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ज्ञानवापी मामला: डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दाख़िल की गई 1500 पेज की सर्वे रिपोर्ट

ज्ञानवापी मस्जिद के साइंटिफिक सर्वे की रिपोर्ट सोमवार को ज़िला अदालत में दाख़िल की गई। इस बीच अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी ने आरोप लगाया है कि मस्जिद परिसर में मनमाने ढंग से खुदाई की गई।
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फ़ोटो : PTI

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के साइंटिफिक सर्वे की रिपोर्ट सोमवार को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दाखिल की गई। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के एडिशनल डायरेक्टर ने करीब डेढ़ हज़ार पन्नों की रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में पेश की। दावा है कि सर्वे के दौरान जांच टीम को मस्जिद परिसर से खंडित मूर्तियां, घड़ा समेत 250 अवशेष मिले थे, जिन्हें बनारस कोषागार के डबल लॉक में रखा गया है। इस बीच ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने साइंटिफक सर्वे पर सवाल खड़ा किया है और आरोप लगाया है कि जांच टीम ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए मनमाने ढंग से मस्जिद परिसर में खुदाई की। इस बाबत मुस्लिम पक्ष ने कई तस्वीरें भी जारी की है।

साइंटिफिक सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में पहुंची। पांच सदस्यीय टीम का नेतृत्व ASI के एडिशनल डायरेक्टर कर रहे थे। 11 दिसंबर 2023 को ASI के एडिशनल डायरेक्टर ने बीमारी का हवाला देते हुए सात दिन का वक्त मांगा था। जिला जज ने सर्वे रिपोर्ट पेश करने की तिथि 18 दिसंबर तय की थी। ASI सर्वे रिपोर्ट पेश करने के लिए अदालत से पांच मर्तबा समय ले चुकी थी।

"सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक न करें"

सोमवार को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्ष के अधिवक्ता मौजूद थे। सर्वे रिपोर्ट पेश होने से पहले अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से कोर्ट में एक अर्जी दी गई, जिसमें मांग की गई कि रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में पेश की जाए। बिना हलफनामे के किसी भी हालत में सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की अनुमित न दी जाए। ऐसा नहीं किया गया तो शहर की फिजां बिगड़ सकती है।

वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने हिंदू पक्ष की चार महिलाओं की ओर से 16 मई, 2023 को ज्ञानवापी मस्जिद में ASI सर्वे के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिला जज डॉ. अजय कृष्‍ण विश्वेश की अदालत ने 21 जुलाई, 2023 को ज्ञानवापी परिसर में सील किए गए वजूखाने को छोड़कर बाकी सभी जगहों का साइंटिफिक सर्वे का आदेश दिया था। ASI टीम ने 24 जुलाई को मस्जिद परिसर में सर्वे शुरू कर दिया। इसी बीच मुस्लिम पक्ष सर्वे के खिलाफ शीर्ष अदालत में पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई, 2023 को सर्वे पर रोक लगा दी। काफी जद्दोजहद के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने साइंटिफिक सर्वे के लिए स्वीकृति दी।

4 अगस्त 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञों ने सर्वे शुरू किया। जांच टीम ने 16 नवंबर 2023 को सर्वे पूरा कर लिया। रिपोर्ट पेश करने लिए ASI ने कई मर्तबा समय मांगा। हैदराबाद की ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) की रिपोर्ट में विलंब की वजह से पूरी रिपोर्ट डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दाखिल नहीं की जा सकी। इससे पहले ASI ने कोर्ट के निर्देश पर मस्जिद परिसर में मिले पत्थर के टुकड़े, दीवार की प्राचीनता, नींव और दीवारों की कलाकृतियां, मिट्‌टी और उसका रंग, टूटी हुई प्रतिमा, अवशेष की प्राचीनता आदि के सैंपल एकत्र किए। ये सामान जिला कोषागार के डबल लॉक में रखे गए हैं।

ASI सर्वे पर मुस्लिम पक्ष ने उठाए सवाल

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने 15 दिसंबर 2023 की सुबह सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'एक्स' पर कई तस्वीरें साझा की। साथ ही साइंटिफिक सर्वे करने वाली टीम पर सवाल खड़ा किया। यासीन ने कहा, "भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में इस आशय का हलफनामा दिया था कि वह एक इंच भी ज़मीन की खुदाई नहीं करेगी। इसके बावजूद ASI टीम खुदाई के तमाम औजार लेकर मस्जिद में पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने वहां सिर्फ साइंटिफिक सर्वे का आदेश पारित करते हुए ‘No Invasive’ लिखा था। तस्वीरें गवाह हैं कि सर्वे टीम ने मनमानी की और जहां चाहा खोद डाला। मस्जिद की इमारत को नुकसान पहुंचाया। हमने कानून की हमेशा पासदारी की है और करते रहेंगे। हम सबूतों के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाते रहेंगे।"

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अगस्त, 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सारनाथ सर्किल के सुपरिटेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट को सेटलमेंट प्लॉट नंबर 9130 (मौजूदा ज्ञानवापी परिसर) के भू-भाग और भवन (मस्जिद की इमारत) का सर्वे करने का आदेश दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ-साफ लिखा था कि ASI ऐसे तरीक़े से सर्वे करेगी, जिससे कोई टूट-फूट न हो। उस समय केंद्र सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि सर्वे के दौरान न तो खुदाई की जाएगी और न ही मस्जिद के ढांचे को तोड़ा जाएगा। बड़ा सवाल यह है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में ASI सर्वे से क्या न्याय हो सकेगा? 

बनारस के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने ASI को साइंटिफिक सर्वे के जरिये इस आशय का पता लगाने का निर्देश दिया था कि मौजूदा ढांचा क्या पहले से मौजूद किसी मंदिर के ऊपर बनाया गया है? ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार की उम्र और निर्माण का स्वरूप कैसा है? कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि आवश्यक होने पर ASI, पश्चिमी दीवार और तीनों गुंबदों के नीचे जांच के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल कर सकती है। तहखानों की जांच के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए गए थे।

कोर्ट ने साफतौर पर कहा था कि जांच में बरामद की गई वस्तुओं की सूची बनानी होगी और यह भी दर्ज करना होगा कि कौन-सी कलाकृति कहां से बरामद हुई। डेटिंग के ज़रिए कलाकृतियों की उम्र और स्वरूप जानने की कोशिश की जाए। मस्जिद परिसर के सभी खंभों और चबूतरों की साइंटिफ जांच करने के साथ ही उसकी उम्र, स्वरूप और निर्माण की शैली की पहचान की जाए। सर्वे के दौरान यह सुनिश्चित किया जाए कि ढांचे को किसी भी तरह का नुक़सान नहीं हो और वह पूरी तरह सुरक्षित रहे।

सर्वे का विरोध क्यों?

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी का कहना है कि "सर्वे का आदेश उन परिस्थियों में दिया जाना चाहिए था जब कोर्ट लिखित और मौखिक साक्ष्य के आधार पर किसी नतीजे पर पहुंच पाने की स्थिति में न हो। सिर्फ सबूत जुटाने के लिए ASI सर्वे ठीक नहीं है। भारतीय क़ानून ASI को हिंदू पक्ष के दावे से जुड़े सबूत इकठ्ठा करने की इजाज़त नहीं देता है।"

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एमएम यासीन कहते हैं, "ASI सर्वे साल 1991 के उपासना स्थल अधिनियम का उल्लंघन है। यह कानून आज़ादी से पहले मौजूद धार्मिक स्थलों के धार्मिक चरित्र बदलने की इजाज़त नहीं देता है। ज्ञानवापी की ज़मीन के स्वामित्व से जुड़े मामले में पहले से ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ASI सर्वे पर रोक लगा रखी है। ऐसे में किसी दूसरे मामले में सर्वे की इजाज़त कैसे दी जा सकती है?”

दूसरी ओर हिंदू पक्ष का मानना है कि "ASI सर्वे अदालत में इस विवाद का हल तय करने में मदद करेगा। सर्वे के नतीजों को बहस कर चुनौती देने का अवसर मिलेगा। किसी भी पूजा स्थल का सर्वे उपासना स्थल अधिनियम में बाधक नहीं है। आज़ादी के पहले और बाद में भी वहां हिंदू समुदाय के लोग पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। ASI का काम ऐतिहासिक ढांचों का संरक्षण और हिफ़ाज़त करना है। ज्ञानवापी मस्जिद को नुक़सान पहुंचाने की मुस्लिम पक्ष की आशंका निराधार है। अभी तक कोर्ट में यह बताने का मौक़ा नहीं आया है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पीछे किस तरह की वास्तुकला मौजूद है? ASI सर्वे से सभी अनुत्तरित सवाल हल हो जाएंगे।"

दोनों पक्ष का परस्पर विरोधी दावा

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता एसएफए नक़वी कहते हैं, "पूजा स्थल अधिनियम-1991 में ज्ञानवापी अथवा किसी अन्य मामले का उल्लेख नहीं है। अयोध्या भूमि स्वामित्व मामले में अदालत ने पूजा स्थल अधिनियम की वैधता स्थापित की थी। अयोध्या में ASI सर्वे तत्कालीन हालात को देखते हुए किया गया था। ASI सर्वे बाबरी विध्वंस के बाद साल 1992 में हुआ था। ज्ञानवापी का मुक़दमा कोर्ट में सुनवाई योग्य नहीं हैं। पूजा कानून में स्पष्ट किया गया है कि साल 1947 के दिन जो स्थिति थी, वही बनी रहेगी। उपासना स्थल अधिनियम एक चट्टान की तरह खड़ा है।"

नकवी कहते हैं, "ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में अभी तक न तो मुक़दमे का ट्रायल शुरू हुआ है और न ही सबूतों को कोर्ट में परखा गया है। मस्जिद की ज़मीन 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में थी। ऐसे में वह उपासना स्थल अधिनियम से संरक्षित हैं। साल 1991 में उपासना स्थल अधिनियम पारित कराने का मक़सद सांप्रदायिक सौहार्द क़ायम रखना था।"

सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल अधिनियम की तारीफ़ करते हुए बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि वाले अपने फ़ैसले में लिखा था कि "यह अधिनियम पूजा स्थल की स्थिति को बदलने की अनुमति न देकर धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्य को संरक्षित करता है। हमारे लिए तो सिर्फ एक ही बात मायने रखती है ज्ञानवापी मस्जिद का चरित्र 15 अगस्त 1947 को क्या था? समूची दुनिया जानती है कि आजादी के समय वह मस्जिद थी। ज्ञानवापी का मुक़दमा जब सुने जाने योग्य ही नहीं है, तो फिर उस सबूत का क्या मतलब है।"

हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन कहते हैं, "ज्ञानवापी का मामला अयोध्या के राम जन्मभूमि मामले से इतर नहीं है। पूजा स्थल अधिनियम के अनुसार किसी साइंटिफिक सर्वे किसी धार्मिक स्थल के वजूद का पता लगाने पर रोक नहीं लगाता है। मस्जिद को देखकर कोई भी कह सकता है कि ज्ञानवापी, मंदिर के ऊपरी हिस्से को तोड़कर बनाई गई थी।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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