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मध्यप्रदेश : MTH इंदौर में नहीं थम रही नवजात शिशुओं की मौत, आंकड़ों पर भी शक

इंदौर के महाराजा तुकोजीराव अस्पताल में नवजात शिशुओं की लगातार मौत हो रही है, पीड़ित परिजन अस्पताल प्रशासन पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन अस्पताल प्रशासन मौत की असली वजह बताने को तैयार नहीं है।
Madhya Pradesh
फ़ोटो साभार : MP तक

करीब दो महीने पहले मध्यप्रदेश में जब 15 हज़ार से ज़्यादा डॉक्टर हड़ताल पर चले गए थे, और मरीजों को तकलीफें झेलनी पड़ी थीं, तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वादा किया था कि हमारी ड्यूटी है कि किसी भी मरीज की जिंदगी को खतरा पैदा न हो। सबको सुविधाजनक इलाज मिलता रहे। जिला अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेजों में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध रहे, इसके लिए सभी का सहयोग लिया जाए।

इससे पहले भी शिवराज सिंह चौहान अपने प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था की वाहवाही का दंभ भरते रहे हैं। लेकिन वादों और जुमलों की पोल तब खुल गई जब पिछले 6 दिनों में 20 से ज़्यादा नवजात शिशुओं की मौत का मामला चर्चा में आया, बची कुची कसर पिछले 24 घंटे में हुई दो नवजातों की मौत ने पूरी कर दी।

मृतक नवजातों के परिजनों ने अस्पताल के बाहर जमकर हंगामा किया और सरकार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और लापरवाही की पोल खोलकर रख दी। पीड़ितों ने बताया कि नवजातों को सही तरीके से दूध नहीं पिलाया गया है, उनके साथ ज़बरदस्ती अव्यवस्थित तरीके से व्यवहार किया जा रहा है। जिसके कारण उनकी मौत हो रही है।

इस बात को पुख्ता करते हैं कमल जाटव, जिन्होंने एक महीने पहले अपनी बेटी को डिलीवरी के लिए इंदौर के सरकारी अस्पताल महाराजा तुकोजीराव जाटव अस्पताल में भर्ती करवाया था। वो बताते हैं, "10 जून को डिलीवरी हुई थी, तीन दिन इलाज चलने के बाद डॉक्टर ने आईसीयू से बाहर निकालकर, नॉर्मल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया। लेकिन नॉर्मल वॉर्ड में इतनी गंदगी और बदबू भरी पड़ी है कि बच्चे को उल्टी दस्त और पेट फूलने जैसी समस्याएं होने लगी। इतना ही नहीं मेरी बेटी ने बताया कि बच्चे को सिरीज़ के ज़रिए प्रेशर से दूध पिलाया जा रहा है, जिसके कारण वो फेफड़े में जमता रहा और आखिरकार उसकी मौत हो गई।"

कमल जाटव बताते हैं कि मेरे नाती की ही तरह पिछले दिनों 6-7 बच्चे मर गए। ज़्यादातर बच्चों की सही देखभाल नहीं होने के कारण उनकी मौत हो रही है।

हालांकि अस्पताल प्रशासन इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है, और मौत के कारण कुछ और बता रहा है, अस्पताल की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि ये नॉर्मल प्रक्रिया है।

इस विषय में न्यूबॉर्न केयर यूनिट के प्रभारी डॉ सुनील आर्य दावा करते हैं, "एक दिन में 15 बच्चों की मौत की ख़बर ग़लत है, एक दो बच्चों की मौत हुई, बच्चों की मौत फेफड़े में दूध जाने की वजह से हुई है, क्योंकि बच्चा कमज़ोर था और ये आम बात है, कमज़ोरी के कारण ही फीड के वक्त दूध बच्चों के फेफड़े में चला जाता है, जिसके कारण कई बार बच्चों को सांस लेने में तकलीफ होती है और इसी कारण उनकी मौत हो जाती है।"

डॉ सुनील आर्य बताते हैं, "हमारे यहां पर जो बच्चे भर्ती होने आते हैं, कई बार वो कमजोर होते हैं, और कई बार हमारे यहां डिलीवर होने वाले बच्चे भी कमज़ोर होते हैं। आईसीयू में हर रोज़ कम से कम 15 बच्चे एडमिट होते हैं और वो सब सीरियस होते हैं। जो बच्चे सीरियस होते हैं उनकी डेथ होना स्वाभाविक सी बात है।"

मौत के आंकड़ों के बारे में सुनील आर्य कहते हैं, "हमारे पास डेथ रेट 8.5 से 9 प्रतिशत है, जो हर महीने का आंकड़ा है। मान लीजिए 600 बच्चे एडमिट हुए हैं तो करीब 30 बच्चों की मौत हो जाती है।"

मौत की ख़बरों को झूठा साबित करने के लिए डॉ आर्य ने अपने आंकड़े रखे, लेकिन पिछले एक महीने से भर्ती अपनी बहन की देखभाल कर रही मोहिनी जाटव बताती हैं, "हर रोज़ रात में 5 से 6 बच्चे निकाले जाते हैं, और ये डॉक्टर सभी की मौत का कारण एक ही बता रहे हैं कि उनके फेफड़े में दूध जम रहा है, उल्टियां हो रही हैं और पेट फूल रहा है।"

अस्पताल की ओर से दावा किया जा रहा है, कि घटना की जांच के लिए भी पुलिस पोस्टमार्टम के लिए कहा गया है कि ताकि घटना का कारण स्पष्ट हो जाए। साथ ही ये भी दावा किया जा रहा है कि प्री मैच्योर डिलीवरी हुई हैं, 1.4 किलो के बच्चे पैदा हुए हैं, यह बहुत लो वेट हो जाता है। नवजात बच्चे का सामान्य वजन 2.5 से 3 या 3.5 किलो तक का होता है। मरने वाले बच्चे गंभीर हालत में ही आए हैं।

उधर हंगामा बढ़ता देख मध्य प्रदेश कांग्रेस की उपाध्यक्ष शोभा ओझा ने घटना की मजिस्ट्रियल जांच की मांग की है, इसके साथ ही विधायक जीतू पटवारी ने स्वास्थ्य मंत्री का इस्तीफा मांग लिया है।

प्रदेश उपाध्यक्ष शोभा ओझा ने कहा, "हर दिन औसतन तीन बच्चों की मौत होना शर्मनाक है, पूरे अस्पताल में गंदगी का आलम है, ना पीने का पानी है ना टॉयलेट हैं, डॉक्टरों की लापरवाही से बच्चों की मौत हो रही है। वे सीधे मुंह बात करने को तैयार नहीं हैं, इसलिए हम पूरे मामले में मजिस्ट्रियल जांच की मांग करते हैं।"

वहीं कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने कहा, "जब प्रशासन ही बताने में असमर्थ है कि कितने बच्चे मरे और क्या कारण है, इसके लिए स्वास्थ्य मंत्री दोषी हैं। हमारी मांग है कि वे पद पर रहने लायक नहीं हैं, उन्हें अपना इस्तीफा दे देना चाहिए।"

फिलहाल इस मामले में अभी तक सरकार की ओर से कोई बयान नहीं आया है, और दूसरी ओर अस्पताल प्रशासन की ओर से भी बच्चों की मौत के पुख्ता आंकड़े भी सामने रखे नहीं गए हैं। हालांकि कुछ डॉक्टरों मे आंकड़े रखने की कोशिश की, लेकिन वो पीड़ित परिजनों के मुताबिक बिल्कुल झूठ हैं।

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