Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ जंग का ऐलान करते हुए देश के हुक्मरान, टाइम मशीन से देश को मुगलकाल में वापस ले जाकर, वापस तलवार लेकर लड़ाई के मैदान में उतरने जैसा तेवर दिखाते हैं।
communalism
सांकेतिक तस्वीर। साभार: scroll.in

नफ़रत का ख़ून इनके मुंह को लग गया है और अब ये शिकार खोजते रहते हैं। इसका ऐलान लाल किले के प्रांगण से होता है। औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ जंग का ऐलान करते हुए देश के हुक्मरान, टाइम मशीन से देश को मुगलकाल में वापस ले जाकर, वापस तलवार लेकर लड़ाई के मैदान में उतरने जैसा तेवर दिखाते हैं। इसके बाद एक टीवी न्यूज़ एंकर अपने शो में देश के एक मुख्यमंत्री को औरंगज़ेब कहता है और फ़र्ज़ी ख़बरें दिखाकर नफ़रत भरी उल्टी करता रहता है, लगातार। उधर, एक ऐसा चैनल—जिसे न्यूज़ चैनल कहना ख़बरों का अपमान होगा, वह भारतीय सेना को डंडा लेकर दौड़ाता है। सेना उसके आगे दंडवत होती, रोज़ा इफ्तारी की दावत वाला ट्वीट डिलीट करके गर्व से सीना ठोंकती है—नये भारत के मालिकों को है सलाम!

यह सब किसी फिल्म का सीन नहीं, हमारे लोकतंत्र की असली फिल्म जो चल रही है, उसके अलग-अलग दृश्य हैं। यह फिल्म शुरू तो हो गई हैं, रोज इसके नये-नये हौलनाक दृश्य हमें देखने को मिलते हैं, बस इसके ख़त्म होने के आसार नहीं है—unending type है। न किसी को आप संविधान की दुहाई दे सकते हैं और न ही कानून के पालन की। संविधान को आज-नहीं तो कल ये लोग बदल ही लेंगे और कानून लागू करने वाली वर्दी इनके हथियारों को भांजते जुलूसों के साये में चल रही है।

सेना का मनोबल किसने-कैसे गिराया, यह देश ही ने नहीं दुनिया भर ने देखा है। जो सेना अपने एक कार्यक्रम पर किये गये ट्वीट पर नहीं टिकी रह सकती, वह कहां पर कितनी देर टिकेगी, यह अलग सवाल है। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि किस तरह से एक अदना से सुदर्शन टीवी का प्रमुख सुरेश चव्हाणके देश की सेना से बड़ा हो गया, देश के संविधान से बड़ा हो गया। उधर, नेटवर्क 18 का न्यूज़ एंकर अमन चोपड़ा जिसकी यूएसपी-ख़ासियत ही नॉन स्टॉप नफ़रत उगलना है, वह एक चुने हुए मुख्यमंत्री–राजस्थान के अशोक गहलोत के ख़िलाफ जहर उगलता है, नफ़रत भरी बेबुनियाद बातें कहता है, दिल्ली के जहांगीरपुरी में मुसलमानों के ख़िलाफ़ चलाए गये बुलडोजर के बदला लिये जाने जैसा झूठा-वैमन्सय फैलाता है और आज़ाद घूमता रहता है। जबकि इसी देश में उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और मौत की रिपोर्ट करने जा रहे पत्रकार सिद्दीक कप्पन अभी तक जेल में बंद हैं। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस में दलितों की दुर्दशा पर लिखने वाले पत्रकार--- जीवन व मौत के बीच झूल रहे हैं। कश्मीर में अनगिनत पत्रकारों के ऊपर खौफनाक बर्बर कानूनों के तहत मामले ठोंक दिये गये हैं। इस तरह के अनगिनत मामले हमारे आंखों के आगे घटित हुए हैं—इनकी संख्या इतनी ज्यादा है कि सबको याद कर पाना और सबको याद रख पाना भी संभव नहीं होता।

इस तरह का नवीनतम मामला है गुजरात का। गुजरात विधानसभा के नौजवान-प्रखर दलित विधायक जिग्नेश मेवानी की असम पुलिस एक ट्वीट  के आधार पर गिरफ्तारी कर लेती है, लेकिन नफ़रती एजेंटों को वरदहस्त देती है। यह हमारे दौर का सबसे बड़ा और तीखा विरोधाभास (Paradox) है, जो तेजी से न्यू ऩॉर्मल में तब्दील होता जा रहा है।

यह जो नफ़रत का ख़ून लग गया है- सिर्फ गोदी-अंध भक्त, कॉरपोरेट पत्रकारों, बजरंगियों, विहिप जैसे अनगिनत संगठन के कार्यकर्ताओं, अधर्म संसद करने वाले, घनघोर महिला विरोधी, विकृत यौन लिप्सा से लिप्त अनगिनत यति नरसिंहानंद सरस्वतियों- बजरंग मुनियों को ही नहीं, बल्कि देश की सत्ता चलाने वाले लोगों को, सांसदों को विधायकों को। यह सब खुलकर नंगा नाच करने पर उतारू हैं, मामला सिर्फ रामनवमी जुलूस का नहीं, हनुमान जयंती के नाम पर उपद्रव का नहीं—यह एक सतत प्रक्रिया हो गई है। यह सोशल मीडिया—वॉटसऐप विश्वविद्यालय की घर-घर होने वाली नफ़रत की डिलीवरी से लगातार रक्तपिपासु होती जा रही है। चूंकि न्यायपालिका से लेकर लोकतंत्र के तमाम खंभे इस नफ़रती हुज़ूम के आगे नतमस्तक हैं, लिहाजा कहीं से भी इन पर रोक लगाने, लगाम कसने की कोई सूरत फिलहाल नजर तो नहीं आ रही। इसमें तसल्ली देने के लिए दो ख़बरे हैं— पहली मार्क्सवादी नेता (माकपा) वृंदा करात द्वारा देश की राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी में चल रहे बुल्डोजर के आगे खड़े होकर मानवता को बचाने की। यह तस्वीर बताती है कि बिना सड़कों पर उतरे नफ़रती बुल्डोजर को नहीं रोका जा सकता।

दूसरी ख़बर अकाल तख्त के बयान वाली है, जिसमें उसने गुरु तेग बहादुर के बलिदान पर हिंदू-मुसलमान की राजनीति न करने को कहा। अकाल तख्त ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाल किले से दिये गये भाषण की सख्त आलोचना की है और कहा है कि गुरु तेग बहादुर ने अपने जीवन का बलिदान सभी धर्मों के लिए किया था, सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं।

नफ़रत के ख़ून का चस्का जिस जमात को लग गया है, वह जंगल के आग की तरह फैल रही है। अगर आज भी कोई भारतीय नागरिक इस मुगालते में है कि यह आग अपने आप बुझ जाएगी, तो वह शायद देश की आहुति देने को तैयार है।  

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest