झारखंड विधानसभा चुनाव: जनादेश तो है ‘महफूज़’ ‘मीडिया’ जितना करे कन्फ्यूज़!
“समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अन्ताक्षरी...” कहकर, एक ज़माने में छात्र-युवा अपने खाली समय को बिताने के लिए “अन्ताक्षरी’ खेल खेलते थे। जिसका अंतिम हासिल यही निकलता था कि- चलो अच्छा टाइम पास हो गया।
कुछ ऐसा ही नज़ारा इन दिनों झारखंड में आप सहज ही देख-सुन सकते हैं कि कैसे तथाकथित अधिकांश “मीडिया” से “एग्ज़िट पोल” के नाम पर ख़बरों की उछल-कूद मचाकर मतगणना पूर्व के समय को भी “सनसनीखेज” बनाने की कवायद की जा रही है।
यह कोई मीडिया पर व्यक्तिगत किस्म की टिप्पणी या आलोचना नहीं है। बल्कि ये चंद “कड़वे” शब्द उनके लिए इस्तेमाल किये जा रहें हैं जो “खाते” तो हैं झारखंड प्रदेश की ‘माटी’ का लेकिन “गाते” हैं किसी और का। गोया प्रदेश निवासियों की जनआकांक्षाओं से भी उनका कोई लेना-देना नहीं है। अलबत्ता राज्य की सरकार से दी जानेवाली “सरकारी विज्ञापनों” की भरी-भरकम राशि लेने में ज़रा भी विलंब नहीं होता है।
स्थापित मीडिया के “बहुरंगी भूमिका” का नज़ारा, जो मैंने भी देखा-सुना कि- कैसे 20 नवम्बर को सम्पन्न हुए अंतिम चरण के मतदान के पूर्व की चुनावी ख़बरों में अधिकांश मीडिया ने किस ढीठाई से खुलकर “केंद्रपरस्ती” दर्शायी। शायद ही ऐसा कोई दिन होगा जिस दिन चुनावी ख़बरों का अधिकांश हिस्सा सिर्फ और सिर्फ “एक दल विशेष और उसके स्टार-कैम्पेनर” नेताओं पर विशेष केन्द्रित नहीं रहा हो। गोया झारखंड में राज्य का नहीं कोई राष्ट्रीय चुनाव हो रहा हो। जबकि चुनाव आयोग के ‘आदर्श चुनाव आचार संहिता’ के तहत मीडिया के लिए भी स्पष्ट निर्देश है कि उसे निष्पक्ष होकर काम करना है।
लेकिन सबकी खुली आँखों के सामने ये कवायद होती रही और “दल विशेष व उसके नेताओं” की छोटी से छोटी चुनावी गतीधियों की भी ख़बरें भव्य रंगीन तस्वीरों-बड़ी ख़बरों के साथ प्रकाशित-प्रसारित होती रहीं। वहीं INDIA-गठबंधन व अन्य निर्दालिय प्रत्याशियों की चुनावी ख़बरें भीतर के पन्नों में या तो बिना तस्वीरों के अथवा ब्लैक-व्हाइट में प्रकाशित करने का कोरम पूरा किया गया।
हालाँकि झारखंड प्रदेश के गठन के 24 वर्ष बीत जाने के दौरान यहाँ के लोग अधिकांश मीडिया की “केन्द्रपरस्ती” के अभ्यस्त से हो गये हैं। इसलिए मीडिया में परोसे गए “सच” को लेकर वे बहुत प्रतिक्रिया में नहीं जाते हैं।
बहरहाल, झारखंड विधानसभा 2024 चुनाव के मतदान की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है। दो चरणों में संपन्न हुए मतदान के बाद अब 23 नवम्बर को मतों की गणना होनी है।
यूं तो इस बार के चुनाव में भी मुख्य मुकाबला दोनों मुख्य प्रतिद्वंदी गठबंधन (इंडिया गठबंधन और एनडीए) के बीच ही है। कुछेक स्थानों पर मामला इन दोनों गठबन्धनों से अलग भी होने के अनुमान लगाए गए हैं।
राज्य में स्पष्ट बहुमत-जनादेश और सरकार बनाने को लेकर दोनों ही मुख्य गठबन्धनों के नेताओं-प्रवक्ताओं ने अपने अपने दावे पेश कर दिए हैं। तथाकथित “एग्ज़िट पोल” को लेकर भी देखा जा रहा है कि अंतिम चरण के मतदान की समाप्ति उपरांत त्वरित खबर प्रसारण में 9 समाचार एजेंसियों द्वारा जारी किये गए “ज़मीनी सर्वे रिपोर्टों’ में तीन ने NDA की बढ़त के आंकड़े दिए हैं तो तीन के अनुसार INDIA को बढ़त दिखाई गयी है। वहीं कई स्वतंत्र किस्म के मीडियाकर्मियों ने भी अपनी सोशल मीडिया बेवसाइटों पर अपना “एग्ज़िट पोल” दिया है।
रांची के एक वरिष्ठ पत्रकार ने तो खुलकर अपने सोशल मीडिया पोर्टल पर लिख दिया है कि- आज के मतदान ने राज्य के उन असामाजिक तत्वों व घटिया स्तर के तथाकथित पत्रकारों पर भी करारा तमाचा मारा है जो हर चुनाव को सिर्फ “जाति-धर्म” के नज़रिए से देखने के ही “संस्कारी-अभ्यस्त” हैं। जबकि हर जाति धर्म के लोगों ने खुलकर जिसको मन किया मतदान किया है। ऐसा भी नहीं है कि किसी ख़ास जाति के लोगों ने किसी ख़ास धर्म के लोगों की खास पार्टी को वोट देकर मतदान की इतिश्री कर दी। ग्रामीण क्षेत्रों में तो खुलकर भारी मतदान हुआ। कहीं कोई मुकाबला नहीं दीख रहा, हर जगह झामुमो-गठबंधन (इंडिया) मजबूत स्थिति में दीख रहा। वैसे चुनाव आयोग ने इस चुनाव को मज़ाक बनाने में कोई कोताही नहीं की है। वह खुद अपने ही आदेशों का पालन नहीं कर पा रहा है। मुख्य चुनाव मुखिया रावी कुमार से लेकर राजनीतिज्ञों के साथ साथ चैनलों ने भी “आदर्श आचार संहिता” की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं।”
उक्त पत्रकार महोदय लम्बे समय से हेमन्त सोरेन सरकार के कटु आलोचक रहें हैं. फिर भी इनकी लिखी बातों से सहमत होना या न होना एक अलग विषय है। लेकिन यह बात तो बिल्कुल सही है कि झारखंड प्रदेश स्थित राजधानी रांची से लेकर धनबाद-बोकारो सरीखे “एडवांसड शहरों” जहाँ बेहद “कुलीन-सुशिक्षित भद्रजन जागरूक मतदाता” रहते हैं, इनकी तुलना में गाँव आगे रहे। एक बार फिर से राज्य के ग्रामीण मतदाताओं ने भारी मतदान कर दिखला दिया है कि इस राज्य की “सुविधाओं का एलीट उपभोग” से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है यहाँ के आम नागरिकों की बेहतरी का सवाल। ना नुकुर के बावजूद सभी मीडिया को कहना पड़ रहा है कि अलग राज्य गठन के बाद पहली बार हुई सबसे अधिक वोटिंग।
राज्य में संपन्न हुए दोनों चरणों का कुल औसत मतदान 68.45 बताया जा रहा है जिसमें सर्वाधिक भागीदारी ग्रामीण क्षेत्रों (विशेषकर आदिवासी बाहुल्य) की है।
23 नवम्बर को 8 बजे सुबह से ही मतों की गणना शुरू हो जाएगी। सभी जिला एवं मुख्य चुनाव केन्द्रों के ‘स्ट्रांग रूम’ में सारी EVM मशीनें सीलबंद रखी गयीं हैं। जिनकी निगरानी के लिए सभी राजनीतिक दलों ने ‘वज्रगृह’ के समीप चुनाव प्रशासन द्वारा दिए गए स्थलों पर अपने अपने कार्यकर्ताओं की पहरेदारी लगा रखी है।
INDIA गठबंधन और झामुमो द्वारा पहले से ही सोशल मीडिया निर्देशों में ये आह्वान किया गया है कि- जब तक स्ट्रांग रूम पूरी तरह से सील नहीं हो जाता, तब तक अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करें। हर गतिविधि पर बारीक़ नज़र बनाये रखें। यह बेहद महत्वपूर्ण समय है कि आप किसी भी स्थिति में कोई ढीलाई न बरतें। हर छोटी से छोटी गतिविधि पर ध्यान दें। स्ट्रांग रूम सील होने बाद और भी मुस्तैदी के साथ प्रशासन द्वारा चिन्हित स्थानों पर जमे रहें, मुस्तैद रहें।
उधर हेमंत सोरेन ने ऑन-लाइन संबोधन में अपने सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को चुनाव कार्य में युद्ध स्तर पर सक्रिय रहने के लिए अभिन्दन करते हुए वोटों की गणना के लिए चाक-चौबंद रहने का आग्रह किया है।
तमाम बातों के बावजूद एक बात तो क़ाबिले-गौर है कि झारखंड प्रदेश में जब भी राज्य के गांवों ने भारी मतदान किया है तब तब ‘जनता का जनादेश’ एक सार्थक परिणाम लेकर आया है। जिसे अंतिम तौर पर मतगणना उपरांत चुनाव के नतीजे ही बताएँगे कि ‘जनादेश कैसा’ रहा।
वैसे, पूर्व के भी चुनाव नतीजों में यह खुलकर परिलक्षित होता रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और उसके NDA गठबंधन को आम झारखंडी जनता आज भी पसंद नहीं करती है। इसके बावजूद 23 नवम्बर को ही ‘जनादेश’ खुलकर सामने आयेगा!
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और नाट्यकर्मी हैं। साथ ही एक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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