ख़रीफ़ फ़सलों के लिए MSP में वृद्धि के नाम पर फिर धोखा!
ख़रीफ़ फ़सल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में मामूली बढ़ोत्तरी से कोरोना काल में कोई राहत नहीं मिलने वाली है क्योंकि यह वृद्धि खेती में आने वाली वास्तविक लागत C2 को दरकिनार करके तय की गयी है। कम लागत पर MSP तय करने के कारण किसान को ख़रीफ़ फ़सलों में पिछले वर्षों की भांति ही भारी घाटा होने वाला है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार, एक जून को इस वर्ष 2020-21 के लिए 14 ख़रीफ़ फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा की है और सरकार की और से दावा किया गया है कि MSP में यह वृद्धि 50 से 83 % तक की गयी है।
ख़रीफ़ फ़सलों के MSP की यह घोषणा किसानों कि तरफ़ से वर्षों से कि जा रही मांग से काफी कम है, सरकार ने न्यूनतम मूल्य तय करते हुए फ़सलों के उत्पादन में आने वाली लागत को कम करके आँका है यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना A2+FL लागत पर तय किया गया और दिखावा यह किया जा रहा है कि यह बढ़ोत्तरी लागत में 50 प्रतिशत अधिक जोड़कर की गयी, पर MSP का निर्धारण किसानों कि लम्बे समय से की जा रही मांगों के अनुसार C2 लागत पर तय किया जाना चाहिए था।
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C2 और A2+FL लागत में क्या अंतर है?
ख़रीफ़ के समर्थन मूल्य की घोषणा के लिए, सरकार ने उत्पादन की लागत की एमएसपी से तुलना की है, जिसे A2+FL के रूप में जाना जाता है। इसका मतलब है कि यह सभी इनपुट लागतों और पारिवारिक श्रम की अनुमानित लागतों का योग है। इसमें तय लागत यानी भूमि के किराये का मूल्य और निश्चित पूंजी पर ब्याज शामिल नहीं है। एक बार जब इन्हें जोड़ लिया जाता है, तो वास्तविक लागत निकलती है, जिसे C2 के रूप में जाना जाता है।
हाल ही में ख़रीफ़ के समर्थन मूल्य की घोषणा में, सरकार ने अपनी पुरानी मूल्य निर्धारण की नीति को ही जारी रखा है और गर्व से दावा कर रही है कि नया समर्थन मूल्य उत्पादन की लागत से दोगुना है, जिसका मतलब है कि वे सीमित ए2+एफ़एल (A2+FL) दे रहे हैं।
किसान संगठनों का क्या कहना है
विभिन्न किसान संगठनों और विशेषज्ञों ने ख़रीफ़ फ़सलों के MSP को किसानों साथ धोखा बताया है। उनका कहना है कि C2 से जुड़े फ़ॉर्मूले के आधार पर सरकार को फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना चाहिए था। MSP निर्धारण में बढ़ती महंगाई को दरकिनार किया गया है और यह कुछ वर्षों में सबसे कम वृद्धि है, सरकार किसानों की आय अधिक करने की बजाय किसानों के ज़रूरी हक़ को ही मार रही है।
अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धवले और महासचिव हनान मौल्ला ने बयान जारी करते हुए कहा है कि भाजपा की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने ख़रीफ़ फ़सल 2020-21 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की है, यह केवल खूबसूरत सजावटी या आकर्षक रूप से झूठ के पुलिंदे को लपेटना है। धान के लिए घोषित एमएसपी पिछले साल की तुलना में 3% से भी अधिक नहीं है क्योंकि खेती की लागत में भारी वृद्धि हुई है। लागत गणना संदिग्ध है यह वास्तविक लागत के आसपास कहीं नहीं है क्योंकि भारित (Weighted) औसत लागत में भारी गिरावट आई है। किसान सभा, महामारी के समय में कटाई और खरीद कार्यों को सुविधाजनक बनाने के लिए बिना किसी तैयारी के अनियोजित ढंग से लागू कियें गयें लॉकडाउन के कारण पैदा हुए भारी नुकसान के लिए पूरी तरह से सरकारों की असंवेदनशीलता की निंदा करती रही है।
इसके साथ ही अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय किसान सभा, नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा किसानों के साथ किए गए इस क्रूर मज़ाक की निंदा करती है और इस असंवेदनशील रवैये के खिलाफ अपनी इकाइयों से विरोध-प्रदर्शन करने का आह्वान करती है
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक का कहना है कि फ़सलों के दामों में यह वृद्धि पर्याप्त नहीं है। सीजन 2020-21 ख़रीफ़ की फ़सलों की ख़रीद के लिए घोषित समर्थन मूल्य किसानों के साथ धोखा, यह समर्थन मूल्य कुल लागत (सी-2) पर घोषित नहीं किया गया है। एक बार फिर सरकार ने महामारी के समय आजीविका के संकट से जूझ रहे किसानों के साथ भद्दा मज़ाक किया है। यह देश के भंडार भरने वाले और खाद्य सुरक्षा की मजबूत दीवार खडी करने वाले किसानों के साथ धोखा है। यह वृद्धि पिछले पांच वर्षों में सबसे कम वृद्धि है।
राजनीतिक विपक्षी दलों ने भी इस वृद्धि को एक धोखा बताते हुए सरकार पर सवाल उठाए हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने 2019-20 और 2020-2021 MSP की एक तुलनात्मक सूची देते हुए ट्वीट किया कि “एक बार फिर झूठ। दावा है कि एमएसपी में अभूतपूर्व 50% की वृद्धि हुई है। जबकि सच ये है कि वृद्धि औसत रूप से, मुद्रास्फीति की लागत से कम है। हमारे अन्नादतों पर बोझ दोगुना हो जाएगा। बढ़ती दुखद आत्महत्याओं के लिए अकेले मोदी सरकार ज़िम्मेदार होगी।”
स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने ट्वीट किया- “कोरोना संकट में देश को बचाने वाले किसान को मिली MSP सौगात का सच! धान, ज्वार, रागी, मूंगफली, सूरजमुखी व सोयाबीन की फसलों में MSP की बढ़ोतरी पिछले साल से भी कम! कुल 14 में से 12 फसलों में MSP की बढ़ोतरी महंगाई के बराबर भी नहीं! यानी कि वास्तव में भाव में कटौती हुई है!”
किसान कितना कमाएगा?
नीचे दी गई तालिका से पता चलता है कि 4 से 5 माह मेहनत करने के बाद किसान प्रति कुंतल औसतन कितना कमाएंगे। फ़सल की कुल लागत सरकार के कृषि लागत और मूल्य आयोग (CASP) से ली जाती है। ख़रीफ़ फ़सल के लिए तय MSP 1,868 रुपये पर किसान वास्तविक C2 लागत 1,667 रूपये लगाने के बाद चावल पर प्रति कुंतल मात्र 201 रूपये प्रति कुंतल (100 किलोग्राम) ही कमा पायेगा। इसी तरह, अन्य फ़सलों पर भी कमाएगा।
स्रोत: कृषि लगत और मूल्य आयोग की ख़रीफ़ की मूल्य नीति रिपोर्ट 2020 -21
यदि आप सोच रहे हैं कि यह ज़्यादा बुरा नहीं है यानी चावल के लिए 2 रुपये प्रति किलोग्राम लाभ कमाएं, तो आप एक बार फिर से सोचे कि यह लाभ किसान के लिए काफी है? क्योंकि चावल की फ़सल में औसतन 4 से 5 महीने लगते हैं, किसान उसके परिवार के चार महीने के गहन श्रम के बाद, फ़सल को पानी देना, खाद्य और कीटनाशक लगाना, निराई करना, खेती कि जमीन का किराया, कृषि कार्य के लिए लिए गए ऋण पर ब्याज आदि पर खर्च करने के बाद अंत में वह मात्र 201 रुपये प्रति कुंतल ही पायेगा। यदि सरकार द्वारा MSP कि गणना C2 लगत के आधार पर तय करती तो किसान 633 रूपये प्रति कुंतल पाता।
किसान की लाभ-हानि और लागत
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा जारी ख़रीफ़ फ़सलों कि मूल्य नीति विपणन मौसम 2020-21 में प्रति कुंतल उत्पादकता और व्यापक लागत यानी C2 का अनुमान लगाया गया है, जिसके तहत हम ख़रीफ़ फ़सल कि खेती में किसान कि लाभ-हानि और लागत को समझने के लिए उत्तर प्रदेश के चावल कि खेती करने वाले किसान का उदाहरण लेते हुए समझने कि कोशिश करेंगे।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा जारी ख़रीफ़ फ़सलों कि मूल्य नीति विपणन मौसम 2020-21 के अनुसार चावल उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश देश के कुल उत्पादन में 12.9 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर आता है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अनुसार चावल कि प्रति हेक्टेयर औसत उपज 37.2 कुंतल है जो कि पंजाब जैसे उन्नत राज्य (जहां 68.7 कुं. प्रति हेक्टेयर उत्पादकता है) से कम है।
नोट : उत्पादन और लागत की यह गणना ख़रीफ़ की मूल्य नीति रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर की गयी है |
स्रोत: कृषि लगत और मूल्य आयोग की ख़रीफ़ की मूल्य नीति रिपोर्ट 2020 -21
जैसा कि उपरोक्त तालिका में दर्शाया गया है कि किसान औसतन 37.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर में उत्पादन करता है, जिसके उत्पादन में बुवाई से लेकर कटाई तक कृषि लागत और मूल्य आयोग (CASP ) द्वारा अनुमानित C2 लागत 1691 रु. प्रति कुंतल के आधार पर कुल 62,905 रूपये खर्च करेगा।
जब फ़सल पक जाएगी उसके बाद किसान अपनी उपज को सरकार द्वारा निर्धारित MSP 1868 रुपये पर बेचकर अपनी कुल उपज के एवज में 69,490 रूपये प्राप्त करेगा। और किसान चार महीने कि कड़ी मेहनत के बाद महज 6,584 रूपये का शुद्ध लाभ कमायेगा। इसे दूसरे तरीके से देखे कि चार महीने के फ़सल चक्र के एवज में परिवार कि प्रति माह आय मात्र 1,646 रूपये होगी।
केंद्र सरकार के छह साल के कार्यकाल में किसानों को घाटा
केंद्र कि मोदी सरकार अपने छह साल की उपलब्धियों का ढोल पीट रही है, पर अभी तक के कार्यकाल का वास्तविक मूल्यांकन दर्शाता है कि मोदी सरकार ने किसान विरोधी नीतियों को ही अपनाया है और अभी भी उसी पथ पर केंद्र सरकार अग्रसित है, और यही कारण है किसान अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा हैं।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में कहा था कि सभी किसानों को उनकी फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य फ़सल में आने वाली कुल लागत में 50 फ़ीसदी बढ़ाकर दिया जायेगा लेकिन हक़ीक़त कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के आंकड़ों से साफ दिखाई देती है। हालांकि दूसरे कार्यकाल में कहना ये भी है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी, लेकिन जब हम बीजेपी सरकार के पिछले छह साल के कार्यकाल का आकलन करते हैं तो पाते हैं कि रबी व ख़रीफ़ की दो बड़ी फ़सलों गेहूं व् चावल के दिए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य को कम लागत पर तय किये जाने के कारण करीब 1 लाख 77 हजार करोड़ करोड़ रुपया दबाया है। किसान को वर्ष 2014-15 से अभी तक हुए कुल घाटे की गणना की विस्तृत रिपोर्ट हम अपनी अगली रिपोर्ट में प्रस्तुत करेंगे।
आज जब कोरोना के कारण पूरे देश में कृषि पर चोट पड़ी है, जहाँ किसान को उसकी फ़सल का वाजिब दाम देने के बजाय उनकी मांगों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रही है, कृषि मोर्चे पर मोदी सरकार की असफलताओं के चलते लाखों किसान क़र्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं, किसान को सही दाम न मिलने का असर आने वाली फ़सलों के उत्पादन पर भी पड़ता है, क्योंकि किसान द्वारा फ़सलों में लगाई गयी लागत उसकी आमदनी पर निर्भर करती हैं इसलिए सरकार को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मूल्य निर्धारित करने की ज़रूरत हैं जिससे किसान को उसकी फ़सल का सही दाम मिल सके।
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