लॉकडाउन: वेतन न काटने के सरकारी आदेश के बाद भी कर्मचारियों का वेतन कटा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपील की कि किसी भी कर्मचारी का वेतन कोई भी नियोक्ता न काटे। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री की अपील के आलोक में ही 29 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक आदेश भी जारी किया की किसी भी कर्मचारी के वेतन में किसी भी तरह की कोई कटौती नहीं होगी। इसके साथ इस आदेश में कई और महत्वपूर्ण बातें भी कही गईं, जैसे कोई भी माकन मालिक किरायदार से इस दौरान किराया वसूली नहीं करेगा न उन्हें ख़ाली करने के लिए कहेगा। लेकिन सच्चाई क्या है?
अब जब अप्रैल का पहला सप्ताह ख़त्म हो रहा है, जो कि वेतन देने का समय होता है, कई जगह से ऐसी जानकारी आ रही है कि मालिक कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर रहा है या फिर बिना भुगतान की छुट्टियों पर भेज रहा है। जो कि इस आपदा की स्थिति में गैर मानवीय तो है ही, इसके साथ ही गैरकानूनी भी है। यह एक बात साफ बताता है कि लोग मोदी जी के कहने पे थाली तो पीट रहे हैं और दीया भी जला रहे हैं, लेकिन उनके कहे अनुसार वेतन नहीं दे रहे हैं।
रॉयल होटल ने अपने कई कर्मचारियों को लॉकडाउन शुरू होते ही छुट्टी पर भेज दिया, क्योंकि कोरोना माहमारी के कारण होटल में रुकने वाले गेस्टों की संख्या घट गई थी, और होटल मालिक घाटा नहीं उठाना चाहते हैं। ऐसे ही निकाले गए कर्मचारी ने बताया की मालिक ने उनसे कहा काम नहीं है, आप लोग अपने अपने घर चले जाओ और फिर जब काम होगा तो आपको वापस बुला लिया जाएगा। इनमें अधिकतर वेटर, कुक और हाउस कीपिंग स्टाफ था। इनकी शिकायत है कि उन्हें इस दौरान का कोई पैसा नहीं दिया गया।
इसी तरह दिल्ली में लोन की एक कंपनी प्रेस्टलोन्स हैं। आरोप है कि इसने भी अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती की है। इस कंपनी ने 15 हज़ार से ऊपर जिनकी भी सैलरी थी सब में 20 से 30 प्रतिशत तक की कटौती की है। जबकि इस कंपनी के कर्मचारियों का कहना है कि कंपनी ने लॉकडाउन के बाद भी हमसे वर्क फॉर्म होम करवाया था। लेकिन जब आरबीआई ने कंपनियों से किसी भी तरह के लोन किश्तों को लेने से मना किया। उसके बाद कंपनी ने काम बंद किया है।हालंकि कंपनी ने कर्मचारियों से कहा है । उनकी कटी सैलरी को होल्ड किया गया है । लेकिन इसको लेकर अभी स्पष्टता नहीं है ये वेतन कब मिलेगा । इसको लेकर कंपनी ने कोई आधिकारिक आदेश भी नहीं दिया है ।
हमने इस आरोप पर कंपनी के प्रबंधन से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला है।
औरों की तो छोड़िए इसी तरह कई प्रिंट मीडिया संस्थानों से भी ख़बरें आ रही हैं कि वहां भी मैनजमेंट कर्मचारियों की सैलरी काट रहा है।
चाय बागान में काम करने वाले श्रमिकों के साथ भी ऐसा ही किया गया। जबसे लॉकडाउन हुआ उसके बाद से ही उन्हें किसी भी तरह का भुगतान नहीं दिया गया। इसे कई लोगों ने बागान मालिकों के रणनीति भी बताया और कहा कि मालिकों ने श्रमिकों की हालत दिखाकर असम और तमिलनाडु में अपने बागान खुलवा लिए। वहां श्रमिक बिना किसी पुख्ता सुरक्षा इन्तज़ाम के काम करने को मजबूर है, उनके पास कोई और चारा नहीं है।
इसके अलावा देश में करोड़ों की संख्या में असंगठित क्षेत्र, ठेका, दिहाड़ी मज़दूर हैं। उनकी हालत तो और भी ख़राब है। दिल्ली के गाँधी नगर में एक फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूर दिलीप ने कहा कि "हमारे मालिक ने हमे पांच हज़ार रुपये भेज दिए हैं।"
ये बताते हुए उनके चेहरे पे एक अलग ही ख़ुशी थी। उन्होंने कहा 'काम बंद होने के बाद भी मालिक ने हमे पैसे दे हैं।' मैंने उनसे कहा कि सरकार का आदेश है की सभी मालिकों को अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देना है। इस पर वो हँसते हुए कहते है 'ऐसा नहीं होगा भइया पता नहीं कैसे मालिक ने ये पैसे भी दे दिए वरना तो वो आधे दिन की भी दिहाड़ी काट लेते हैं।'
इस तरह सदर बाजार में काम करने वाले मज़दूर विनोद ने भी बताया कि उनके भी मालिक ने उन्हें वेतन नहीं दिया है। मगर उनसे कहा है घर के खर्च के लिए दो तीन हज़ार रुपये भेज देगा।
ऐसे सैकड़ों मज़दूर हैं जिनके साथ ऐसा किया जा रहा है लेकिन शायद ही किसी मालिक के खिलाफ कोई कार्रवाई हो क्योंकि कोई भी कर्मचारी या मज़दूर अपने मालिक की शिकायत करने की हिम्मत नहीं दिखा रहा है। प्रशासन तो आँखें बंद किये रहता ही है। सभी को डर है कहीं उन्होंने मालिक के ख़िलाफ़ कुछ कहा तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ न धोना पड़ जाए। वैसे दुनिया की अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट से गुजर रही थी, उसके बाद कोरोना के कहर से दुनिया भर में घबराहट का माहौल में लोगों के कामकाज पर गहरा असर पड़ा है।
अंतरष्ट्रीय संगठन संयक्त राष्ट्र ने भी एक रिपोर्ट कर जारी की थी और बताया था कि दुनिया भर में लगभग 2.5 करोड़ लोगो का रोजगार जा सकता हैं। भारत जैसे देश के लिए यह और भी ख़तरनाक स्थिति है क्योंकि भारत वर्तमान में अपने इतिहास की सबसे अधिक बेरोजगारी झेल रहा है।
यही कारण है कि कर्मचारी अपने वेतन काटे जाने के बाद भी आवाज़ नहीं उठा पा रहा है। इस पूरी घटना को लेकर हमने दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय से भी संपर्क किया। उनसे तो बात नहीं हो पाई लेकिन उनके ऑफिस से कहा गया कि अगर किसी को भी सरकार के आदेश के बाद भी वेतन कटकर मिला है तो वो पुलिस या डीएम के पास जाकर शिकायत कर सकता है। क्योंकि यह आदेश उन्हें ही लागू करना है।
सीटू के नेता सतबीर सिंह ने कहा है कि उन्होंने केंद्र सरकार को पत्र लिखा है कि सरकार अपने आदेश को लागू कराए और यह पक्का करे कि किसी भी कर्मचारी या मज़दूर का वेतन न काट जाए। आगे उन्होंने कहा, "ठेका मज़दूरों,कैजुअल लेबर की हालत तो और भी बुरी है, उनको तो किसी भी तरह का कोई भी लाभ नहीं मिलता है। मालिकों का यह रैवया दिखता है की वो मज़दूरों के प्रति कितन असंवेदनशील है।"
आरएसएस के मज़दूर संगठन भारतीय मज़दूर संघ के नेता बृजेश ने भी न्यूज़क्लिक से बातचीत कहा कि "अगर कोई मालिक मज़दूर के वेतन में कटौती कर रहा है तो वह गलत है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा उनके पास अभी इस तरह का कोई मामला आया नहीं है, अगर कोई आएगा तो वह लोग लड़ेंगे।"
यह बात बिल्कुल सही है कि सरकार का आदेश है अगर उसे कोई नहीं लागू करता है तो पुलिस उसपर कार्रवाई करेगी,लेकिन जब कर्मचारी अपनी नौकरी को लेकर इतना डरा हुआ है तो सरकार कैसे उम्मीद कर रही है कि कर्मचारी पुलिस में शिकायत करेंगे।
कई मामले तो सरकार पुलिस और मीडिया सबके सामने हैं जब कंपनियों ने वेतन काटा है या कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी पर भेजा है। चाहे वो चाय बागान के श्रमिक हो जिन्हें इस लॉकडाउन के दौरान हुई कामबंदी का वेतन नहीं दिया गया हो या फिर गो एयर का मामला उसने पहले ही अपने कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया था। कंपनी इसके लिए रोटेशन पॉलिसी का सहारा लिया और इन छुट्टियों के लिए किसी भी तरह का कोई भी भुगतान नहीं किया जाएगा यह भी उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था।
इसी तरह एयर डेक्कन के सभी मौजूदा कर्मचारी ( स्थायी, अस्थायी और संविदात्मक) को तत्काल प्रभाव से वेतन के अनपेड लीव पर भेजा जा रहा है।
सरकार को बाताना चाहिए ये जो मामले सार्वजनिक हैं, इन पर क्या कार्रवाई हुई है? क्योंकि सरकार किसी भी बड़ी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करती है तो उसका असर बाकी जगहों पर भी पड़ेगा लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। यही वजह है कि मालिकों का मनोबल बढ़ा है और कर्मचारियों की हिम्मत टूट रही है। इस पूरे मामले सरकार का रवैया तो संदिध है ही लेकिन ट्रेड यूनियन भी उतनी मुखर होकर इस सवाल को नहीं उठा रही हैं।
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