लॉकडाउन: सरकार और समाज की अनदेखी से हताश सेक्स वर्कर्स, आगे भी नहीं दिखती उम्मीद
"लॉकडाउन देश के लिए जरूरी है, लेकिन परिवार पालने के लिए हमारा पैसा कमाना भी उतना ही जरूरी है। हमारा धंधा बंद है, न सरकार हमारे बारे में सोच रही है ओर न ही हम किसी से अपनी हालत के बारे में कुछ कह पा रहे हैं।”
ये दर्द स्वाति (बदला हुआ नाम) का है। स्वाति एक सेक्स-वर्कर हैं और पूर्वी दल्ली में अपने परिवार के साथ रहती हैं। स्वाति का पति उन्हें सालों पहले छोड़ चुका है, परिवार में उनके दो छोटे बच्चे और बूढ़े मां-बाप हैं। ये सभी स्वाति की कमाई पर ही निर्भर हैं, हालांकि इन्हें स्वाति के काम के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
लॉकडाउन को एक महीना पूरा हो गया है। इस दौरान सरकार ने अलग-अलग वर्गों के जरूरतमंद लोगों के लिए कई राहत योजनाओं का ऐलान भी किया। लेकिन अभी तक समाज के आखिरी तबके में शामिल सेक्स वर्कर्स की कोई सुध लेने वाला नहीं है। अब इस पेशे से जुड़े महिलाओं, पुरुषों और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को रोजाना खाने की चिंता सता रही है। ये सेक्स वर्कर आने वाले दिनों में भी अपने काम को लेकर काफी परेशान हैं, इन्हें आगे भी कोई उम्मीद नहीं नज़र आती।
न्यूज़क्लिक से बातचीत में स्वाति कहती हैं, “लॉकडाउन से कई दिनों पहले ही हमारा धंधा बंद हो गया था। कुछ समय तो बचाए हुए पैसों से काम चल गया लेकिन उसके बाद से बहुत दिक्कतें हो रही हैं। घर में राशन नहीं है, किसी और कमाई की कोई उम्मीद नहीं है। घरवालों को लगता है कि लॉकडाउन के बाद सब ठीक हो जाएगा लेकिन मुझे पता है कि इसके बाद भी लंबे समय तक हमारे पास कोई कस्टमर नहीं आएगा, पता नहीं आगे क्या होगा?”
सेक्स वर्कर्स को हमारे समाज में हीन भावना से देखा जाता है। इनके काम की न तो कोई मान्यता है और न ही समाजिक स्वीकार्यता। यही कारण है कि सरकार की नीतियों और राहत योजनाओं में भी इनकी अनदेखी होती रही है।
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ट्रांसजेंडर लीज़ा (बदला हुआ नाम) जो सेक्स वर्कर हैं अपनी समस्याओं के बारे में बताते हुए कहती हैं, “हम तो सरकारी खाना लेने भी नहीं जा सकते। जैसे बाहर निकलते हैं पुलिस भगाने लगती है, अगर कहीं लाइन में खड़े हो गए तो लोग अजीब नज़रों से घूरते हैं। हमारे धंधे में तनख्वाह जैसा हिसाब तो होता नहीं, जो हमने बचत कर रखी हो। ऐसे में हम क्या करें? हमारे जिन साथियों के पास थोड़े पैसे बचे हैं, वही बाकियों की मदद कर रहे हैं लेकिन सरकार जब सबकी मदद कर रही है तो हमारी क्यों नहीं कर रही?”
दिल्ली के जीबी रोड की गलियां इन दिनों वीरान हैं, साथ ही वीरान हैं उन सेक्स वर्कर्स की दुनिया भी जो अपना भरण-पोषण यहां की कमाई से करती थीं। ऐसे में कई गैर सरकारी संगठन इन सैकड़ों सेक्स वर्कर्स की मदद के लिए आगे आए हैं। लेकिन उन्हें भी इन लोगों तक पहुंचने और फिर सहायता पहुंचाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या हैं दिक्कतें?
पिछले चार दशकों से सेक्स वर्कर्स की मदद कर रही भारती पाटिता की सीमा सिंह का कहना है कि अगर कोई संस्था कुछ लोगों के साथ सामान वितरण के लिए इनके इलाके में जाए, तो भी ये लोग आसानी से मदद के लिए बाहर ही नहीं आते। कई बार हाथों में कैमरे और मोबाइल देखकर भी ये लोग डर जाते हैं। ऊपर से इस पेशे से जुड़े सभी लोगों की पहचान करना भी आसान नहीं है।
सेवा भारती संस्था की आस्था बताती हैं, “सेक्स वर्कर का ये कारोबार कई तरह से चलता है। जैसे जीबी रोड, रेडलाइट्स का इलाका सबको मालूम है लेकिन कई महिलाएं घर में रहकर अपने ग्राहक खुद तय करती हैं तो कई ऐसी भी हैं जो दलालों के सहारे काम करती हैं। ऐसे में सभी तक पहुंच पाना नामुमकिन है। कई संगठन जितने लोगों तक संभव हो पा रहा है राशन पहुंचा रहे हैं लेकिन सवाल यही है कि आखिर ये राशन कबतक चलेगा और कितने लोगों तक पहुंच पायेगा।
ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर संगठन देश के 16 राज्यों में काम करता है। इस संगठन में विभिन्न राज्यों से 108 कम्यूनिटी बेस्ड संगठन जुड़े हैं। इस संस्था से जुड़ी ऋतु बताती हैं, “बहुत से सेक्स वर्कर्स के घरों की हमें कोई जानकारी नहीं होती है, ऐसे में कुछ संपर्कों के जरिये हम राशन पहुंचाने का काम करते हैं। लेकिन कई बार पुलिस के डर के चलते ये लोग राशन लेने आते ही नहीं हैं। एक बड़ी परेशानी इस समय उन महिलाओं के सामने है जो खुद किराये के मकान में रहती हैं या किराये पर कमरा लेकर अपना काम करती हैं। लॉकडाउन के समय में जब उन्हें पैसे ही नहीं मिल रहे तो वो कहां से किराया देंगी और परिवार का खर्चा कैसे चलाएंगी? इसके अलावा इन में से कई गंभीर बीमारियों से भी संक्रमित होती हैं, उनकी दवाइयों का इंतजाम भी एक चुनौती है।”
मानसिक तनाव का भी हो रही हैं शिकार
बता दें कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग 30 लाख सेक्स वर्कर्स हैं। वहीं, ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग दो करोड़ लोग इस पेशे से जुड़े हैं। ऐसे में इन लोगों को लॉकडाउन के बीच रोजी-रोटी के संकट के साथ ही मानसिक तनाव भी झेलना पड़ रहा है।
प्रवर मेडिकल ट्रस्ट की लीना बताती हैं, "सेक्स वर्कर्स लॉकडाउन में सरकार और समाज की अनदेखी के चलते भुखमरी पर पहुंच गई हैं, उनकी जिंदगी बिल्कुल रुक सी गई है, जिसकी वजह से इस पेशे से जुड़े कई लोग इस समय मानसिक शॉक से गुज़र रहे हैं। एक तो सरकार और समाज इनकी परेशानी नहीं समझते ऊपर से इनमें से कई अपने परिवारों से भी कुछ नहीं कह पाती क्योंकि उनके घरों में पता ही नहीं होता कि ये काम क्या कर रही हैं। जिसके कारण अब ये अंदर-अंदर घुटन महसूस कर रही हैं, इन्हें काम और पैसों की चिंता तो है ही साथ ही समाज और परिवार की भी चिंता है कि आखिर ये बिना अपने काम के गुजारा कैसे करेंगी।”
गौरतलब है कि कोरोना वायरस का कहर समाज के लगभग हर तबके पर टूटा है। मज़दूरों, किसानों, छोटे कारोबारी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं तो वहीं इन सब के बीच एक बड़ी आबादी सेक्स वर्कर्स की भी है जिसे लॉक डाउन में सरकार से मदद की दरकार है। हालांकि ये लोग राहत की तमाम सरकारी योजनाओं में शामिल नहीं है। इस पेशे से जुड़ी लाखों महिलाओं को रोजाना खाने की चिंता के साथ ही भविष्य की भी फ़िक्र है।
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