पंजाब: अब किन्नू किसान आंदोलन की तैयारी में
पंजाब में अब किन्नू की फसल का उत्पादन करने वाले किसान आंदोलन की राह अख्तियार करने जा रहे हैं। किसानों को अपनी फसल का मुनासिब दाम नहीं मिल रहा और सरकार न्यूनतम मूल्य तय नहीं कर पा रही। मौजूदा सीजन में तकरीबन साढ़े तेरह लाख टन किन्नू की फसल का उत्पादन हुआ है। यह अपने आप में रिकॉर्ड है। हासिल जानकारी के मुताबिक 47,000 हेक्टेयर क्षेत्र में किन्नू की खेती की गई। पंजाब और केंद्र सरकार जोर देती रही है कि सूबे के किसान गेहूं-धान के 'फसली चक्र' से बाहर आएं। लेकिन फल और गन्ना उत्पादकों के प्रति सरकारों का बेरुखी भरा रवैया नहीं बदलता! बीते दिनों गन्ना फसल उगाने वाले किसानों ने राज्य भर में जोरदार आंदोलन किया था। नेशनल हाईवे से लेकर रेलवे ट्रैक तक जाम कर दिए थे। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान से बैठक और आश्वासन के बाद उन्होंने धरना-प्रदर्शन खत्म किया था। अब किन्नू उत्पादक भी उसी तर्ज पर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं।
दरअसल, किसानों को किन्नू की फसल के लिए 6 से 15 रुपये प्रति किलोग्राम का दाम मिल रहा है। जबकि पिछले साल 20 से 25 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहे थे। हालांकि खुदरा बाजार में कन्नू 40 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से बेचा जा रहा है। (यानी कि किसानों का घाटा और व्यापारियों का मुनाफा!) किसानों का कहना है कि इस भाव पर वे अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे। किसानों का कहना है कि वे इस फसल के लिए तीस से चालीस हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च करते हैं। सरकार अगर न्यूनतम मूल्य तय नहीं करती तो वे इस फसल से किनारा कर लेंगे।
मालवा में; खासतौर पर अबोहर, बठिंडा और मुक्तसर जिलों में किन्नू की खेती सबसे ज्यादा होती है। (दोआबा के होशियारपुर में भी)। मालवा के वरिष्ठ किसान नेता बलवीर सिंह कहते हैं, "सरकार को किन्नू की फसल उगाने वाले किसानों की कोई फिक्र नहीं। सरकारी नीतियों के चलते वे बेहाल हैं। अगर किन्नू किसानों की मांगें पूरी नहीं की गईं तो राज्य स्तरीय आंदोलन होगा। विभिन्न किसान संगठन हमारे साथ हैं।" अबोहर के विधायक और किसान संदीप जाखड़ के अनुसार, "किसानों को फिलहाल किन्नू का जो भाव मिल रहा है वह लागत मूल्य से काफी कम है। सरकार फौरन इस फसल के लिए उपयुक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करे। वरना किसान आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।"
अबोहर जिले के रामगढ़ गांव के किसान अजीत शरण ने 90 एकड़ जमीन पर किन्नू की फसल उगाई है। उनके मुताबिक, "बरसों पहले से मैं इस फसल का उत्पादन कर रहा हूं। लेकिन ऐसी बदहाली पहली बार देखी। आलम यही रहा तो पंजाब में किन्नू की खेती से किसान दूर हो जाएंगे। इस राज्य का किन्नू शीर्ष गुणवत्ता की श्रेणी में आता है। दूर-दूर तक जाता है। फिर भी पंजाब और केंद्र सरकार हमारे प्रति लापरवाह है।"
किन्नू की खेती करने वाले किसान राजेंद्र सिंह सेखों कहते हैं, "आशंका है कि इस बार हमें घाटा उठाना पड़ेगा। सरकार ने कोई ठोस पॉलिसी तय नहीं की तो आंदोलन होगा। व्यापारी सीधा खेत से ही फसल उठा रहे हैं। यानी सरकार नमूदार है।" होशियारपुर के कन्नू उत्पादक वरिंदर सिंह ढिल्लों का कहना है कि अपनी मांगों की बाबत हम सरकार को घेरेंगे। चंडीगढ़ कूच की तैयारी की जा रही है।
गौरतलब है कि पंजाब के बेशुमार किसानों ने कर्ज उठाकर किन्नू की खेती की है। लेकिन वे लागत भी नहीं निकाल पा रहे।
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