दिल्ली का गोल मार्केट: एक म्यूज़ियम में सिमट जाएगा एक ज़िंदा इतिहास
क़रीब सौ साल पुराना दिल्ली का गोल मार्केट म्यूज़ियम में तब्दील होने जा रहा है। बताया जा रहा है 'Women of Delhi and India' के थीम पर NDMC का ये प्रोजेक्ट 21.6 करोड़ का है जिसे एक साल में पूरा करने की कोशिश की जाएगी।
लुटियंस दिल्ली, दिल्ली का वो हिस्सा जहां की इमारतों में आज भी गुज़रा इतिहास बसता है। औपनिवेशिक काल की इन इमारतों में उस दौर की बहुत सी कहानियां आज भी बसी हैं। वक़्त ने भले ही रफ़्तार पकड़ ली हो लेकिन दिल्ली में बसी एक दिल्ली आज भी उसी जगह पर सुस्ता रही है। ऐसी ही एक जगह है गोल मार्केट। वास्तुकला के लिहाज के देखा जाए तो वक़्त की उंगली पकड़ कर माज़ी की उस ड्योढ़ी पर जाकर रुका जा सकता था जिसकी निशानी आज भी अपने संपन्न होने का दावा करती है। औपनिवेशिक युग(colonial-era) की वास्तुकला की पहचान बयां करते खंभे, खिड़कियां, घुमावदार गलियारे, ऊंची छतों वाले मेहराबदार गेट, दरवाजों का स्टाइल अपनी पहचान बताता है। हालांकि अब इस पहचान पर गुज़रते वक़्त के साथ बदहाली की गर्द पड़ चुकी है। लेकिन आज भी दीवारों पर इंग्लिश और उर्दू में दुकानों में मिलने वाली चीजों की जानकारी देते साइन बोर्ड उकेरे दिखाई देते हैं। आज भी यहां मौजूद कई दुकानों पर 1920 लिखा है। और आज भी उन दुकानों में सामान के साथ उस दौर के कुछ किस्से बचे हैं लेकिन क्या पता अगली पीढ़ी के साथ वे कहां तक जा पाएंगे।
गोल मार्केट के आस-पास बनी दुकानों पर आज भी बिकने वाले सामान के बारे में लिखा है।
गोल मार्केट म्यूज़ियम में तब्दील होगा
बहरहाल, ख़बर है कि NDMC(New Delhi Municipal Council) गोल मार्केट को म्यूजियम में तब्दील करने जा रहा है। जिसका थीम होगा 'Women of Delhi and India'. 2007 में इस मार्केट को असुरक्षित घोषित कर बंद कर दिया गया था और तभी से ये मार्केट अपनी किस्मत बदलने का इंतज़ार कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ लंबे इंतजार के बाद NDMC ना सिर्फ गोल मार्केट की मेन बिल्डिंग का बल्कि उसी दौर की बनी आस-पास की इमारतों का भी Restorationकरने जा रहा है। 21.6 करोड़ की लागत वाले इस प्रोजेक्ट को एक साल के भीतर पूरा किया जाएगा।
गोल मार्केट का इतिहास
1921 में बनी इस मार्केट को एडवर्ड लुटियंस ने डिजाइन किया था। मार्केट में प्रवेश करने के 6 दरवाज़े थे। निचली मंजिल पर जहां ज़्यादातर दुकानें थी वहीं ऊपरी मंजिल पर थियटर, रेस्टोरेंट, पढ़ाई के संस्थान थे (ये आस-पास के लोगों से बातचीत में पता चला) इस मार्केट में ज्यादातर मीट-मछली, अंडे की दुकानों के साथ ही घर के सामान की दुकानें थीं। दरअसल इस मार्केट के आस-पास ब्रिटिश नौकरशाहों और उस दौर के भारतीय सरकारी अधिकारियों के घर थे और ये मार्केट उन्हीं के लिए बनाया गया था। बताते हैं कि यहां पढ़ाई-लिखाई, चर्चा और गीत-संगीत का माहौल बना रहता था।
गोल मार्केट
ब्रिटिश अफसरों के लिए बनी थी गोल मार्केट
क़रीब 100 साल पुरानी इस मार्केट में माज़ी के निशान तलाशने हम भी पहुंचे। अक्सर यहां से गुज़रने के बावजूद उन बातों पर गौर नहीं किया था जो इस बार किया। चूंकि मेन इमारत को चारों तरफ से घेर दिया गया था इसलिए उनके अंदर जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता लेकिन उसके आस-पास बनी मार्केट में आज भी उस दौर के कुछ किस्से टकरा गए। एक दुकान के बाहर आज भी हिंदी, इंग्लिश के साथ बंगाली में दुकान का नाम लिखा दिखा, हम दुकान के मालिक एससी सिन्हा से मिले। उन्होंने बताया कि उनके पिता पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले से यहां आए थे। वे उस दौर को याद करते हुए बताते हैं कि ''ये इलाक़ा बंगाली लोगों से भरा हुआ था, ये सारे उस ज़माने के सरकारी मकान हैं, उस ज़माने में (ब्रिटिश काल) सरकारी नौकरियों में बंगालियों की अच्छी-खासी संख्या थी तो उस वजह से यहां बंगालियों का प्रभाव दिखाई देता था। यहां बहुत से बंगालियों की दुकानें थीं, ये जो गोल चक्कर वाली गोल मार्केट है जो अभी बंद है इसमें भी बहुत ही शानदार रेस्टोरेंट थे, मछलियों की दुकान थी जिसमें एक 'फ्रंटियर फिश शॉप' थी, 'गैलिना' नाम का रेस्टोरेंट था।
ये बहुत चर्चित थे। उसमें एक जाना-माना कॉलेज था 'न्यू केसवानी पीटी कॉलेज' जिसकी वजह से स्टूडेंट्स की यहां बहुत भीड़ रहती थी, लेकिन फिर सब ख़त्म हो गया। सरकारी नौकरियों में जो बंगाली थे वे रिटायर होने के बाद इधर-उधर चले गए। वहीं जिन बंगालियों की पुरानी दुकानें थी वे भी वक़्त के साथ बंद हो गईं। बस हम ही टिके हुए हैं।'' एससी सिन्हा जब म्यूजियम बनने की बात सुनते हैं तो कुछ उखड़े हुए से कहते हैं ''ये मार्केट बीच में है और यहां बहुत भीड़ होती है, तो यहां आने-जाने वालों की दिक्कत बढ़ जाएगी, अभी अख़बारों से पता चल रहा है कि वे (NDMC) कह रहे हैं कि अंदर से रास्ता बना देंगे, इस दौरान कई दुकान तोड़ देंगे जिसकी वजह से उनकी नौकरी और जीने-खाने पर खतरा हो जाएगा जो कि ठीक नहीं है। रही बात म्यूज़ियम की तो अगर बाहर से लोग आते हैं तो पार्किंग की बहुत दिक्कत होने वाली है, तो मुझे ये अच्छा आइडिया नहीं लग रहा है पर अब क्या बताएं।'' और फिर वे अपनी बात ख़त्म करते करते कहने लगे ''उस दौर में थिएटर बहुत चलता था। यहां के बंगाली थिएटर में बहुत लोग आते थे।''
पुरानी दुकान
लाहौर से दिल्ली पहुंची एक दुकान की कहानी
बुजुर्ग एससी सिन्हा कुछ मायूस दिखते हैं कि गुज़रे कल की जो यादें उन हेरिटेज इमारतों में बसी हैं, वे पुन:स्थापन(Restoration) के साथ कहीं गुम न हो जाएं। यहां मौजूद 'दिल्ली स्वीट हाउस' में हमें राजेश मिले वे बताते हैं कि उनकी दुकान 92 साल पुरानी है, वे कहते हैं कि ''ये दुकान ब्रिटिश टाइम की है'' दुकान में बेहद व्यस्त होने की वजह से वे हमसे ज़्यादा बात नहीं कर पाए। यहां एक दुकान पर नज़र पड़ी जिस पर लिखा था 'कराची हलवा हाउस' पूछताछ करने पर पता चला कि ये भी पुरानी ही दुकान थी लेकिन पांच साल पहले बंद हो गई। यहां हमें एक बहुत ही ख़ास दुकान दिखाई दी और इसके बोर्ड पर भी 1920 लिखा था। दुकान में मौजूद एक शख्स हमसे ऑफिशियल बातचीत करने को तो तैयार नहीं थे लेकिन उन्होंने अपनी दुकान में जो बाइडेन से लेकर बीटल्स बैंड के साथ अपने पिता की तस्वीर दिखाई, साथ ही पंडित रविशंकर की तरफ से दुकान के बारे में की गई तारीफ भरा पत्र भी दिखाया। लाहौर से शुरू हुआ इस दुकान का सफर आज अमेरिका तक पहुंच गया है। ये दुकान अपने आप में एक पूरी कहानी थी।
दुकान में कभी बीटल्स बैंड आया था
हमने गोल मार्केट के बारे में कुछ और जानकारी तलाश करने की कोशिश की तो लेखक/ इतिहासकार सोहेल हाशमी का गोल मार्केट पर दिए इंटरव्यू पर नज़र गई जिसमें वे 1960 के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि -
'' गोल मार्केट की पहली मंजिल पर एक रीडिंग रूम था जिसे NDMC चलाता था, हम वहां रेगुलर जाते थे और न्यूज़ पेपर और मैगजीन पढ़ा करते थे।'' साथ ही वे यहां स्थित दिल्ली की सबसे पहली बंगाली मिठाइयों की दुकानों को भी याद करते हैं।
सदियों पुरानी दिल्ली दुनिया की उन जगहों में से एक है जिसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान रही है, इसकी हर गली हर कूचा, हर रोड अपने में कोई ना कोई किस्सा कहानी समेटे है। ऐसे में गोल मार्केट की मेन हेरिटेज बिल्डिंग को तोड़े बग़ैर Restoration कर उसे न्यू लुक दिया जाएगा। और ये नया लुक लुटियंस की दिल्ली कहे जाने वाले इलाके की क्या तस्वीर पेश करता है ये 2024-25 में ही साफ हो पाएगा।
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