चंदौली ग्राउंड रिपोर्टः मछली ठेकेदारों-प्रशासन का गठजोड़, धान के कटोरे में सूखे से तबाही
ब्लैक राइस की खेती से दुनिया भर में सुर्खियां बटोरने वाले उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के किसानों को मछली ठेकेदारों ने भुखमरी की कगार पर खड़ा कर दिया है। चंदौली में चार बड़े बांधों और 73 बंधियों के सहारे मुख्य रूप से धान और गेहूं की खेती होती रही है। मामूली सा राजस्व जुटाने के लिए योगी सरकार ने इन बांध और बंधियों में मछली मारने के लिए ठेके पर दे दिया है। नतीजा, धान की रोपाई की बात तो दूर, बड़ी संख्या में किसान बेहन तक नहीं डाल सके। चंदौली के बांधों से जुड़ी नहरें तब चालू की गईं जब किसान त्राहि-त्राहि करने लगे। तालाबों का पानी सूखने की वजह से जब पशुओं के लिए पीने के पानी का संकट पैदा होने लगा तब नौगढ़ बांध में रिजर्व में रखे गए पानी छोड़ा जा सका। चंद्रप्रभा, मूसाखांड और तलीफशाह बियर को मछली ठेकेदारों ने तो मई-जून महीने में ही खाली कर दिया था।
चंदौली जिले के नौगढ़ इलाके के बांधों का पानी बिहार भी जाता है। नौगढ़ बांध का पानी पहले छानपातर जल-प्रपात से होते हुए मूसाखांड बांध में पहुंचता है। बाद में लतीफशाह बियर से निकली नहरों से चंदौली और पश्चिमी बिहार के जिलों में धान-गेहूं की सिंचाई होती है। उधर, चंद्रप्रभा नदी बांध के पानी से चंदौली और मिर्जापुर के खेत सींचे जाते हैं। धान के कटोरे का रुतबा हासिल करने वाले चंदौली जिले में मछली माफिया और सिंचाई महकमे के अफसरों से तगड़े गठजोड़ के चलते हर साल बांध-बंधियों का पानी मई-जून महीने में ही बहा दिया जाता है। इस बार मानसून ने दगा दे दिया। धान की रोपाई तो दूर, लाखों किसानों के नर्सरी ही सूख गई। चंद्रप्रभा बांध में नहरें चलाने लायक पानी ही नहीं बचा है।
अखिल भारतीय किसान सभा के चंदौली के अध्यक्ष परमानंद सिंह मौर्य कहते हैं, "समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बिहार में सूखे के चलते हाहाकार मचा है। पिछले दो-तीन दिनों से आसमान में बादल अठखेलियां तो कर रहे हैं, लेकिन 23 जुलाई तक बारिश हुई ही नहीं। अब तो माड़-भात पर भी संकट मंडरा रहा है। पहले बांध के पानी से धान की रोपाई हो जाया करती थी। अबकी बारिश नहीं हुई तो मछली ठेकेदार और सिंचाई विभाग के अफसरों के चेहरों का नकाब उतर गया। पिछले 28 दिनों से यहां एक बूंद बारिश नहीं हुई है। सावन में खेतों में धूल उड़ रही है। मानसून की बेरुखी के चलते किसान सूखे की मार झेलने को मजबूर हैं। पंपसेट के पानी से जिन किसानों ने धान की नर्सरी लगाई थी वो पीली पड़कर सूख गई। जिन किसानों ने पंपसेट के सहारे धान की रोपाई कर भी दी थी उन खेतों में दरारें पड़ गई हैं। बहुत से किसानों के ढैंचे की फसल खेतों में खड़ी है और उन्हें अभी तक पलटा नहीं जा सका है।"
बारिश न होन से रोपाई नहीं हो रही
"दशकों पहले चंदौली, सोनभद्र और मिर्जापुर जिले के बांधों का ठेका नहीं होता था। तब आदिवासी और गरीब तबके के लोग इन्हीं बांधों की मछलियां बेचकर अपनी आजीविका चलाया करते थे। अब मछली के ठेकेदार उन्हें मछली मारने नहीं देते। अगर कोई आदिवासी बांध-बंधियों के नजदीक दिख भी जाता है तो उनके साथ मारपीट और दुर्व्यवहार किया जाता है। मछली के ठेकेदारों की गुंडई का आलम यह है कि वो अपने हिसाब से बांधों का पानी बहाते हैं। जब वो चाहते हैं तो पानी रोक देते हैं और जब चाहते हैं बांधों को खाली कर देते हैं। किसानों की तबाही की दर्द भरी यह दास्ता न सरकार तक पहुंच पा रही है और न ही प्रशासनिक अफसरों के कानों तक।"
मौर्य यह भी कहते हैं, "पहले 15 जुलाई तक चंदौली में धान की रोपाई हो जाया करती थी, लेकिन इस बार अभी तक सिर्फ 10 से 15 फीसदी धान रोपा जा सका है। जिन खेतों में हरियाली दिख रही है वह बांध नहीं, बिजली और डीजल पंप की बदौलत। रोपे गए धान को बचाने की जद्दोजहद किसानों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है। लगता है कि खेती पर ही निर्भर किसानों के सामने इस साल कहीं माड़-भात के लाले न पड़ जाए।"
बादल आए, पर बरसे नहीं
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 20 जुलाई तक चंदौली और बनारस समेत समूचे पूर्वांचल में एक बूंद बारिश नहीं हुई। 21 और 22 जुलाई को कुछ इलाकों में बारिश तो हुई, लेकिन चंदौली में 23 जुलाई तक बारिश की एक बूंद भी आसमान से नहीं टपकी। मिर्जापुर, सोनभद्र, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, देवरिया से लगायत गोरखपुर तक किसान सूखे की मार झेल रहे हैं। प्रदेश सरकार ने अभी तक इन जिलों को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है। चंदौली और बनारस में जुलाई महीने में करीब 307 मिली मीटर औसत बारिश की दरकार होती है। चंदौली से सटे बिहार के रोहतास, कैमूर और बक्सर में भी सूखे जैसे हालात हैं। हालांकि बिहार सरकार किसानों को डीजल पर किसानों को अनुदान दे रही है, ताकि वो अपनी फसलों को बचा सकें। चंदौली से सटे बिहार के जिलों में भी धान की बंपर पैदावार होती है।
चंदौली जिले में बांध और बंधियों में मछली मारने का ठेका दिए जाने से यूपी सरकार को करीब दो करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। सरकारी नुकसान देखें तो सिर्फ बिजली पर ही सरकार को अरबों रुपये अनुदान न्योछावर करना पड़ता है। सूखे की स्थिति में सरकार का घाटा लगातार बढ़ता चला जाता है। चंदौली के बांधों का पानी मई-जून महीने में बहाए जाने और मिर्जापुर व सोनभद्र के बांधों के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए प्रतिबंधित किए जाने की वजह से हालात भयावह हो गए हैं।
खाली हाथ बैठे हैं किसान
आईपीएफ की राज्य कार्य समिति के सदस्य अजय राय ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "सिर्फ मानसून की बेरुखी ही नहीं, मछली के ठेकेदार और सिंचाई विभाग के अफसरों के गठजोड़ के चलते किसानों की धान, गन्ना और चारे की फसलें सूख रही हैं। चंदौली जिले के किसान बांधों के भरोसे ही धान की खेती करते हैं। हर साल खेती इसलिए भी पिछड़ जाती है, क्योंकि बांधों का पानी ठेकेदार गर्मी के दिनों में मछली पकड़ने के लिए बहा चुके होते हैं। लाचारी में किसानों को डीजल पंपसेट अथवा नलकूप के सहारे नर्सरी लगानी पड़ती है।
पानी खींचने के लिए अगर पांच हार्स पावर की बिजली की मोटर बीस घंटे चलाई जाती है तो हर महीने यूपी सरकार को करीब 18000 रुपये की चपत लगती है। यह धनराशि बतौर अनुदान सरकार को खर्च करना पड़ता है। पांच हार्स पावर का नलकूप चलाने पर सरकार के खाते में सिर्फ 1200 रुपये ही आते हैं, जबकि बिजली करीब 20000 रुपये की खर्च हो जाया करती है। डीजल पंपसेट के धान की रोपाई करने वाले किसानों का हाल क्या होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है। अगर चंदौली, सोनभद्र और मिर्जापुर के बांधों में पानी बचा रहता तो किसानों को न ज्यादा नलकूप चलाना पड़ता और न ही सरकार को ज्यादा अनुदानित बिजली खर्च करनी पड़ती।"
नलकूपों के सहारे रोपी गई धान की फसलें सूख रही हैं
जनसरोकारों के लिए संघर्ष करने वाले अजय राय सवाल उठाते हुए कहते हैं, "यह सरकार की कैसी नीति-रीति है जो मछली मारने के ठेके से मिलने वाली कुछ ही धनराशि के बदले किसानों को बिजली अनुदान के रूप में अपना अरबों रुपये पानी की तरह बहा देती है। चंदौली जिले के किसान लंबे समय से चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र के बांध-बंधियों में मछली मारने के ठेके को रद करने की मांग उठा रहे हैं। नौकरशाही है कि वह अपनी जेबें भरने के लिए किसानों की चीख ही नहीं सुन पा रही है।"
गौर करें तो अजय राय की बातों में दम नजर आता है। चंदौली जिले में भैसौड़ा, औरवाटांड़, मूसाखाड़ और चंद्रप्रभा बांध, लतीफशाह बियर हैं। भैसौड़ा बांध के पानी का सप्लाई नौगढ़ इलाके में पीने के लिए की जाती है। बाकी चार बांधों और 73 बंधियों से फसलों की सिंचाई होती है। सिर्फ औरवाटांड बांध को छोड़ दिया जाए तो किसी में सिंचाई का पानी नहीं बचा है। 12 दिनों से औरवांटाड़ के पानी से ही लेफ्ट और राइट कर्मनाशा नहरें चलाई जा रही हैं, लेकिन पानी के हाहाकार मचने की वजह से नहरें रफ्तार नहीं पकड़ पा रही हैं। इनका पानी टेल तक नहीं पहुंच पा रहा है।
रफ्तार नहीं पकड़ पा रहीं नहरें
चकिया इलाके के गरला गांव के किसान शोभू यादव और बिहारी को मानसून के आने-जाने का अनुभव है, लेकिन अपनी जिंदगी में पहले कभी भी बारिश के मौसम के बारे में इतने भ्रमित नहीं हुए हैं। इनके खेत सूख पड़े हैं। फसलों की सिंचाई के लिए कुछ साल पहले कुलावा लगाया गया था, जो सिंचाई विभाग के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। शोभू कहते हैं, "बांध-बंधियां सूखी पड़ी हैं। बारिश की एक भी बूंद आसमान से नहीं गिरी है। आषाढ़ (मध्य जून से मध्य जुलाई तक) और सावन ( 22 जुलाई 2022 तक) ऐसे महीने होते थे जब झमाझम बारिश हुआ करती थी।
चंदौली के चकिया इलाके में सूखे जैसे हालात
पूर्वांचल के किसान खेतों के ऊपर मंडराते काले बादलों को देखकर खुश हुआ करते थे। अबकी 20 जुलाई तक कड़ाके की धूप रही। 21 जुलाई को बादल आए भी तो कई किसानों की जान (आसमानी बिजली से) लेकर चले गए। कई मवेशी भी मारे गए। आसमान में बादल तो हैं मगर बारिश का कहीं अता-पता ही नहीं है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो हमारे जैसे हजारों किसान बर्बाद हो जाएंगे, क्योंकि अभी तक धान की फसल रोपी नहीं जा सकेगी। सबमर्सिबल पंप और हैंडपंप भी धोखा दे रहे हैं। पीने का पानी भी पाताल में चला गया है। बिजली की आपूर्ति (ट्यूबवेल चलाने के लिए) का समय भी तय नहीं है। हमारी सारी उम्मीदें बारिश पर टिकी हैं। अगर बारिश में और देरी हुई, तो हम जैसे किसानों की बर्बादी तय है।"
चकिया के गरला गांव के किसान
हासिल जानकारी के मुताबिक बांधों से जुड़ी चंदौली की नहरों में पानी 12 जुलाई को छोड़ा गया। इससे एक दिन पहले 11 जुलाई को अचानक नौगढ़ बांध का पानी सिंचाई के लिए छोड़ा गया तो बिहार के सैलानियों के लिए आफत का सबब बन गया। एक साथ दो हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया। नौगढ़ बांध को औरवाटांड जलप्रपात के नाम से भी जाना जाता है। इसी बांध का पानी मूसाखाड़ बांध में पहुंचता है। औरवाटांड़ जलप्रपात के पास घनघोर जंगल है। कुछ ही दूरी पर बिहार का करकटगढ़ जलप्रपात है। जो सैलानी जंगल के रास्ते से औरवाटांड़ की तरफ आ रहे थे वो पानी से घिर गए। रेस्क्यू टीम के अथक प्रयास से सैलानियों की जान बची।
मानसूनी बारिश न होने के कारण कर्मनाशा सिस्टम की नहरों के संचालन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। नौगढ़ और मूसाखाड़ बांधों में सिर्फ 20-22 दिन का पानी ही बचा है। धान की रोपाई के लिए बांधों का पानी लेफ्ट और राइट कर्मनाशा की नहरें चलाई जा रही हैं। बांधों के पानी पर निर्भर कौड़िहार, बनभीषमपुर, भूसी पूर्वी, भूसी पश्चिमी लिफ्ट कैनाल को भी चलाया जा रहा है। कर्मनाशा सिस्टम की नहरों को पूरी क्षमता के साथ चलाने पर हर रोज करीब 70 मिलियन घन फीट पानी खर्च हो रहा है। मानसून ने किसानों का साथ नहीं दिया तो धान के कटोरे में खेती पर बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। चंद्रप्रभा प्रखंड के अधिशासी अभियंता सर्वेश चंद्र सिन्हा के मुताबिक बांधों में मौजूद पानी से खेतों की रोपाई और सिंचाई कुछ दिन ही हो सकती है। धान की खेती तो बारिश होने पर ही संभव है। मानसून तो सक्रिय है। अगर दो-चार दिन लगातार बारिश हो जाए तो बांध भर जाएंगे और किसानों की धान की फसलें बच जाएंगीं।
चकिया का लतीफशाह बांधः सावन में भर जाता था लबालब, अबकी सूखा हुआ है
आंकड़ों के मुताबिक जून महीने में चंदौली और बनारस में 120 से 144 मिली मीटर बारिश हुई थी। हालांकि उस समय सिर्फ 87.60 मिली मीटर बारिश की दरकार थी। जुलाई का मानक 307.30 मिली मीटर का है, लेकिन 22 जुलाई तक चंदौली में एक बूंद बारिश नहीं हो सकी है। हालांकि बनारस के कुछ इलाकों में छिटपुट बरसात जरूर हुई है, जिससे मक्का, बाजरा, मूंग, लोबिया और अरहर की बुआई तो हो सकती है, लेकिन धान की खेती संभव नहीं है। जौनपुर, गाजीपुर, भदोही, मिर्जापुर में भी पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। बारिश के इंतजार में पूर्वांचल के किसान पिछले 28 दिनों से अपना सीना ताने हुए हैं और आसमान में आंख गड़ाए हुए हैं। पंप कैनाल की नहरों और नलकूपों से धान की सिर्फ 25 से 30 फीसदी रोपाई हो सकी है। बहुत से किसानों ने अभी तक धान की नर्सरी तक नहीं डाली है।
पचवनिया के किसान शेखर चौहान ने तो अब रोपाई की उम्मीद ही छोड़ दी है। इनके गांव से गुजरने वाली नहर में पानी तो है, लेकिन कुलाबा चलने की स्थिति नहीं है। वह कहते हैं, "नौगढ़ इलाके के बांधों में इतना पानी नहीं बचा है कि धान की खेती बच पाएगी। हालात सूखे से भी बदतर हैं और सरकार ने अभी तक चंदौली को सूखाग्रस्त इलाका घोषित नहीं किया है। जब खेत में फसल ही नहीं बोई जा सकी है तो मुआवजा किस बात के लिए मिलेगा। चंदौली के अधिसंख्य किसान बांध और मानसून पर ही निर्भर हैं। इस साल का नुकसान दिल को दहला देने वाला है। नहरों में पानी देर से छोड़े जाने के कारण बहुत से किसानों मध्य जुलाई में धान की नर्सरी डाली। रोपाई कब होगी, कहा नहीं जा सकता? कुछ किसानों ने जून महीने में बेहन डाला था वो सूख गया। अगर 25 जून से ही नहरों में बांधों का पानी छोड़ा गया होता तो किसानों की बर्बादी की नौबत कतई नहीं आती।"
नहरों में पानी छोड़े जाने के बावजूद पचवनिया माइनर में पानी नहीं
रद होना चाहिए मछली का ठेका
अखिल भारतीय किसान सभा के राजेंद्र यादव और अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के मंत्री राम दुलार कहते हैं, "मछली का ठेका रद होना चाहिए, क्योंकि ठेकेदार अपने हिसाब से पानी बहाते हैं। जब तक मछली माफिया और नौकरशाही का गठजोड़ नहीं टूटेगा, तब तक चंदौली, मिर्जापुर और पश्चिमी बिहार के जिलों में तबाही थमने वाली नहीं है। ऐसे में बांध-बंधियों का ठेका रद होना चाहिए।"
पचवनियां गांव में नहर के किनारे चाय-पकौड़ी की दुकान पर खाली हाथ बैठे किसान राम प्यारे सिंह, प्रेम सिंह, राम अनंत सिंह, रामलखन, भुल्लन कहते हैं, "अब बारिश के बगैर गुजारा होने वाला नहीं है। चंद्रप्रभा बांध का पानी मछली के ठेकेदारों ने बहा दिया, जिसके चलते शिकारगंज, नेवाजगंज, भीषमपुर, सिकंदरपुर, कंचनपुर समेत सैकड़ों गांवों में खेतों से धूल उठ रहा है। तालाबों का पानी भी सूख चुका है। हालत यह है कि खेतों की सिंचाई की कौन कहे, मवेशियों तक के लिए पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। हाल ही में नहरों से पानी छोड़ा गया है, लेकिन वो टेल तक नहीं पहुंच पा रहा है, जिससे किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।"
नहरों में लगाए गए बेड़ों को खुलवाने के लिए भाग-दौड़ कर रहे सिंचाई विभाग के बेलदार शिवचंद से मुलाकात हुई तो उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए। कहा, हुजूर! कुछ दिनों से नहरों में पानी छोड़ा जा रहा है। दिक्कत यह है कि एक साथ सभी किसानों को पानी की जरूरत है। ऊपर वाले नहरों को जहां-तहां बांध दे रहे हैं। नहर के पानी के लिए कई गांवों में झगड़ा-फसाद की नौबत है। हम नहरों की मेड़बंदी खोलते-खोलते थक जा रहे हैं। चाहकर भी नहरों का पानी हम टेल तक नहीं पहुंच पा रहा हैं। चंदौली के ज्यादातर गांवों में धान के बेहन सूख रहे हैं। जिन किसानों ने बारिश के उम्मीद में फसलें रोप दी थी, वो भी सूखने लगी हैं।"
नहर के किनारे काम की तलाश में बैठीं महिलाएं
पूर्वांचल में सूखे की मार
मिर्जापुर के शेरवां के किसान मुनेश्वर राम ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "साल 1967 का अकाल भी हमने देखा है, लेकिन उससे भी दयनीय स्थिति की इस बार है। उस वक्त मक्का की खेती हो गई थी और अबकी मानसून के धोखा देने से कोई फसल नहीं हो पाएगी। जो भी घर में था उसे भी धान की नर्सरी व खेतों की जोताई में लगा दिया। अब घर में खाने के लिए कुछ बचा नहीं है। सावन महीने में मानसून की ऐसी बेरुखी हमने कभी नहीं देखी थी। धान का बेहन पीला पड़ चुका है। उसे रोप भी दिया जाए तो लागत के अनुरुप पैदावार नहीं होगी।" इन्हीं के पास खड़े सुनेश्वर राम ने साल 1967 के अकाल की कहानी सुनानी शुरू कर दी। वह कहते हैं, "उस समय सस्ती का जमाना था। अब तो भरपेट खाना भी मिलना मुश्किल हो जाएगा। हमारे इलाके में सिंचाई का कोई साधन नहीं है। भगवान भरोसे ही खेती करते हैं। हमारे पास सिर्फ हफ्ते भर का समय है। अगर बारिश नहीं हुई तो भूखों मरने की नौबत पैदा हो जाएगी।"
दक्षिणांचल के डोडहर, जरहा, चेतवा, नेमना, इंजानी, महुली, रजमिलान, पिंडारी, लीलाडेवा, सिंदूर, खम्हरिया, झीलों आदि गांवों में बारिश न होने से हाहाकार मचा है। धान, अरहर, तिल, बाजरा, मक्का, मूंगफली, मूंग सहित दलहन-तिलहन की फसलें खेतों में सूखने लगी हैं। किसान राजेंद्र सिंह बघेल, रामजन्म पाल, त्रिभुवन नारायण सिंह, राजकुमार सिंह, श्यामसुंदर जायसवाल, राहुल सिंह, अभिषेक सिंह, रामजी आदि किसानों के चेहरे पर मायूसी है। इन किसानों के मुताबिक खेतों में फसल को कौन कहे दूर-दूर तक हरियाली और घास नहीं है। सूखे की मार से पशुओं के पालन-पोषण की चिंता सता रही है। सरकार को चाहिए कि अब वह पूर्वांचल के सभी जिलों को सूखाग्रस्त घोषित करे।
गोरखपुर मंडल में भी बारिश न होने से किसानों के सामने भीषण संकट पैदा हो गया है। गोरखपुर मंडल में अब तक औसत से 80 फीसदी कम बारिश हुई है। मानसून की बेरुखी ने किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें खींच दी है। गोरखपुर और कुशीनगर में सबसे कम बारिश हुई है। किसान रामप्रताप यादव कहते हैं, "बारिश न होने से मुश्किलें बढ़ गई हैं। धान के खेतों में दरारें फटने लगी हैं। फसलें सूख रही हैं। पंपसेट चलाकर अबकी 12 बीघा धान की रोपाई कराई है, जिसे बचाने के लिए लगातार नलकूप चलाना पड़ रहा है।
धान की इन फसलों को बारिश की दरकार
देवरिया जिले में भी सूखा का जबर्दस्त असर है। सलेमपुर से लगायत लार इलाके में बारिश का नामो-निशान नहीं है। पूर्वांचल में मानसून सक्रिय है। उमड़-घुमड़ रहे बादल आसामन में अठखेलियां तो कर रहे हैं, लेकिन ज्यादातर इलाकों में बारिश का अता-पता नहीं है। हालांकि मौसम वैज्ञानिकों का दावा है कि मध्य प्रदेश में चक्रवाती सिस्टम सक्रिय हुआ है। इसके अलावा जम्मू कश्मीर से सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ भी पूर्वी उत्तर प्रदेश से होते हुए तिब्बत की ओर शिफ्ट हो रहा है। ऐसे में कुछ दिनों तक बारिश होने का अनुमान है। 23 और 24 जुलाई को मध्यम और कहीं-कहीं भारी बारिश के आसार हैं। 25 जुलाई के बाद सूरत की तल्खी फिर बढ़ने लगेगी।
सूखे का ऐलान नहीं
आषाढ़ बीत गया है और सावन महीने के कई दिन गुजर गए। जिन इलाकों में बारिश नहीं हुई है वहां किसानों की आंखें में सिर्फ आंसुओं से भीगी हुई हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 14 जुलाई को कृषि महकमे के अफसरों की बैठक बुलाई थी, लेकिन सूखाग्रस्त इलाकों की घोषणा नहीं की जा सकी। आगरा, वाराणसी और फैजाबाद को छोड़ दें तो बाकी राज्य में 40 से लेकर 97 फीसदी तक कम बारिश दर्ज की गई है।
वाराणसी के राजातालाब इलाके के एक्टविस्ट जर्नलिस्ट राजकुमार गुप्ता ने जिले का दौरा करने के बाद न्यूजक्लिक से कहा, "बारिश के इंतजार में किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं। नहरो में पानी नहीं आ रहा है। खेतों में नर्सरी तैयार है। मूसलधार बारिश नहीं हुई है, जिसके चलते धान की रोपाई नहीं हो पा रही है। सावन के पहले पखवाड़े में किसान बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। धान की नर्सरी खेतों में मुरझाने लगी है। पौधों की पत्तियां पीली होने लगी हैं। कुछ किसान पैसे लगाकर दूसरे किसानों की बोरिंग से नर्सरी बचाने के प्रयास में लगे हुए हैं, लेकिन तेज धूप उनकी उम्मीदों पर पानी फेर रही है। संभावित सूखे से किसान हताश है। बनारस में एक-दो दिन बूंदाबांदी हुई, लेकिन 21 जुलाई के बाद से धूप-छांव का खेल चल रहा है।"
बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे खेत
विशेषज्ञों के मुताबिक 31 जुलाई का यह हाल बता रहा तो राज्य बुरी तरह से सूखे की चपेट में आ जाएगा। सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, उन्नाव, कानपुर नगर, लखनऊ, अमेठी, रायबरेली, कानपुर देहात, फतेहपुर, पूर्वांचल-बलिया, सिद्धार्थनगर, बस्ती, जौनपुर, गोंडा, फैजाबाद, बाराबंकी, संत कबीर नगर, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, महाराजगंज, कुशीनगर, इलाहाबाद, कौशांबी, अंबेडकरनगर, बलरामपुर के अलावा विंध्य क्षेत्र के मिर्जापुर, सोनभद्र, संतरविदास नगर और चंदौली को सूखाग्रस्त इलाका घोषित करने की मांग की जा रही है।
बुंदेलखंड के बांदा, झांसी, जालौन, महोबा, चित्रकूट, हमीरपुर, ललितपुर में मानसूनी बारिश नहीं हो रही है। किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह ने सरकार के मांग की है, "सूखाग्रस्त जिलों में 31 मार्च, 2023 तक मुख्य राजस्व बकायों की वसूली और कृषि ऋण वसूली के लिए किसानों के खिलाफ उत्पीड़न की कार्रवाई न की जाए। अभी तक किसानों ने फसलों की बुआई और धान की रोपाई नहीं की है, ऐसे में उनके खातें में सीधे मुआवजा राशि भेजी जाए ताकि वो गुजर-बसर कर सकें।"
(लेखक विजय विनीत वाराणसी स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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