मध्य प्रदेश: आशा कार्यकर्ताओं ने मनाया प्रदेशव्यापी दमन-विरोधी दिवस, अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू
मध्य प्रदेश में बीते लंबे समय से आशा-ऊषा कार्यकर्ता मानदेय वृद्धि और नियमितीकरण समेत अन्य मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन धरने और हड़ताल पर बैठी हुई हैं। इसी कड़ी में बीते रविवार, 16 अप्रैल को प्रशासन के अश्वासन के बाद मुख्यमंत्री से मिलने उनके कार्यक्रम में पहुंची इन कार्यकत्रियों को कथित तौर पर पुलिसिया कार्यवाही का सामना करना पड़ा था। इन कार्यकत्रियों के मानें तो, सीएम का काफिला रोकने और चक्का जाम करने को लेकर इन पर मुकदमा दर्ज किया गया था। साथ ही इन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी हुआ है। इसके अलावा इनकेे बीते 6 महीने के रिकार्ड्स भी चेक किए जा रहे हैं। जिसके विरोध में आज 20 अप्रैल को इन कार्यकर्ताओं ने प्रदेशव्यापी दमन विरोधी दिवस मनाया और सरकार के इस अत्याचारी कदम के खिलाफ जमकर हल्ला बोला।
इन कार्यकर्ताओं ने ग्वालियर के जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपा है, जिसमें सभी मुकदमों और कारण बताओ नोटिस को वापस लेने की बात कही गई है। कार्यकत्रियों के मुताबिक इस कार्यवाही में उन महिलाओं के नाम को भी प्रशासन ने जोड़ दिया है, जो रविवार के दिन प्रदर्शन स्थल पर मौजूद तक नहीं थीं। ऐसे में सीधा-सीधा आशाओं के आंदोलन को डरा-धमकाकर दबाने की कोशिश है, जो सरकार और प्रशासन के द्वारा साफ नज़र आती है।
आशा ऊषा सहयोगिनी श्रमिक संघ की प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कौरव ने न्यूज़क्लिक को बताया कि प्रशासन के इस दमनकारी रवैए के खिलाफ सभी संभागों से ग्वालियर में आशा कार्यकर्ता एकत्र हुई हैं। आज यानी 20 अप्रैल से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल भी शुरू कर दी गई है, जिससे शायद सरकार की निंद खुल जाए और आशाओं की मांगों पर सरकार ध्यान दे। इस प्रदर्शन में सभी आशा कार्यकर्ता विरोध स्वरूप काली पट्टी बांध कर शामिल हुईं और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी हुई।
बता दें कि 16 अप्रैल को ग्वालियर के आंबेडकर महाकुंभ में घंटों शांतिपूर्ण रूप से धूप में बैठने के बाद भी जब इन आशा कार्यकर्ताओं को सीएम से नहीं मिलने दिया गया, तो मजबूरन इन लोगों को चक्का जाम करना पड़ा, जिसके बाद आठ कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। इतना ही अधिकारियों द्वारा सीएम के आदेश पर इनके बीते 6 महीने के रिकार्ड्स भी चेक करने के लिए मंगवाए जा रहे हैं। जिसका विरोध ये सभी आशा कार्यकर्ता कर रही हैं।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक साल 2021 में जब आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं ने राजधानी भोपाल में बड़ा प्रदर्शन किया था, तब उन्हें ये आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही प्रदेश की हर आशा को 10 हजार रुपए और पर्यवेक्षकों को 15 हजार रुपए का वेतन निर्धारित कर दिया जाएगा। लेकिन अब दो साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। ऐसे में अब ये आशाएं अपना धैर्य खो चुकी हैं और अपने काम के बदले दाम के हक़ को लेकर सड़कों पर उतर आई हैं।
आशा ऊषा सहयोगिनी श्रमिक संघ के अनुसार आशाओं को कड़ी मेहनत के बावजूद बेहद कम 2,000 रुपये मानदेय पर गुजारा करना पड़ रहा है। 24 जून 2021 को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक आशा कार्यकर्ताओं को प्रति माह 10,000 रुपये के मानदेय का प्रस्ताव देने और राज्य सरकार और यूनियनों को इस प्रस्ताव के भेजे जाने पर सहमत हुई थीं। उन्होंने इस शर्त पर सहयोगियों के मानदेय में बढ़ोतरी किये जाने का भी वादा किया था कि उनके कार्य दिवस 25 दिन से बढ़ाकर 30 दिन कर दिए जायेंगे। उन्होंने ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के कारण मरने वाली आशा कार्यकर्ताओं के परिवारों को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का भी वादा किया था। लेकिन बीते दो साल में इस पर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
आशाओं की अहम भूमिका
ध्यान रहे कि साल 2018 से पहले ये सभी कार्यकर्ता केवल 1,000 रूपये मासिक पारिश्रमिक लेती थीं। इस मासिक मानदेय के अलावा इन्हें जननी सुरक्षा योजना, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (HBNC), आदि जैसे अतिरिक्त कार्यों के आधार पर प्रोत्साहन राशि मिलती है। सरकारी खबरों के मुताबिक आशा कार्यकर्ताओं को महामारी के दौरान किये गये उनके सभी कार्यों के लिए उनके इस मासिक मानदेय 2,000 रुपये के अलावा उन्हें 1,000 रुपये की मामूली राशि का भी भुगतान किया गया है।
गौरतलब है कि 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती की जाती है। वहीं सहयोगिनी की भूमिका आशा कार्यकर्ताओं की निगरानी और उनका मार्गदर्शन करना है। इनकी ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को आशा कार्यकर्ताओं के किये गये कार्यों की प्रगति की रिपोर्ट करने की भी होती है। ऐसे आशा-ऊषा कार्यकर्ता सरकार की योजनाओं को आम जन तक पहुंचाने में अहम कड़ी का काम करती हैं।
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