3 साल बाद DUSU चुनाव: प्रचार ख़त्म, क्या हैं समीकरण और मुद्दे?
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के चुनाव के लिए शुक्रवार, 22 सितंबर को वोट डाले जाएंगे। इसके लिए चुनाव प्रचार कल यानी 20 सितंबर को ख़त्म हो गया है। डूसू चुनाव की मतगणना 23 सिंतबर को की जाएगी। इस बार का चुनाव बाक़ी सालों से अलग है क्योंकि हर साल होने वाला ये चुनाव तीन साल के अंतराल पर हो रहा है। एक बार फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अपने प्रतिनधि का चुनाव करने जा रहे हैं।
इस बार डूसू चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में लगा कि ये चुनाव कई मायनों में पहले के चुनावों से अलग है लेकिन अंत होते-होते एक बार फिर पिछले वर्षों की तरह ही धनबल और बाहुबल का प्रदर्शन होता नज़र आया।
हमने ये समझने की कोशिश की कि इस बार के डूसू चुनाव में ज़रूरी मुद्दे और वहां की राजनीतिक स्थिति क्या है? इसके अलावा हम यह भी देखेंगे कि किस तरह से लगातार डूसू का चुनाव हिंसक होता जा रहा है।
इस बार क्या हैं छात्र संगठनों के मुद्दे?
आरएसएस से संबद्ध ABVP, एक बार फिर से देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांग रही है। इसके अलावा कई अन्य मुद्दे हैं जो लगातार उनके मैनिफ़ेस्टो में बने हुए हैं जैसे मेट्रो में सस्ते पास, सबके लिए हॉस्टल आदि।
NSUI ने डीयू में सबको समान अवसर उपलब्ध कराने के मुद्दे पर छात्रों से वोट मांगा है। NSUI ने ABVP की कथित 'गुंडागर्दी की राजनीति' से लेकर, उनकी तरफ़ से डूसू बजट पेश न करने और कैंपस में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर ज़ोर दिया है। उसने देश के विभिन्न हिस्सों व जाति समूह से आए छात्रों को डीयू में समान अवसर दिलाने का भी वादा किया है। इसके साथ ही NSUI ने हॉस्टल में लगने वाले 14 फ़ीसदी जीएसटी पर भी सवाल उठाया और कैंपस में 'ख़त्म होते डेमोक्रेटिक स्पेस' को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की। NSUI के नेताओं ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि "परिषद ने कैंपस के लोकतंत्र को ख़त्म किया है, जितनी पुलिस बीते समय में कैंपस में आई है, उतनी पहले कभी नहीं देखी गई है।"
वहीं बात करें वामपंथी छात्र संगठनों की तो, AISAऔर SFI के पैनल, छात्रावास में सीट बढ़ाने, रियायती मूल्यों पर मेट्रो पास उपलब्ध कराने, कैंटीन की दरों में कटौती जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर छात्रों का साथ मांग रहे हैं। ये संगठन, चार साल के स्नातक पाठ्यक्रम और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को भी प्राथमिकता से उठा रहे हैं। साथ ही ABVP पर हिंसा और धनबल का आरोप लगाते हुए, अपना चुनावी अभियान छात्रों के बीच लेकर जा रहे हैं।
डूसू चुनाव की राजनीतिक स्थिति
दिल्ली विश्विद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव के पदों के लिए कुल 24 उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मुख्यतः चार पैनल चुनावी मैदान में हैं।
डूसू चुनाव के लिए NSUI का पैनल
1. हितेश गुलिया अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पास शहीद भगत सिंह कॉलेज से बीकॉम की डिग्री है और लॉ सेंटर-1 में LLB के अंतिम वर्ष में हैं। ये किसान आंदोलन में भी सक्रिय रहे थे और इन्होंने विवादित कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ एक साल से अधिक तक दिल्ली के बॉर्डर पर चले किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी और ये ख़ुद किसान परिवार से हैं।
2. अभि दहिया उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं। दहिया वर्तमान में कला संकाय में बौद्ध अध्ययन केंद्र में MA प्रथम वर्ष के छात्र हैं।
3. यक्ष्ना शर्मा सचिव पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं। इन्होंने हिंदू कॉलेज से स्नातक किया है और वर्तमान में कैंपस लॉ सेंटर में LLB के अंतिम वर्ष में हैं।
4. शुभम कुमार चौधरी संयुक्त सचिव पद के लिए मैदान में हैं। उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई जीडी गोयंका, वसंत कुंज से पूरी की और डीयू के कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज़ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह बौद्ध अध्ययन केंद्र में MA प्रथम वर्ष के छात्र हैं।
ABVP का पैनल
1. तुषार डेढ़ा अध्यक्ष पद के लिए चुनावी मैदान में हैं। पूर्वी दिल्ली के मूल निवासी तुषार ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली है। साथ ही उन्हें राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) से (सी) प्रमाणपत्र भी हासिल है। वर्तमान में, वह दिल्ली विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन विभाग में स्नातकोत्तर (MA)की पढ़ाई कर रहे हैं।
2. सुशांत धनकड़ उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं। मूल रूप से झज्जर, हरियाणा के रहने वाले सुशांत ने सत्यवती कॉलेज (सांध्य) से अंग्रेज़ी (ऑनर्स) में स्नातक की डिग्री पूरी की। वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन विभाग में MA के छात्र हैं।
3. अपराजिता सचिव पद के लिए उम्मीदवार हैं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर की रहने वाली अपराजिता के पास दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक की डिग्री है। वह वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग में MA की पढ़ाई कर रही हैं।
4. संयुक्त सचिव पद के लिए सचिन बैसला उम्मीदवार हैं। उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले सचिन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से स्नातक की डिग्री पूरी की और डीयू के विधि संकाय से LLB भी किया है। 2016 में, उन्हें रामजस कॉलेज छात्र संघ के केंद्रीय पार्षद के रूप में भी चुना गया था। वर्तमान में, वह दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन में MA के छात्र हैं।
SFI का पैनल
1. SFI की तरफ़ से डूसू अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आरिफ़ सिद्दीक़ी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कन्नौज ज़िले से हैं और उन्होंने अपना ग्रेजुएशन ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज से पूरा किया और अभी बौद्ध अध्ययन विभाग में MA प्रथम वर्ष के छात्र हैं। ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में उन्होंने बंद वाटर कूलर से लेकर बंद ग्राउंड को खुलवाने तक छात्रों के कई मुद्दों पर संघर्षों का नेतृत्व किया। इसके साथ ही FYUP के ख़िलाफ़ तथा कोविड के बाद कैंपस को खुलवाने के लिए चले आंदोलन में भी आरिफ़ की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
2. SFI के उपाध्यक्ष पद के प्रत्याशी अंकित दिल्ली विश्वविद्यालय में कैंपस लॉ सेंटर के LLB प्रथम वर्ष के छात्र हैं। इन्होंने हिंदू कॉलेज से अपनी स्नातक की डिग्री हासिल की है। कोविड महामारी के बाद जब सब कुछ खुल गया था लेकिन शिक्षण संस्थान बंद थे तब SFI के बैनर तले दिल्ली विश्वविद्यालय को खुलवाने के आंदोलन का नेतृत्व इन्होंने ही किया था एवं अहम भूमिका निभाई थी। इसके अलावा इन्होने हिंदू कॉलेज समेत पूरे विश्वविद्यालय में छात्रों की विभिन्न समस्याएं जैसे FYUP, हॉस्टल की दिक्कत और स्टूडेंट मेट्रो पास जैसे मुद्दों को प्राथमिकता से उठाया है।
3. सचिव पद की प्रत्याशी अदिति त्यागी दिल्ली विश्वविद्यालय में MA फिलोसफी प्रथम वर्ष की छात्रा हैं। इन्होंने हिंदू कॉलेज से अपनी स्नातक डिग्री पूरी की। अदिति अन्य हज़ारों छात्रों की तरह गाज़ियाबाद से डेढ़ घंटे का सफर तय करके कॉलेज जाने वाली छात्रा हैं जो कि छात्रों की अनअफोर्डेबल ट्रांसपोर्ट की दिक्कत को बखूबी समझती हैं। इन्होंने दिल्ली में छात्रों के लिए बस पास की तर्ज पर सस्ते दर पर मेट्रो पास के आंदोलन का नेतृत्व किया। इन्होंने महिला कॉलेजों में फेस्ट के दौरान होने वाली छेड़खानी एवं अभद्रता के ख़िलाफ़ भी आंदोलन का नेतृत्व किया।
4. संयुक्त सचिव उम्मीदवार निष्ठा सिंह बिहार की रहने वाली हैं। निष्ठा ने दिल्ली विश्विद्यालय में बाहर से आने वाले छात्रों के मुद्दो को बुलंद आवाज़ के साथ उठाया और इस बार के चुनाव में वादा किया है कि हर कॉलेज में 2 हॉस्टल बनवाए जाएंगे।
AISA का डूसू पैनल
1 .आयशा अहमद खान अध्यक्ष पद की उम्मीदवार हैं। आयशा पटना की रहने वाली हैं और मिरांडा हाउस कॉलेज की छात्रा हैं। वह FYUP के पहले बैच का हिस्सा हैं और उनके मुताबिक़ उन्हें इस पाठ्यक्रम का खामियाज़ा भुगतना पड़ा है। FYUP के कारण हुई 'पीड़ा' ने उन्हें डीयू में FYUP विरोधी आंदोलन खड़ा करने का अनुभव दिया है। वह आईपीसीडब्ल्यू और मिरांडा हाउस में गुंडागर्दी और महिला छात्रों के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व कर रही हैं। वह कैंपस क्षेत्र में लैंगिक न्याय की आवाज़ रही हैं और लैंगिक संवेदीकरण समिति (जीएससी) की सदस्य हैं। पिछले छह महीनों में दो बार ऐसे मामले सामने आए हैं जब बाहरी लोगों ने मिरांडा हाउस की दीवारें फांदने का काम किया। इसका विरोध करते हुए, आयशा महिला छात्रों के लिए कैंपस में सुरक्षा और स्वतंत्रता के आंदोलन में एक नेता के रूप में उभरी हैं।
2. अनुष्का चौधरी उपाध्यक्ष पद की उम्मीदवार हैं। वे उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के एक किसान परिवार से हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ फैकल्टी की छात्रा हैं। वह गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन के दौरान काफी सक्रिय थीं। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई एआरएसडी कॉलेज से की, और अपने स्नातक वर्षों के दौरान उन्होंने छात्रों को एकजुट करने में सक्रिय भूमिका निभाई, खासकर उन लोगों को जो परिवहन और अत्यधिक किराए से प्रभावित हैं। डीयू के साथ उनके लंबे जुड़ाव ने 77 दिनों की अनिश्चितकालीन हड़ताल का अभिन्न हिस्सा बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण डीयू फिर से खुला।
3. सचिव पद पर आदित्य प्रताप सिंह मैदान में है। उन्होंने साल 2019 में विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। वह उत्तर प्रदेश के एक साधारण परिवार से आते हैं, जिसमें उनकी मां अकेली कमाने वाली थीं। डीयू के साथ अपने जुड़ाव के समय से, उन्होंने छात्रों के लिए छात्रावासों की संख्या बढ़ाने और परिसर स्थानों में किराया नियंत्रण के लिए आंदोलनों का नेतृत्व किया है। साल 2022 में, जब डीयू ओबीसी आरक्षण का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में विफल रहा, तब आदित्य ने अन्य लोगों के साथ मिलकर परिसर में एक बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया और सुनिश्चित किया कि विश्वविद्यालय ओबीसी छात्रों के लिए सही आरक्षण लागू करे। उन्होंने डीयू को फिर से खोलने और सीयूईटी प्रवेश के दौरान सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आंदोलन में केंद्रीय भूमिका निभाई है।
4. संयुक्त सचिव पद पर अंजलि कुमारी अपनी किस्मत आज़मा रही हैं। अंजलि बिहार के गया की रहने वाली प्रथम वर्ष की छात्रा हैं और एक दलित परिवार से आती हैं। वह एक हाशिये की पृष्ठभूमि से आती हैं, जो विश्वविद्यालय में अपने पहले दिन से ही FYUP विरोधी अभियान से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने डीयू में FYUP के ख़िलाफ़ प्रथम वर्ष के छात्रों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वहीं दिलचस्प बात ये है कि दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई CYSS ने इस बार भी सेंट्रल पैनल में किसी भी पद पर चुनाव न लड़ने का फ़ैसला किया है।
जाति और क्षेत्रीय समीकरण को साधने की कोशिश
डीयू चुनाव में छात्र संगठनों के द्वारा राजपूत, ब्राह्मण, यादव, कायस्थ और भूमिहार जातियों के बजाए जाट और गुर्जर जातियों के प्रत्याशियों को विशेष तरजीह मिलती है। इसका बड़ा कारण यह है कि बीते दस सालों में डूसू के अध्यक्ष पद पर जाट और गुर्जर समाज के उम्मीदवार ही जीतते आए हैं। इसलिए दोनों मुख्य प्रतिद्वंदी ABVP और NSUI ने इन दोनों समाज के उम्मीदवारों को तरजीह दी है। इस बार भी डूसू चुनाव में इन दोनों जातियों का दबदबा रहेगा। ABVP ने अध्यक्ष पद के लिए गुर्जर समाज के तुषार डेढ़ा पर दांव लगाया है। जबकि उपाध्यक्ष पद के लिए सुशांत धनकड़ को उम्मीदवार बनाया है, जो जाट समाज से आते हैं और संयुक्त सचिव पद के उम्मीदवार सचिन बैसला भी गुर्जर समाज से हैं। दूसरी तरफ़ NSUI ने अपने चार प्रत्याशियों में से दो प्रत्याशी जाट और एक प्रत्याशी गुर्जर समाज से चुनावी मैदान में उतारा है। अध्यक्ष पद के लिए हितेश गुलिया और उपाध्यक्ष पद के प्रत्याशी अभि दहिया दोनों जाट समाज से आते हैं, जबकि संयुक्त सचिव प्रत्याशी शुभम चौधरी गुर्जर जाति से आते हैं। इन दोनों ने ही सचिव के पद पर एक महिला उम्मीदवार को चुना है।
हालांकि वामपंथी संगठनों ने अपने पैनल को समावेशी बनाने का प्रयास किया है। AISA और SFI दोनों ने ही अध्यक्ष पद पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। देश में इस वक़्त महिला आरक्षण बिल और राजनीतिक क्षेत्र में उनके मजबूत प्रतिनिधित्व को लेकर काफ़ी चर्चा है। ऐसे में छात्र संघ चुनाव में, वामपंथी छात्र संगठनों ने महिलाओं के प्रतिनिधित्व का विशेष तौर पर ध्यान रखा है। AISA ने अपने पैनल में तीन महिला उम्मीदवारों तो वहीं SFIने दो महिलाओं को मैदान में उतारा है।
डूसू में बौद्ध अध्ययन विभाग का दबदबा
एक बार फिर डूसू चुनाव में बौद्ध अध्ययन विभाग और लॉ के छात्रों का बोलबाला है। ABVP का पूरा पैनल ही बौद्ध अध्ययन विभाग से है जबकि SFI और NSUI के भी दो उम्मीदवार इसी विभाग से हैं। इसके बाद सबसे अधिक उम्मीदवार लॉ यानि विधि विभाग से हैं। इसको लेकर जानकारों का कहना है कि ये कोई नई बात नहीं है। हर साल ऐसा ही होता है। चुनाव लड़ने के लिए आपको विश्वविद्यालय का छात्र होना आवश्यक है। कई एक्सपर्ट्स की मानें तो डीयू में प्रवेश पाना इतना आसान नहीं होता क्योंकि यहां देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर से छात्र पढ़ने आते हैं। लेकिन बाक़ी विभागों के मुकाबले बौद्ध अध्ययन विभाग में प्रवेश पाना आसान माना जाता है इसलिए अधिकतर छात्र नेता इसमें प्रवेश लेकर अपनी चुनावी राह को आसान बनाने की कोशिश करते हैं। कई मामले ऐसे भी हैं जब एक बार चुनाव लड़ने के बाद कई छात्र नेता इस विभाग से अपनी डिग्री पूरी भी नहीं करते है। ये एक तरीके से अपने आप को चुनाव लड़ने के लिए एलिजिबल बनाने का ज़रिया है।
ABVP पर लगातार लगते हिंसा के आरोप!
इस बार के चुनाव में भी पिछले वर्षों की तरह हिंसा की ख़बरें सामने आई। वामपंथी छात्र संगठन AISA ने आरोप लगाया कि नामांकन करने के दौरान उनके लोगों पर हमले किए गए। ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है। बीते कई चुनावों में ये एक परंपरा सी बन गई है।
इसके बाद कांग्रेस की छात्र इकाई NSUI ने भी, ABVP पर, अपने अध्यक्ष समेत सभी उम्मीदवारों पर जानलेवा हमले का आरोप लगाया। NSUI की तरफ़ से कई वीडियो जारी कर ये आरोप लगाया गया कि उसके कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले हुए और उनकी गाड़ियों पर लाठी डंडे भी बरसाए गए और इस दौरान उनके कई कार्यकर्ताओं को गंभीर चोटें भी आईं।
NSUI के राष्ट्रीय सचिव और दिल्ली प्रभारी नितेश गौड़ ने इन हमलों को लेकर कहा कि “ABVP घबराई हुई है। उसे पता है कि छात्र उसके ख़िलाफ़ हैं इसलिए हताशा में वो हमारे लोगों पर हमले कर रही है।" उन्होंने पुलिस प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि "उनकी मौजूदगी में बीजेपी कैंपस में गुंडागर्दी कर रही है और पुलिस तमाशा देख रही है।"
गौड़ ने कहा, "इस बार के डूसू चुनाव में हज़ारों छात्र, ABVP की इस गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ मतदान करने जा रहे हैं। डीयू में देश भर के बेहतरीन छात्र आते हैं जो संवेदनशील हैं और उन्होंने देखा है कि कैसे महिला कालेजों में जबरन घुसकर हंगामा किया गया है। इन्होंने पूरे कैंपस में भय का माहौल बनाया हुआ है।"
हालांकि ABVP ने भी एक वीडियो जारी कर, NSUI पर, उसके कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट का आरोप लगाया है।
बीते कई वर्षों में देखा गया है कि डीयू में किस प्रकार से छात्र संघ चुनावों में हिंसा होती रही है। साल 2019 के चुनाव के दौरान ABVP पर आरोप लगा था कि "उसने वामपंथी छात्र संगठन SFI और AISF जो हर बार की तरह लेफ़्ट यूनिटी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे थे, उनके अध्यक्ष पद के उम्मीदवार सहित सभी पदों के उम्मीदवारों पर नामांकन करने के दौरान हमला किया था। इस दौरान लेफ़्ट यूनिटी के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार को छोड़कर कोई भी अन्य उम्मीदवार अपना नामांकन दाख़िल नहीं कर सका था क्योंकि उन सभी के नामांकन पत्र को ABVP के लोगों ने फाड़ दिया था।"
इसके अलावा उसी साल 2019 में चुनाव प्रचार के दौरान AISA के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार आफ़ताब को देशबंधु कॉलेज में प्रचार करने से रोक दिया गया था और उन्हें देशद्रोही कह कर उनके साथ हाथापाई भी की गई। इसका भी आरोप ABVP पर लगा।
इसके बाद साल 2018 में कांग्रेस की छात्र इकाई NSUI के उपाध्यक्ष प्रत्याशी अंकित भारती पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया था। अंकित ने ABVP पर उनके साथ मारपीट करने और हिंसा का आरोप लगाया था।
इसके अलावा ABVP पर साल 2018 चुनाव के दौरान स्वतंत्र उम्मीदवार राजा चौधरी के अपहरण तक का आरोप लगा था और इससे पिछले वर्ष भी PGDAV कॉलेज में प्रचार के दौरान NSUI के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पर हमले के लिए CYSS और ABVP पर आरोप लगा था।
हालांकि इस वर्ष के छात्र संघ चुनाव के लिए प्रचार थम गया है और छात्र शुक्रवार को अपना फ़ैसला इवीएम में सुरक्षित कर देंगे। इस बार भी मुख्य मुकाबला ABVP और NSUI के बीच ही है। दिल्ली विश्विद्यालय के छात्र अपना विश्वास किस पर दिखाते हैं इसका फ़ैसला शनिवार, 23 सितंबर, 2023 को हो जाएगा।
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