विमर्श: ‘2014 के बाद सोशल मीडिया युद्धक्षेत्र में तब्दील हो गया है'
पटना। न्यूज़पोर्टल 'द आज़ादी' (The Azadi) की ओर से 'वैकल्पिक मीडिया की भूमिका और चुनौतियाँ' विषय पर विमर्श का आयोजन 'मैत्री शान्ति भवन' में किया गया। विमर्श में बड़ी संख्या में छात्र, युवा, सामजिक कार्यकर्ता, पत्रकार मौजूद थे।
स्वागत वक्तव्य देते हुए ' द आज़ादी' के अभिषेक ने बताया " हमलोग अपने पोर्टल के माध्यम से कोशिश कर रहे हैं कि एक वैकल्पिक व जनपक्षधर मीडिया खड़ा कर सकें जिसमें लोगों के जीवन से जुड़ी समस्याओं को उठाया जा सके।"
मुख्यधारा और वैकल्पिक मीडिया के पत्रकार पूरी दुनिया में मारे जा रहे हैं : बिद्युतपाल ( सम्पादक, बिहार हेराल्ड )
बिहार की सबसे पुरानी (1874 से निकलने वाली) अंग्रेज़ी पत्रिका ' बिहार हेराल्ड' के सम्पादक बिद्युतपाल ने विमर्श में भाग लेते हुए कहा " मुख्यधारा और वैकल्पिक मीडिया के पत्रकार पूरी दुनिया में मारे जा रहे हैं। जब भी हम वैकल्पिक की बात करते हैं तो इसका मतलब होता है कि कोई मुख्य होता है और फिर उसके खिलाफ हमें होना है। मुख्यधारा की मीडिया में हमारे न्यूज न आने का जो अहसास या कहें उत्पीड़न है उसी ने वैकल्पिक मीडिया के लिए राह तलाशने के लिए प्रेरित किया। चाहे आप यूट्यूब पर काम कर रहे हैं या फेसबुक या इंस्टाग्राम पर काम कर रहे हैं उनपर हमला आगे बढ़ेगा।
यह हमला इन माध्यमों के 'अलगोरिदम' को बदलने के माध्यम से भी हो सकता है। आज चिली में क्या हो रहा है उसे हम आज जानना चाहते हैं जबकि पहले कुछ वर्षों पहले नहीं भी जानते तो पता नहीं चलता था । वैकल्पिक मीडिया जैसे भाजपा का आई।टी सेल काफी सक्रिय है। व्हाट्सऐप, फेसबुक पर आईटी सेल अपनी सामग्री को शातिर तरीके से आगे बढ़ाता है। इंटरनेट के कारण सोशल मीडिया पटना में चलाना आसान होता है लेकिन दूरदराज की जगहों पर थोड़ी मुश्किल होती है। हम वैकल्पिक मीडिया के तौर पर अपने शहर में ' खबर कोना' बना सकते हैं। जहां प्रतिदिन या सप्ताह में दुनिया भर की वैसी खबरों को साझा किया जाये जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया नहीं दिखाता।"
सरकार अल्टरनेटिव मीडिया की विश्वसनीयता को मेनस्ट्रीम की तरह ही बर्बाद कर रही है: संतोष सिंह ( पूर्व सम्पादक, कशिश न्यूज )
बिहार में चर्चित न्यूज चैनल 'कशिश न्यूज' के पूर्व सम्पादक रहे संतोष सिंह ने कई उदाहरणों के माध्यम से बताया " मुझे ईटीवी (ETV) और 'कोशिश न्यूज' की नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि उसे चलाने वालों को उनके राजनीतिक हितों के अनुकूल खबरें चाहिए थीं। कुछ सालों पहले बिहार में जेएनयू में पढ़ने वाली एक लड़की की आत्महत्या के बाद मुझे सोशल मीडिया के महत्व का एहसास होने लगा। 2014 के बाद सोशल मीडिया युद्धक्षेत्र में तब्दील हो गया। भाषा की मर्यादाएँ टूटने लगी हैं। अब स्थिति ये है कि या तो आप नरेंद्र मोदी के साथ हैं या उनके विरोध में हैं। इस कारण छोटी जगहों पर पत्रकारों को काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। अल्टरनेटिव मीडिया को भी अपनी सीमाओं को समझना होगा। राईट टू स्पीच के अलावा आपके पास कोई अधिकार नहीं है। किसी सरकारी स्कूल में जाकर शिक्षक से पूछताछ का काम नहीं कर सकते। अब हर जिले में अखबार निकलता है समस्तीपुर की खबर पटना में नहीं छपती। पहले मीडिया का जो व्यापक प्रभाव था वह समाप्त हो गया है। कई जगह अल्टरनेटिव मीडिया मेनस्ट्रीम से भी ज्यादा बुरी भूमिका निभा रहा है क्योंकि उन्हें बेसिक जानकारी भी मीडिया की नहीं है। मामूली समझदारी भी उन्हें नहीं है। सरकार वैकल्पिक मीडिया की विश्वसनीयता को ठीक उसी तरह बर्बाद कर रही है जैसे उसने मुख्यधारा की मीडिया को किया है। वामपंथी लोगों से मुझे हमेशा बुनियादी जानकारी मिलती है। भाजपाई कभी ढंग की खबर नहीं बताते। बहुत होगा तो रिलीज भेज देगा। या वे सिर्फ हिन्दू -मुस्लिम का बात करेंगे या फिर गाय को लेकर खबर बताएंगे। किसी खबर से हिन्दू -मुसलमान में तनाव बढ़े तो वह खबर हमें क्यों चलानी चाहिए? एक असली पत्रकार की पहचान यही है कि आपको वामपंथी, भाजपाई, सामजिक न्यायवादी सबसे गाली सुनना पड़े। आजकल बिहार के गाँव -गाँव में ' शिवचर्चा' जोरों से चल रही है। इस पर हमने रिपोर्ट शुरू किया। आपको अंदाजा नहीं कि शिव चर्चा के माध्यम से कैसे महिलाओं के अंदर साम्प्रदायिक विष बोकर उनका धार्मिक आधार पर विभाजन किया जा रहा है। गाँवों में जबसे वामपंथी लोगों ने जाना छोड़ दिया है तभी से यह समस्या बढ़ी है। "
वैकल्पिक मीडिया में स्किल्ड लोगों की कमी है: डॉ. रंजीत (पत्रकार, ई.टी.वी भारत)
'ई टी वी भारत' के वरिष्ठ पत्रकार डॉ रंजीत ने बताया " मैं सोशल मीडिया का सबसे पुराना आदमी हूं। वैकल्पिक मीडिया में कई तो ऐसे लोग हैं जो स्किल्ड नहीं हैं जबकि बहुत ऐसे लोग हैं जो अपने एथिक्स को जानते हैं। जिसका कंटेंट कमजोर होता है, आपत्तिजनक है उसे फैलाएं नहीं। ऐसे कंटेट का समाज पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है उसे प्रोमोट नहीं करें। हमें इस दिशा में कंशस होना चाहिए। ये सामूहिक जिम्मेदारी है। ऐसे कंटेंट के बारे में उचित प्लेटफ़ार्म पर रखें।"
मेनस्ट्रीम या वैकल्पिक मीडिया में कंटेंट ही किंग होता है : अमरनाथ तिवारी (वरिष्ठ पत्रकार, द हिन्दू )
'द हिन्दू' के अमरनाथ तिवारी ने बताया " सोशल मीडिया अभी संक्रमण के काल में है। इसे स्थापित होने में अभी समय लगेगा। इसकी शुरुआत 1960 में अमेरिका में हुई जब 'बांजो जर्नलिज्म' कहा जाता था जिसमें वे सरकार को गाली देते हैं। हमारे ट्रेडीशनल मीडिया में सम्पादकों की एक टीम हुआ करती है लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसा कुछ नहीं होता। दूसरा सवाल यह है कि आप संसाधन कहाँ से जुटाएंगे ? पत्रकार निर्भय होकर काम करें इसके लिए आपका संस्थान आपके साथ हैं या नहीं? जैसे मैं जानता हूं कि मेरा संस्थान मेरे साथ रहेगा। मैं जब कोई स्टोरी करता हूं तो फैकट्स को कई बार चेक करता हूं। कंटेंट ही किंग होता है। रवीश कुमार या पुण्य प्रसून वाजपेई कंटेंट के कारण ही जाने जाते हैं जो कि गोदी मीडिया नहीं दिखाता है।"
लोग टेक्सट के बजाय विजुअल रिपोर्ट पसंद करते हैं : सीटू तिवारी (पत्रकार, बीबीसी )
बीबीसी की पत्रकार सीटू तिवारी ने कहा " सोशल मीडिया इतना महत्वपूर्ण होता है कि हर जगह सोशल मीडिया मैनेजर रखा करते हैं। आजकल लोग टेक्स्ट रिपोर्ट के बारे में कम और विजुअल रिपोर्ट अधिक पसंद करते हैं। जो महिलाएं बाहर रहती हैं तो महिलाएं न्यूज सर्कल का अंदर आ जाती हैं। पत्रकार की रिपोर्ट में पत्रकार नहीं तथ्य रहना चाहिए। मीडिया में जो कंगाली आ रही है वह चिंताजनक है लेकिन साथ ही सिटीजन्स जर्नलिज्म भी बढ़ रहा है। अभी हम लखनऊ रहे तो वहां की रिपोर्ट देखे तो हिन्दू -मुसलमान का साफ -साफ विभाजन दिख रहा है। उत्तरप्रदेश की हालात तो बेहद खराब है सत्ता की चाटुकारिता का मामला है। यदि ठीक से काम होता है तो लोग खुद भी देखेंगे। सोशल मीडिया चुनौती भी है और भविष्य भी है। "
पूंजीपति घरानों के बीच वाम दलों की पत्रिकायें हैं वह भी एक वैकल्पिक माध्यम हैं - सुमंत शरण (साप्ताहिक 'जनशक्ति')
पटना से निकलने वाली साप्ताहिक पत्रिका 'जनशक्ति' की सम्पादकीय टीम से जुड़े सुमंत शरण के अनुसार " वैकल्पिक मीडिया जिसे रिप्रेजेंट करता है वह आज लुंपन पत्रकारिता है, मीडिया का विकृत रूप है। सत्तर -अस्सी के दशक में साहित्य में, सिनेमा में एक स्वरूप उभरा था चाहे वह समानांतर सिनेमा हो, साहित्य हो या फिर लघु पत्रिकाओं का दौर उभरा था वह असल में विकल्प की बात करता था। लेकिन आज वर्तमान दौर में इसी दौर में पी साइनाथ जैसे पत्रकार हैं जो गाँवों की दुर्दशा पर फोकस करते हैं ग्रामीण समस्याओं को लेकर चलता है। ठीक ऐसे ही एक ' खबर लहरिया' चलता है बुंदेलखंड से। मीडिया के बारे में आपको यह भी देखना होगा कि उसका चरित्र क्या है ? पूंजीपति घरानों के बीच वाम दलों की पत्रिकायें हैं वह भी एक वैकल्पिक माध्यम है। कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार 'जनशक्ति' की विश्वसनीयता बहुत ज्यादा थी। पर्यावरण को लेकर कहाँ चिंता दिखती है।"
वैकल्पिक मीडिया के लिए कारपोरेट घराने की आवश्यकता नहीं है - सुनील सिंह (कंटेंट जेनरेटर)
सोशल मीडिया के कंटेंट जेनरेटर सुनील सिंह के अनुसार " वैकल्पिक मीडिया भारत में हमेशा से रहा है। मेनस्ट्रीम के मीडिया में जो बात बताई जाती थी हम उसे मानते थे। मेनसट्रीम अपने मुनाफा के दृष्टिकोण से काम करते हैं, पूंजी के लाभ के लिए काम करते हैं। सरकार ने मेनसट्रीम मीडिया को कब्जे में कर लिया है लेकिन वैकल्पिक मीडिया मुनाफे के लिए काम नहीं करता। भारत में 1995 में वैकल्पिक मीडिया आया। फिर 2005 में प्रधानमंत्री ने उसे लोकप्रिय बनाया वहीं दूसरी ओर 'द वायर', ' न्यूज़क्लिक' जैसे वैकल्पिक चैनल है। वैकल्पिक मीडिया के लिए कारपोरेट घराने की आवश्यकता नहीं है। अभी भी मेनसट्रीम मीडिया का प्रभाव ज्यादा है न्यूज को कैसे मैन्युपुलेट किया जाता है इसका आज उदाहरण मुख्यधारा में हम सब देख रहे हैं।"
जनवादी बदलावों चाहने वाले को अपना मीडिया खड़ा करना होगा- अशोक कुमार सिन्हा (स्वतंत्र लेखक)
स्वतंत्र लेखक अशोक कुमार सिन्हा ने अपने सम्बोधन में कहा " सोशल मीडिया का स्वामित्व कहीं से भी सोशल नहीं है। बड़ी-बड़ी निजी कम्पनिया उसकी मालिक है। यदि हम पुराने ढंग से देखें कैमूर के बगल में जो भित्तिचित्र है वह भी एक तरह से मीडिया का ही रूप है। मन में कोई भावना है तो उसे अभिव्यक्त करना भी मीडिया ही है। मीडिया का तकनीक वर्गनिरपेक्ष होता है लेकिन समाज में सत्ता के जब एक से ज्यादा प्रतिद्वंदी होंगे तो संकट रहेगा। अखबार में काम करने वाले को अखबार के बाहर रचने के लिए कुछ नहीं होता है। वह समाचार लिखने वाला एक मज़दूर रहता है। मुख्यधारा का मीडिया उसे नहीं करने देता। किसी भी पत्रकार को तथ्य के साथ रहना चाहिए। सत्य हमेशा जनवादी आकांक्षाओं के साथ खड़ा होता है। वामपंथी विकल्प के साथ लोगों को तथ्य के साथ खडे रहने चाहिए भले उसका तात्कालिक लाभ न मिले। जनवादी बदलाव चाहने वाले को अपना मीडिया खड़ा करना होगा। "
अंत में सवाल-जवाब का भी सत्र चला। जिसमें जयप्रकाश, अमरनाथ सिंह , गोपाल शर्मा आदि ने वक्ताओं से सवाल पूछे। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक कुमार जबकि धन्यवाद ज्ञापन जयप्रकाश ने किया।
इस विमर्श में शामिल प्रमुख लोगों में थे राजकुमार शाही, जयप्रकाश, डॉ अंकित, अमनलाल, बिट्टू भारद्वाज, अमरनाथ सिंह, गोपाल शर्मा, अक्षय, गौतम ग़ुलाल, मीर सैफ अली, तौसीफ़, कपिलदेव वर्मा, जीतेन्द्र कुमार, ओसामा खुर्शीद आदि।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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