दिल्ली यूनिवर्सिटी: एडहॉक टीचर की आत्महत्या या ''इंस्टीट्यूशनल मर्डर'' ?
''अभी तीन दिन पहले ही हमने किरोड़ीमल कॉलेज में लंबे समय से पॉलिटिकल साइंस पढ़ा रहे टीचर्स को हटाने के विरोध में प्रदर्शन किया था और कल शाम हमें हिन्दू कॉलेज के टीचर के बारे में ये ख़बर मिली, हम सब सुन्न रह गए।'' यह कहना था प्रदर्शन करने वाले छात्रों का।
नौकरी जाने पर आत्महत्या?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिन्दू कॉलेज में एडहॉक टीचर समरवीर (Samavir ) ने बुधवार को आत्महत्या कर ली है, समरवीर 33 साल के थे और हिन्दू कॉलेज में फिलॉसफी पढ़ाते थे, उन्हें 11 फरवरी को कॉलेज से हटा दिया गया था। बताया जा रहा है कि नौकरी से हटाए जाने के बाद से वे बेहद परेशान थे और डिप्रेशन में थे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जैसे ही पुलिस को PCR कॉल मिली वे मौक़े पर पहुंचे और दरवाज़ा तोड़कर अंदर गए और समरवीर को अस्पताल ले गए जहां उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।
छात्रों और प्रोफेसर का प्रदर्शन
शिक्षक समरवीर की मौत को दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई प्रोफेसर ने ''इंस्टीट्यूशनल मर्डर'' बताया। इस मौत से दुखी छात्रों ने आज हिन्दू कॉलेज के बाहर एक विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रोटेस्ट की कॉल ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (AISA) की तरफ से दी गई थी, बैनर-पोस्टर लेकर पहुंचे छात्रों ने कॉलेज प्रशासन के खिलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की और जवाब मांगा कि आख़िर इस मौत के लिए कौन जिम्मेदार है? इस दौरान छात्रों ने जो पोस्टर लिए थे उन पर लिखा था
-Justice to Professor Samarvir! Stop this injustice towards our teachers!
-No more displacement! No more snatching away livelihoods!
- We stand with the adhoc teacher's struggle demanding job security !
Justice for Samarveer
AISA Protest #DU pic.twitter.com/YJCFZ6tnoS— nazma khan (@nazmakh60689470) April 27, 2023
प्रदर्शन के दौरान एक छात्र ने कहा कि ''प्रोफेसर समरवीर जो हिंदू कॉलेज में फिलॉसफी पढ़ाते थे, उन्हें फरवरी में हटा दिया गया, सालों से जो इस कॉलेज को अपना श्रम दे रहे थे उन्हें एक झटके में निकाल दिया गया, हम देखते हैं कि हर जगह चाहे वे रामजस हो या फिर किरोड़ीमल जगह-जगह पर टीचर्स जिन्होंने अपना श्रम इस यूनिवर्सिटी को दिया, उनको बाहर करके सिर्फ़ एक क्राइटेरिया इस यूनिवर्सिटी ने तय कर दिया है और वे क्राइटेरिया है कि आपने ABVP में कितना काम किया है, आप RSS की शाखा में कितनी बार जाते हैं? किस हद तक अपना ज़मीर मार सकते हो अगर ये क्राइटेरिया टीचर होने का है, तो ये यूनिवर्सिटी, उसका क्राइटेरिया आज पूरी तरह से ध्वस्त होने की स्थिति में है, हमने KMC ( किरोड़ीमल) में देखा पॉलिटिकल साइंस के छात्रों ने अपने टीचर्स को बचाने के लिए एक ज़बरदस्त प्रोटेस्ट किया, रामजस के हिस्ट्री डिपार्टमेंट में भी हमने ऐसा ही देखा, साथियों आज हम यहां ये कहने के लिए जमा हुए हैं प्रोफेसर समरजीत के साथ जो हुआ वे आत्महत्या नहीं एक मर्डर है, वे संस्थानिक हत्या है, और जगह-जगह हमें ये देखने को मिल रहा है कि अगर आप लोकतंत्र के साथ खड़े हैं तो आपकी नौकरी पर, आपकी रोटी पर, आपकी आज़ादी पर हर तरह से हमला करने के लिए ये प्रशासन, ये सरकार तैयार है, हम लोग इस मांग के साथ यहां आए हैं कि प्रोफेसर समरवीर की संस्थानिक हत्या की जिम्मेदारी प्रशासन को लेनी होगी और हमें भरोसा देना होगा कि बगैर किसी राजनीतिक भेदभाव के प्रोफेसर की नियुक्ति होगी''
प्रोफेसर समरवीर की मौत पर हिंदू कॉलेज के बाहर AISA का प्रोटेस्ट
इस प्रोटेस्ट में आइसा से जुड़ी अंजलि ने कहा कि '' हमने देखा कि लंबे समय से बड़े स्तर पर टीचर्स को निकाला जा रहा है (एडहॉक) 425 में से 300 टीचर्स आज की तारीख में displaced हैं, हर कॉलेज का इसी तरह का आंकड़ा है 50-60 टीचर्स निकाले जा रहे हैं और इसी कड़ी में हम देखते हैं कि हिंदू कॉलेज के फिलॉसफी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर समरवीर प्रशासन द्वारा हटाए जाते हैं और जब उनके पास कोई चारा नहीं बचता तब वे आत्महत्या कर लेते हैं, तो देखा जाए तो ये आत्महत्या नहीं इंस्टीट्यूशनल मर्डर है, आप एक व्यक्ति से उसके जिन्दा रहने का ज़रिया छीन ले रहे हैं, उसका जुनून, उनका आत्मसम्मान छीन ले रहे हैं, और ये वे टीचर हैं जो प्रगतिशील सोच रखते हैं''।
अलग-अलग कॉलेज के छात्र हिंदू कॉलेज के आगे प्रोटेस्ट करते हुए
''गहरे डिप्रेशन में थे समरवीर''
इस प्रोटेस्ट में शामिल हुईं DUTA ( Delhi University Teachers Association) की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण ( Nandita Narain ) से भी हमने लंबी बात की उन्होंने बताया कि वे शिक्षक समरवीर को बहुत अच्छी तरह से तो नहीं जानती थीं लेकिन वे उनसे मिल चुकी थीं। वे बताती हैं कि '' मुझे कल रात सोशल मीडिया के ज़रिए पता चला था, वे बहुत ही गहरे डिप्रेशन में थे, वे कॉलेज में सात साल से ज़्यादा से पढ़ा रहे थे और जिस दिन उन्हें हटाया गया, ये जिसे हम क़त्ल-ए-आम कह रहे हैं यह यूनिवर्सिटी में चल रहा है। बहुत सारे लोग गहरे डिप्रेशन से गुज़र रहे हैं। ये यूनिवर्सिटी एक बारूद के ढेर की तरह हो गई है जिसमें बहुत ही विस्फोटक हालात बन गए हैं, ये कभी भी किसी ने नहीं सोचा था कि जो इतने सालों से पढ़ा रहे हैं उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा, और ये प्री-डिजाइन तरीके से बाहर से एक्सपर्ट बुलाए जा रहे हैं, वाइस चांसलर बुला रहे हैं और अपने नॉमिनी भेज रहे हैं और पहले से तय लिस्ट जा रही है और दो-दो मिनट के इंटरव्यू करके इतने लंबे समय से पढ़ाने वाले होनहार टीचर्स को बाहर किया जा रहा है।''
''इंस्टीट्यूशनल मर्डर कहलाएगा''
प्रोफेसर नंदिता, समरवीर को जब 11 फरवरी को निकाला गया था उस दिन को याद करते हुए बताती हैं कि '' मुझे किसी ने जानकारी दी थी कि हिंदू कॉलेज में फिलॉसफी में लोगों को निकाला गया है तो मैं गई थी वहां दो बजे के क़रीब और समरवीर को फोन किया था, मैं उनसे मिली भी वे बहुत डिपरेस थे, उनके टीचर इंचार्ज से मिली मैंने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो उन्होंने कहा कि ये तो सिलेक्शन कमिटी ने तय किया, तो ये तो सिलेक्शन कमिटी मनमानी कर रही हैं, वे बेस्ट टीचर जिन्होंने पूरा डिपार्टमेंट चलाया है उनको ही बाहर कर रहे हैं ये तो इंस्टीट्यूशनल मर्डर ही कहलाएगा''
प्रोफेसर नंदिता, समरवीर के घर के हालात के बारे में भी बताती है कि '' समरवीर ने पहले तो अपने घर पर नहीं बताया। इनका परिवार राजस्थान में है, ये शादीशुदा नहीं थे, 33 साल के थे। जब उनकी मां को पता चला कि समरवीर को नौकरी से हटा दिया गया है तो उन्हें बहुत सदमा लगा, मां की एक आंख की रोशनी चली गई, आप जितने भी लोगों को निकाला गया है उनके परिवार के बारे में पता कीजिए उनके परिवार वालों का बहुत बुरा हाल है किसी के परिवार में माता-पिता को हार्ट अटैक हो रहा है क्योंकि ये लोग सिर्फ़ कमा नहीं रहे थे बल्कि कई तो ऐसे हैं जो अपना घर चलाने वालों में से एक थे, जिनके बीवी बच्चे हैं उनका तो और बुरा हाल है। बहुत से लोग तनाव में चले गए। समरवीर बहुत होशियार थे मुझे उनके साथ काम करने वाले एक साथी ने बताया कि समरवीर उन प्रोफेसर में से थे जो आगे चलकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी का नाम कमाने वालों में से एक थे, लेकिन उन्हें निकाल दिया गया''।
प्रोफेसर नंदिता बताती है कि समरवीर अकेले नहीं है जो इस वक़्त मानसिक तनाव से गुज़र रहे थे बहुत से लोग हैं जो ऐसी ही मानसिक स्थिति से गुज़र रहे हैं, '' मुझे पहले से ही डर था कि जिन एडहॉक टीचर्स को निकाला जा रहा है वे कोई ग़लत क़दम ना उठा लें, हम सबको दिलासा दे रहे थे कि हम सब मिलकर लड़ाई लड़ेंगे लेकिन उम्मीद टूटती जा रही थी, ये लोग जहां भी इंटरव्यू में जा रहे थे दो-दो मिनट का इंटरव्यू कर बाहर निकाल दिया जा रहा था, इनके पास कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं थे जिनके हैं उनको लिया जा रहा है।''
क्या प्रगतिशील सोच वाले प्रोफेसर निशाने पर हैं?
हमने छात्रों और प्रोफेसर से बात कर ये जानने की कोशिश की कि जिन टीचर्स को हटाया गया है क्या उसके पीछे कोई ख़ास वजह दिखती है? इसके जवाब में प्रोफेसर नंदिता कहती हैं कि '' हां ये बात कुछ हद तक सही है'' जबकि KMC के छात्र बताते हैं कि ''हमारे तीन टीचर्स को निकाला गया जो पॉलिटिकल साइंस के बेहतरीन टीचर्स थे प्रो. पंकज, प्रो. आकांक्षा, प्रो. मेहंदी हसन जो हमारे डिपार्टमेंट की रीढ़ थे उन्हें निकाल दिया गया। ये वे टीचर्स थे जिनकी क्लास इतनी शानदार होती थी कि जब वे पढ़ाते थे तो दूसरे टीचर्स जिन्हें परमानेंट किया गया है उनकी क्लास छोड़कर इन टीचर्स की क्लास में स्टूडेंट्स आते थे, उनकी क्लास खचाखच भरी रहती थी, ये वे टीचर्स हैं जो बहुत ही प्रगतिशील सोच वाले टीचर्स थे, ये वे लोग हैं जो पढ़ाई के साथ ही समाज के बारे में भी लिखते-पढ़ते रहते हैं, ये बस जो सत्य है वे अपनी क्लास में रख देते थे उनकी क्लास में कभी-कभी तो सौ-डेढ़ सौ स्टूडेंट तक पहुंच जाते थे''।
प्रो. नंदिता बताती हैं कि ये वे टीचर हैं जो अपना काम बहुत ही समर्पित ढंग से करते रहे हैं लेकिन उन्हें टारगेट कर निकाल दिया गया। वे बार-बार समरवीर की मौत को एक इंस्टीट्यूशनल मर्डर बताती रहीं और कहा कि उन्हें पहले से ही अंदेशा था कि एडहॉक टीचर्स बहुत ज़्यादा मानसिक तनाव में हैं और इसी के मद्देनज़र पहले 18 अप्रैल फिर 25 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का इरादा था लेकिन वे कुछ कारणों से नहीं हो पाई तो अब वे प्रेस कॉन्फ्रेंस 2 मई को होगी और उसमें यूनिवर्सिटी के उन कॉलेज को ख़ासतौर पर बुलाया जाएगा जहां से 90 फीसदी तक एडहॉक टीचर्स को हटाया गया है।
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इस घटना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के उन छात्रों और प्रोफेसर को हिलाकर रख दिया है जो टीचर समरवीर को जानते थे, DTI ( Delhi teachers initiative ) की को-कन्वेनर डॉ. उमा गुप्ता से भी हमारी बात हुई वे बेहद उदास थीं उनका कहना था कि'' अब देखिए इसपर क्या ही कहा जा सकता है, इस घटना ने सबको बहुत सदमा दे दिया है, आज मेरे बहुत सारे एडहॉक साथी बहुत ही बिखरे हुए मिले, वे काफी दुखी थे क्योंकि वे उस दर्द को कहीं ना कहीं महसूस कर पा रहे थे क्योंकि वे ख़ुद भी इससे जुड़े हुए हैं, कई लोग जिन्होंने एडहॉक टीचर्स के तौर पर अपना करियर शुरू किया था उनमें से कई लड़कियां मां बन चुकी हैं, कई पुरुष शादी कर चुके हैं और पूरी तरह से उनका परिवार उन पर निर्भर है तो ऐसे परिवारों के लिए उनकी नौकरी का जाना घर में किसी मौत से कम नहीं है, ये बहुत ही दुखद है और इसके बाद विरोध-प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हुआ है और ये आगे भी जारी रहेगा, शिक्षक समुदाय इतनी आसानी से तो अपने साथी की जो जान गई है उसको जाने नहीं देगा''
सोशल मीडिया पर ग़ुस्सा
टीचर समरवीर की मौत से सोशल मीडिया पर भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के टीचर्स का ग़ुस्सा दिखाई दिया।
किसी ने एक कविता के माध्यम से इस मौत के दर्द को बयां किया -
दिल्ली विश्वविद्यालय में नियुक्तियों की आड़ में
किया जा रहा क़त्ल ए आम
छात्र परेशान, टीचर्स आत्महत्या कर रहे हैं क्या यही है नई शिक्षा नीति ? आख़िर क्यों ऐसे हालात बन रहे हैं? जिस शिक्षा के मंदिर में छात्र ज्ञान लेने के लिए पहुंचते हैं वहां आए दिन प्रदर्शन ही प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन बावजूद प्रशासन को बात समझ में नहीं आ रही।
टीचर समरवीर का इस तरह से जाने अपने आप में बहुत से सवाल खड़े कर रहा है एक क़ाबिल शिक्षक जो आगे चलकर न सिर्फ़ छात्रों का भविष्य संवारना चाहता था बल्कि अपने कॉलेज और यूनिवर्सिटी का नाम रौशन करने की काबिलियत रखता था, लेकिन जब पता चला कि नौकरी से हटाए जाने के बाद वे गहरे मानसिक तनाव में चला गया है तो भी उसे उस नाउम्मीद की राह पर चलने से रोकने की कोशिश नहीं की गई और नतीजा आज सबके सामने है और इसी वजह से उनके साथी इस मौत को ''इंस्टीट्यूशनल मर्डर'' करार दे रहे हैं।
यहां बार-बार यही सवाल उठता है कि 10-10 साल से पढ़ा रहे एडहॉक टीचर्स को हटाने का सिलसिला इस बात की चेतावनी दे रहा था कि इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे, पर फिर भी इस चेतावनी को अनसुना क्यों किया गया?
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