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'भारत में आर्थिक असमानता अब ब्रिटिश राज से भी ज़्यादा बढ़ गई है'

हाल ही में जारी किए गए विश्व असमानता डेटाबेस पेपर के अनुसार, मोदी राज के तहत, भारत की शीर्ष 1 फीसदी आबादी के पास आय की हिस्सेदारी दुनिया में सबसे अधिक है, यहां तक कि यह दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है।
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दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, जो 81 करोड़ गरीब भारतीयों को मुफ्त राशन उपलब्ध करा रहा है, वहां "अरबपति राज" भी है। (प्रतीकात्मक छवि)

नई दिल्ली: हाल ही में जारी विश्व असमानता डेटाबेस के नए पेपर में कहा गया है कि भारत घुमावदार लंबे राजमार्गों और एक्सप्रेसवे, चमकदार हवाई अड्डों, मॉल और स्काईलाइनों के बनाने का दावा तो कर सकता है, लेकिन जब आर्थिक असमानता की बात आती है, तो यह ब्रिटिश राज के दौरान की तुलना में कहीं अधिक खराब हो गई है।

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, जो 81 करोड़ भूखे भारतीयों को मुफ्त भोजन उपलब्ध करा रहा है, वहां भी "अरबपति राज" है, जिसमें 2022-23 में शीर्ष 1 फीसदी आबादी के पास 22.6 फीसदी आय और 40.1 फीसदी संपत्ति है, जो "दुनिया में सबसे ज्यादा है" यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है'' इस नई रिपोर्ट में कहा गया है कि, ''यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह की असमानता का स्तर बड़े सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के बिना कितने समय तक बना रह सकता है।''

नितिन कुमार भारती, लुकास चांसल, थॉमस पिकेटी और अनमोल सोमांची की रिपोर्ट, भारत में आय और धन असमानता 1922-2023: ने अरबपति राज के उदय, राष्ट्रीय आय खातों, धन समुच्चय, कर तालिकाओं, समृद्ध सूचियों का संकलन किया है। भारत में आय और धन असमानता की दीर्घकालिक सजातीय श्रृंखला प्रस्तुत करने के लिए एक सुसंगत ढांचे में आय, उपभोग और धन का सर्वेक्षण किया गया है।

यह पेपर ऐसे समय में आया है जब सरकारी डेटा दुर्लभ है या जो भी उपलब्ध है वह देश की अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर नहीं बताता है और यह उपलब्ध डाटा बेरोजगारी, गरीबी, आय आदि की बात करते समय सतह पर आ जाता है।

प्रमुख निष्कर्षों में, पेपर ने पाया कि आज़ादी के बाद, 1980 के दशक की शुरुआत तक, आर्थिक असमानता में गिरावट आई थी। इसके बाद, यह बढ़नी शुरू हुई और '2000 के दशक की शुरुआत से आसमान छू गई थी।'

नरेंद्र मोदी सरकार के तहत 'क्रोनी कैपिटलिज्म' के साफ प्रतिबिंब के बारे में पेपर में कहा गया है कि "2014-15 और 2022-23 के बीच, शीर्ष स्तर की असमानता में वृद्धि विशेष रूप से धन संचय/एकाग्रता के मामले में स्पष्ट हुई है।"

“2022-23 तक, शीर्ष 1 फीसदी के पास आय और धन की हिस्सेदारी (क्रमश 22.6 फीसदी और 40.1 फीसदी थी) जो ऐतिहासिक तौर पर सबसे ऊंचे स्तर पर हैं और भारत की शीर्ष 1 फीसदी आबादी के पास आय की हिस्सेदारी दुनिया में सबसे अधिक है, यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है।''  

पेपर में यह भी एक "सूचक साक्ष्य" पाया गया कि भारतीय आयकर प्रणाली "शुद्ध संपत्ति यानी नेट वर्थ के लेंस से देखने पर प्रतिगामी" हो सकती है।

पेपर, बढ़ती आय असमानता को रोकने के लिए, आय और धन दोनों को ध्यान में रखते हुए कर व्यवस्था के पुनर्गठन का सुझाव देता है।

यह स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण पर अधिक सार्वजनिक निवेश की भी सिफ़ारिश करता है।

सार्वजनिक खर्च को ऊंचे स्तर पर ले जाने के लिए संसाधन जुटाने की जरूरत पर, पेपर "2022-23 में 167 सबसे धनी परिवारों की शुद्ध संपत्ति पर 2 फीसदी का सुपर टैक्स लगाने का सुझाव देता है, जिससे राजस्व में राष्ट्रीय आय का 0.5 फीसदी हासिल होगा और यह मूल्यवान वित्तीय निवेश का स्पेस तैयार करेगा।" 

पेपर में कहा गया है कि भारत के भौगोलिक आकार और जनसंख्या को देखते हुए, जो अब दुनिया में सबसे अधिक है, देश में आर्थिक विकास के वितरण का वैश्विक असमानता की गतिशीलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

पेपर यह भी कहता है कि, "असमानता के अध्ययन को बढ़ाव देने और साक्ष्य-आधारित सार्वजनिक बहस को सक्षम बनाने के लिए आधिकारिक डेटा उपलब्ध करना चाहिए जिससे डाटा तक बेहतर पहुंच और अधिक पारदर्शिता होगी।”

पेपर "असमानता के इतने ऊंचे स्तर" पर गहरी चिंता जताते हुए समाप्त होता है। इसमें कहा गया है कि "आय और धन की अत्यधिक एकाग्रता या संचय से समाज और सरकार पर असंगत प्रभाव पड़ने की संभावना है"।

इसमें कहा गया है कि कमजोर लोकतांत्रिक संस्थानों के संदर्भ में ऐसा और भी अधिक होता है।

पेपर यह भी कहता है कि, “पहले रहे औपनिवेशिक देशों के बीच भारत के एक रोल मॉडल होने के बाद, हाल के वर्षों में विभिन्न प्रमुख संस्थानों की अखंडता से समझौता किया गया लगता है। इसमें आगे कहा गया है कि, इससे भारत के धनतंत्र की ओर खिसकने की संभावना और भी अधिक वास्तविक हो जाती है।'' 

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