झारखंड: ‘मंईयां’ ने बनाई फिर ‘अबुवा सरकार’
सचमुच में वोटों की गणना से एक दिन पहले ही झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम को लेकर लिखे गए आर्टिकल ‘जनादेश तो है महफूज़, मिडिया जितना करे कंफ्यूज़’ के पूर्वानुमानों को झारखंड प्रदेश के बहुसंख्य मतदाताओं ने सही साबित कर दिखाया।
देश के प्रधानमंत्री-गृहमंत्री-मंत्री-योगी जी समेत कई-कई दिग्गज़ नेता-मंत्रियों द्वारा लगातार 18 दिनों तक पूरे राज्य में घूम घूम कर की गयी 185 “नफ़रत-विभाजन राजनीति की सभाओं” की धूल-धक्कड़, ‘हेमंत-कल्पना’ की आंधी के आगे टिक न सकी। ‘एक ही नारा, हेमंत दुबारा’ भारी जनादेश लेकर जीत का परचम लहरा गया। राज्य गठन के 24 वर्षों में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया झारखंड प्रदेश में INDIA-गठबंधन की सरकार का दुबारा सत्तासीन होना। क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी सरकार ने न सिर्फ अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया बल्कि पुनः हुए चुनाव में भी बहुमत (41 सीट) से काफी अधिक (56) सीटों की शानदार जीत हासिल कर दुबारा शासन में आयी हो।
एक चुनावी मजाक यह भी चला है कि- देश के प्रधानमंत्री जी, अपने केन्द्रीय गृह मंत्री-रक्षा मंत्री और उन्मादी साम्प्रदायिक आग उगलनेवाले नेता योगी जी समेत कई-कई केन्द्रीय मंत्री-मुख्यमंत्री व पार्टी के दिग्गज़ नेताओं को लेकर तीन महीनों से भी अधिक समय तक लगातार पूरे राज्य का फेरा लगाया। “बटेंगे तो कटेंगे”, “लव जिहाद-लैंड जिहाद”, “घुसपैठियों से मां-माटी-बेटी की रक्षा करेंगे, चुन-चुन कर भगायेंगे” जैसे अनर्गल उन्मादी बोल-वचन पूरी ढीठाई के साथ प्रलापने का काम किया। जिसके खिलाफ कई बार INDIA-गठबंधन दलों के साथ साथ नागरिक संगठनों द्वारा केन्द्रीय व राज्य चुनाव आयोग के समक्ष गंभीर आपत्तियां-लिखित विरोध दर्ज़ किये जाए के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई। अंत में प्रधानमंत्री जी ने अपने श्रीमुख से जो नारा दिया कि- “एक रहेंगे तो सेफ़ रहेंगे”! झारखंड के अमन-लोकतंत्र पसंद मतदाताओं ने उन्हीं के ख़िलाफ़ ज़मीन पर हू-ब-हू लागू कर दिया। प्रचंड सामाजिक एकता को स्थापित करते हुए उनकी पार्टी को पूर्व की 25 सीटों से 21 पर ला पटका।
पूरे NDA गठबंधन कुनबे को कुल 24 सीटों पर समेटकर फिर से सदन के विपक्ष में बैठने का जनादेश देकर यह भी सन्देश दिया कि यदि गैर भाजपा दलों में सामाजिक रूप से ‘वास्तविक और ज़मीनी एकजुटता’ रहेगी तो चुनावों में उन्हें अपेक्षित सफलता ज़रूर मिलेगी। देश में बढ़ती “नफ़रत-हिंसा-विभाजन” की राजनीति पर लगाम लगाई जा सकती है।
बड़ी चर्चा यह भी है कि ‘मंईयां’ (मंईयां सम्मान योजना) सबके सर चढ़कर बोली। जिसने पूरे राज्य की ग्रामीण महिला मतदाताओं को (यहाँ तक की भाजपा समर्थित घरों में भी) ऐसा सक्रिय बनाया कि गाँव-घर का मर्द-समाज उन्हें INDIA-गठबंधन के प्रत्याशियों के निशान पर EVM-बटन दबाने से नहीं रोक सका। हेमंत सोरेन सरकार से कई नाराज़गियां रहने के बावजूद उन्हें व उनके गठबंधन को फिर से सत्तासीन बनाने के लिए बहुमत से भी अधिक एक शानदार जीत दिलायी। साथ ही झारखंड प्रदेश में झारखंड वासियों के लिए एक ‘अबुवा (अपना) सरकार’ के गठन को सुनिशिचित बनाया।
सबसे आश्चर्यजनक रहा कि जिस संताल परगना क्षेत्र को टारगेट कर खुद प्रधानमंत्री व केन्द्रीय गृह मंत्री ने महीनों पहले से ही “बंगलादेशी घुसपैठ” का मुद्दा उछालकर आदिवासियों की घटती हुई “डेमोग्राफी” का मुद्दा हल्ला-बोल ढंग से उठाया। “हिन्दू-मुसलमान” और “आदिवासी-मुसलमान” का विभाजनकारी राजनीति से वोट-ध्रुवीकरण की हरचंद कवायद की। झारखंड हाई कोर्ट को त्वारित संज्ञान लेकर सक्रिय बनाया। वह सब का सब न सिर्फ धरा का धरा रह गया बल्कि एक तरह से भाजपा के ख़िलाफ़ ही “बैक फायर” करने का काम किया। जिसका अंदाजा इसी से लगया जा सकता है कि पूरे संताल परगना क्षेत्र की कुल 18 विधानसभा सीटों में 17 पर भाजपा का ही सूपड़ा साफ़ हो गया। यहाँ तक कि धर्म-राजनीति के संचालन केंद्र “बाबाधाम” यानी देवघर सीट पर भी भाजपा पिट गयी।
\इसी तरह से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन जी को सामने रखकर अपनी आदिवासी छवि चमकाने की कवायद भी बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी। पूरे कोल्हान क्षेत्र की 14 सीटों में 11 पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। जनाब चंपई सोरेन किसी तरह से जीत हासिल कर अपनी साख बचा पाये।
मीडिया से सुनियोजित दुष्प्रचारों के धूल-धक्कड़ के बीच भी उत्तरी छोटा नागपुर की कुल 14 सीटों में से 10, पलामू जोन के 9 में से 5 के साथ साथ दक्षिण छोटानागपुर क्षेत्र के 15 सीटों में 13 सीटों पर INDIA गठबंधन की धमाकेदार जीत ने दिखला दिया कि “धनबल और मिथ्या नैरेटिव” से कहीं अधिक भारी है जागरूक मतदाता जनता का एकजुट ‘जनबल’। जिसके आगे राज्य क्या देश की केंदीय सत्ता-शासन की भी हैसियत कुछ नहीं है।
इस चुनाव ने इस सत्य को भी फिर से प्रमाणित-स्थापित कर दिया कि झारखंड प्रदेश के आदिवासी समुदाय आज भी भाजपा को तीखे अंदाज़ में पूरी तरह से नापसंद करते हैं। राज्य की कुल 28 आदिवासी सुरक्षित सीटों में से सिर्फ 1 सीट पर वह भी चम्पई सोरेन जैसे वरिष्ठ आदिवासी नेता की नकारात्मक महत्वाकांक्षाओं का इस्तेमाल करके बीजेपी जीत दर्ज करने में सफल हो सकी।
INDIA-गठबंधन के सभी घटक दल कमोबेश बेहतरीन आपसी तालमेल का परिचय देते हुए सफलता के झंडे गाड़ने में काफी हद तक सफल रहे। मुख्य घटक दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चुनावी सफलता का नया रिकार्ड बनाते हुए 34 सीटें हासिल की। कांग्रेस ने 16 और राजद ने 4 सीटों पर जीत हासिल किया। गठबंधन के घटकों में शामिल वाम दल के रूप में पहली बार भाकपा माले के दो विधायक अपना लाल परचम लहराने में सफल रहे। दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि अन्य प्रमुख वामपंथी दल सीपीएम एवं सीपीआई को कतिपय कारणों से गठबंधन द्वारा एक भी सीट नहीं दी गयी। दोनों वाम दलों ने स्वतंत्र रूप से कुछेक स्थानों पर चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किये लेकिन किसी भी सीट पर कोई बड़ा वोट नहीं हासिल कर सके।
उधर, तीन तीन आयातीत बड़बोले और नफ़रत उगलनेवाले नेताओं को पिछले तीन महीनों से पूरे राज्य में “घुड़दौड़” कराकर “जीत पर महाजीत” का दावा ठोकते हुए हेमंत सोरेन सरकार की हमेशा के लिए बिदाई कर देने का फतवा देने वाली भाजपा को सिर्फ 21 सीट पर ही सिमट जाना पड़ा। NDA के दूसरे घटक दलों में जदयू-1, आजसू-1 व लोजपा (आर) को भी 1 पर सिमटे रहना पड़ा। NDA-गठबंधन को कुल 24 सीटें ही मिल सकी। झारखंडी कुरमी युवाओं के फायर ब्रांड नेता बनकर उभरे जयराम महतो ने जीत हासिल कर प्रदेश की जातीय-राजनीतिक समीकरण दुनिया में प्रदेश के महतो समुदाय के एक नए नेता के रूप में अपनी इंट्री की है। मीडिया विश्लेश्नों में इनकी पार्टी “झारखंड लोकतान्त्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेकेएलएम्) ने पिछले लोकसभा चुनाव की तर्ज़ पर इस बार के विधान सभा चुनाव में एक धमाकेदार दस्तक दी है। इस मोर्चा ने राज्य के युवाओं (विशेषकर कुरमी युवा) में जबरदस्त प्रभाव बनाया है। जिसने एक ओर, कुरमी-राजनीति के अब तक सबसे मुखर दावेदार रही आजसू पार्टी समेत NDA गठबंधन को 9 से भी अधिक सीटों पर सीधे तौर से प्रभावित कर बुरी तरह से हार का स्वाद चखने पर मजबूर कर दिया। वहीं INDIA-गठबंधन को भी कुछेक सीटों पर अच्छा-खासा नुकसान पहुँचाने का काम किया। हालांकि इस मोर्चा के सुप्रीमो ने ही किसी तरह से एक सीट हासिल करने में सफलता पायी। एक नयी बात यह भी हुई है कि पहली बार झारखंड की विधान सभा में 12 महिला विधायक जीत कर आयीं हैं।
‘जीत-हार’ को लेकर गांवों से लेकर शहरों के चौक-चौराहों की जारी चर्चाओं में यह बात सबसे अधिक सरगर्मी लिए हुए है कि- विगत कई वर्षों से खासकर ऐन चुनाव के मौकों पर एक “स्थापित दल व गठबंधन” द्वारा जिस तरह से “नफरत-विभाजन और हिंसा” की राजनीति का जहरीला वातावरण तैयार कर वोटों का उन्मादी ध्रुवीकरण कराया जाता है, इस बार के चुनाव में देश का सबसे पिछड़ा राज्य के रूप दर्ज झारखंड प्रदेश के जागरूक मतदाताओं ने अपनी दृढ़ सामाजिक एकता से उसे हर मोर्चे पर पटखनी देने का अद्भुत कीर्तिमान बनाया है। कॉर्पोरेट-कंपनी परस्त और नफरती राजनीति की हर साज़िश-कुचक्रों का करारा जवाब देकर देश की गंगा-जमुनी तहजीब की संस्कृति की बुलंद पताका को झुकने नहीं दिया। सबसे बढ़कर जिन आदिवासी समुदायों को महानगरों-नगरों में बसे “अतिसभ्य कुलीन और हाईटेक कल्चर्ड कुलीन” तबकों द्वरा सदा उपहास-उपेक्षा का बर्ताव किया जाता है, उन्होंने दिखला दिया कि देश के ‘अमन-भाईचारा और एकता’ के वे ही सबसे मजबूत स्तम्भ हैं। जिन्हें नज़रंदाज़ करने वाला खुद ही इस देश की माटी में अपना वजूद नहीं रख पायेगा।
झारखंड के इसे जानादेश ने इस मिथ को भी पूरी तरह से धो डाला है कि- किसी भी क्षेत्र अथवा प्रदेश के विकास की गारंटी सिर्फ “डबल इंजन की सरकार” ही दे सकती है।
(लेखक एक संस्कृति कर्मी और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. विचार व्यक्तिगत हैं )
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