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CPIM का हल्ला बोल: सरकार से पूछा बजट में कहां है आम आदमी और ग़रीब?

बजट को जन-विरोधी बताते हुए दिल्ली में आज CPIM की तरफ़ से विरोध-प्रदर्शन किया गया और सुधार की मांग के साथ जनता से बड़े आंदोलन की अपील की गई।
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''किस तरह से अर्थव्यवस्था को लूटा जा रहा है और आम मेहनतकश लोगों की ज़िंदगी पर नए आर्थिक बोझ और हमले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, इसके विरोध में स्पष्ट रूप से 6मांगों को लेकर सीपीआईएम देश भर में आंदोलन और प्रदर्शन करेगी ताकि मोदी सरकार पर दबाव बढ़े। इस दबाव को आने वाले दिनों में और बढ़ाना है क्योंकि जिस तरह से लूट मची हुई है आज देश की संपत्ति की वे लूट शायद आज़ादी के बाद कभी नहीं देखी गई। आज सिर्फ़ अडानी और अंबानी का ही सवाल नहीं है। हमारे देश की सभी सार्वजनिक संपत्ति जिसके मालिक देश के लोग हैं उसकी निजीकरण के नाम पर लूट मची हुई है। आज तकरीबन 11 लाख करोड़ रुपए का जो कर्ज़ है बड़े पूंजीपतियों ने बैंकों से लिए हैं उसे मोदी सरकार ने माफ़ कर दिया है। ग़रीब किसान जब अपना कर्ज वापस नहीं करता तो उसका घर, उसकी ज़मीन, उसकी गाय, बकरी सब बैंक जब्त कर लेती है, लेकिन इन बड़े-बड़े सरमायेदारों को इजाजत है लूटो और देश छोड़ कर चले जाओ''।

दिल्ली के जंतर-मंतर पर आज CPIM के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने उक्त बात कहीं। CPIM ने मोदी सरकार के बजट को जनविरोधी बताते हुए ये विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में दिल्ली और इसके आस-पास इलाके के पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आम लोगों ने भी हिस्सा लिया।

उन्होंने आगे कहा, ''बेरोजगारी आज़ादी के बाद शायद इस हद तक कभी नहीं पहुंची जो आज है, नौजवानों को अगर ढंग की शिक्षा मिलेगी, स्वास्थ्य सेवा मिलेगी और उसे रोज़गार मिलेगा तो एक नए भारत का निर्माण वो ख़ुद कर करेगा। उसे मोदी साहब की कोई ज़रूरत नहीं है लेकिन व्यवस्था ही सही नहीं पहुंचाते। अब ऐसी परिस्थिति में इन दो सालों में खरबपति और अमीर हुए और 23 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के नीचे पहुंच गए, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है''।

येचुरी ने कहा, ''मनरेगा के बजट में कटौती की गई, मनरेगा एकमात्र आयोजन है जहां पर लोग अपनी ज़िंदगी को बचाने के लिए, ज़िंदगी को चलाने के लिए काम करते हैं उसमें कटौती कर दी। अब कटौती ही नहीं कर दी बल्कि अब कह रहे हैं कि ऐप पर जाना होगा लेकिन देश में क़रीब आधे से ज़्यादा ग्रामीण इलाक़ों में ग़रीब लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं है''।

सीपीआईएम के महसचिव ने कहा, ''एक क़ानून बनाया था अन्न सुरक्षा का, जब मनमोहन सिंह की सरकार थी, दबाव डालकर हमने इसको पारित करवाया था। उसके तहत देश में दो-तिहाई से ज़्यादा लोगों को सब्सिडी पर अनाज मिलता था तीन रुपये किलो चावल, दो रुपये किलो आटा/गेहूं और एक रुपये किलो मोटी दाल, ये जो चल रहा था अब मोदी साहब ने आकर कहा कि हम मुफ़्त देंगे पांच किलो अनाज लेकिन ये सब्सिडी वाला बंद कर दिया। ज़िंदा रहने के लिए हर इंसान को कम से कम 10 किलो अनाज तो चाहिए हर महीने जो पहले मिलता था। अगर आप चावल खाते हो तो 15 रुपये में पांच किलो में मिल जाता था लेकिन अब क्या हो गया। बंद करने के बाद अगर आप दुकान से ख़रीदो तो वहां 30-40 रुपये किलो है, तो ऐसे में 15 रुपये की जगह आपको डेढ़ सौ से दो सौ रुपये का ख़र्च आता है। तो क्या राहत दे रही है सरकार? प्रचार तो किया जाता है कि हम मुफ़्त अनाज बांट रहे हैं लेकिन असलियत में लोगों में भुखमरी बढ़ रही है, तो ऐसे हालात में सब्सिडी वाले अनाज को लागू किया जाना चाहिए''।

उन्होंने कहा, ''प्रचार, प्रचार के ऊपर दुष्प्रचार और लोगों के अंदर अगर बेचैनी और असंतोष बढ़ रहा है तो सांप्रदायिक धुव्रीकरण करो, हिंदू-मुसलमान के नाम पर दंगे-फसाद करवाओ और लोगों को जज़्बात के आधार पर लामबंद करो जिसकी वजह से हमारे देश की सामाजिक एकता बर्बाद हो रही है और आर्थिक व्यवस्था बिगड़ती जा रही है''।

पार्टी के महासचिव ने आगे कहा, ''आज के दिन एक बहुत बड़े जन-आंदोलन की ज़रूरत है, क्योंकि ये सरकार जब तक सत्ता में रहेगी न देश की जनता की भलाई होगी, न देश की एकता-अखंडता बचेगी, न हमारी संवैधानिक व्यवस्था बरकरार रहेगी, इनको हटाना है सरकार से और एक बड़े जन आंदोलन को खड़ा करना है, देशभक्ति का प्रतीक यही है आज। साधनों की कमी नहीं है देश में, नीतियों की कमी है, इन नीतियों को बदलना है। आज शुरुआत की है पार्टी की तरफ से, आगे हम दूसरी वामपंथी पार्टियों से बात कर रहे हैं। पहले उनको जोड़ेंगे और मुख्य रूप से आम जनता से हमारी अपील है कि आने वाले दिनों में इस आंदोलन को और मज़बूत बनाएं''।

आंदोलन की मुख्य मांगें :

1- रोज़गार पैदा करने वाली ढांचागत परियोजनाओं में सरकारी निवेश को बढ़ाया जाए।

2- पांच किलोग्राम मुफ़्त राशन के साथ-साथ 5 किलोग्राम सस्ता खाद्यान्न वितरण को फिर से बहाल किया जाए।

3- मजदूरी में बढ़ोतरी के साथ, मनरेगा के आवंटन में भारी बढ़ोतरी की जाए।

4- संपत्ति और पैतृक संपत्ति पर कर लगाया जाए।

5- पूंजीपतियों को कर में दी गई भारी छूट को वापस लिया जाए और अति धनी लोगों पर एक अतिरिक्त कर लगाया जाए।

6- खाद्य सामग्री और दवाओं समेत अन्य आवश्यक वस्तुओं पर से GST हटाया जाए।

''बजट में कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की गई''

सीपीआई (एम) के विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुए लोगों ने कहा, कल्याणकारी योजनाएं जैसे- मिड-डे-मील, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, मातृत्व लाभ, मनरेगा और ICDS (Integrated Child Development Services) जैसी योजनाओं के बजट आवंटन में भारी कटौती की गई है जो पिछले 20 सालों में सबसे न्यूनतम है। इसका बुरा असर महिलाओं, दलितों और आदिवासियों पर पड़ेगा।

प्रदर्शन में शामिल हुए लोगों ने कहा कि इस बजट की वजह से बेरोज़गारी, ग़रीबी तो बढ़ेगी ही साथ ही मिड्ल क्लास के ख़र्चों पर भी असर पड़ रहा है।

''महिला विरोधी बजट है''

प्रदर्शन में शामिल हुई एक महिला शरबानी ने कहा कि ये बजट साफ़ तौर पर महिला विरोधी बजट है। वे कहती हैं कि, ''बजट आने से पहले हमें बहुत उम्मीद थी कि बजट में हमारे लिए कुछ होगा। लेकिन जब बजट आया तो बहुत मायूसी हाथ लगी। ध्यान से देखें तो महिलाओं के बजट में कटौती की गई है। वे (वित्त मंत्री) कह रही थीं कि, ''महिलाओं को ख़ास तोहफा मिला है'' महिला बचत सम्मान पत्र के तहत 2 लाख रुपये तक की सेविंग करेंगी तो इंटरेस्ट मिलेगा। लेकिन ये दो लाख रुपये महिलाओं के हाथ में होने तो चाहिए। कितनी महिलाओं के हाथ में दो लाख है? दो लाख तो बड़ी रकम है। यहां पांच हज़ार नहीं है, ये हमारे फायदे की बात करते हैं। आपको मैं एक सिंपल सा उदाहरण दूं तो एक साल पहले दूध 58 रुपये लीटर मिल रहा था लेकिन आज की तारीख़ में वही दूध 66 रुपये लीटर है। तो महिला एक बच्चे को दूध कैसे पिलाएं?

साउथ-वेस्ट दिल्ली से प्रदर्शन में शामिल होने आई रीना कहती हैं कि, ''किसके पास है दो लाख रुपये? आप बताइए आपके पास है? ये बजट न महिलाओं के लिए है, न ग़रीबों के लिए। ये बजट पूंजीपतियों के लिए आया है।'' वो आगे कहती हैं कि, ''राशन में एक मेंबर पर दो किलो चावल,तीन किलो गेहूं मिल रहा है। इस पर आप सरकार से पूछिए कि क्या इतने में पूरा महीना चल सकता है? दूसरी दिक्कत ये है कि बिहार (या कहीं भी बाहर) से जो शख्स यहां कमाने आया है तो उसे यहां राशन नहीं मिल रहा है। राशन समय पर और ठीक से नहीं मिल रहा। हम देहात छोड़कर दिल्ली ये सोचकर आए थे कि बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे लेकिन ये कैसे मुमकिन होगा?

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बजट के पेश होने के साथ ही जहां एक तरफ़ ख़ूब गुणगान शुरू हो गया था। वहीं अब बजट को बारीकी से देखने वालों के मुताबिक़ बेशक ये एक बहस का मुद्दा है कि बजट किसे ध्यान में रखकर बनाया गया।

''आम आदमी से रोटी, शिक्षा और स्वास्थ्य दूर कर दिया''

इस प्रदर्शन में शामिल होने वाले के.एम तिवारी ने कहा कि, ''ये सरकार पूंजीपतियों की सरकार है, इस साल के बजट को लेकर कहा गया कि मध्यम वर्ग को ध्यान में रख कर बनाया गया लेकिन ये नहीं बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में कितना प्रावधान रखा, पहले कितना था अब कितना किया है? उसमें कटौती की है, आपने कहा मध्यम वर्ग को ध्यान में रखा है। ये बताइए कि मध्यम वर्ग के बच्चे पढ़-लिख कर तैयार होते हैं जिनकी संख्या लाखों में होती है। उन लोगों के रोज़गार के सृजन कौन सा आधार आपने तैयार किया? सरकारी क्षेत्र पूरी तरह ख़त्म कर रहे हो, केंद्र और राज्यों में जो पद खाली पड़े हैं उनपर कोई भर्ती नहीं हो रही है। तो ये कैसे मध्यम वर्ग के लिए हुआ? मिड्ल क्लास को कपड़ा चाहिए, मिड्ल क्लास को रोटी चाहिए, मिड्ल क्लास को शिक्षा चाहिए, मिड्ल क्लास को सब्सिडी चाहिए जिस पर आपने बड़े पैमाने पर कटौती कर दी है। आपने कहा कि टैक्स में कटौती की है लेकिन वो हिंदुस्तान के बड़े-बड़े पूंजीपतियों का किया है। दाल, चावल, दवाइयों पर GST बढ़ा दी। आम आदमी को क्या चाहिए रोटी,स्वास्थ्य और शिक्षा और इस बजट में सरकार ने इन तीनों को ही आम आदमी से दूर कर दिया''।

वे आगे कहते हैं, ''मनरेगा में बताओ 100 दिन का काम था, काम ख़त्म नहीं किया, लेकिन पैसा ही नहीं देंगे। पैसा 63 दिन का देंगे तो 100 दिन का काम कहां मिलेगा? इससे हो क्या रहा है आप देखिए कि मनरेगा में 100 दिन का काम न मिलने से एक लाख, डेढ़ लाख से ऊपर लोगों ने आत्महत्या की। अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में जिसमें मनरेगा भी आता है। ये इन्हीं की रिपोर्ट है।''

''ग्रामीण भारत और मेहनतकश बजट से ग़ायब''

अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन से जुड़े विक्रम सिंह कहते हैं, ''सरकार ने जो अभी बजट पेश किया है उसमें आम इंसान विशेष तौर पर ग्रामीण भारत और मेहनतकश आते हैं वो पूरी तरह से ग़ायब हैं। ऐसा लगता है कि जब वित्त मंत्री बजट बना रही थीं तो उनके ज़ेहन में शहर और कॉर्पोरेट था। भारत की आम जनता जिसकी सबसे बड़ी ज़रूरत काम, फूड सिक्योरिटी, हेल्थ और शिक्षा है वह पूरी तरह से ग़ायब है। वित्त मंत्री की विशेषता है कि वो हर बजट में कुछ टॉकिंग पॉइंट देती हैं मीडिया और अपने कैडर को। और पहले दिन वही मीडिया चलाता है, लेकिन बाद में जब रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन और पीपल ऑर्गनाइजेशन अपने क्रिटिक के साथ आती है तब पता चलता है कि जो गुब्बारा था उसमें आम जनता के लिए कुछ नहीं है। इस साल भी यही हुआ, हमें लगा चुनावी साल है। शायद जनता को दिखाने के लिए कुछ चीज़ें पेश करते लेकिन इस बार तो वो बनावटी दिखावा भी नहीं हो पाया। पिछले एक साल से हम चर्चा कर रहे हैं कि भारत में संपूर्ण अन्न होने के बावजूद कुपोषण है। हंगर इंडेक्स में हम बिल्कुल पिछड़ गए हैं। ऐसा कभी सोचा नहीं था। हम सोच रहे थे कि फूड सिक्योरिटी के लिए कुछ बेहतर करेंगे लेकिन आपने तो उल्टा बजट कम कर दिया''।

ये बिल्कुल वाजिब बात है कि बजट पेश होने से पहले लोग जहां रसोई गैस, राशन, समेत शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र से उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन क्या हासिल हुआ ये अब तक तस्वीर साफ़ होती नहीं दिखती और बात ग्रामीण भारत की करें तो वहां परेशानी और बढ़ती दिख रही है।

जिस वक़्त जंतर-मंतर पर सीपीआई (एम) का ये प्रदर्शन चल रहा उसके एक तरफ मनरेगा मजदूर 100 दिन के धरने पर बैठे थे और दूसरी तरफ पुरानी पेंशन लागू करने की मांग के लिए धरना दिया जा रहा था। कुछ ही घंटों के दौरान वहां कई और प्रदर्शन होते रहे ये सब देखकर यही सवाल उठता है कि अगर सरकार ने बजट में इन लोगों को जगह दी थी तो संसद से महज चंद दूरी पर ये लोग क्यों धरने पर बैठे हैं? 

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