इंदौर : एक और मज़दूर की सीवेज में दम घुटने से मौत
ये विडंबना ही है कि पूरे देश का मीडिया एक तथाकथित बाबा के तथाकथित चमत्कार को सच साबित करने में रात-दिन एक किए हुए हैं, लेकिन ये सवाल कोई नहीं करता कि जब एक मज़दूर मैला साफ करने के लिए सैप्टिक टैंक में उतरता है तो उसकी जान बचाने के लिए कौन सा चमत्कार किया जाए!
शायद इसलिए ये सवाल नहीं किया जाता क्योंकि यहां एक मज़दूर के लिए चमत्कार नहीं बल्कि सरकारी संसाधनों और नीतियों का प्रयोग करना पड़ेगा। मध्य प्रदेश के इंदौर में इन्ही संसाधनों के अभावों की भेंट एक और मज़दूर चढ़ गया।
हादसा तब हुआ जब तीन मज़दूर सीवरेज की लाइन डाल रहे थे, इसी दौरान मिट्टी धंस गई और तीनों मज़दूर 25 फीट गहरे गड्ढ़े में जा गिरे। इस दौरान दो मज़दूर गंभीर रुप से घायल हो गए जबकि एक की मौके पर ही मौत हो गई।
मौत इतनी भयावह थी कि जब मज़दूर का शव गड्ढ़े से निकाला गया तब उसका सर धड़ से अलग हो चुका था।
हादसे के बाद स्थानीय पुलिस और नगर-निगम के अन्य कर्मचारी मदद में जुट गए जहां मिट्टी के नीचे दबे मज़दूर को निकालने में उसकी गर्दन अलग होकर लटक गई थी। पुलिस, लापरवाही के मामले को लेकर जांच कर रही है। दोनों घायल मज़दूरों को उपचार के लिए एमवाय अस्पताल भेजा गया है। इस मामले में मेयर पुष्यमित्र भार्गव ने मामले में जांच के आदेश दिए हैं।
एडिशनल डीसीपी राजेश रघुवंशी के मुताबिक घटना छोटी ग्वालटोली इलाके की है। यहां निजी कंपनी द्वारा सीवरेज लाईन का काम किया जा रहा था जिसके तहत ठेकेदार द्वारा 25 फीट गहरा गड्ढा खोदा गया था। यहां तीन मज़दूर इस गड्ढे में मिट्टी हटाकर पाइप डालने का काम कर रहे थे। इस दौरान अचानक से चट्टान सहित मिट्टी मज़दूरों के ऊपर आकर गिरी जिसमें दो मज़दूर मिट्टी में ही दब गए।
पुलिस के मुताबिक जिस मज़दूर की मौत हुई है वो शंकरबाद का रहना वाला था और उसका नाम दिलान पटेल था, जबकि उसके साथी पप्पू उर्फ दिनेश को सर और हाथ-पैर में चोट लग गई, जिसके बाद उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया।
एडिशनल डीसीपी की माने तो मज़दूरों के दबने के दौरान अंदर काफी मिट्टी उनके ऊपर गिर गई थी। जिसमें पोकलेन से मिट्टी हटाने का काम किया जा रहा था। इस दौरान जोर से पोकलेन का पंजा लगने की वजह से दिलान पटेल के शव की गर्दन शरीर से अलग होकर लटक गई।
सीवरेज या सैप्टिक टैंक में मज़दूरों की मौत का ये कोई पहला मामला नहीं है, ऐसे मामले लगातार नोटिस किए जा रहे हैं, हालांकि इन्हें सुरक्षा के नाम पर कुछ दिया नहीं जाता।
साल 2022 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने लोकसभा में कुछ आंकड़े पेश किए थे, जिसमें उन्होंने बताया था कि साल 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, 2021 में 36, व साल 2022 में 17 मौतें सीवर और सैप्टिक टैंक में सफाई के दौरान दर्ज की गई हैं।
इसी साल आवास और शहरी मामलों के राज्य मंत्री कौशल किशोर ने भी राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों में बताया था कि सीवर और सैप्टिक टैंक में सफाई के दौरान सबसे ज़्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुई हैं। आंकड़े देखें तो सफाई के दौरान उत्तर प्रदेश में 47, तमिलनाडु में 43, और दिल्ली में 42 मज़दूरों की मौत हुई। जबकि हरियाणा में 36, महाराष्ट्र में 30, गुजरात में 28, कर्नाटक में 26, पश्चिम बंगाल में 19, पंजाब में 14, और राजस्थान में 13 मौतें हुई हैं।
इतने बड़े आंकड़ों के बावजूद सीवर की सफाई सरकारी हो या फिर प्राइवेट, कर्मियों को बिना किसी सुरक्षा, बिना किसी कानून का पालन किए धड़ल्ले से मौत के मुंह में धकेला जा रहा है।
आपको बता दें कि सीवर में सफाई के लिए एक्ट के तहत सफाईकर्मियों से सीवेज सफाई पूरी तरह गैरकानूनी है। अगर किसी व्यक्ति को सीवर में उतारना ही पड़ जाए तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालन जरूरी है। कहने का अर्थ है कि स्पेशल कंडीशन में सफाई कर्मी को निम्न व्यवस्थाएं मिलनी चाहिए:
- कर्मचारी का 10 लाख रुपये का बीमा होना चाहिए
- कर्मचारी से काम की लिखित स्वीकृति लेनी चाहिए
- सफाई से एक घंटे पहले ढक्कन खोलना चाहिए
- प्रशिक्षित सुपरवाइजर की निगरानी में ही काम होगा
- ऑक्सीज़न सिलेंडर, मास्क और जीवन रक्षक उपकरण देने होंगे
इन तमाम प्रतिबंधों के बावजूद मज़दूरों को धड़ल्ले से उनकी ज़िम्मेदारी पर सेप्टिक टैंक्स में उतार दिया जाता है, सरकारी काम हो या प्राइवेट, मज़दूरों को पूरी तरह से सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जाती है।
बीच-बीच में ऐसा भी सुनने को मिला कि अब मैला निकालने के लिए, या सेप्टिक टैंकों में काम करने के लिए मशीनों को इस्तेमाल होगा, लेकिन ये सब फिलहाल कागज़ी बातें ही साबित हुई हैं।
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