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आरोप-प्रत्यारोप नहीं, वायु प्रदूषण पर सरकारों को मिलकर काम करने की ज़रूरत!

“हमें वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को एक साथ कम करने के बारे में बात करनी चाहिए। फसल अवशेष प्रबंधन इसका एक अच्छा उदाहरण हो सकता है।”
air pollution
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : AP

जब राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में सर्दी शुरू होने वाली है और नियमित वार्षिक वायु प्रदूषण संकट सिर पर आ चुका है, यानि वायु गुणवत्ता बेहद खराब है, ऐसे में तीन संबंधित घटनाक्रम, वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए ठोस सरकारी कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। वे हैं:

स्वच्छ वायु स्कोरकार्ड

इनमें से एक है, ग्लोबल क्लाइमेट एंड हेल्थ अलायंस द्वारा स्वच्छ वायु स्कोरकार्ड का प्रकाशन, जो लोगों के स्वास्थ्य संगठनों का एक लूज़ नेटवर्क है जो 18 अक्टूबर 2023 को स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है। यह रिपोर्ट यह मापने के लिए 15 अलग-अलग मानदंडों की पहचान करती है कि पेरिस लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपनाए गए अलग-अलग देशों की समग्र जलवायु कार्य योजनाओं में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए किस हद तक विशेष योजनाएं शामिल हैं। यह इस बात को भी डॉक्यूमेंट करता है कि ये जलवायु योजनाएं स्वास्थ्य से कैसे संबंधित हैं।

अध्ययन की पद्धति के अनुसार, 15 मानदंडों को पूरा करने वाले देश को पूरे 15 अंक मिलेंगे, और जो देश एक भी मानदंड को पूरा करने में विफल रहता है, उसे शून्य अंक मिलेगा। ग्लोबल क्लाइमेट एंड हेल्थ एलायंस 169 देशों और यूरोपीय संघ के वायु प्रदूषण और जलवायु कार्य योजनाओं का विश्लेषण करता है। भारत का स्कोर 2/15 पर ख़राब है। इसका अर्थ यह कहा जा सकता है कि जहां भारत को वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 15 क्षेत्रों में कार्य करना है, उसने 13 क्षेत्रों को नज़रअंदाज़ कर दिया है और केवल दो में कार्य किया है। उदाहरण के लिए, भारत ने वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव को मापने, संकट की लागत पर चर्चा करने और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अन्य उपाय ढूंढने में शून्य अंक प्राप्त किए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण प्रति लाख आबादी पर 120 मौतें होती हैं। इसका मतलब है कि अकेले दिल्ली में ज़हरीली हवा के कारण प्रति वर्ष 12,000 लोग मर जाते हैं। यह आतंकवाद से होने वाली मौतों की संख्या से कई गुना ज़्यादा है।

निस्संदेह, यह स्कोरकार्ड एक चेतावनी के रूप में आया है।

पंजाब में फसल अवशेष जलाने के प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन

दूसरा महत्वपूर्ण डेवलपमेंट, पंजाब में फसल अवशेष जलाने से वायु गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभाव के पहले मात्रात्मक अध्ययन का प्रकाशन है। जापान स्थित रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमैनिटी एंड नेचर के नेतृत्व में 29 प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन के निष्कर्ष 14 अगस्त 2023 को प्रतिष्ठित ब्रिटिश विज्ञान पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित हुए थे।

यह अध्ययन जिसका शीर्षक है - सीटू सेंसर नेटवर्क में उच्च घनत्व द्वारा कैप्चर किया गया उत्तर-पश्चिम भारत में अति उच्च कणीय प्रदूषण- फसल अवशेष जलाने और वायु प्रदूषण को जोड़ने वाला पहला मात्रात्मक अध्ययन है। बेशक, असहनीय वायु प्रदूषण हर सर्दियों में दिल्ली के लोगों को परेशान करता है और इस वायु प्रदूषण संकट के लिए पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने का योगदान सर्वविदित है। परंतु, जब तक पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार की निष्क्रियता की आलोचना से बचने के लिए पंजाब पर दोष मढ़ते रहे। अब, उनकी अपनी आप पार्टी (AAP) पंजाब में सरकार का नेतृत्व कर रही है, जो मार्च 2022 में सत्ता में आई है, और चूंकि जवाबदेही उनकी अपनी पार्टी पर है, इसलिए केजरीवाल ज़िम्मेदारी से बचने में असमर्थ थे। ऐसे में वे पिछली सर्दियों में इस मुद्दे को नरम तरीके उठा रहे थे।

यहां तक कि पीक सर्दियों के शुरु होने से दो महीने पहले और जब कि फसल का मौसम भी शुरू ही हो रहा है, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पहले से ही दावा करने लगे हैं कि इस साल फसल अवशेष जलाने की घटनाएं काफी कम हैं। केंद्र ने अपनी ओर से इस मुद्दे से अपना पल्ला झाड़ लिया है और केवल दिल्ली और पंजाब सरकारों पर दोष मढा जा रहा है, मानो राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करना उनकी ज़िम्मेदारी ही नहीं है।

हालांकि, झूठे दावे करके या “तू-तू मैं-मैं” करके वायु प्रदूषण को दूर नहीं किया जा सकता। इसलिए और भी अधिक क्योंकि इस तरह का मात्रात्मक अध्ययन विभिन्न समय बिंदुओं पर फसल अवशेषों को जलाने के कारण होने वाले वायु प्रदूषण की तीव्रता को मापने के लिए एक मानक संदर्भ बिंदु बना रहेगा। अगर मान और केजरीवाल दोनों फर्जी दावे करेंगे तो आसानी से गलत साबित हो जाएंगे; और केंद्र भी अपनी निष्क्रियता के लिए बेनकाब होगा - यही है इस अध्ययन का राजनीतिक महत्व!

वायु प्रदूषण को प्रति घन मीटर हवा में माइक्रोग्राम पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) के रूप में मापा जाता है। 2.5 मीटर व्यास ( PM 2.5 ) से कम के कणों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य को खतरा होता है। हालांकि पंजाब और हरियाणा में हवा की गुणवत्ता में गिरावट के लिए फसल अवशेष जलाने का योगदान पिछले एक दशक या उससे भी अधिक समय से एक प्रमुख मुद्दा बन गया है, पंजाब में (PM 2.5) को मापने के लिए कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया । उपर्युक्त अध्ययन 1 सितंबर से 30 नवंबर 2022 के बीच आयोजित किया गया था। अध्ययन में पाया गया कि क्षेत्र में पार्टिकुलेट मैटर 6-10 अक्टूबर के दौरान 60 μg m3 से धीरे-धीरे बढ़कर 5-9 नवंबर को 500 μgm3 तक पहुंच गया, जो बाद में 20-30 नवंबर में घटकर लगभग 100 μgm3 हो गया। PM के लिए भारतीय राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक वार्षिक और 24 घंटे के एक्सपोज़र के लिए क्रमशः 40 और 60 μg m3 हैं । दूसरे शब्दों में, फसल के मौसम के दौरान पंजाब में हवा की गुणवत्ता भारत में जो वायु गुणवत्ता बनाए रखी जानी चाहिये उससे दस गुना खराब है।

अब दिल्ली में, बीजेपी और कांग्रेस, पंजाब और आम आदमी पार्टी पर आरोप लगा रहे हैं। मामले की सच्चाई यह है कि पंजाब में पराली जलाने से सिर्फ दिल्ली के लोग ही प्रभावित नहीं होते। पंजाब के लोग, विशेषकर किसान और अन्य ग्रामीण लोग स्वयं भी प्रभावित होते हैं।

प्रोफेसर प्रबीर के.पात्रा, जो जापान एजेंसी फॉर मरीन-अर्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (JAMSTEC) के प्रमुख वैज्ञानिक हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया, "आखिरकार, अधिकतर पीड़ित वहीं रहते हैं जहां वायु प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं।"

प्रोफेसर पात्रा ने आगे कहा: “लेकिन एक बात स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर बहुत अधिक है (प्रति 100,000 जनसंख्या पर 100-150 मौतें )। हालांकि, वायु प्रदूषण के कारण भारत में होने वाली बीमारियों के प्रकारों पर और बेहतर विश्लेषण के लिए अधिक डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। किसी भी तरह हमें यह पहचानने की ज़रूरत है कि वायु प्रदूषण पूरे भारत में, ग्रामीण क्षेत्रों सहित एक गंभीर मुद्दा है, और इसे केवल इस तर्क के आधार पर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है कि लोग शहरों में उच्च घनत्व में रहते हैं। उदाहरण के लिए, हमने ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स पढ़ी हैं जिनमें दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के लिए पंजाब/हरियाणा को दोषी ठहराना आम बात है, लेकिन हमने ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं देखी है जिसमें चर्चा की गई हो कि क्या ग्रामीण पंजाब के किसान पराली जलाने के मौसम के दौरान खराब वायु गुणवत्ता की वजह से पीड़ित हो सकते हैं।"

एक-दूसरे पर दोष मढ़ने के बजाय, पंजाब और दिल्ली सरकारों के साथ-साथ केंद्र को दिल्ली और आसपास के राज्यों के लोगों, विशेषकर क्षेत्र के बच्चों के कोमल फेफड़ों को वायु प्रदूशण से दुष्परिणाम से बचाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।

मुंबई में वायु प्रदूषण दिल्ली से भी बदतर

तीसरी परिघटना यह है कि भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली से भी आगे निकल गई है। इसका मतलब है कि केंद्र अब दिल्ली को पंजाब के ख़िलाफ़ खड़ा करके बच नहीं सकता। सभी प्रमुख शहरों को कवर करने वाली एक राष्ट्रीय कार्य योजना की आवश्यकता है। यदि हर दिन बारी-बारी से 'समुद्री हवा' और 'भूमि की हवा' का अनुभव करने वाले तटीय शहर मुंबई में वायु प्रदूषण दिल्ली से भी बदतर हो सकता है, तो शहरी भारत को कोई नहीं बचा सकता। पिछले सप्ताह कोलकाता का वायु गुणवत्ता सूचकांक 158 था, जबकि चेन्नई में 70, बेंगलुरु में 159, मुंबई में 170 और दिल्ली में 180 था। इस प्रकार देखें तो कोई भी मेट्रो 50-60 की सुरक्षित सीमा के भीतर नहीं है।

वायु प्रदूषण से होने वाली संभावित मौतों के संदर्भ में, यह कोरोना महामारी से भी कहीं अधिक खतरनाक प्रतीत होती है। सभी प्रकार की सरकारों को युद्ध स्तर पर कार्य करना चाहिए। वायु प्रदूषण पर कार्रवाई से जलवायु कार्रवाई अविभाज्य है। प्रो. प्रबीर के. पात्रा बताते हैं, “हमें वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को एक साथ कम करने के कार्यों के सह-लाभों के बारे में बात करनी चाहिए। फसल अवशेष प्रबंधन इसका एक अच्छा उदाहरण हो सकता है।”

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