किसानों का संकल्प: 2023 MSP की क़ानूनी गारंटी और क़र्ज़ मुक्ति की नई लहर का साल बनेगा
एक सप्ताह के फासले पर पड़ने वाली दो तिथियां-19 नवंबर और 26 नवंबर- देश में चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन की दो सबसे अहम तारीख हैं। 26 नवंबर 2020 को किसानों ने राजधानी दिल्ली में धावा बोला था और 19 नवंबर 2021 को अंततः मोदी जी ने घुटने टेककर 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की एकतरफा घोषणा की थी।
ये तिथियां किसान आंदोलन के इतिहास में अमर रहेंगी, पर इनकी स्मृति अभी इतिहास का विषय नहीं, वरन जीवित प्रसंग हैं। इनको याद करते हुए किसान दरअसल आन्दोलन के अगले चरण की तैयारियों में लगे हैं।
19 नवंबर को किसानों ने विजय/फतह दिवस मनाया। यह सचमुच अकल्पनीय था कि कारपोरेट और ग्लोबल पूँजी के हित में संसद से पारित कानून को सरकार को रद्द करना पड़ा, वह भी मोदी जी के राज में! बेशक, इसके लिए किसानों ने अकूत बलिदान दिया। सात सौ से ऊपर किसानों की शहादत, मंत्री-पुत्र द्वारा जीप से रौंदकर किसानों की हत्या, लाठी-वाटर कैनन-आंसू गैस-जेल, सत्ता प्रायोजित गुंडों के हमले, दिल्ली के बॉर्डरों पर साल भर जाड़ा, गर्मी, बरसात झेलते हुए फासीवादी सत्ता की नित नयी साजिशों और दमन का सामना करते हुए जहाँ कई बार तो हालात बेहद संगीन हो गए, पर किसानों ने अंततः दुर्दांत सत्ता को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया।
संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों के इस अभूतपूर्व संघर्ष को, सही ही, स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे लंबी जन-प्रतिरोध की कार्रवाई के रूप में चिह्नित किया है, जिसे देश के श्रमिक वर्ग का सक्रिय समर्थन मिला।
ऐतिहासिक आंदोलन के 2 वर्ष पूरे होने पर किसान 26 नवंबर को सभी राज्यों की राजधानियों में राजभवन मार्च का आयोजन कर राज्यपालों के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपेंगे।
1 दिसंबर से 11 दिसंबर तक सभी राजनीतिक दलों के सांसदों और विधानसभाओं के नेताओं और विधायकों के कार्यालयों तक मार्च निकाले जाएंगे तथा उन्हें “कॉल-टू-एक्शन” पत्र प्रस्तुत कर मांग की जाएगी कि वे किसानों की मांगों के मुद्दे को संसद/विधानसभाओं में उठाएं और इन पर बहस और समाधान के लिए दबाव बनाएँ।
इन कार्यक्रमों की घोषणा के साथ संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के नए चरण की ओर बढ़ने का ऐलान कर दिया है। मोर्चे की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए किसान नेताओं ने संकल्प व्यक्त किया कि वर्ष 2023 में वे अपनी दो सर्वप्रमुख मांगों-MSP की कानूनी गारंटी और सभी किसानों की पूर्ण क़र्ज़मुक्ति-को हर हाल में हासिल करके रहेंगे।
संयुक्त किसान मोर्चा के केंद्रीय मांगपत्र में वैसे तो बिजली संशोधन विधेयक, 2022 की वापसी, लखीमपुर खीरी में किसानों व पत्रकारों के नरसंहार के आरोपी केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी, किसान आंदोलन के दौरान दर्ज सभी झूठे मामलों की वापसी समेत सभी लंबित मुद्दे हैं, (जिनमें से कई पर आन्दोलन वापसी के समय committment के बावजूद वायदाखिलाफी करते हुए मोदी सरकार अब मुकर गयी है) लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने 2 मांगों पर फोकस करने का फैसला किया है- सभी फसलों के लिए कानूनी रूप से गारंटीशुदा C2+50% न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तथा एक व्यापक ऋण माफी योजना के माध्यम से सम्पूर्ण क़र्ज़ मुक्ति।
मोर्चा ने "क़र्ज़ मुक्ति-पूरा दाम" के नारे के साथ सभी मांगें पूरी होने तक धारावाहिक और जुझारू देशव्यापी संघर्ष के लिए किसानों का आह्वान किया है।
दरअसल, आज किसान जिस गहरे संकट में है, उसके मूल में दो ही बातें हैं-उन्हें अपनी उपज का उचित दाम नहीं मिल रहा है और कृषि क्षेत्र के दोहन के चलते वे क़र्ज़ में डूब गए हैं। 1995 से अब तक भारत में 4 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है और लगभग 68% किसान परिवार क़र्ज़ और वित्तीय संकट में हैं।
इससे उन्हें उबारने का एक ही तरीका है कि एक बार किसानों का क़र्ज़ पूरी तरह माफ कर दिया जाय और आगे से लाभकारी MSP के आधार पर उनकी सभी फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी कर दी जाय, तो फिर उन्हें ऋण-जाल में फंसने की नौबत ही नहीं आएगी।
पर मोदी सरकार तो उलटी दिशा में बढ़ रही है। MSP की कानूनी गारंटी और स्वामीनाथन आयोग के C2 +50% के फॉर्मूले से उसका निर्धारण दूर, वह तो MSP में उतनी भी वृद्धि नहीं कर रही, जितनी महंगाई और किसानों की लागत बढ़ती जा रही है।
उलटे, MSP व्यवस्था को खत्म करने के लिए कार्पोरेटपरस्त अर्थशास्त्री तरह तरह के बेईमानी भरे तर्क गढ़ रहे हैं। प्रो. प्रभात पटनायक के शब्दों में, " MSP व्यवस्था को खत्म करने के लिए आज यह धूर्ततापूर्ण दलील दी जा रही है कि खाद्यान्न पर मिलने वाली MSP किसानों को अन्य ज्यादा मुनाफे वाली फसलों की ओर नहीं बढ़ने दे रही है।"
"पर यह नहीं बताया जा रहा है कि अगर किसान, खाद्यान्न उत्पादन छोड़कर गैर-खाद्यान्न उत्पादन करने लगें तब भी फौरी तौर पर भले ही उन्हें लाभ मिल जाए, लेकिन MSP व्यवस्था न होने के कारण गैर-खाद्यान्न उत्पादों की कीमतें बाजार में जब crash करेंगी, तब किसानों का क्या हाल होगा ? "
" अगर सरकार चाहती है कि किसान खाद्यान्न से हटकर दूसरी फसलों की ओर जाएं, तो इसका समाधान यह है कि उन गैर-खाद्यान्न फसलों के लिए MSP की व्यवस्था की जाए। लेकिन उल्टा तर्क देकर दरअसल, किसानों के लिए MSP की व्यवस्था को ही खत्म करने के विश्व व्यापार संगठन (WTO) के एजेंडा को ही आगे बढ़ाया जा रहा है।"
आज कृषि समेत लोक-कल्याण के मदों में सरकारी सहायता को, जो राज्य का दायित्व है, रेवड़ी कहकर मजाक उड़ाने वाले मोदी जी की निगाह किसानों को मिलने वाली बची-खुची सब्सिडी पर है, जबकि कारपोरेट घरानों का पिछले 5 साल में 10 लाख करोड़ क़र्ज़ माफ कर दिया गया और लाखों करोड़ की टैक्स छूट दे दी गयी और इसे विकास के लिए incentive बताया गया!
हाल ही में एक बेहद चौंकाने वाले खुलासे में यह बात सामने आयी है कि बहुप्रचारित PM-किसान सम्मान निधि के लाभार्थियों की संख्या 2019 में पहली किस्त के समय के 11.84 करोड़ से घट कर 11 वीं किस्त आते-आते मई 2022 में मात्र 3.87 करोड़ रह गयी है- 67% की गिरावट के साथ। क्या सरकार इसे भी बंद करने की ओर बढ़ रही है?
किसानों की आय दोगुना करने की मोदी जी की घोषणा एक और जुमला साबित हो चुकी है। यह किसानों के साथ एक भद्दा मजाक था।
ऊपर से 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून तथा 2006 के वनाधिकार कानून की धज्जियां उड़ाते हुए हरियाणा और पूर्वांचल के आजमगढ़ से लेकर पूरे देश में किसानों-आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर कब्जे का अभियान और दमन जारी है।
साफ है कि MSP की गारंटी और क़र्ज़ मुक्ति को केंद्र कर किसान आंदोलन का पुनरुत्थान आज किसानों के लिए जीवन मरण का प्रश्न है। कृषि के चौतरफा विकास में ही हमारी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन तथा आज देश के सामने मुंह बाए खड़े रोजगार संकट के समाधान के बीज छिपे हैं।
प्रो. अरुण कुमार ने हाल ही में रोजगार के सवाल पर पेश किए गए अपने दस्तावेज में देश के सबसे बड़े नियोक्ता कृषि क्षेत्र के बारे में कहा है, "यदि कृषि में श्रमिकों को वर्तमान समय में मिलने वाली मामूली मजदूरी की बजाय living wages मिल जाए तो भोजन और उपभोग की वस्तुओं की मांग में बड़े पैमाने पर वृद्धि होगी। सम्पूर्ण लागत (Comprehensive Cost-C2) के आधार पर सभी फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा से किसानों के लिए उच्च मूल्य सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। इससे किसानों और श्रमिकों दोनों की आय में वृद्धि होगी और मांग बढ़ेगी। इससे छोटे और सूक्ष्म उद्यमों ( Small and Micro enterprises ) के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार में वृद्धि होगी।"
उम्मीद की जानी चाहिए कि संयुक्त किसान मोर्चा के संकल्प के अनुरूप वर्ष 2023 एक बार फिर किसान आंदोलन की एक नई लहर का साक्षी बनेगा और MSP की कानूनी गारंटी, किसानों की संपूर्ण क़र्ज़मुक्ति तथा चौतरफा कृषि विकास का सवाल 2024 के चुनाव का सर्वप्रमुख मुद्दा बनकर उभरेगा। आशा है इस बार इसे रोजगार तथा अपने श्रम की वाजिब कीमत के लिए लड़ते युवाओं और श्रमिकों तथा महँगाई से बदहाल आम जनता का भी साथ मिलेगा। किसान आंदोलन का पुनरुत्थान आज हमारे लोकतन्त्र की जरूरत है।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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