बीजेपी का पसमांदा मुसलमानों का विश्वास जीतना एक चुनौती
भारतीय जनता पार्टी अपना यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का एजेंडा लागू कराने के लिए पसमांदा मुसलमानों को विश्वास में लेने का प्रयास कर रही है। यह बताने के लिए की यूसीसी से मुसलमानों की धार्मिक परंपराओं पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। बीजेपी नेता दरवाज़े-दरवाज़े जाएंगे।
यूसीसी को लेकर ग़लत फहमियां
बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए राजधानी लखनऊ में 23 जुलाई को एक सम्मेलन “यूनिफार्म सिविल कोड और पसमांदा मुसलमानों” पर किया। इस सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय मुस्लिम पसमांदा महाज़ द्वारा किया गया था जिसमें उत्तर प्रदेश के इकलौते मुस्लिम मंत्री दानिश आजाद समेत बीजेपी के कई मुस्लिम नेता शामिल हुए और उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य यूसीसी को लेकर फैली ग़लत फहमियों को दूर करना है।
'पसमांदा स्नेह यात्रा'
बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों को अपने पक्ष में लेने के लिए गांव-गांव जाने का निर्णय लिया है। पसमांदा महाज़ के प्रदेश प्रभारी फैसल मंसूरी ने न्यूज़क्लिक को बताया, इस क्रम में 27 जुलाई से 'पसमांदा स्नेह यात्रा' शुरू होगी। यह यात्रा एनसीआर गाज़ियाबाद से शुरू होकर उत्तर प्रदेश के सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में जाएगी। जहां पसमांदा मुसलमानों के साथ संवाद स्थापित किया जायेगा। इसके अलावा पसमांदा स्नेह यात्रा देश के अन्य राज्यों से भी गुजरेगी।
विपक्ष और धर्मगुरु गलत फहमियां फैला रहे हैं
फैसल मंसूरी का कहना है कि यूसीसी को लेकर मुसलमानों के बीच बहुत सी गलत फहमियां हैं जो धर्मगुरुओं द्वारा फैलाई गई है। उनका कहना है विपक्ष और धर्मगुरु मुसलमानों को बरगलाने का काम कर रहे हैं।
बीजेपी और पसमांदा
उलेखनीय है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लगातार 2022 से बीजेपी पसमांदा मुसलमानों के बीच कार्यक्रमों को करा रही है। एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' की किताब का उर्दू में अनुवाद करके भी बांटा गया था।
एक बड़ा प्रश्न
लेकिन बड़ा प्रश्न यह है की क्या बीजेपी मुसलमानों को यह विश्वास दिला सकेगी की यूसीसी से उनकी धार्मिक परंपराएं और प्रथाएं प्रभावित नहीं होंगी? क्योंकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे बड़े संगठन यूसीसी का खुल कर विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा मुसलमानों का मानना की बीजेपी की सरकार के केंद्र में आने के बाद से उनका समाज लगातार हाशिये पर जा रहा है।
बीजेपी की गणित
माना जा रहा है की बीजेपी मुस्लिम समाज को पसमांदा (पिछड़े) और अशरफ़ (अगड़े) के नाम पर दो हिस्सों में बांटना चाहती है। जिसका उसको राजनीतिक लाभ 2024 लोकसभा चुनाव में अपना लक्ष्य “मिशन 80” पूरा करने में मिलेगा। क्योंकि 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने 80 प्रतिशत से अधिक वोट समाजवादी पार्टी को दिया था। जिसका नतीजा यह हुआ था कि बीजेपी को बहुमत मिलने के बावजूद क़रीब 58 सीटों का नुक़सान हुआ था।
प्रदेश की लोकसभा सीटों में 29 सीटें मुस्लिम बहुल हैं। पूरे प्रदेश में करीब 4 करोड़ मुसलमान हैं यानी कुल आबादी का 20 प्रतिशत। उनमें सबसे अधिक क़रीब 85 प्रतिशत आबादी पसमांदा मुसलमानों की है।
एक प्रयोग
उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव 2023 में बीजेपी ने 391 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। इनमें उसके 61 मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत भी हासिल की थी। जिसमें चेयरमैन की 5 सीटों पर बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत मिली थी।
केवल दिखावा
जब न्यूज़क्लिक ने पसमांदा मुसलमानों से 'बीजेपी के पसमांदा मुसलमानों के प्रति स्नेह' के बारे में बात की तो उन्होंने इसे सिर्फ एक दिखावा बताया।
पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने कहा कि यूसीसी लागू के पीछे मुस्लिम बेटियां नहीं हैं। वह कहते हैं यदि मुसलमान औरतों के प्रति भाजपा का कोई सरोकार होता तो उसके नेता मुसलमान स्त्रियों को कब्र से निकालकर उनके बलात्कार का आह्वान मंचों से न करते। गुजरात के दंगों में मुसलमान औरतों का सामूहिक बलात्कार, गर्भ चीरकर भ्रूण निकालने जैसी वीभत्स और बर्बर घटनाएं अंजाम नहीं दी जातीं।
अनीस मंसूरी आगे कहते हैं अगर बीजेपी को मुसलमान औरतों के प्रति न्याय को लेकर इतना दर्द उमड़ रहा होता तो बिलकिस बानो के बलात्कारियों और उसके बच्चे और परिवार के हत्यारों को भाजपा सरकार बरी न करती, न ही माया कोडनानी और बाबू बजरंगी जैसे लोग बरी होते या उन्हें पैरोल मिलती।
'हिंदू पर्सनल लॉ' मुसलमान आबादी पर थोपना है
उन्होंने कहा कि यह साफ़ है कि मुसलमान औरतों के प्रति चिंता का हवाला देकर भाजपा तथाकथित यूसीसी को मुसलमान आबादी पर थोपना चाहती है और असल में वह समान नागरिक संहिता के नाम पर हिंदू पर्सनल लॉ को ही विशेष तौर पर मुसलमान आबादी पर थोपना चाहती है, जो कि उनकी धार्मिक व निजी आज़ादी का हनन होगा और इस प्रकार सांप्रदायिक तनाव और ध्रुवीकरण को बढ़ाने का उपकरण मात्र होगा।
शिक्षा पर हमला
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अनीस मंसूरी ने कहा कि बीजेपी सरकार ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद फेलोशिप को अभी हाल ही में सरकार ने बंद करा दिया। इसके माध्यम से पसमांदा मुसलमानों के होनहार बच्चे उच्च शिक्षा में कामयाब होने लगे थे। इसके अलावा देश के कई प्रदेशों में आर्थिक तौर से कमज़ोर मुसलमानों को वहां की राज्य सरकारें 4 प्रतिशत आरक्षण पसमांदा को देती थीं जिसे कर्नाटक में भी ख़त्म कर दिया गया और जिन राज्यों में मिल रहा है वह भी खत्म करने की तैयारी में हैं।
वहीं मोमिन अंसार सभा के अध्यक्ष अकरम अंसारी ने कहा बीजेपी की सनेह यात्रा का समर्थन केवल पार्टी के संगठन के लोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी मुसलमानों से सनेह की बात कर रही है और उसके राज्य में हम सड़क पर नमाज़ नहीं पढ़ सकते, मस्जिदों के माइक उतारे जा रहे हैं।
रोज़ मुसलमानों को धमकियां
इसके अलावा हज पर मिलने वाली सब्सिडी भी ख़त्म हो गई। ज्ञानव्यापी मस्जिद का मसला उठाया जा रहा है और हिजाब पर पाबंदी लगाई गई। रोज़ भगवा नेता मुसलमानों को धमकियां देते हैं और बॉयकॉट की बात करते हैं। अकरम अंसारी पूछते हैं कि क्या यही बीजेपी का स्नेह है जिसके लिए हम उसका समर्थन करें?
उर्दू अकेडमी से वक्फ़ बोर्ड तक क़ब्ज़ा
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं बीजेपी के लिए मौजूदा हालत में मुस्लिम समाज का समर्थन हासिल करना आसान नहीं है। प्रसिद्ध पत्रकार हुसैन अफसर कहते हैं कि उर्दू अकेडमी से लेकर वक्फ़ बोर्ड तक हर जगह बीजेपी के लोगों का क़ब्ज़ा है और कोई भी संस्था स्वतंत्र हो कर काम नहीं कर पा रही है। हुसैन अफसर मानते हैं यह मुश्किल है कि बीजेपी एक तरफ मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश करे दूसरी तरफ उनका समर्थन भी हासिल कर ले।
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