जीएसटी परिषद उपाध्यक्ष की नियुक्ति न करने के पीछे की राजनीति
जिद और संकीर्ण राजनीतिक विचार जीएसटी परिषद के उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं करने में केंद्र की असाधारण देरी के कारण दिखाई पड़ते हैं। संविधान (101 वें संशोधन) अधिनियम, 2016 के अनुच्छेद 279 ए के अनुसार, इस परिषद के सदस्य-केंद्रीय वित्त मंत्री इसके अध्यक्ष के रूप में, और केंद्रीय राजस्व एवं वित्त राज्यमंत्री, राज्य सरकारों के वित्त एवं कर मंत्री, अथवा राज्यों द्वारा अन्य कोई मनोनीत व्यक्ति, “जितनी जल्दी संभव हो, अपने बीच से किसी व्यक्ति को स्वयं ही परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में चुनेंगे।”
विपक्ष द्वारा इस नियुक्ति की बार-बार मांग किए जाने के बावजूद केंद्र जानबूझ कर देरी कर रहा है। जबकि केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम 2017 के पारित होने के 4 साल से अधिक समय बीत गए हैं।
गैर भाजपा शासित प्रदेशों, जैसे पंजाब, केरल एवं छत्तीसगढ़ ने तो उपाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति की बारहां मांग की है। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा इस पद के मजबूत दावेदार समझे जाते थे और सूत्रों की माने तो तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी उनका समर्थन किया था। लेकिन निर्मला सीतारमण के वित्त मंत्री होने के बाद वित्त मंत्रालय किसी गैर भाजपा शासित प्रदेश से परिषद का उपाध्यक्ष बनाने के विचार के ही विरुद्ध है।
देश में संख्या की दृष्टि से मजबूत भाजपा शासित प्रदेशों ने इस “राजनीति पर ही अमल” किया है। अनुच्छेद 279 के उपबंध (3) का सुझाव है कि नीति-निर्माता उपाध्यक्ष चुने जाने में बारी-बारी से अवसर देने की प्रक्रिया को अमल में लाएंगे। इसीलिए, भाजपा शासित प्रदेश से भी किसी न किसी के उपाध्यक्ष होने की बारी आएगी। सूत्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया, “भाजपा इस बिंदु को देखने में फेल हो गई है। इस सरकार में बहुमतवाद अधिक मायने रखता है।”
अमित मित्रा ने केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमन को लिखे अपने अनेक पत्रों में से एक में परिषद के कामकाज में सुधार का आग्रह किया था। उन्होंने लिखा, “सहकारी संघवाद की भावना और प्रतिबद्धता में नियमित रूप से गिरावट आई है।” जीएसटी परिषद में राजनीतिक बहुसंख्यकवाद के तंग नजरिए के बारे में लिखते हुए मित्रा ने उनसे अनुरोध किया कि नार्थ ब्लाक के राजनीतिक प्रमुख जीएसटी परिषद में विश्वास का वह वातावरण फिर से कायम करें, जिसे परिषद की अवधारणा में परिभाषित किया गया था।
मित्रा ने आगे लिखा कि जैसा कि अध्यक्ष राज्यों की बातों को ‘विनम्रतापूर्वक’ सुनती हैं, लेकिन हाल के दिनों में ऐसा देखा गया है कि केंद्र के प्रतिनिधि काउंसिल की बैठक में अपने पूर्व निर्धारित निष्कर्षों से लैस होकर आते हैं।
केंद्र ने अभी तक जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन नहीं किया है, जबकि ऐसा जीएसटी अधिनियम की धारा 109 के तहत आवश्यक है। यह न्यायाधीकरण अपीलीय प्राधिकारी और पुनरीक्षण प्राधिकारी के आदेशों के खिलाफ मामलों को सुनवाई कर सकता है। इस मामले में वित्त मंत्री एवं परिषद के अध्यक्ष की निष्क्रियता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन की खंडपीठ ने 6 सितंबर को इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीकरण के मामले में अति असाधारण देरी के लिए केंद्र को आड़े हाथों लिया और अतिरिक्त महान्यायवादी तुषार मेहता से कहा,“ट्रिब्यूनल का गठन करना है। इसके लिए जवाबी हलफनामा देने का सवाल ही नहीं पैदा होता।”
परिषद की राष्ट्रीय पीठ के अलावा, क्षेत्रीय एवं राज्य स्तरीय पीठों की गठन की बात धारा 109 में कही गई है। याचिकाकर्ता की तरफ से यह जवाब दिया गया कि अपीलीय प्राधिकारी द्वारा अधिनियम की धारा 107 के तहत और पुनरीक्षण प्राधिकारी द्वारा धारा 108 के तहत दिए गए फैसलों से व्यथित एक नागरिक को मजबूर होकर अनुच्छेद 226 के अंतर्गत एक याचिका के जरिए उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ी है, जो पहले से ही काम के बोझ से लदे उच्च न्यायालयों पर एक तरह से अतिरिक्त भार देना है।
राज्यों को राजस्व वसूली में बनी खाई को पाटने के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में किए जाने वाले भुगतान का मामला भी केंद्र के लिए लड़ाई का विषय बना हुआ है। राज्यों को 5 साल की अवधि के भीतर क्षतिपूर्ति देने के प्रावधान की 5 साल की अवधि भी 30 जून 2022 को खत्म हो जाएगी। गैर भाजपा शासित अनेक प्रदेशों ने इस अवधि को अगले 5 साल तक और बढ़ाने की मांग काफी पहले कर रखी है। भाजपा शासित प्रदेश भी इस अवधि को आगे बढ़ाए जाने के पक्ष में हैं लेकिन वह इस मसले पर खुल कर बोलने से बच रहे हैं।
केरल के वित्त मंत्री केएन बालगोपाल ने न्यूज़क्लिक से कहा: “ केंद्र को क्षतिपूर्ति अवधि का विस्तार अवश्य ही करना चाहिए; हमने इस बारे में पहले ही परिषद के अध्यक्ष को लिख चुके हैं। राज्यों को उनके राजस्व संग्रह में आए अंतर को पूरा करने में सक्षम बनाने के मकसद से मुआवजे का वित्त पोषण गैर मेरिट वस्तुओं पर लगाए गए उच्च दर उपकर की संग्रह-राशि से किया जाता है।” इस अवधि के विस्तार की मांग करने वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, पंजाब, तमिलनाडु और ओडिशा भी शामिल हैं।
यह लागू फार्मूला कर संग्रह में सालाना 14 फ़ीसदी की संभावित वृद्धि पर आधारित है और जब ऐसा नहीं होता है तो राजस्व में अंतर की भरपाई कर संग्रह से किया जाता है। कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान खस्ता आर्थिक हालात ने राज्यों को बुरी तरह से पीड़ित किया है। यह धरातलीय सच्चाई केंद्र के अर्थव्यवस्था के “पटरी पर लौटने के स्पष्ट संकेत” के दावों में पूरी तरह से नहीं झलकती है।
केंद्र ने राज्यों को उनके आधे से अधिक स्वायत्त राजस्व आधार को छोड़ देने पर दबाव डाला है, जबकि जीएसटी में सम्मिलित केंद्रीय करों को इसकी सकल कर प्राप्तियों के 30 प्रतिशत से कम के लिए बना है। इसके अलावा, अधिनियम में बनाए गए विशेष प्रावधान के बावजूद, राज्यों को प्रत्येक 2 महीने पर क्षतिपूर्ति राशि नहीं मिलती है। इसकी भरपाई के लिए उन्हें प्रायः कर्ज लेना पड़ता हैं। यह राज्यों द्वारा क्षतिपूर्ति को जारी रखने की अपनी मांगों को न्यायसंगत ठहराने वाली दलीलों में सबसे अहम है।
दिलचस्प है कि, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंह देव, जो परिषद की बैठक में अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनका विचार है कि इसका एक विकल्प यह हो सकता है कि राज्यों को भी गैर मेरिट वाली वस्तुओं पर उच्च दर उपकर एकत्र करने के अधिकार दिए जाएं।
अब यह देखना शेष है कि जीएसटी काउंसिल की 17 सितंबर को लखनऊ में पूर्व निर्धारित 45वीं बैठक में संवेदनशील क्षतिपूर्ति का मुद्दा उठाए जाने पर केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमण कैसी प्रतिक्रिया देती हैं। कोविड-19 से संबंधित आवश्यक वस्तुओं-रेमदेसीविर, चिकित्सीय उपयोग के लिए ऑक्सीजन एवं ऑक्सीजन कंसंट्रेटर-की भी इस बैठक में समीक्षा की जाएगी।
अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
https://www.newsclick.in/Politics-Behind-not-Appointing-GST-Council-Vice-chairman
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