाना नामुमकिन है, ऐसा इसलिए, क्योंकि इसमें दोनों तरह के लोग शामिल होते हैं-वे लोग जो पोज़िटिव पाये जाते हैं, और वे लोग, जिनकी मृत्यु संक्रमण के कारण तो हुई हो, लेकिन जिनका परीक्षण कभी किया ही नहीं गया था। वे चिकित्सा निगरानी या निगरानी में कभी आते ही नहीं हैं। इस तरह, किसी दूरदराज़ के गांव में कोई व्यक्ति, जो COVID-19 के कारण मर जाता है, जबकि चिकित्सा कर्मचारियों को उस मामले के बारे में कोई जानकारी ही नहीं हो होती है, तो ग्रामीणों द्वारा अंतिम संस्कार "संक्रमण घातकता दर" का ही हिस्सा होता है, लेकिन यह "मामले की घातकता दर" नहीं होती है।
निष्कर्ष
हम संक्रमण की घातकता दर की गणना करने को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री की असमर्थता को समझ सकते हैं, लेकिन उन्हें गणना की एक ऐसी पद्धति का उपयोग करना चाहिए,जो भ्रामक नहीं हो या जो ख़तरे को कम करके नहीं आंकता हो। COVID-19 के चलते होने वाली मौतों की उच्च संभावना को स्वीकार करने से जनसमूह के बीच परेशानी पैदा हो सकती है, लेकिन इससे लोगों के बीच अपनी आत्म-सुरक्षा को लेकर अधिक चेतना भी पैदा हो सकती है।
लेखक मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज में प्रोग्राम मैनेजर हैं। आपसे subaltern1@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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