ज़ुबैर नहीं, पत्रकारिता को भेजा गया जेल
पत्रकारिता में फैक्ट चेकिंग की शुरूआत सन 1850 में हुई, इसका श्रेय कॉलिन डिकी को जाता है। उन्होंने ही पत्रकारिता में तथ्यों की जांच को फिर से सत्यापित करने के लिये अनिवार्य माना। अमेरिका में एसोसिएटेड प्रेस की स्थापना के बाद सन 1850 में फैक्ट चेकिंग को महत्व देना शुरू किया, और महान पत्रकार पुलित्ज़र हेनरी लूस और टाइम मैग्ज़ीन ने फैक्ट चेकिंग को इसी समय मान लिया। फैक्ट चेकिंग का एक विभाग द न्यूयॉर्कर स्थापित किया गया। कहने का तात्पर्य यह है कि अमेरिका जैसी विकसित अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र अपनी पत्रकारीय बुराई को सन 1850 में ही स्वीकार कर चुका था। इसे सामान्य बात कहें अथवा हमारी विशेषता कि भारत में पत्रकारिता में फैक्ट चेकिंग को सन 2014 से पहले कोई महत्व ही नहीं दिया जाता था। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद जिस तरह मीडिया के स्वामित्व में बड़े बदलाव हुए, जहां संपादकों के बजाय अख़बारों, और टेलीविज़न चैनलों के मालिकों को कथित रूप से मैनेज किया जाने लगा, तब से भारत में फैक्ट चेकिंग के महत्व समझा गया। फैक्ट चेकिंग का ही दूसरा हिस्सा है फेक न्यूज़, और भारत में इस विचार को स्थापित रूप से आने वाले दो लोगों में एक हैं प्रतीक सिन्हा और दूसरे हैं मोहम्मद ज़ुबैर! मोहम्मद ज़ुबैर के ‘पाप’ यहीं से शुरू होते हैं कि उन्होंने उस गंदे नाले की सफाई करने की क्यों ठानी जिसे गंदा नाला माना ही नहीं गया था। ज़ुबैर द्वारा फेक न्यूज़ और पत्रकारिता में फैक्ट चेक करना सत्ताधारी दल के नेताओं, सत्ताधारी दल के अनुषांगिक संगठनों के लोगों को इतना अखरा कि उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। 27 जून की शाम को फैक्ट चेकर ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। उनकी गिरफ्तारी का विपक्षी दलों के नेताओं से लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया तक ने विरोध किया है। लेकिन जिस सत्ताधारी दल ने अपने आईटी सेल को झूठ को स्थापित करने के लिये ही ईज़ाद किया हो वह यह कैसे बर्दाश्त कर पाएगा कि उसका झूठा प्रोपेगेंडा हाथों हाथ बेनक़ाब हो जाए।
क्यों खटकता है ऑल्ट न्यूज़
इस लेख में ऊपर बताया जा चुका है कि भारत में पत्रकारिता में फैक्ट चेकिंग को सन 2014 से पहले कोई महत्व ही नहीं दिया जाता था। लेकिन 2014 के बाद इस देश में बहुत से बदलाव आए हैं। 2014 से पहले आईटी सेल मज़बूत नहीं था, और हर वक्त ‘हिंदू-मुस्लिम’ की बहस भी नहीं हुआ करती थी। लेकिन 2014 के बाद से आज देश हिंदू, मुसलमान, पाकिस्तान जैसे मुद्दों से बाहर ही नहीं निकल पाया है। बहुत बार ऐसा हुआ कि मुसलमानों के किसी कार्यक्रम में लगे ज़िंदाबाद के नारे को ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ बताकर वायरल किया गया, मीडिया चैनल्स ने ख़बरें चलाईं, लेकिन पड़ताल के बाद सच्चाई कुछ और ही निकलती। सितंबर 2021 में मध्यप्रदेश के उज्जैन में मोहर्रम के आयोजन पर मुसलमानों ने काज़ी साहब ज़िंदाबाद का नारा लगाया। लेकिन तथाकथित राष्ट्रवादियों ने नारेबाजी के उस वीडियो को पाकिस्तान ज़िंदाबाद का बताकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। मध्य प्रदेश पुलिस हरकत में आ गई, उसने कई लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा लाद दिया। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री ने उस नारे को तालिबान से जोड़ दिया और जितना भी वह कह सकते थे, उन्होंने कह दिया। आज तक जैसे चैनल ने भी इसे पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा बताकर इस पर पूरा पैकेज चलाया। यहां यह बताना जरूरी है कि आज तक खुद भी फैक्ट चेक करता है, लेकिन उसके इस मामले में फैक्ट चेक करने की ज़हमत ही नहीं की। ऑल्ट न्यूज़ ने उसकी पड़ताल की और फिर पाया कि उस कार्यक्रम में पाकिस्तान ज़िंदाबाद नहीं बल्कि काज़ी साहब ज़िंदाबाद का नारा लगाया गया था। लेकिन विडंबना देखिए इस झूठ का पर्दाफाश हो जाने के बाद भी आज भी वह वीडियो आज तक के ट्विटर हैंडल पर है, वहीं मध्यप्रदेश के गृहमंत्री भी अपना ट्वीट डिलीट नहीं कर पाए हैं। आज तक अफवाह फ़ैलाने का वो अमुक ट्वीट आप यहाँ भी देख सकते हैं:-
उज्जैन: मुहर्रम पर पाकिस्तान ज़िंदाबाद का क्या काम था?
नारेबाज़ी में पाकिस्तान का समर्थन या देशद्रोह?#Pakistan #MadhyaPradesh #Ujjain#Khabardar | चित्रा त्रिपाठी (@chitraaum) pic.twitter.com/jwSmROHXV5— AajTak (@aajtak) August 21, 2021
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री का ट्वीट यहाँ भी देख सकते हैं:-
#MadhyaPradesh में #Talibani सोच व राष्ट्र विरोधी मानसिकता वालों को बख्शा नहीं जाएगा। #Ujjain मामले की नए सिरे से जांच नहीं होगी।@digvijaya_28 जी अपनी तुष्टिकरण की सियासत के लिए देश विरोधी लोगों के पक्ष में खड़े होते आए हैं। उनको ऐसे लोगों का नेतृत्व कर पाकिस्तान ले जाना चाहिए। pic.twitter.com/D0JcvuzSvp
— Dr Narottam Mishra (@drnarottammisra) August 23, 2021
ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार हुआ है। जब भाजपा आईटी सेल और न्यूज़ चैनल्स ने फेक न्यूज़ फैलाईं, लेकिन ऑल्ट न्यूज़ ने उसे बेनक़ाब कर दिया। ऑल्ट न्यूज़ द्वारा झूठ को बेनक़ाब करने का श्रेय सिर्फ ज़ुबैर को ही नहीं जाता, ज़ुबैर तो उसके एक सह-संस्थापक है, जबकि दूसरे सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा हैं। लेकिन चैनल्स और सत्ताधारी दल की महत्तवकांक्षा ज़ुबैर पर निशाना साधकर ही पूरी हो सकती है। क्योंकि चैनल और तथाकथित राष्ट्रवादी ‘ज़ुबैर’ को केंद्र में रखकर, उस पर निशाना साधकर, ज़ुबैर को देशद्रोही साबित करके ही अपना राजनीतिक हित पूरा कर सकते हैं।
ज़ुबैर अक्सर भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के लोगों के निशाने पर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भाजपा का आईटी सेल उनकी गिरफ्तारी के लिये ट्रेंड चलाता रहा है। सबसे पहले तथाकथित संत यति नरिसंहानंद ने जुबैर के ख़िलाफ मोर्चा खोला था। दरअस्ल हुआ यूं था कि नरसिंहानंद भाजपा समेत राजनीतिक दलों की महिलाओं पर अपमानजनक टिप्पणी कर रहे थे, इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसके बाद यति की गिरफ्तारी मांग होने लगी, तो उस साधु ने उसका ठीकरा जुबैर के सर फोड़ते हुए कहा कि उसके वीडियो के साथ ज़ुबैर ने छेड़-छाड़ की है। महिला आयोग के संज्ञान लेने के बावजूद यति नरसिंहानंद को तो गिरफ्तार नहीं किया गया, लेकिन उसके बाद से समय-समय पर दक्षिणपंथी गुटों एंव कथित तौर से आईटी सेल द्वारा ज़ुबैर को निशाना बनाया जाता रहा है। दरअसल 27 मई को भाजपा की प्रवक्ता नुपूर शर्मा ने एक टीवी चैनल पर डिबेट के दौरान पैग़बंर-ए-इस्लाम पर अपमानजनक टिप्पणी की, इसी दौरान भाजपा के दिल्ली प्रदेश के मीडिया प्रभारी नवीन कुमार जिंदल ने ट्विटर पर पैग़ंबर-ए-इस्लाम पर एक के बाद एक कई ट्वीट किए. भाजपा नेताओं की इस बयानबाजी का मुसलमानों ने विरोध किया, उनकी गिरफ्तारी की मांग की लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। पांच जून को मुस्लिम देशों के विरोध के बाद भाजपा ने अपने दोनों नेताओं को पार्टी से निकाल दिया। पैग़ंबर-ए-इस्लाम पर अपमानजनक टिप्पणी से नाराज़ कतर ने जब भारतीय राजदूत को तलब किया तो उन्होंने इन दोनों नेताओं को फ्रिंज एलिमेंट करार देते हुए इनसे पल्ला झाड़ लिया। उधर दोनों फ्रिंज एलिमेंटस के निष्कासन से नाराज़ आईटी सेल ने ज़ुबैर को निशाना बनाना शुरू कर दिया। ट्विटर पर उनकी गिरफ्तारी की मांग करने वाले हैश टैग चलाए गए।
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आईटी सेल दक्षिणपंथियों को यह संदेश देने में सफल रहा कि आज जो, कतर, कुवैत, सऊदी अरबिया, ईरान आदि देशों ने भारतीय राजदूत को तलब किया है, जिसके बाद भाजपा ने नवीन कुमार जिंदल और नुपूर शर्मा को पार्टी से निष्काषित किया गया है उसकी वजह ज़ुबैर ही है। यही वजह है कि ज़ुबैर की गिरफ्तारी की ख़बर का शीर्षक दैनिक जागरण दिया कि “देश की छवि करने में जुटा जुबैर गिरफ्तार।” वहीं दीपक चौरसिया ने ट्वीट किया कि “देश के ग़द्दार वामी मेंढक फिर से टर्र-टर्र करने लगे हैं। फैक्ट चेक के नाम पर देश को तोड़ने का ट्रेंड चलाने वाले आज बिलबिलाए पड़े हैं। बरसाती मेंढक आज काफ़ी टर्र-टर्र कर रहे हैं।”
इससे पहले तीन जून को यूपी के सीतापुर के खैराबाद थाने में दक्षिणपंथी संगठन हिंदू शेर सेना के जिलाध्यक्ष भगवान शरन ज़ुबैर के ख़िलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में कहा गया कि मोहम्मद ज़बैर ने ट्वीट में यति नरसिंहानंद सरस्वती व आनंद स्वरूप का भी अपमान किया। इनके लिए भी अपशब्द बोले हैं। यति नरसिंहानंद और बजरंग मुनि कौन हैं, उनकी बयानबाज़ी ने देश को सौहार्द को कितना नुक़सान पहुंचाया यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। बताने की जरूरत यह है कि कैसे किसी व्यक्ति विशेष को निशाना बनाने के लिये नैरेटिव सैट किया जाता है।
पुलिस की कार्रावाई पर उठते सवाल
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की IFSO यूनिट में मौजूद ड्यूटी ऑफिसर की शिकायत पर एफआईआर 20 जून को ये प्राथमिकी दर्ज की गई थी। दिल्ली पुलिस का कहना है कि ड्यूटी ऑफिसर के मुताबिक वो मॉनिटरिंग कर रहे थे तब उन्होंने देखा कि हनुमान भक्त जिसकी ट्विटर आईडी @balajikijai ने मोहम्मद जुबेर का एक ट्वीट शेयर किया हुआ था जिसमें आपत्तिजनक बातें थीं। भक्त @balajikijai ट्विटर आईडी ने ये शेयर करते हुए लिखा कि हनुमान जी की तुलना हनीमून शब्द करने से हिंदुओं का अपमान किया गया है वो ब्रह्मचारी है। इसी वजह से ज़ुबैर पर एक्शन लिया गया है। इस पर दिल्ली पुलिस की मुस्तैदी की दाद देनी चाहिए कि उसने स्वतः संज्ञान लेकर ज़ुबैर को गिरफ्तार कर लिया। भले ही वह एक महीने बाद भी नुपूर शर्मा को तलाश न पाई हो।
ज़ुबैर को जिस मामले में गिरफ्तार किया गया है, उसे प्रबुद्ध वर्ग हास्यपद ही कहेगा। दरअसल ज़ुबैर ने चार साल पहले हृषिकेश मुखर्जी की 1983 में बनी फ़िल्म ‘किसी से ना कहना’ का एक फ़ोटो ट्वीट किया था। फ़िल्म में एक देसी होटल के बोर्ड में “हनीमून होटल” को अक्षरों के फेरबदल से “हनुमान होटल” किया दिखाया गया था। ज़ुबैर ने वह होटल वाला फ़ोटो प्रयोग कर उसे “संस्कारी होटल” संकेतित करते हुए आज के हालात पर चुटकी ली थी। इसी को आधार बनाकर ज़ुबैर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए और 295ए (जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण इरादे से समुदायों के बीच सद्भाव भंग करने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने और विद्वेषपूर्ण इरादे से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने या करने की कोशिश) का मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया।
क्या इत्तेफाक है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुक्त आवाज़ यानी स्वतंत्र पत्रकारिता की पुंगी बजा रहे थे, उनकी पुलिस मुहम्मद ज़ुबैर को धोखे से बुलाकर गिरफ्तार कर रही थी। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ज़ुबैर की गिरफ्तारी और भारत में पत्रकारिता की गिरती साख और मुस्लिम उत्पीड़न की बहस फिर शुरू हो चुकी है। सरकार की नीतियां अपने वोटों को पक्का करने के लिए जिस तरह से भारत की पूरी छवि बर्बाद कर रही हैं, उसकी भरपाई लंबे वक्त तक नहीं हो पाएगी। भाजपा की जीत क्या भारत की हार में ही निहित रहेगी?
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