एल्गार परिषद मामला :'वरवर राव की हिरासत की स्थिति क्रूर, अमानवीय'
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय से कहा कि कवि वरवर राव की हिरासत की स्थिति क्रूर और अमानवीय है तथा अदालत को जेल से उनकी रिहाई के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए।
एल्गार परिषद-माओवादी से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ्तार राव नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल में विचाराधीन कैदी के रूप में बंद हैं। वर्तमान में वह मुंबई स्थित नानावती अस्पताल में भर्ती हैं।
पिछले साल दायर की गई एक रिट याचिका में राव की पत्नी हेमलता की ओर से पैरवी कर रहीं जयसिंह ने आरोप लगाया कि पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में राव को लगातार जेल में रखना जीवन के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
जयसिंह ने न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति मनीष पिताले की पीठ से बुधवार को कहा कि हिरासत की वजह से गरिमा और स्वास्थ्य के राव के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है तथा अदालत को जेल से उनकी रिहाई के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए।
जयसिंह ने कहा, ‘‘जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है...राव की हिरासत की स्थितियां क्रूर तथा अमानवीय हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘स्वास्थ्य और गरिमा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक मौलिक अधिकार है। जीवन और गरिमा का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।’’
अदालत ने हालांकि, कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के इस तरह के दावे ‘‘आम तौर पर किए जानेवाले’’ दावे हैं।
इसने कहा कि राव की आयु और स्वास्थ्य के संबंध में वह विशिष्ट तौर पर दलील दे सकती हैं।
इसी सुनवाई के दौरान इससे पहले अदालत ने चिकित्सा आधार पर जामनत के मुद्दे पर राव की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर की दलीलें भी सुनीं।
ग्रोवर की दलीलें पूरी होने के बाद जयसिंह ने अपनी दलीलें शुरू कीं।
मंगलवार को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह तथा राज्य के वकील दीपक ठाकरे ने अदालत को बताया था कि राव की हालत में सुधार हुआ है और नानावती अस्पताल के अनुसार उन्हें छुट्टी दी जा सकती है।
उच्च न्यायालय राव की पत्नी की ओर से दायर रिट याचिका पर बृहस्पतिवार को भी दलीलें सुनना जारी रखेगा।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पुणे पुलिस ने पिछले महीने 28 अगस्त को कवि और वामपंथी विचारक वरवर राव, अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और वेर्नोन गोंसाल्विस को गिरफ्तार किया था।
इस तरह के मामलों में देश के कई बुद्धजीवियों, पत्रकारों, लेखकों सहित समाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी हुई है। हालांकि, किसी भी मामले में पुलिस कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई है। इसमें आनन्द तेलतुम्बड़े के अतिरिक्त, सुधा भारद्वाज, सोमा सेन, अरुण फरेरा, वेरनॉन गोंजाल्विस, फादर स्टेन स्वामी, सुधीर धावले वरवरा राव, रोना विल्सन, गौतम नवलखा, जैसे बुद्धिजीवी भी शामिल हैं। यह सभी, आम लोगों के सम्मानपूर्वक जीने के हक के पक्ष में, कोर्ट से लेकर सड़क तक संघर्षशील रहे हैं। ये लोग स्वास्थ्य-शिक्षा मुफ्त मिले, इसके लिए निजीकरण का विरोध करते रहे हैं और उन आदिवासियों के साथ खड़े हुए जिनकी जीविका के संसाधन को छीन कर पूंजीपतियों के हवाले किया जाता रहा है। इसलिए ये लोग शासक वर्ग के आंखों के किरकिरी बने हुए थे।
सुधा भरद्वाज, सोमा सेन, अरुण फरेरा, वेरनॉन गोंजाल्विस, फादर स्टेन स्वामी, सुधीर धावले, वरवरा राव, रोना विल्सन भीमा कोरेंगांव केस में जून और सितम्बर, 2018 से ही महाराष्ट्र के जेलों में बंद हैं। जबकि उस केस के असली गुनाहगार संभाजी भिंडे और मिलिन्द एकबोटे बाहर हैं।
महाराष्ट्र में सरकार बदलने के बाद केन्द्र सरकार ने इस केस को एनआईए के हाथों में सुपुर्द कर दिया था। 18 माह बाद लम्बी कानूनी प्रक्रिया झेलने के बाद 14 अप्रैल 2020, को गौतम नवलखा और आनन्द तेलतुम्बड़े को एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा। तब से ही ये दोनों भी जेल में है।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
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