मुंबई: TISS में भगत सिंह मेमोरियल लेक्चर को लेकर छात्रों ने प्रशासन पर शहीदों के अपमान का लगाया आरोप!
देश के अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए देशभर में हर साल 23 मार्च को शहीदी दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर इन आज़ादी के परवानों को याद करने हुए अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। ऐसे ही एक आयोजन भगत सिंह मेमोरियल लेक्चर को लेकर मुबंई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के छात्र संघर्ष कर रहे हैं। छात्रों का आरोप है कि प्रशासन उन्हें हर साल आयोजित होने वाले इस लेक्चर की पहले तो अनुमति नहीं दे रहा था, और जब उसे मजबूरन छात्रों के दबाव में परमिशन देनी पड़ी तो अब इसमें कई सारी पाबंदियां लगा दी गई हैं।
बता दें कि TISS में भगत सिंह मेमोरियल लेक्चर बीते चार सालों से आयोजित हो रहा है, लेकिन ये पहली बार है जब छात्रों को इसके लिए आधी रात में डायरेक्टर के घर के सामने प्रदर्शन करना पड़ा है। यहां तक कि अब जब इस कार्यक्रम को प्रशासन द्वारा हरी झंडी मिल गई है, इसके बाद भी छात्र प्रदर्शन को मजबूर हैं, क्योंकि ये अनुमति कई सशर्त मिली है। जिसमें बाहर से किसी भी स्पीकर को बुलाने की मनाही के साथ ही तस्वीरों के प्रदर्शनी आदि को भी नियंत्रित करने की कोशिश की गई है।
पहले कार्यक्रम रद्द हुआ और फिर पाबंदियां बढ़ी
इस पूरे कार्यक्रम के आयोजन और छात्रों के प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे प्रोगेसिव स्टूडेंट्स फोरम का कहना है कि प्रशासन अपने अड़ियल रवैए से शहीद भगत सिंह की 92 वीं पुण्यतिथि पर उनका अपमान कर रहा है। पहले प्रशासन के पास कोई कारण नहीं था इसे रद्द करने का। अब भी कोई वजह नहीं है इसका वेन्यू शिफ्ट करने और बाहरी स्पीकर्स को न आमंत्रित करने के पीछे। ये सरासर प्रशासन की मनमानी है, जो इस देश के शहीदों को नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है।
संगठन के कुछ छात्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बीते कुछ समय से संस्थान का प्रशासन लगातार छात्र विरोधी फैसले लेता रहा है। इससे पहले बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर भी प्रशासन ने तानाशाही रवैया दिखाया था। ऐसे ही फीस बढ़ोत्तरी और कई अन्य मामलों में भी प्रशासन छात्रों के हित को दरकिनार कर एक विचारधारा को लादने की ओर बढ़ रहा है।
बता दें कि टाटा समाज विज्ञान संस्थान 1936 में स्थापित किया गया था, तब इसे 'सर दोराबजी टाटा ग्रेजुएट स्कूल ऑफ सोशल वर्क के नाम से जाना जाता था। साल 1964 संस्थान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जब इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम (यूजीसी), 1956 की धारा 3 के तहत विश्वविद्यालय घोषित किया गया था। अपनी स्थापना के बाद से ही TISS उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता का एक संस्थान रहा है जो लगातार लोगों के बीच समानता, सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों के लिए काम करता है। हालांकि बीते कुछ समय से संस्थान लगातार प्रशासन और छात्रों के बीच हो रहे विवादों को लेकर सुर्खियों में है। जिसका ताज़ा उदाहरण भगत सिंह मेमोरियल लेक्चर में प्रशासन का हस्तक्षेप है।
क्या है पूरा मामला?
इस पूरे विवाद की शुरुआत मंगलवार 21 मार्च को हुई, जब TISS के मुंबई कैंपस में भगत सिंह की पुण्यतिथि पर लेक्चर के आयोजन की तैयारी चल रही थी। इसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता और रिसर्चर हर्ष मंदर के साथ जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष आइशी घोष भी शामिल होने वाली थीं। छात्रों का आरोप है कि TISS प्रशासन ने भगत सिंह लेक्चर सीरीज को ही कैंसिल कर दिया है। जिसके बाद इसके विरोध में छात्रों ने TISS निदेशक के बंगले पर बीते मंगलवार को विरोध प्रदर्शन भी किया था।
छात्रों की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि, भगत सिंह से सीखने और प्रेरित होने वाले छात्र यह शर्मनाक हरकत नहीं होने देंगे। वो न्याय और अधिकार के लिए लड़ेंगे और जब तक प्रशासन सकारात्मक जवाब नहीं दे देता, उनका प्रदर्शन जारी रहेगा। हालांकि बुधवार, 22 मार्च को प्रशासन ने लेक्चर की अनुमति तो दे दी लेकिन बाहर के स्पीकर्स को इसमें शामिल होने से मना कर दिया गया। इसका कारण कैंपस की शांति व्यवस्था को बताया गया है। लेकिन छात्र इससे नाराज़ हैं, क्योंकि वो इस अवसर पर कुछ प्रतिष्ठित लोगों से उनके अनुभव और विचार सुनना चाह रहे थे।
वेन्यू शिफ्ट, प्रदर्शनी पर सेंसरशिप
प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम के मुताबिक उनका वेन्यू जोकि ओल्ड कॉन्फ्रेंस हॉल था, उसे भी बदलकर दूसरे स्थान पर शिफ्ट करने का प्रशासन ने निर्देश दिया है, जबकि इसकी पेमेंट पहले ही आयोजकों द्वारा की जा चुकी है। इसके अलावा भगत सिंह के जीवन संघर्ष पर लगने वाली प्रदर्शनी को भी प्रशासन द्वार सेंसर करने की कोशिश की गई है, जो बिल्कुल उचित नहीं है। जबकि इस पूरे कार्यक्रम की लिखित सूचना प्रशासन को 14 मार्च को ही उपलब्ध करवा दी गई थी, ऐसे में भगत सिंह मेमोरियल लेक्चर से महज चंद दिन पहले प्रशासन का इसे खारिज करना छात्रों के विचारों को दबाने की कोशिश है।
गौरतलब है कि 23 मार्च 1931 के दिन ही आज़ादी के परवानों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था। जिसके बाद देश के भीतर स्वतंत्रता क्रांति की एक नई लहर दौड़ पड़ी थी। ऐसे में आज देशभर के कई संस्थानों और विश्वविद्यालयों में शहीद ए आजम भगत सिंह को छात्र याद कर रहे हैं, उनके सम्मान में कहीं फोटो प्रदर्शनी, तो कहीं लेक्चर और मार्च का आयोजन भी किया गया है। छात्र भगत सिंह को सिर्फ श्रृद्धांजलि नहीं दे रहे हैं बल्कि जीवन और उनके संघर्षों को खुद में उतारने और आगे बढ़ाने की कोशिश भी जारी है।
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