क्यों सेंट्रल विस्टा रिडिजज़ाइन प्रोजेक्ट का आधार कमज़ोर है
एक फ़ासीवादी नेता हमेशा अपनी महिमा/आभा की छाप छोड़ना चाहता है; एक पदचिह्न जो न केवल राजनीति तक सीमित है, बल्कि एक व्यापक स्पेक्ट्रम तक फैला हुआ है जिसमें कला और वास्तुकला दोनों शामिल है। यदि वोल्कशेल का निर्माण हिटलर का विचार था, तो इसका डिजाइन और निर्माण अल्बर्ट स्पीयर ने किया था। इसी तरह, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनके प्रमुख वास्तुकार बिमल पटेल ने दिल्ली में सेंतर्ल विस्टा के पुनर्विकास के मामले में एक नए संसद भवन का निर्माण का प्रस्ताव उसी समान विचार के तहत किया है।
यदि देश एक महामारी से लड़ रहा है और उसे दवा, जांच किट सहित अन्य बुनियादी उपकरणों पर खर्च करने के लिए संसाधनों की सख़्त ज़रूरत है, तो, यह सरकार का कर्तव्य है कि वह ऐसे उपकरणों की खरीद पर संसाधनों को ख़र्च करे। इसके बजाय, भारत सरकार नए महल खड़े करने में अधिक दिलचस्पी ले रही है और ऐसी इमारतों के निर्माण के लिए सार्वजनिक धन को बर्बाद करने पर तुली हुई है। दिल्ली में सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास पर 20,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी। आर्किटेक्ट इस बात पर थोड़ी आ;एजी राय रखते हैं कि इस की लागत आखिर कितनी होगी, और उनका कहना है कि सरकार वास्तव में इस परियोजना पर लगभग 30,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी।
कई आर्किटेक्ट इस तरह के समानांतर (हिटलर-स्पीयर और मोदी-पटेल के बीच) को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना मानते हैं और वे इस वर्तमान प्रस्ताव को मोदी, सचिवालय में बाबुओं और बिमल पटेल द्वारा लादा हुआ एक बोझा मानते हैं। हालाँकि, देश के विभिन्न हिस्सों में बिमल पटेल द्वारा की गई प्रस्तुतियों में नई संसद के डिजाइन में बदलाव का स्पष्ट कारण बताया – इसे गोल से त्रिकोणीय बनाना ताकि अधिक सांसदों और बाबुओं को इसके भीतर समायोजित किया जा सके। पटेल ने कहा कि नई संसद का डिजाइन हिंदू पौराणिक कथाओं के श्री यंत्र से मेल खाता है; त्रिकोण त्रिमूर्तिस्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व करता है। वास्तव में, यह एक बड़े हिंदुत्व सर्वोचता की परियोजना का हिस्सा है, जहां डिजाइन धार्मिक प्रतीकों का आधार है।
सेंट्रल विस्टा में क्या होने वाला है?
सेंट्रल विस्टा का इलाक़ा राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक फैला हुआ है। इसमें नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, पार्लियामेंट बिल्डिंग, और राजपथ के साथ-साथ केंद्र सरकार का सचिवालय और इंडिया गेट सर्कल तक का रास्ता है और इसके चारों तरफ की जमीन के सभी प्लॉट भी इसमें शामिल हैं। प्रस्ताव है लेकिन इसकी कोई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) नहीं है, जो प्रस्ताव सेंट्रल विस्टा का पुनर्विकास करने का इरादा रखता है, जिसमें रेड क्रॉस रोड और रायसीना रोड के त्रिकोणीय चौराहे पर नए संसद भवन का निर्माण करना शामिल है। इस योजना में शास्त्री भवन और रेल भवन मौजूदा सचिवालय भवन, साथ ही राष्ट्रीय संग्रहालय, विदेश मंत्रालय भवन, उपराष्ट्रपति का निवास और राजपथ के साथ अन्य सभी भवनों का विध्वंस शामिल है, जिसमें अब एकमात्र अपवाद राष्ट्रीय अभिलेखागार है।
नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जैसी पुरानी इमारतों का उपयोग संग्रहालयों के लिए खुले स्थान के रूप में किया जाएगा। साउथ ब्लॉक से सटे प्रधानमंत्री और उनके निवास के लिए एक नए कार्यालय का निर्माण किया जाएगा। भूमिगत सुरंग के माध्यम से पीएम का घर उनके नए कार्यालय और नई संसद से जुड़ा होगा। यह कहा जाता है कि यह स्थान परमाणु-हमला प्रतिरोधी होगा।
दिलचस्प रूप से विवरण अभी केवल एक स्केच हैं, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में वास्तुकार बिमल पटेल द्वारा प्रस्तुत की गई प्रस्तुतियों के माध्यम से हासिल किया गया है और उनके अनुसार, यह हमेशा विकसित होने वाली परियोजना है। संसद या जनता के सामने इस मामले में किसी भी तरह की ड्राइंग को प्रदर्शित नहीं किया गया है, यह देखते हुए कि लगभग 25,00,000 वर्ग मीटर का निर्माण होगा लेकिन फिर भी कोई सुगबुगाहट नहीं है।
इस परियोजना के बारे में सरकार द्वारा दिए गए कुछ कारण
इस फैंसले के बुनियादी कारणों में से एक कारण वह है जिसके बारे में सरकार खुले तौर बात नहीं करती है, लेकिन वह उससे पूरी तरह से आश्वस्त है, कि मौजूदा संसद भवन शापित हैऔर इसके परिणामस्वरूप, एक के बाद एक आने वाले प्रधानमंत्री और अन्य नेता अधिक समय तक जीवित नहीं रहते हैं। इसलिए, एक नई इमारत की दरकार है, जो गोलाकार होने के बजाय आकार में त्रिकोणीय हो, का निर्माण तुरंत किया जाना चाहिए। यह विचार अश्विनी कुमार बंसल द्वारा पेश किया गया है, जो एक वास्तु विशेषज्ञ हैं, जिन्हें वर्ष 2002 में लोकसभा के तत्कालीन स्पीकर मनोहर जोशी द्वारा सम्मनित किया गया था। कपिल कोमिरेड्डी के द्वारा लिखे लेख के अनुसार, जिसका शीर्षक था, 'मोदी का भयावह दिल्ली का सपना', बंसल ने संसद भवन का सर्वेक्षण किया था और कहा "भारत को बचाने" के उपायों की जरूरत है और इसलिए उन्हौने उक्त सिफारिश की थी।
उन्होंने स्पीकर को अपने एक गोपनीय पत्र में घोषित किया कि "यह एक गोलाकार इमारत है, जो देश की राजनीति को प्रभावित करती है। बंसल के मुताबिक, यह एक विदेशी सनक और पसंद की वास्तुकला का एक अजीब टुकड़ा है। इसके निर्माण में हिंदू, इस्लामी, या ईसाई परंपराओं की कोई निष्ठा नहीं मिलती है। और इसका गोल आकार, शून्य के विचार का प्रतीक है, जो इसे एक रहस्यमय शक्ति बनाता है और उसे तबाह कर देता है जो भी इसके संपर्क में आता है।
सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास के अन्य कारण हैं जो चीनी के घोल से लेपे हुए हैं और जिन्हे लोगों के सामने पेश किया जा रहा हैं। उनमें से प्रमुख यह है कि सांसदों (डी-लिमिटेशन के बाद) की बढ़ती संख्या और सचिवालय कर्मचारियों को समायोजित करने के लिए जगह काफी छोटी होगी, इसलिए एक बड़ी जगह की आवश्यकता है। यह भी कहा गया है कि पुरानी इमारतें भूकंपीय प्रामाणिक नहीं हैं और इसलिए भूकंप आने पर देश अपने नेताओं के मलबे के नीचे दब कर मरने का जोखिम नहीं उठा सकता है।
प्रस्तावित सेंट्रल विस्टा परियोजना से जुड़े मुख्य मुद्दे ग़लत हैं
आइए अब हम एक-एक करके इन मुद्दों की जाँच करते हैं। इसे प्रगतिविरोध या अंधविश्वास से जोड़ने का सबसे महत्वपूर्ण तर्क का कोई सर्वमान्य आधार नहीं है और इसे किसी भी तर्क के आधार पर नहीं माना जा सकता है। यद्द्पि यह कहना कि संसद की इमारतें और अन्य इमारतें भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं हैं, सच बात नहीं है। वास्तव में, सेंट्रल विस्टा का निर्माण शुरू होने से पहले, प्रमुख वास्तुकारों हर्बर्ट बेकर और एडविन लुटियंस के बीच एक दिलचस्प बहस हुई थी। एक इतिहासकार, स्वप्ना लेडल के अनुसार, अंग्रेजों ने अपनी शीतकालीन राजधानी दिल्ली स्थानांतरित करने से पहले, कलकत्ता और शिमला में अंग्रेजी वास्तुकला को पीछे छोड़ दिया था।
वे इसका कारण बताती है। उनके अनुसार, ब्रिटिश भारतीय लोकाचार के साथ तालमेल बिठाना चाहते थे। क्यों? "क्योंकि अंग्रेज अपना शासन जारी रखना चाहते थे, और बढ़ते भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतिरोध के सामने यह प्रदर्शित करना चाहते थे कि वे जो भी निर्माण कर रहे हैं, वह भारतीयता से अलग नहीं है! इसलिए, उन्होंने माना कि उनकी नई राजधानी की संरचनाओं का निर्माण भारतीय लोकाचार के मुताबिक किया जाना चाहिए। इसलिए इसमें गुंबद, छतरी, झरोखे और लाल रेत के पत्थर का इस्तेमाल किया गया है।”
ई.बी. हेवेल, तत्कालीन ब्रिटिश कला योजनाकार को उद्धृत करते हुए उन्होने कहा कि सेंट्रल विस्टा की तुलना अकबर के सुल्लाह-ए-कुल से की। उन्हौने उल्लेख किया कि यह सामजस्यपूर्ण लोकाचार था जिसमें सेंट्रल विस्टा और तीन महत्वपूर्ण इमारतों को डिजाइन किया गया था। ब्रिटिश ने वर्ष 1930 में संसद भवन की तरफ रुख किया था और देश पर 17 वर्षों तक शासन किया, जबकि हमारी अपनी चुनी हुई सरकारों ने 70 वर्षों तक देश पर शासन किया है। इसलिए, यह कहना गलत है कि सीवी और इमारतें औपनिवेशिक लिबास पहने हैं और हमें इनसे छुटकारा पा लेना चाहिए। इन सबसे ऊपर, ब्रिटिश राज के दौरान भी, इन इमारतों का निर्माण भारतीय लोगों के खून और पसीने से किया गया था, इसलिए यह संसद भवन अधिक भारतीय हैं।
परियोजना के निर्माण के लिए जो दूसरा कारण दिया गया है वह यह कि परिसीमन के बाद सांसदों की संख्या में काफी वृद्धि होगी और वर्तमान सदन उन्हें समायोजित नहीं कर पाएगा। यह एक और दोषपूर्ण कथन है। वर्तमान में, सांसद 1.5 गुना अधिक स्थान ब्रिटिश संसद में कबजाए हुए हैं जो कि संसद भवन में प्रति व्यक्ति उपलब्ध स्थान है। सेंटरक विस्टा का विरोध करने वाले वास्तुकारों ने मौजूदा संसद भवन के भीतर सांसदों की एक बड़ी संख्या को समायोजित करने के लिए बैठने की विभिन्न योजनाओं का हवाला दिया है।
सरकार द्वारा तर्क दिया गया कि मौजूदा इमारतें सांसदों के लिए असुरक्षित हैं और जिसका अपने आप में कोई आधार नहीं है। आज तक तीन महत्वपूर्ण इमारतों की भूकंपीय भेद्यता को मापने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है। सरकार के तर्क से अगर नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक और संसद भवन असुरक्षित हैं, तो क्या उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि सचिवालय के कर्मचारियों और सांसदों को स्थानांतरित करने के बाद भी ऐसे लोग होंगे जो इन इमारतों में काम करेंगे? क्या सरकार के सामने उनकी जिंदगी मायने नहीं रखती है? इसके बजाय, जो जरूरी बात है, वह यह कि भवन का जायजा लेना और उसका उचित मूल्यांकन करना ताकि उसका सुदृढीकरण किया जा सके।
अन्य बड़े मुद्दे
सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास का प्रस्ताव एक बड़े घोटाले की तरह लगता है। कोई डीपीआर नहीं है, जिस पर विभिन्न दलों द्वारा राय दी जा सके। इसके अलावा, प्रक्रिया बहुत अपारदर्शी है। लोगों का शायद ही इसमें कोई प्रतिनिधित्व हो। प्रस्ताव में पर्यावरण कानूनों की पूर्ण अवहेलना की जा रही है। मूल भूमि कानूनों का भी उल्लंघन किया जा रहा है और परियोजना 1961 और 2021 के दिल्ली मास्टर प्लान के विपरीत है।
सेंट्रल विस्टा को पुन: विकसित करने के प्रस्तावों को साझा नहीं किया गया है। चूंकि परियोजना के लिए कोई डीपीआर नहीं है इसलिए इसमें भाग लेने वाले वास्तुकारों को मूल के संक्षिप्त हिस्से के बारे में ही सूचित किया गया है, और इसलिए, प्रत्येक वास्तुकार ने बहुत ही विविध प्रस्ताव दिए है: उनमें से एक जिसे चुना गया वह लगभग यादृच्छिक या बेतरतीब अभ्यास से चुना गया है। सरकारी कार्यालयों के स्थान की सटीक आवश्यकताओं का कोई पूर्ववर्ती अध्ययन पेश नहीं किया गया है। इसका मतलब है कि परियोजना अभी भी विकसित हो रही है, जैसा कि सेंटरल विस्टा परियोजना को निष्पादित करने वाले वास्तुकार ने कहा है।
इसमें लगने वाली लागत का भी कोई विश्लेषण नहीं हुआ है। अनुबंध या ठेका देने का तरीका भी अपारदर्शी है। निम्नलिखित सिद्धांत गुणवत्ता और लागत-आधारित चयन (QCBS) है। इस पद्धति का उपयोग माल की खरीद के लिए किया जाता है और इसे किसी परियोजना के लिए लागू नहीं किया जा सकता है। एक परियोजना में, सबसे पहले तुलनात्मक डिजाइनों का विश्लेषण किया जाना चाहिए, और एक बड़ी खुली सार्वजनिक प्रतियोगिता को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से और एक प्रतिष्ठित जूरी के साथ प्रशासित किया जाना चाहिए, जैसा कि अतीत में अन्य इमारतों के लिए किया गया था। इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है।
एक और बड़ा दोष दिल्ली शहर के मास्टर प्लान का उल्लंघन है। 1961 और 2021 के मास्टर प्लान इस भूमि के उपयोग को इस प्रकार मानता है: कि इसका उपयोग बड़े पैमाने पर सामाजिक-सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा, इसलिए यहाँ सार्वजनिक भवन है। अन्य भाग जो खुले रखे गए हैं उन्हे खुले और हरे स्थानों के रूप में संरक्षित किया जाना है। नए संसद निर्माण का प्रस्ताव एक 'नामित जिला पार्क' है। पार्क के लिए भूमि का उपयोग नहीं बदला जा सकता है। यहां तक कि अन्य स्थानों के लिए भूमि के उपयोग में बदलाव के लिए, एक प्रक्रिया है जिसे अपनाया जाना चाहिए। जिस जल्दबाजी के साथ सरकार ने इस मामले को दबाने की कोशिश की है, उसके चलते मामला मुकदमेबाजी में चला गया है।
सरकार ने जो चाल चली वह यह है कि सेंट्रल विस्टा परियोजना को एक परियोजना के रूप में प्रस्तावित न करके उसे टुकड़ों में पेश किया हैं। उदाहरण के लिए, पर्यावरण मंजूरी केवल संसद भवन के लिए मांगी जा रही है, हालांकि यह एक ही समग्र परियोजना का हिस्सा है। ऐसा करने का एक कारण यह भी है कि यह पर्यावरण पर संचयी प्रभाव को कम करके आँकता है। दृष्टिकोण गलत है; क्योंकि पर्यावरणीय प्रभाव, परिवहन और विरासत पर सार्वजनिक तौर पर कोई प्रारंभिक अध्ययन नहीं किया गया है।
सबसे महत्वपूर्ण उल्लंघनों में से एक, शहरी लोगों के लिए बनी खुली जगहों पर सरकार का कब्ज़ा है। क्योंकि ये ऐसे स्थान हैं जिनका उपयोग आम लोग विभिन्न गतिविधियों के लिए करते हैं।
सरकार को हमेशा यह एहसास रहना चाहिए कि वह उस संपत्ति का संरक्षक है जो लोगों के स्वामित्व में है जैसा कि भारत के संविधान द्वारा बड़े पैमाने पर वर्णित है। कस्टोडियन को आम लोगों के लिए खुले स्थान का उल्लंघन करने का कोई अधिकार नहीं है जो अन्यथा समाज के समग्र स्वास्थ्य और राजनीति के लिए हानिकारक होगा।
लेखक शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
Why the Central Vista Redesign Project is on Shaky Ground Itself
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