महामारी से लड़ने के लिए भारतीयों ने किस तरह सोशल मीडिया को कोविड-19 हेल्पलाइन में बदल दिया
मौत, बीमारी, और बेबसी ऐसी "आम बात" हो गयी है, जिनके साथ भारत को लोगों को जीने के लिए मजबूर किया जा रहा है क्योंकि वे पहले से ही अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के ढहने और अपने राजनीतिक तंत्र की नाकामी के गवाह रहे हैं, जो कोविड के उन बढ़ते मामलों पर नकेल कसने के समय सुस्त पड़ा रहा, जिसमें फ़रवरी आते-आते ऊपर जाता हुआ एक रुझान दिखायी पड़ गया था।
कई परिवार, जिन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, उनके लिए ट्विटर, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मका इस्तेमाल अब उनके परिजनों के अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाओं की तलाश के लिए किया जा रहा है। ये मंच ज़्यादतर भारतीयों के लिए “कोविड-19 हेल्पलाइन" बन गये हैं।
मगर, विडंबना है कि अपने नागरिकों को उनकी ज़रूरत के समय में मदद करने के बजाय भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ट्विटर जैसे सोशल मीडिया साइटों पर "इस तरह के विचारों को नियंत्रित करने" की कोशिश में लगी हुई है और कंपनी से कहा जा रहा है कि उन ट्वीटों को हटा दें, जो कि कोविड-19 संकट से निपटने के लिहाज़ से अहम हैं।
यहां तक कि जिस समय देश में कोविड का संकट चल रहा है,उस समय भी सरकार ने कुंभ मेले जैसी धार्मिक सभाओं को इजाज़त देने और राजनीतिक रैलियों को आयोजित करने के चलते मामलों में होने वाली इस वृद्धि की ज़िम्मेदारी से भी ख़ुद को अलग कर लिया है।
मदद के लिए एक दूसरे के हाथ थामते लोग
ऐसा लगता है कि भारत के एक अरब अड़तीस करोड़ नागरिकों को सरकार ने बहुत हद तक उनके हाल पर छोड़ दिया है, जिन्होंने उन्हें 2019 में सत्ता में बने रहने के लिए वोट देकर मदद की थी। अपने परिजनों की ज़िंदगी बचाने की अकेली लड़ाई लड़ना एक ऐसा मुश्किल काम साबित हुआ है,जिसने उन्हें मदद को लेकर एक-दूसरे की ओर मोड़ दिया है।
फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर किये जा रहे रोज़-रोज़ के पोस्ट ख़ासकर दिल्ली में ऑक्सीजन सिलेंडरों के साथ-साथ अस्पतालों में बेड, गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए दावाओं और प्लाज़्मा डोनेशन की उपलब्धता के अनुरोधों से भरे हुए हैं।
मिंट में छपे एक लेख के मुताबिक़,भारत की दूसरी कोविड-19 लहर के संकट के दौरान, "लोग संचार के पारंपरिक तौर-तरीक़ों को दरकिनार कर रहे हैं और वे ट्विटर पर मदद करने वाले क्राउडसोर्स के तौर पर सामने आ रहे हैं।"
चिकित्सा के लिए इस्तेमाल होने वाली ऑक्सीजन मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है, एक सच्चाई यह भी है कि भारत की अदालतों ने भी केंद्र सरकार से अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए जो भी ज़रूरी उपाय हैं, उन्हें करने के लिए कहा है। इस बीच, केंद्र अब स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कमी के लिए राज्यों पर दोष मढ़ने की कोशिश कर रहा है।
इस सबके बीच सोशल मीडिया ने बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाओं की उपलब्धता से जुड़ी सूचना की कमी की भरपाई करने में अहम भूमिका निभायी है। कुछ ही लोग हैं, जो अपने परिजनों को बचाने के लिए जिस मदद की दरकार होती है, उसे पाने में भाग्यशाली रहे हैं, लेकिन ज़्यादातर भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और उनमें से कई लोगों के पास "स्मार्टफोन तक पहुंच नहीं है या फिर सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करना नहीं जानते" हैं। वायर में छपे एक लेख के मुताबिक़, “मदद पाने के लिए संघर्ष कर रहे भारतीयों की विशाल आबादी के लिए बार-बार फ़ोन लाइन पर कॉल करना या मरीज़ों को आपातकालीन वार्ड में ले जाना ही एकमात्र विकल्प है, यह स्थिति इस बात को उजागर करता है कि देश के लोगों के बीच कितना डिजिटल फ़ासला है।”
सोशल मीडिया का इस्तेमाल सरकार कैसे कर रही है
भारत सरकार अपने नागरिकों की तरफ़ से मदद को लेकर दरियादिली दिखाने के बजाय सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर किये जा रहे उन पोस्ट को हटवाकर अपना मुंह छुपाने की क़वायद कर रही है, जो कोविड-19 मामले से निपटने के लिए "अहम" हैं।
मिंट की एक रिपोर्ट में बताया गया है, “ट्विटर ने हाल ही में उन तक़रीबन 50 पोस्ट और यूआरएल हटा दिये हैं, जिन्हें निकाले जाने का आदेश भारत सरकार ने दिया था। फ़ेसबुक जैसे अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ने भी 50 पोस्ट हटा दिये हैं। जिन पोस्ट को हटाया गया है, उनमें महामारी की दूसरी लहर के बीच देश में कोविड-19 संकट से निपटने में सरकार की हीलेहवाली और लचर तौर-तरीक़ों की आलोचना थी।”
मिंट में छपे उस लेख के मुताबिक़, “भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा था कि इन पोस्ट को "महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में आ रही बाधाओं को हटाने" और सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने के चलते हटा दिया जाये।"
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की पहल-लूमेन डेटाबेस का हवाला देते हुए टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जो 52 ट्वीट हटाये गये, वे पत्रकारों, विपक्षी नेताओं और फ़िल्म निर्माताओं की तरफ़ से किये गये थे।
भारत की सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से एक-उत्तरप्रदेश, जहां भाजपा सत्ता में है, वहां के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ ने मांग की है कि “राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाये और सोशल मीडिया पर ‘अफ़वाहें फ़ैलाने वाले’ और दुष्प्रचार करने वालों की संपत्ति ज़ब्त की जाये।" वायर का कहना है कि हाल ही में राज्य में उस शख़्स के ख़िलाफ़ एक आपराधिक मामला दायर किया गया, जो अपने बीमार दादा के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए ट्विटर पर अपील की थी। उस शख़्स पर जो आरोप लगाये गये हैं,उनमें शामिल है, "इरादतन अफ़वाह फ़ैलाना... ताकि लोगों में डर पैदा हो या खलबली पैदा हो।”
बीबीसी की "न्यूज़नाइट" के साथ एक साक्षात्कार में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता, गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने सरकार द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट को हटवाये जाने के इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा, "जब हमारी सरकार ने कहा कि ये (ट्वीट और पोस्ट) हमारे मौजूदा राष्ट्रीय हित के अनुकूल नहीं है...तो ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया इससे सहमत थे।" उन्होंने दावा किया कि सोशल मीडिया पर यह कंटेंट "झूठी ख़बरों पर आधारित" था और इसका अपना "एजेंडा" था। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि हटा दिये गये पोस्टों में वायरस के बेक़ाबू प्रसार के कारण हुई तबाही को उजागर करने के अलावा भला और क्या एजेंडा हो सकता है। या या फिर इस बात की सच्चाई को सामने लाने के अलावा और क्या एजेंडा हो सकता है कि कितने भारतीयों को लगता है कि सरकार ज़रूरी उपायों को करने में विफल रही है और संकट को दूर करने में नाकाम रही है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर, आफ़ताब आलम ने न्यूयॉर्क टाइम्स मे छपे एक लेख में उद्धृत एक ट्वीट का ज़िक़्र करते हुए कहा, "ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने के मुक़ाबले ट्वीट को हटवा देना आसान है।"
इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख के मुताबिक़, इस बीच 30 अप्रैल को भारत की सबसे ऊंची अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की तरफ़ से सूचनाओं के गला घोंटे जाने पर संज्ञान लिया और साफ़ कर दिया, "अगर नागरिक सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपनी शिकायत को सामने रखते हैं तो इसे ग़लत सूचना नहीं कहा जा सकता है। अदालत ने यह चेतावनी भी दी है कि सूचना पर रोक लगाने के किसी भी तरह के प्रयास को "अदालत की अवमानना" माना जायेगा।
हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी
भारत में बढ़ते मामलों के मद्देऩजर दुनिया भर में कई सरकारें आख़िरकार आगे आयीं और देश को मदद के लिए अपने हाथ बढ़ाये। 28 अप्रैल को कोविड-19 के चलते देश में होने वाली मौत का आंकड़ा 200,000 को पार कर गया। हालांकि, यह आंकड़ा उस भयावह तस्वीर की सच्चाई को सामने नहीं लाता, जो ज़मीनी है। बहुत सारे मीडिया घरानों की रिपोर्ट बताती हैं कि कोविड-19 की वजह से होने वाली मौत के आंकड़े अपनी वास्तविक संख्या से कम हैं।
भारत में अप्रैल के आख़िरी हफ़्ते से हर दिन नये संक्रमण के मामले 300,000 से ज़्यादा होते रहे हैं और दुनिया में कोविड-19 के मामलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या के रूप में भारत ब्राजील से आगे निकल चुका है। भारत अब उस संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर पहुंच गया है, जहां 30 अप्रैल तक कोविड-19 के मामलों दुनिया में सबसे ज़्यादा है (जबकि इसकी आबादी भारत की आबादी की एक चौथाई है)।
इस बीच कम से कम आठ देशों ने अब तक भारत को मदद की पेशकश की है। हिंदू बिज़नेसलाइन के मुताबिक़, “यूके, फ़्रांस, जर्मनी, आयरलैंड,अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कुवैत और रूस ने कोविड-19 महामारी के तेज़ी से फ़ैलने के चलते देश को होने वाले अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए भारत को विभिन्न रूपों में मदद का ऐलान किया है।
ग़ैर-लाभकारी संगठनों ने भी सूचना के प्रसार से जुड़ी ज़मीन पर ज़रूरी सहायता मुहैया कराने और उन प्रवासी आबादी को राहत पैकेज दिये जाने को लेकर अपने क़दम आगे बढ़ाये हैं, जिन्हें अक्सर खुद के हवाले छोड़ दिया जाता है।
जिस तरह भारत के लोग अपने दम पर इस दूसरी लहर से पार पाने की तमाम कोशिशें की हैं, इससे क्या यह सवाल पैदा नहीं होता कि हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी?
रूही भसीन इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट में सहायक संपादक हैं। इससे पहले, राजनीति, क़ानून से जुड़े मामलों और सामाजिक मुद्दों को कवर करते हुए टाइम्स ऑफ़ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस में क्रमश:बतौर संपादक और बतौर वरिष्ठ पत्रकार काम कर चुकी हैं। इनसे इनके ट्विटर एकाउंट @BhasinRuhi पर संपर्क किया जा सकता है।
यह लेख की प्रस्तुति ग्लोबट्रोटर की थी।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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