श्रीलंका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में विक्रमसिंघे और प्रेमदासा सहित चार नेता शामिल
कोलंबो : श्रीलंका के सांसदों ने देश के नए राष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए शनिवार को बैठक की। श्रीलंका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे और विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा सहित कुल चार नेता शामिल हैं। मालूम हो कि श्रीलंका में अभूतपूर्व आर्थिक संकट को लेकर व्यापक स्तर पर हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे के कारण राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कराने की जरूरत पड़ रही है। विक्रमसिंघे और प्रेमदासा के अलावा मार्क्सवादी जेवीपी नेता अनुरा कुमार दिसानायके और एसएलपीपी
विक्रमसिंघे और प्रेमदासा के अलावा मार्क्सवादी जेवीपी नेता अनुरा कुमार दिसानायके और एसएलपीपी से अलग हुए दुलस अल्हाप्परुमा उन चार उम्मीदवारों में शामिल हैं, जिन्होंने राजपक्षे के बाकी के कार्यकाल (नवंबर 2024 तक) के लिए संसद में 20 जुलाई को होने वाले मतदान में भाग्य आजमाने की घोषणा की है।
राजपक्षे के इस्तीफे के बाद श्रीलंका में राष्ट्रपति पद की रिक्ति की घोषणा करने के लिए शनिवार को संसद का एक संक्षिप्त विशेष सत्र बुलाया गया था।
बुधवार को मालदीव भागने और बृहस्पतिवार को वहां से सिंगापुर पहुंचने वाले राजपक्षे ने शुक्रवार को आधिकारिक रूप से श्रीलंका के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।
13 मिनट के विशेष सत्र के दौरान संसद के महासचिव धम्मिका दसानायके ने राष्ट्रपति पद की रिक्ति की घोषणा की।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन मंगलवार को दाखिल किए जाएंगे और अगर एक से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में होते हैं तो सांसद बुधवार को मतदान करेंगे।
मार्क्सवादी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के 53 वर्षीय नेता दिसानायके ने शनिवार को आधिकारिक तौर पर चुनाव लड़ने की अपनी मंशा जाहिर की।
दिसानायके की पार्टी के प्रवक्ता हरिणी अमरसूर्या ने संवाददाताओं से कहा, “इसकी मुख्य वजह यह है कि हमें लगता है कि हमारी पार्टी और हमारे नेता कई महत्वाकांक्षाओं और यहां तक कि देश में लंबे समय से जारी जन आंदोलन की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं।”
मुख्य विपक्षी दल समागी जन बालवेग्या (एसजेबी) के नेता प्रेमदासा ने भी आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की मंशा का ऐलान किया। उन्होंने कहा, “हालांकि, यह एक कठिन लड़ाई है, लेकिन मुझे यकीन है कि अंत में सच्चाई की जीत होगी।”
225 सदस्यीय श्रीलंकाई संसद में राजपक्षे की सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी का वर्चस्व है।
कार्यवाहक राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को आधिकारिक तौर पर समर्थन देने की घोषणा करने के बाद एसएलपीपी में आंतरिक स्तर पर विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं।
पार्टी अध्यक्ष जीएल पेइरिस ने कहा कि एसएलपीपी को अपने सदस्य के अलावा किसी और के पक्ष में मतदान नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी को एसएलपीपी से अलग हुए नेता अलहप्परुमा का समर्थन करना चाहिए, जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है।
इस संबंध में अंतिम फैसला लेने के लिए शनिवार को एसएलपीपी की बैठक होनी है।
श्रीलंका में 1978 के बाद से पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों द्वारा गुप्त मतदान के जरिये किया जाएगा, न कि जनादेश के माध्यम से।
इस द्वीपीय देश में 1978 के बाद से संसद ने कभी भी राष्ट्रपति के चयन के लिए मतदान नहीं किया है।
1982, 1988, 1994, 1999, 2005, 2010, 2015 और 2019 में राष्ट्रपति का चयन जनादेश के माध्यम से हुआ था।
इससे पहले, श्रीलंका में राष्ट्रपति पद महज एक बार 1993 में तब मध्यावधि में खाली हुआ था, जब तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी गई थी। उस समय प्रेमदासा के बाकी के कार्यकाल के लिए संसद द्वारा डीबी विजेतुंगा को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुना गया था।
अगले हफ्ते होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में विक्रमसिंघे को सबसे आगे माना जा रहा है। उन्हें देश के अभूतपूर्व आर्थिक संकट से निपटने के लिए मई में प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था।
विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) 2020 के संसदीय चुनाव में बुरी तरह से हार गई थी। विक्रमसिंघे खुद 1977 के बाद पहली बार एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सके थे। हालांकि, उन्होंने 2021 के अंत में एक संचयी राष्ट्रीय वोट के आधार पर पार्टी की एकमात्र सीट के माध्यम से संसद में जगह हासिल की थी।
संसद में अपनी पार्टी का एक भी सदस्य न होने के कारण विक्रमसिंघे जीत के लिए पूरी तरह से सत्तारूढ़ एसएलपीपी के सांसदों के मतों पर निर्भर होंगे।
दरअसल, 55 वर्षीय प्रेमदासा, जिनका राजनीतिक सफर लंबे समय तक विक्रमसिंघे की छत्रछाया में चला था, उन्होंने एसएलपीपी में बगावत कर दी थी।
प्रेमदासा की नवगठित एजेबी ने 2020 के आम चुनावों में एसएलपीपी को उसके सभी गढ़ों में मात देते हुए मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया था।
मध्य मई में प्रेमदासा के सत्ता में आए खालीपन को भरने के लिए आगे आने में नाकाम रहने के कारण ही विक्रमसिंघे अप्रत्याशित रूप से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए थे।
हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव में प्रेमदासा की जीत की संभावनाएं बेहद कम मानी जा रही हैं, क्योंकि एसएलपीपी के ज्यादातर सदस्यों के उनका समर्थन करने के आसार नहीं हैं।
वहीं, 63 वर्षीय अलहप्परुमा, जो देश के सूचना एवं जन संचार मंत्री रह चुके हैं, वह सत्तारूढ़ एसएलपीपी के अलग हुए समूह से ताल्लुक रखते हैं और उन्हें वामपंथी झुकाव वाले राजनीतिक विचारक के रूप में देखा जाता है।
अलहप्परुमा को उनकी बेदाग राजनीतिक छवि के लिए भी जाना जाता है। हालांकि, एसएलपीपी से अलग होने के फैसले के कारण राष्ट्रपति चुनाव में उनकी राह भी बेहद कठिन नजर आ रही है।
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